मोहब्बत का प्रतिक करवाचौथ ......जिस जमीं पर मोहब्बत साँस लेती है उसकी सलामती की दुआ ख़ुद ब ख़ुद दिल कर उठता है ....पर जहां ज़मीं रुखी और खुरदरी हो ....हवाएं विपरीत दिशा में बह रही हो ....वहाँ ...ये रिश्ते सिर्फ़ रस्म का जमा पहन लेते हैं .......
वह फ़िर जलाती है
दिल के फांसलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दीया ...
कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द
निकालती है झोली से
टांक लेती है माथे पे ,
कलाइयों पे , बदन पे .....
घर के हर हिस्से को
करीने से सजाती है
फ़िर....गौर से देखती है
शायद कोई और जगह मिल जाए
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के फूल
पर सोफे की गर्द में
सारे हर्फ़ बिखर जाते हैं
झनझना कर फेंके गए लफ्जों में
दीया डगमगाने लगता है
हवा दर्द और अपमान से
काँपने लगती है
आसमां फ़िर
दो टुकडों में बंट जाता है ....
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
दिनभर की कशमकश के बाद
रात जब कमरे में कदम रखती है
वह बिस्तर पर औंधी पड़ी
मन की तहों को
कुरेदने लगती है ....
बहुत गहरे में छिपी
इक पुरानी तस्वीर
उभर कर सामने आती है
वह उसे बड़े जतन से
झाड़ती है ,पोंछती है
धीरे -धीरे नक्श उभरते हैं
रोमानियत के कई हसीं पल
बदन में साँस लेने लगते हैं ....
वह धीमें से ....
रख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
Wednesday, October 7, 2009
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72 comments:
करवा-चौथ पर आपकी इस कविता में काव्य-शिल्प बेजोड़ है । उपमाएँ बहुत कुछ कह रहीं हैं । एक-एक शब्द बहुत ही सुंदरता से औरत के मन की अंदरुनी परतों को और उसकी निष्ठा को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत कर रहा है ।
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
-सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति.
जिंदगी की धुप छाँव में बसी कशमकश को बहुत सुन्दरता के साथ चित्रण किया है आपने.
लाज़वाब रचना.
Karbala chauth par aurat ki bhaavnao ko sundrata se pesh kiya hai aapne Kaash usko koee samjhe. LAAJBAAB
bahut sundar hai....padhte-padhte drishya ubhar kar samne aa rahe hain...aabhar...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..प्रेम प्रदर्शित करती बढ़िया कविता..
बधाई.
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
aur jab tak khol ke dekhti hai darwaja...muhabbat laut gayee ho jati hai?
संस्कार और प्रेम के बीच अनूठा बंधन बाँध दिया है आपने ........ करवाचोथ हमारी संस्कृति का एक ऐसा प्रतीक है जो प्रेम को आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचाता है .............. पुसुश समाज को इस सत्य को गंभीरता से लेना चाहिए ....... सुन्दर रचना है .....
मोहब्बत का प्रतीक करवा चौथ अब बाज़ारवाद की भेंट चढ गया है । पति क्यो नही व्रत रखते क्या वे अपनी पत्नी से मोहब्बत नही करते ? क्या वफा का प्रदर्शन सिर्फ स्त्रियो का ज़िम्मा है ?
जहाँ जमी रूखी और खुरदुरी हो....
हवाएँ विपरीत दिशा में बह रही हों.....
वहाँ
इन रस्मों की और भी आवश्यकता है।
आप ने
अपनी ह्रदय स्पर्शी कविता के माध्यम से
इस रूखी जमीं को
जो नमी दी है
वह सराहनीय है।
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
" behad hi khubasurat rachana ka karva chouth ke din tohfa ..bahut hi khoob rahi rachana ."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
Truly Amazing..aap kya end karti hain nazmo ka..uske bina sab kuch adhoora lagta hai..
वाह ,,,,,,, क्या बात है हकीर जी !
आया था यूँ ही चहलकदमी करता हुआ
चुपचाप निकला न गया !
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
आपका लेखन ऊँचाईयों को छू रहा है
पूरी रचना मानो स्त्री के अंतर्मन का दस्तवेज हो
बेहतरीन ...बेमिसाल
मेरी शुभकामनाएं एवं स्नेह कबूल करें !
शायद कोई और जगह मिल जाए
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के फूल
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
सच कहा! पर ऐसा क्यों होता है?
पर सोफे की गर्द में
सारे हर्फ़ बिखर जाते हैं
झनझना कर फेंके गए लफ्जों में
दीया डगमगाने लगता है
हवा दर्द और अपमान से
काँपने लगती है
आसमां फ़िर
दो टुकडों में बंट जाता है ....
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल स्त्री के हृदय की मार्मिक पीड़ा की बहुत सजीव अभिव्यक्ति की है इस रचना में। दोनों के बीच प्रेम हो न हो किन्तु रस्म सिर्फ पत्नी को ही निभानी पड़ती है यह बहुत दुखद स्थिति है ।सामाजिक यथार्थ पर चोट करती रचना के लिए बधाई एवं शुभकामनाएँ.....
डा.रमा द्विवेदी
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के फूल
पर सोफे की गर्द में
सारे हर्फ़ बिखर जाते हैं...
और फिर
इक पुरानी तस्वीर
उभर कर सामने आती है
वह उसे बड़े जतन से
झाड़ती है ,पोंछती है
धीरे -धीरे नक्श उभरते हैं
रोमानियत के कई हसीं पल
बदन में साँस लेने लगते हैं ..
लौटती सांसें ...चुकती रूमानियत फिर लौट आती है ...
बहुत सुन्दर रचना ...!!
बेजोड़ कविता..
वाह इतने दिलकश अंदाज में करवा चौथ का बयान वाकई झकझोर के रख देता है १ एक विरहन करवाचौथ का व्रत करती है तो कुछ ये ही कशमकश उसके मन में होती है !!
चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
हर शब्द भावमय सागर में हिलोरे लेता हुआ, बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई
वह फ़िर जलाती है
दिल के फांसलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दिया ...
shayad yahi hai bhartiye naari ki kismat...
-Sheena
What a marvellous creation!
Beautiful & wonderful.
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....or darwaje pe peetth tika ke bhaati hai kitne hi aansu....
ek bemisaal,behtreen rachna.........aurat ke manobhavon ko jis kareene se ujagar kiya hai uske liye to lafz hi nhi hai............isse behtar prastuti nhi ho sakti.
हरकीरतजी,
आपकी इस रचना में स्त्री-मन के कई द्वार खुलते हैं. शब्द बड़ी नजाकत से आते हैं और बहुत कुछ कह जाते हैं ... करवाचौथ की संस्कारपूर्ण प्रेम-भक्ति को एक ख़ास कोण से देख पाना आपके कवि-मन की बेहतरीन उपज है. बधाई !
साभिवादन--आ.
लाजबाव रचना !!!!!
aakhri para ne to nishabd kar diya hai harqirat... kaise bun leti ho ye shabdo ka sansaar ..
ye to one of your bests hai ji ..
vijay
ओम आर्य said...
aur jab tak khol ke dekhti hai darwaja...muhabbat laut gayee hoti hai?
ओम जी मैंने यहाँ स्त्री के भीतर बसी मोहब्बत की बात की है ......!!
October 7, 2009 11:36 PM
दिगम्बर नासवा said...
करवाचोथ हमारी संस्कृति का एक ऐसा प्रतीक है जो प्रेम को आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचाता है .............. पुसुश समाज को इस सत्य को गंभीरता से लेना चाहिए .......
दिगंबर जी शायद ७० प्रतिशत रिश्ते ऐसे होंगे जहां ये त्यौहार सिर्फ रस्म निभाने के लिए मनाया जाता होगा ....!!
Manoj Bharti said...
करवा-चौथ पर आपकी इस कविता में काव्य-शिल्प बेजोड़ है । उपमाएँ बहुत कुछ कह रहीं हैं । एक-एक शब्द बहुत ही सुंदरता से औरत के मन की अंदरुनी परतों को और उसकी निष्ठा को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत कर रहा है ।
प्रकाश गोविन्द said...
वाह ,,,,,,, क्या बात है हकीर जी .
आपका लेखन ऊँचाईयों को छू रहा है
पूरी रचना मानो स्त्री के अंतर्मन का दस्तवेज हो
बेहतरीन ...बेमिसाल
Rama said...
वह चढा देती है सांकल स्त्री के हृदय की मार्मिक पीड़ा की बहुत सजीव अभिव्यक्ति की है इस रचना में। दोनों के बीच प्रेम हो न हो किन्तु रस्म सिर्फ पत्नी को ही निभानी पड़ती है यह बहुत दुखद स्थिति है ।सामाजिक यथार्थ पर चोट करती रचना
डा.रमा द्विवेदी
आनन्द वर्धन ओझा said...
हरकीरतजी,
आपकी इस रचना में स्त्री-मन के कई द्वार खुलते हैं. शब्द बड़ी नजाकत से आते हैं और बहुत कुछ कह जाते हैं ... करवाचौथ की संस्कारपूर्ण प्रेम-भक्ति को एक ख़ास कोण से देख पाना आपके कवि-मन की बेहतरीन उपज है. बधाई !
मनोज जी ,प्रकाश जी ,रमा जी , आनंद जी और विजय जी इस रचना को लिखते वक़्त मुझे कई बार सोचना पड़ा कि इसे प्रकाशित करूँ या न करूँ ....एक ओर ये पवित्र रस्म थी और दूसरी ओर एक कड़वी सच्चाई ....आप सबने इसे सराहा मुझे अपने लेखन से तसल्ली हुई .....शुक्रिया .....!!
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
_____________________
हकीकतों के असर इतने ही गहरे होते हैं।
bahut gahare bhav..umda...! jahan Rishte aupcharikta rah jaye..vahan kya ho ???
वह फ़िर जलाती है
दिल के फांसलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दिया ...
....खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
bahut khubsurati se bahut kuchh kah diya..kya baat hai...!
jhajhkor denewali rachna aur ek jatil rachnaprkriya, lekin ekrekheey, ekpakshiy.
kya baat hai...ik suhagan ko kya bakhoobi shabdon mein nibhaya hai aapne!!!
अपने ब्लाग पर आपके कमेंट से आपके ब्लाग तक पहुंचा। पहुंच कर सख्त अफसोस हुआ कि इतना सुंदर ब्लाग मैंने पहले क्यों न तलाश लिया था। आपकी कविताएं बहुत ही सुंदर होती हैं। कविताओं का चुनाव भी बेहतरीन है। खास कर अमृता की कविताओं का।
इस बेहतरीन ब्लाग के लिए आपको शुभकामनाएं।
waah !!
aapki kalam mein jadu hai
बहुत सुंदर लगी आप की कविता, सच मै यह त्योहार प्यार का त्योहार है.धन्यवाद
औरत के जज्बातों को बहुत खूब चित्रारा है।
पता नहीं हमने देखा मंजर या नजारा है
।
और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
yaadoN ki gumnaam
kirhkee se jhaanknaa...,
phir
khwaaboN ki
sooni pagdandee par
chal denaa....,
aur....
jb mn
vaapis laute...
to isi tarah ki
"nayaab aur umdaa"
nazm ka janm hota hai....
ek shaandaar kriti..
aapki lekhanee ko salaaaaaam !!
ऐसे सच से मै रूबरू हुआ हूं.....कई बार सोचा उस पर लिखूं...शायद अगली बार ....
aapki is rachna ko padhkar mujhe bhi houle houle muskuraane ka man kar raha hai..par darta hoon muskuraahat ka koi dusara arth n nikal jaay...
ho gam-e-getee hi mayassar fughaan nahin uthayenge
tum hadden badate jaana ham afaq tak chale jaayenge.
itna dard to na pila saaki kuch nasha to chod
tera bhi aastaaN ho sogwaar kyun?
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई और सच मानिये दिल की तह तक गई आपकी ये रचना...एक एक शब्द दिल ओ दिमाग पर जैसे छा सा जाता है..मेरी समस्त शुभकामनाएं कबूल करें.
सुन्दर भाव , अच्छा लगा
वह धीमें से ....
रख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
करवाचौथ को लेकर लिखी गयी एक सशक्त रचना----बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति।
पूनम
बहुत सुन्दर प्यारी रचना।
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है
सच शब्दों में ऐसा जादू आप ही डाल सकती है।
बेजोड़ काव्य-शिल्प !रचना दिल की तह तक गई ...-सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति.
लाज़वाब .
इतना कुछ कहा जा चुका है यहाँ आपकी इस बेमिसाल काव्यरचना पर कि कुछ नया कहने को बचता भी नही..बस यह कि पढ़ कर कुछ ऐसे त्योहारों की भव्य परिधानों के अन्दर छुपी अदृश्य आत्माओं से रूबरू होने का मौका मिलता है..क्या बात है.
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल .... sab ne bahut kuchh kah diya mere paas shabd hi nahi rahe ,laazwaab
हरकीरत जी,
दर्द को मौका चाहिये अपनी अभिव्यक्ती के लिये साध्य और साधन खुद तलाश लेता है फिर वो चाहे कोई पुरानी तस्वीर हो या कोई मुड़ा-तुड़ा खत या कुछ और।
बहुत अच्ची लगी यह कविता आपकी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
behatareen abhivyakti,
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
bahut khoob. dil ke kisi kone ko sparsh karti.
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
बहुत ख़ूब! ये रचना ताजा हवा के एक झोंके समान लगी।
Harkirat jee...
regards..
lajwaab.. bas ek hi shabd hai aapki is rachna k liye...aisi umda rachna striman k upar maine kam hi padhi hai...pta nai itne khre aur khubsoorat jajbaat aur aisi safal adaayagi k beej jaruri to nai ki itne hi khubsoorat hun... fir b mai swarthi hun haqueer jee... plsss likhte rahie... aap bhawnaon k jaal me roshni ka swagat kah rahi hai jo kabhi kabhi itne andhere aur damghontu ho jate hai ki stri astitwa ka gala hi ghont den...
sach me hum aap insaan bankar hi jee len to bahut hai warna unhone kasar kya chodi hai hame pathhar ke boot banane me..
mai khush hun ki maine aapki kavita padhi.. dhanyawad...
एkक औरत के अन्तर दुअन्द का बहुत सश्क्त शब्दों मे पिरोया है। औरत की निष्ठा दुख सुख की कशमकश सब कुछ बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत की है । शुभकामनायें
वह धीमें से ....
रख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
झनझना कर फेंके गए लफ्जों में
दीया डगमगाने लगता है
हवा दर्द और अपमान से
काँपने लगती है
आसमां फ़िर
दो टुकडों में बंट जाता है ..
खुशिया कैसे तिरोहित हो जाती है और कैसे तिरोहित की जाती हैं इस पर आपने ज़बरदस्त प्रहार किया है.
आपका हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
हरकीरत जी, देर से ही सही पर टिप्पणी करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ। आपने इस पवित्र रस्म और औरत की मोहब्बत पर नि:संदेह एक बेहद खूबसूरत कविता लिख दी है। ऐसी कविता कभी कभी ही पढ़ने को मिलती है। मेरी बधाई स्वीकार करें।
हरकीरत जी कविता की मुझे समझ नहीं है...इसलिए मैँ आपके ब्लॉग पर आ नहीं पाता हूँ..उम्मीद है कि मेरी दुविधा आप समझेंगी..
आज आपकी इस रचना को पढा...समझा...अच्छी लगी..इसलिए कमैंट कर रहा हूँ...
कोशिश करूँगा कि आगे से अपनी समझदानी का विस्तार करूँ
वाह हरकीरत जी अच्छा लगा पढ कर कि कहीं तो उसे भी सुकून मिलता है जो आपके अंदर है ।
वह फ़िर जलाती है
दिल के फांसलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दीया ...
कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द
निकालती है झोली से
टांक लेती है माथे पे ,
कलाइयों पे , बदन पे .....
घर के हर हिस्से को
करीने से सजाती है
फ़िर....गौर से देखती है
शायद कोई और जगह मिल जाए
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के फूल
wah!!!
wah!!
wah!
aap ke blog per aaker bahut hi achaa laga saj sjja ki bat karu ya yanaha maujood jajabton ki abhiwaqty ki sab kuch to suhana bemishal or man ko bhane wala hain ....aap ke blog ki sajawat bahut pasand aaye or ...ya karwa chauth ki bat
aapne to man mohh liya sabdon ke esh sanyojan se ........bahut hi achaa laga yaha aaker
bahut bhadhayeen
उम्दा रचना.
ATI SUNDAR ABHIVYAKTI...... UPMAO KA SHILP SANGRAH BEJOD HAIN KABHI FURSAT MILE TO THODA SA SAMAY NIKAALKAR PURUSH KE VICHARO KO BHI APNE IS PRASTH ME JAGAH DE
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
वो मुस्कराती है …"लेप टॉप लेकर घूमेगे …. जेब में नया लेटेस्ट मोबाइल …पर मन में वही करवा चौथ …"
(Dr.Anurag Arya ki nayi post se)
bahut badhia aur gehra hai aapka lekhan.
तारीफ़ के उचित शब्द ढ़ूंढ़ना इस लाजवाब नज़्म के लिये मुझसे तो मुमकिन नहीं है मैम...
देर से आ रहा हूँ इसका अफसोस जरूर है। मन की वो जाने कौन सी परतें हैं जो ऐसे मिस्रे आपसे बुनवाती हैं पढ़ने वालों को अंदर तक बेधती जाये..
जाने कितए चौथों का सत्य समेटे...
नमस्कार, आपने एक नारी की व्यथा और उसके ज़ज्बातों को बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, आपकी कविताएँ कई वर्षों से पढ़ रहा हूँ और कभी आपसे मिलने की इच्छा भी है!
आपको हार्दिक आभार्। आनन्द आ गया
bahut sundar hai....padhte-padhte drishya ubhar kar samne aa rahe hain...aabhar...
आपकी कविता सचमुच बेहतरीन है.... यूँ तो मुझे कविताओं में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है मगर आपके विचार बेहद खुबसूरत है... मेरी हार्दिक बधाई
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
और
रख देती है लब
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
कितनी खूबरसूरत प्रस्तुति है नारी मन के आंदोलनो की वाह !
करवा चौथ, करवा (पानी के एक छोटे से मिट्टी के बर्तन) के लिए प्रयुक्त शब्द है और चौथ का अर्थ है ‘चौथा दिन’ हिन्दी महीने का. एक संदर्भ यह है कि त्योहार कार्तिक के महीने की, अंधेरे पखवाड़े या कृष्ण पक्ष के चौथे दिन पड़ता है)।
Great day. I like your blog entry. Everything looks phenomenal. I arrived from Yahoo by examining and I can perceive any reason why. Keep doing awesome.
karwa chauth karwa
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