अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ....
दुःख, अपमान,क्षोभ और हार
एहसासों भरे निष्कासन का द्वंद
नाउम्मीदी के बाद भी
आहिस्ता-आहिस्ता बनाते हैं
संभावनाओं के मंजर .....
पिघलते दिल के दरिया में
इक अक्स उभरता है
किसी अदृश्य और अनंत स्रोत से बंधा
इक जुगनुआयी आस का
टिमटिमाता दिया ......
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ......
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
Friday, August 21, 2009
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67 comments:
हरकीरत जी,
वधाइयां....................
बहोत सोहणी अते कालजे विच हलचल मचौण वाली
नज़्म.............वाह ! वाह !
_______
_______विनम्र निवेदन : सभी ब्लोगर बन्धु कल शनिवार
को भारतीय समय के अनुसार ठीक 10 बजे ईश्वर की
प्रार्थना में 108 बार स्मरण करें और श्री राज भाटिया के
लिए शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु मंगल कामना करें..........
___________________
_______________________________
'इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे'
ek dardbhari nazm magar akhir mein khud ko bahalati aur sahlaati hui!
अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ....
सुन्दर अविव्यक्ती |
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ....
बहुत सुन्दर परिकल्पना. सार्वभौमिक परिकल्पना.
पर
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
यथार्थ की अभिव्यक्ति.
बेह्तरीन रचना
आशा भरी खूबसूरत नज्म -हमारी सनातन सनातन संस्कृति का मूल तत्व ही जीवन के प्रति यही रागात्मकता है -आशा और विश्वास है ! विवेकानंद ने बार बार यह दुहराया की जब सब कुछ खत्म हो गया हो तो देखो भविष्य अभी भी शेष है !
अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें
एक सुन्दर शब्द चित्र खींचा है आपने हरकीरत जी।
दुःख, अपमान,क्षोभ और हार
एहसासों भरे निष्कासन का द्वंद
नाउम्मीदी के बाद भी
आहिस्ता-आहिस्ता बनाते हैं
संभावनाओं के मंजर .....khoobsurat nazam...sambawnaye umeede hi zinda rakhti hai hume....
आहत मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी राख में
दबी मुस्कान.......!!
इस मार्मिक अभिव्यक्ति के आगे
नतमस्तक हूँ।
सचमुच बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना है....मुझे पसंद आई
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
बहुत ही सुन्दर रचना बधाई ।
बहुत ही सुन्दर नज़्म.बधाई.
Talash umr bhar jaaree rahee.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बहुत सुंदर कहा है आपने.
हरकीरत जी नज़्म में मोतियों से जज़्बात और शब्द पीरोने में आप माहिर हैं...लाजवाब नज़्म...बेहतरीन...
नीरज
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
बेहद भावपुर्ण .........कमाल की है आपकी लेखनी जहा भावनाये बेहद सरस होकर निकलती है .......बधाई
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ......
-वाह!!
हमेशा की तरह-अद्भुत!
एक दर्द भरी रचना अदंर से निकली हुई। सच में आपके पास शब्दों, जज्बातों, विषयों की कमी नही है। आपको पढकर अक्सर सोचने लगता हूँ कि क्या लिखूँ।
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान...
क्या कहूँ ......
तेरी नज्मों का दीवाना तेरा दर्द बाँट नहीं पाता
..... इस शे'र को कैसे पूरा करूँ समझ नहीं पा रहा... बस यही एक लाइन पढ़ते ही मेरे जहन में आई और फिर आपके हवाले कर दिया... अगर कभी कुछ सोच पाया तो इसे पूरा करूँगा... नज़मो की रानी हैं आप क्या लिखती है उफ़ शब्दों को पिरोना नज्मों में कोई आपसे सीखे... बहोत बहोत बधाई
अर्श
शुक्रिया हरकीरत जी आप भूले भटके मेरे ब्लॉग तक आईं....लेकिन आप की कलम भी कमाल कर रही है। ये हकीकत है। तलाश यूं ही जारी रखिए।
bahut sudar rachna ma'am.. :)
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ......
बहुत उम्दा....
sundar abhivyakti....
दुःख या उदासी को जब आप लिखती है तो अक्सर ज्यादा सहज तरीके से अभिव्यक्त कर पाती है ..कारण जो भी हो .पर लिखने वाले की पहचान अक्सर उन शब्दों से ही होती है जिनसे वे उस भावः को पढने वाले को उसी शिद्दत से महसूस करना चाहता है ..जैसे महसूस करके वो लिखता है ओर आप सफल हुई है .
हरकिरत जी !!!
सत् श्री अकाल
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
सुंदर ...
जिस जीवन से
इतनी सुंदर नज्म निकली है
वह श्मशानी राख में
क्या ढ़ूँढ़ रहा है ...
एक मुस्कान
जो दबी है
आहत भावनाओं की राख में
अब तो वापस लौटो
अपने घर
जहां हजारों मुस्काने
आप को बाँहों में लेने
के लिए तत्पर है ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है; इस रचना और
आपके ब्लॉग तक पहुँचने के लिए मैं अदा जी का धन्यवादी हूँ कि उन्होंने कल आपकी एक नज्म अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत कर दी ...और हमारा आपसे मिलना हो गया ।
muhim jaari hai...shaandaar rachna hamesha ki tarah
kash chute huye pal dobara janam le pate aur humunhein apne man marji se jee pate........behad umda khyalat......sundar abhivyakti.
अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ....
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
Waah! Beautiful!
Woh PHIR naHI AATE WOH PHIR NAHI AATE.
Mohtarma aap punjabi mai bhe kavitayen likhti hai MAGAR aapke is PRASHANSHAK KA HAATH JARAA [PUNJABI SCRIPT] MAI TANG HAI ISILIYE KRAPAA KARO KOI JATAN KARO KI YEH NAACHEEJ BHEE AAPKE US GUN KA RASAASVAADAN KAR SAKE.HOsake to punjabi ko hindi ya angrezi mai bhee padne ko kai batan lagaao.
jhalli gallan
last para is amazing ... very touchy ...
नज्म और हरकीरत लगता है पर्याय बन गये हैं. लिखती रहिये लेकिन सहज होकर. कविता में सरलता उसे प्रवाहित करती है परन्तु हम रचनाकार, कभी कभी शब्द मोह के वशीभूत होकर, रचना को जटिल ही नहीं "जटियल" बना देते हैं. कहीं आप भी ऐसा तो नहीं कर रही हैं?
हमेशा की तरह बेहतरीन नज़्म की एक और कड़ी का हार्दिक स्वागत है
बधाई ही बधाई.
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
दर्द को बखूबी संवाहित कर पाती हैं आप !
अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें
इन कल्पनाओं मे ही तो जिन्दगी बीत जाती है बहुत भावनात्मक अभिव्यक्तियाँ होती हैं आपकी शुभकामनायें
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ...
khoobsurat....aapki lekhni padh ke man bechain ho jata hai kahi na kahi dil ko chhu leti hain aapki rachnaayen...
Bahut hi barhia !
Kamaal ki hai aap ki poetry ..!!
Shaala jug jug jio !!!
apne dil se ; gurmail ....
सुन्दर कविता .
आभार आपका
पंकज
प्रशंसा के नये ढ़ब, तारीफ़ के नये शऊर कहाँ से लाऊँ मैम?...क्योंकि आप तो हर बार चकित कर देती हैं अपनी शब्द-सज्जा से,अपनी भावनाओं से।
सोचता हूँ कि दर्द की कौन-सी पोटली लिये घूमती हैं ये "मल्लिका-ए-नज़्म" कि नज़्म-दर-नज़्म, पोस्ट-दर-पोस्ट हम डूबते रहते हैं, डूबते जाते हैं....
" पिघलते दिल के दरिया में / इक अक्स उभरता है / किसी अदृश्य और अनंत स्रोत से बंधा / इक जुगनुआयी आस का / टिमटिमाता दिया..." लगता है जैसी मेरी ही बात हो। एक रचनाकार के सफल होने का प्रयाय यही तो है कि वो जो लिखे पाठक को अपना-सा लगे!!
hindi ke liye sachmuch yah gourav ka pal he/ aapki kalam itani baariki se shbdakar le rahi he ki jeevan mano saamne aa khda hota he/ hindi me likhi jaa rahi rachnao me ise me shreshth mantaa hu/
dukh, pida, aour udasi ke bich khili muskaan..aksar mene aapki kavitao me paayaa he/ is baar bhi chatkrat hue bager nahi rahaa/
बहुत
ही बेहतरीन रचना है आत्मा के अंतर्द्वंद को दर्शाती रचना
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक .
मेरी बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
"बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ......"
do bindoon ke beech ki ye doori koi samjhe agar...
itne nazdeek the ki kabhi alag lage kabhi ek...
par inki doori tay karne main zindagi ka samay laga.
beech main hi rahi zindag....
...aur kahi wakai main dabi reh gayi muskaan.
"आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!"
adbhoot kavita....
...Flawless...
क्या खूब शब्दों से भावनाओ का चित्रण किया है आपने.....
बहुत ही खूब....
छूटे पल पाना ही सबकी एक ख्वाहिश रहती है.......
ye andhero se ujaloon ki aor lauti hui aapki ye nazm bahut pasand aayi
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ......
......बहुत डूब कर थाह ली है आपने.
सुन्दर भाव!!!!!!!
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बहुत सुंदर कविता है
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है...बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
बेचैन उलझनों की गिरफ्त
प्रतिपल भीतर तक धंसी
उम्मीदों को
बचाने की नाकाम कोशिश में
टकरा-टकरा जातीं हैं
एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक .....
khud hi mein ulajh kar reh jane ki uljhan...
bahut hi sudar abhivyakti
-Sheena
aapko to meini pehle hi din se apni guru maan liya hai...apke sahbdo ka, abhivyakti ka chayan hamesha hi sarvottam hai...badhai ho
आशावादी रचना... बहुत पसंद आई... शहरयार साहब की एक नज़्म की चंद पंक्तियाँ आपके लिये
पिछले सफ़र की गर्द को दामन से झाड़ दो
आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर
बेरंग आसमाँ को देखेगी कब तलक
मंज़र नया तलाश करेगी निगाह फिर
Harqeerat ji
aaj maine aapki kayi sarai nazm padhi aur
har ek se badh kar ek
aaj se man aapki nazmon ka mureed ho gaya
waqayi itni gahri nazme.n maine kam hi kabhi padha hai
तलाश पढ़ते हुए लग रहा है आज इसी रचना कि तलाश थी...इस बेहतरीन रचना के लिए आपका आभार...और मेरे "दो शब्द " पे हौशालाफजई के लिए आपको धन्यवाद....
harkirat ji namskaar
bahut achhi najm likhi hai aapne
It's such nice poems, I really like Hindi gahjal and poems, but i can't speak fluently, nice, keep it up.
dil ko choo lene wali...behad khoobsurat rachna...
आपकी काव्य संवेदनाएं वाकई लाजवाब हैं
आपको पढ़कर अमृता प्रीतम याद आ जाती हैं.
बहुत सुन्दर रचना है.
तभी.....
वादियों से आती है इक अरदास
सहेज जाती है
मेरे पैरों के निशानात
बाँहों में लेकर रखती है
ज़ख्मों पर फाहे
सहलाती है खुरंड
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
सुन्दर शब्द-चयन!
महावीर
मंथन
पिघलते दिल के दरिया में
इक अक्स उभरता है
किसी अदृश्य और अनंत स्रोत से बंधा
इक जुगनुआयी आस का
टिमटिमाता दिया ......
behad khubsurat bhaav, behad sanjeeda rachna - bahut mubaarak...
meray blog par aaney ke liye bhi bahut aabhaar...
आम बोलचाल के शब्दों में कविता पिरोना वाकई मुश्किल है। आपने कर दिखाया, गहरे उतरते शब्द हैं।
kay kahen....bas ek hi shabd "Lajawab".....
बहुत ख़ूबसूरत
---
तख़लीक़-ए-नज़र
हरकीरत जी आपके पास अच्छी भाषा है अच्छे भाव हैं ,अच्छे विचार हैं। इधर कुछ नये शिल्प की कवितायें भी पढ़िये । हर कवि को अपना शिल्प तोड़कर ही आगे बढ़ना होता है ।
ek..ek kadam ke saath....aap aur-aur-aur gahre hote ja rahe ho.... yah kavita usi gaharaayi kaa ek adbhut moti....!!
अक्सर सोचती हूँ
खुद को बहलाती हूँ
कि शायद....
छुटे हुए कुछ पल
दोबारा जन्म ले लें ....
आहात मन की कुरेदन
तलाशने लगती है
श्मशानी रख में
दबी मुस्कान.......!!
आपकी रचना हर बार की तरह नायब है...आपके लेखन को बेशक दिल की गहराइयों का लेखन कहा जासकता है
बधाई..
प्रकाश
skaratmak soch ki bdhiya misal hai
aapki sundar rachna .
पिघलते दिल के दरिया में
इक अक्स उभरता है
किसी अदृश्य और अनंत स्रोत से बंधा
इक जुगनुआयी आस का
टिमटिमाता दिया ......
vah vah.....
Aaaj pahle baar aapke blog par aana hua..laga der se hi sahi magar sahi jagah pahunch gaya...bahut accha likhi hain aap. aap se kafi kuch seekhne ko milega.apne meri adni si rachna par apni tippani di uske liye bhi apka antarman se abhari hun..sneh banaye rakhen...
Akhil
Umeed par duniya kayam hai... talash jaari rakhein !!
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