" ये नज्में " .....लुढ़कते पत्थरों को मौसम देतीं ये नज्में ....जैसे खामोशी का लफ्ज़ बन जातीं हैं .....ठहरे हुए पानी में फेंका गया एक पत्थर अपने दायरे में उठी लहरों में अपनी किस्मत की कहानी कहता है ...और वो पत्थर जुबां बन जाता है ......पत्थरों की जुबां ....खामोशी की जुबां .....लाशों की जुबां ...कुछ ऐसे शब्द जो हमारे भीतर बरसों से मुर्दा पड़े हैं .......इन नज्मों के रूप में जन्म लेते हैं ......इसी नज़्म को मैंने परिभाषित करने की कोशिस की है इन क्षणिकाओं में ......
ये नज्में ...........
(१)
ज़िन्दगी इक ज़हर थी
जिसमें खुद को घोलकर
इन नज्मों ने
हर रोज़ पिया है
जिसका रंग
जिसका स्वाद
इसके अक्षरों में
सुलगता है
(२)
ज़ख्मों पर
उभर आए थे कुछ खुरंड
जिन्हें ये हर रोज़
एक-एक कर
उतारती हैं
(३)
इक हँसी
जो बरसों से कैद थी
ताबूत के अन्दर
उसका ये मांगती हैं
मुआवजा
(४)
कटघरे में खड़ी हैं
कई सवालों के साथ
के बरसों से सीने में दबी
मोहब्बत ने
खुदकशी क्यों की ....??
(५)
कुछ फूल थे गजरे के
जो आँधियों से बिखर गए थे
उन्हें ये हर रोज़
एक-एक कर चुनती हैं
(६)
शाख़ से झड़े हुए पत्तों का
शदीद दर्द है
जो वक्त- बे -वक्त
मुस्कुरा उठता है
चोट खाकर
( शदीद -तेज )
(७)
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
(८)
इक वहशत जो
बर्दाश्त से परे थी
इन लफ्ज़ों में
घूंघट काढे बैठी है
(९)
खामोशी का लफ्ज़ हैं
जो चुपके-चुपके
बहाते हैं आंसू
ख्वाहिशों का
कफ़न ओढे
१०)
जब-जब कैद में
कुछ लफ्ज़ फड़फड़ाते हैं
कुछ कतरे लहू के
सफहों पर
टपक उठते हैं
(११)
ये नज्में .....
उम्मीद हैं ....
दास्तां हैं ....
दर्द हैं .....
हँसी हैं ....
सज़दा हैं .....
दीन हैं .....
मज़हब हैं ....
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी हैं ....!!
64 comments:
आपकी नज़्मों के बारे में अब क्या कहूं.....सुभान अल्लाह....
इन नज़्मों से हमारी ख़ास जान-पहचान है,
ये नज़्में आपका हम सब पर एक एहसान है,
ये नज़्में सर्द खामोश रातों का बयान है,
दर्द-ए-मोहब्बत का जीता-जागता फ़रमान है........
साभार
हमसफ़र यादों का.......
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
-उफ्फ!! गज़ब की अद्भुत अभिव्यक्ति!!
उदासी, बेबसी की एक अपनी अलग चमक साबित कर देती हैं आप अपनी नज़्मों में. एक अजब कशिश!!
वाह!!
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
====
शब्दहीन हो गया इन शब्दो की खूबसूरती देखकर
वाह
अच्छी नज्मे !
खामोशी का लफ्ज़ हैं
जो चुपके-चुपके
बहाते हैं आंसू
ख्वाहिशों का
कफ़न ओढे
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
खूबसूरत से भी खूबसूरत रचना.
रामराम.
हरकिरातजी,
बड़ा दिलचस्प बयान है एक-एक टुकडा ! थोड़े-से शब्दों में इतना कुछ कहा गया है कि लम्बी कवितायेँ भी उतना नहीं बोल पातीं ! 'जो चीखें नंगे पांव...' या खुदा ! चीखों को इस तरह नंगे पांव दौड़ा देने की कूवत तो बस आपकी कलम की नोक में है ! और 'बरसों से सीने में दबी मोहब्बत' की खुदकुशी... उफ़ ! अलग-अलग शेड, अलग-अलग बिम्ब ! प्रतीक इतने स्पष्ट कि सर चढ़कर बोल रहे हैं ! दासों कतरों को आपने जिस खूबसूरती से ग्यारहवें में जोड़कर रखा hai, वह लेखन की अप्रतिम कला है ! बधाई !!
बस मै तो आपकी कलम को सलाम ही कहूँगी एक एक नज़्म दिल पर एक एक जीवन की कहानी कह जाती है कितने जीवन एक नज़्म मे जीती होंगी आप अद्भुत मर्मस्पर्शी नज़मे हैं शुभकामनायें
umda
umda
umda
umda
umda
___________waah !
ज़ख्मों पर
उभर आए थे कुछ खुरंड
जिन्हें ये हर रोज़
एक-एक कर
उतारती हैं
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, आभार्
शब्द मुर्दा नहीं होते ! वे 'अक्षर' से बनते हैं, अक्षर यानि जिसका कभी नाश न हो ।
आप की रचनाएँ भी तो यही सिद्ध कर रही हैं।
बहुत सुन्दर एक एक अक्षर दिल की बात कह गया बहुत बढ़िया लिखती है आप
बहुत अच्छा लिखती हैं आप...!
जब-जब कैद में
कुछ लफ्ज़ फड़फड़ाते हैं
कुछ कतरे लहू के
सफहों पर
टपक उठते हैं
adbhut, behtareen, shaandar....
bahut umda abhivyakti.
sach me nazme umeed hai dastan hai....kwab hai haqeeqt hai....dil ka haal kah deti hai...
बहुत ही बढ़िया नज़्में हैं
---
विज्ञान पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
खूबसूरत एहसास .....
ज़िन्दगी इक ज़हर थी
जिसमें खुद को घोलकर
इन नज्मों ने
हर रोज़ पिया है .....
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति......
वाह.वाह.वाह...........
बेहतरीन प्रस्तुति...
ये नज्में .....
उम्मीद हैं ....
दास्तां हैं ....
दर्द हैं .....
हँसी हैं ....
सज़दा हैं .....
दीन हैं .....
मज़हब हैं ....
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी हैं ....!!
बहुत ही सुन्दर नज़मे है ...........जिन्हे आप जीये हो, ऐसा कतई नही लगता इन्हे मै नही जिया हूँ........बहुत बहुत शुक्रिया.......पर यह नज़्म बिल्कुल दिल के करीब लगी
sundar najm padvane ke liye aapka shukria........
Shaandaar nazmen.
{ Treasurer-T & S }
एक से बढ़कर एक। ये छोटी छोटी फूल सी नज्में जब एक पोस्ट में आई तो एक गुलद्स्ता बन गई। कोई फूल दर्द का, कोई फूल जख्म का, कोई फूल मोहब्बत का, .......... ।
वाकई मे......
ये नज्में .....
उम्मीद हैं ....
दास्तां हैं ....
दर्द हैं .....
हँसी हैं ....
सज़दा हैं .....
दीन हैं .....
मज़हब हैं ....
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी हैं......
साथ ही यादों का पैगाम भी हैं.......
ख़ूबसूरत सी रचना पर आपकी लेखनी को सलाम........
इक हँसी
जो बरसों से कैद थी
ताबूत के अन्दर
उसका ये मांगती हैं
मुआवजा
वेसे तो सारे ही तुकडे दर्द को बेतरतीबी से उजागर करते है मगर इसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है ... सारे ही तुकडे बेहद ही गहरे भाव को अपने साथ संजोये रखा है बहोत बहोत बधाई
अर्श
bahut hi shaandar lekhan hai ji ...saari ki saari nazme bhale hi choti ho par apna asar dikha rahi hai ...
badhai
ਆਬ-ਏ-ਹਯਾਤ ਹੈਂ
ਆਪ ਕੀ ਨਜ਼ਮੇਂ
ਜਿਸੇ ਪੀ ਕਰ
ਮੁਰਦਾ ਰੂਹ
ਅਮਰ ਹੋ ਜਾਤੀ ਹੈ
ਅਨਾਮ
नज़्मों की परिभाषायें पढ़ीं सब-की-सब...एक,दो,तीन,चार,पाँच से लेकर ग्यारह तक। सच ही कहती हैं आप, ये वाकई लुढ़कते पत्थरों को मौसम देती हैं और ये मिस्रा, ये पत्थरों के लुढ़कने वाला मिस्रा खुद ही बारहवीं परिभाषा है आपकी नज़्मों का।
गौर किया आपने?
ताबूत में कैद हँसी का मुआवजा माँगती ये नज़्म या किसी गज़रे के फूलों को चुनती हुई ये नज़्म या फिर कहकहों के उबाल से खौलती ये नज़्म...जाने और कितने रंग दिखायेगी हमें...!!!
DER SE HII LEKIN AAPKI NAJMON KO PAD KAR ACHCHHA LAGA HEI BAHUT KHUBSURAT
ASHOK ANDREY
bahut sundar..........chhote me badi baat.
kya baat harikirat ji akhir aapke naye geet ne dil ko tasalli de hi diya
bahut umda
blogger
aleem azmi
इक से बढ़कर एक रचना. वाह! जारी रहें.
हाँ ये कैफियत है मुई नज़मो की....पाजी नज़मो की.....की कब जाने क्या मांग बैठे .ओर क्या मुड जाए किस ओर...
इक हँसी
जो बरसों से कैद थी
ताबूत के अन्दर
उसका ये मांगती हैं
मुआवजा
ओर
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
सुभान अल्लाह ......बेहद खूब
Hello,
Awesome verbiage!
"Talented is your personality
And you write with depth so near to reality..."
Really a very nice creation.
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
KAMAAL KI ABHIVYAKTI HAI.....ALAG ANDAAZ HAI HAR CHANIKA KA....KASHISH HAI IN MEIN.......PADHTE HUVE KISI AUR DUNIYA MEIN LE JATI HAIN AAPKI NAZMEN...
ज़िन्दगी इक ज़हर थी जिसमें खुद को घोलकर इन नज्मों ने हर रोज़ पिया है जिसका रंग जिसका स्वाद इसके अक्षरों में सुलगता है....
...kuch aisa hi fasana mera bhi hai...
...balki hum sab ka!!
kitna satik likha hai aapne.....
...hamesha ki tarah !!
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति कम शब्दों में...
पूनम
बहुत सुंदर.
जब-जब कैद में
कुछ लफ्ज़ फड़फड़ाते हैं
कुछ कतरे लहू के
सफहों पर
टपक उठते हैं
वह
हरकीरत जी,
दर्द और विपरीत परिस्थितियों को सहज और सरल शब्दों में व्याख्यायित करना ..आपके लेखन को भीड़ में अलग पहचान देता है.
हेमंत कुमार
कहीं परतों में दबे हुए दर्द को बहुत खूबसूरती से बयाँ किया है आपने. लेखनी का तो जवाब नहीं. बहुत खूब.
ये नज्में .....
उम्मीद हैं ....
दास्तां हैं ....
दर्द हैं .....
हँसी हैं ....
सज़दा हैं .....
दीन हैं .....
मज़हब हैं ....
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी हैं ....!!
हरकीरत जी .....ये नज्में ऐसे ही चलती रहें
आप बस कहती रहें और हम पढ़ते रहें
इतने ग़ज़ब शेर की क्या कहें अल्फाज नहीं है ग्रेट हो जी तुस्सी |
बहुत सुन्दर नज़्में हैं...बहुत बढिया....!!
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
apki najmo ke liye likhi har rachna bahut marmik rahi ..dil ko ashq se bhigoti rachnaye
Aapki lekhni dil ko chuti hai.Shubkamnayen.
ek ek nazm apne aap mein bahut khoob hai.
-Sheena
इक वहशत जो बर्दाश्त से परे थी इन लफ्ज़ों में घूंघट काढे बैठी है..
हरकिरत जी,शब्दों का इतना सुंदर और भावपूर्ण प्रयोग मैने कही और नही देखा.
आपके एक एक शब्द बेहतरीन है..और पूरी कविता,नज़्म के लिए मैं क्या कहूँ..
लाज़वाब...
धन्यवाद!!!
जीवन के कटु सत्य से परिचित कराती हैं ये नज्में.
{ Treasurer-T & S }
इक नज्म है.
इक दर्द है.और है....
सागर सी गहराई...
शब्द शब्द तप्त है..
सुनो,होकर मौन
ये तुम्हारी ही
आवाज है...
अद्भुत रचना..
बेहतरीन नज्म है |
इक वहशत जो
बर्दाश्त से परे थी
इन लफ्ज़ों में
घूंघट काढे बैठी है
....aur wahi ghoongat ultaa kar aapne ek-ek lafz ko uski asl zindgi de di hai....un mein nayi jaan foonk di hai...unheiN ek AASTITV de diya hai....jise ab sb
nazm ke naam se padhaa karenge...
NAZM...Harkirat 'haqeer' ki qalam se nikli NAZM . . . .
sirf badhaaee nahi kahunga,,,
kyonki ye bahut km hai
duaaoN ke saath
---MUFLIS---
बहुत खूब हैं ये नज्में।
जज्बात का उबाल नहीं, बल्कि खामोश दरिया...
ये नज्में .....
उम्मीद हैं ....
दास्तां हैं ....
दर्द हैं .....
हँसी हैं ....
सज़दा हैं .....
दीन हैं .....
मज़हब हैं ....
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी हैं ....!
yahi sach hai. behatareen rachnayen.
अपना ब्लॉग शुरू करने से पहले से मैं आपको जानता हूँ. मित्रों ने जिन कुछ बड़े ब्लोगर्स के बारे में चर्चा की थी उनमें आपका भी नाम है. मुझे विश्वास ही नहीं कि आप और मेरे ब्लॉग पर. कई दिनों से मैं आप और संजीव गौतम जी के कमेंट्स दोस्तों को दिखाता रहा हूँ. गौतम जी को धन्यवाद अर्पित कर दिया, आप से भय महसूस कर रहा था. एक तो महिला-फिर इतनी बड़ी रचनाकार- क्या लिखूं. मर्द होतीं तो गौतम जी की तरह तुरंत कुछ भी लिख देता. मेरी बातों का बुरा न मानियेगा. मैं बदतमीज़ नहीं हूँ थोड़ा नर्वस हूँ आपसे.
आपकी रचनाओं पर मैं क्या कहूं- इतनी छोटी छोटी रचनाओं में इतनी गहराई आप ही की लेखनी पैदा कर सकती है. आप इतने ढेर सारे कमेंट्स हासिल करती है. मुझे उम्मीद नहीं कि आप मेरे कमेन्ट को देख भी पाएंगी. कोई बात नहीं. जैसे दलित वर्ग किसी युग में मन्दिर में घुसने की हैसियत नहीं रखता था तो दूर से मन्दिर की दीवारों को ही देवता मान कर सर झुका लेता था मैं भी संतुष्ट हूँ कि आप मेरा कमेन्ट भले न पढ़ सकें लेकिन आप ने मेरा लेख तो पढा. इतना ही नहीं उसे अपने कीमती कमेन्ट के योग्य भी समझा. धन्यवाद. आभार. नमस्कार.
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति। वाह।
बेहतरीन नज्म....वाह!
बेहतरीन नज्म
कृष्ण जन्माष्टमी की व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..
बेहतरीन नज्म
कृष्ण जन्माष्टमी की व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..
उन कहकहों का उबाल हैं
जो चीखें नंगे पाँव दौड़ी हैं
कब्रों की ओर
कमाल लिखा है जी..
इक वहशत जो
बर्दाश्त से परे थी
इन लफ्ज़ों में
घूंघट काढे बैठी है
लाजवाब...............!!!!!!!!
ईमान हैं ....
खुदा .....
और ....
मोहब्बत का जाम भी
बहुत सुकून बखस्ती हुई ये पंक्तियाँ.....
ईमान,,खुदा और मुहब्बत का जाम....
Kamaaaal Hai..aur koi shabd nahi hai...bas kamaal hai...aapki rachnaaye hum jaise noseekhiyon ke liye ek gazab ki prerana hai...Aap ka dhanyawaad.
beymisaal...bahut umda....
एक से एक फलकशिगाफ...
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