Friday, August 14, 2009

धुआं - धुआं है आसमां ........

न तीर चाहिए ,न तमंचे चाहिए ,न तलवारें चाहिए

न मन्दिर चाहिए ,न मस्जिद चाहिए ,न गुरुद्वारे चाहिए

खिल सकें जहाँ हर मज़हब के फूल

हमें तो ऐसा अपना ये गुलज़ार - ऐ - वतन चाहिए


...........जय हिंद ............


आप सब को स्वतंत्रता दिवस की बहुत- बहुत बधाई .....आज यहाँ गुवाहाटी दूरदर्शन में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक काव्य -गोष्ठी का आयोजन किया गया ....जिसमें गुवाहाटी के ही ग्यारह जाने -माने कवियों ने भाग लिया .....और इसका संचालन किया एफ. एम. रेडियो के एंकर कबीर जी ने .....जिनके शब्दों की जादूगरी ने इस गोष्ठी को चार चाँद लगा दिए ....इस नाचीज़ को भी मौका मिला इस काव्य - गोष्ठी में भाग लेने का ....प्रस्तुत है वो नज़्म ......"धुआं - धुआं है आसमां ....."


धुआं - धुआं है आसमां .....


लुटी-लुटी हैं सरहदें

धुआं - धुआं है आसमां

डरी - डरी हैं बस्तियां

डरा-डरा सा है समां


फूल दीखते नहीं किसी शजर पे

ज़ख्म उगे हैं हर शाख़ पे

ये कैसी जमीं है जहां

उगती हैं फसल के बदले गोलियाँ

डरी-डरी है .............


सहमी-सहमी सी है सबा

चाँद का भी रंग उड़ा

ये कौन लिए जा रहा है

मेरे शहर की रौशनियाँ

डरी- डरी हैं...........


धमकी , धमाके , लूट ,कत्ल ,अपहरण

है चारो ओर अम्नो-चैन की बर्बादियाँ

बेखौफ फिरते हैं आतताई लिए हाथों में खंजर

है मेरे हाथों में खूं से सनी रोटियाँ

डरी-डरी हैं.............


ज़र , ज़मीं , मज़हब, सिहासत , मस्लहत

इन मजहबों के झगड़े में

खुदा भी हुआ है लहू-लुहाँ

बता मैं कैसे मनाऊँ

ज़श्ने-आज़ादी ऐ 'हक़ीर '

रोता है दिल देख ...

उन लुटे घरों की तन्हाईयाँ

डरी- डरी हैं ............

लुटी-लुटी हैं ............!!!

57 comments:

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
आभार
मुम्बई-टाईगर
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION

M VERMA said...

हकीकत यही है और बखूबी बयान किया है आपने.

Basanta said...

Beautiful lines!

न तीर चाहिए ,न तमंचे चाहिए ,न तलवारें चाहिए

न मन्दिर चाहिए ,न मस्जिद चाहिए ,न गुरुद्वारे चाहिए

खिल सकें जहाँ हर मज़हब के फूल

हमें तो ऐसा अपना ये गुलज़ार - ऐ - वतन चाहिए

Loved it very much! Portrays the dream of mankind.

Yogesh Verma Swapn said...

न तीर चाहिए ,न तमंचे चाहिए ,न तलवारें चाहिए

न मन्दिर चाहिए ,न मस्जिद चाहिए ,न गुरुद्वारे चाहिए

खिल सकें जहाँ हर मज़हब के फूल

हमें तो ऐसा अपना ये गुलज़ार - ऐ - वतन चाहिए


bahut sunder panktiyan. shubhkaamnayen.

Anonymous said...

जर, ज़मीं , मज़हब, सिहासत , मस्लहत

इन मजहबों के झगडे में

खुदा भी हुआ है लहू-लुहाँ

बता मैं कैसे मनाऊँ

ज़श्ने-आज़ादी ऐ 'हक़ीर '

...बहुत खूब !! सच्चाई बयां कर दी आपने.

Smart Indian said...

सुन्दर रचना, बधाई!
स्वतन्त्रता दिवस पर आपको शुभकामनाएं.

Mumukshh Ki Rachanain said...

धुआं - धुआं है आसमां .....

इस नज़्म द्वारा आपने देश की सही तस्वीर पेश कर दी.
पर किसे फ़िक्र है इसे सुधारने की, आज के दौर में तो हर कोई "हर फ़िक्र धुएं में उडाता जा रहा है" जेब भरती रहे, बस इसी में मशगूल दिखता है.

आशा है आपकी ये जबरदस्त नज़्म सुप्त स्वाभिमान को जगाने में सफल रहेगी.

स्‍वतंत्रता दिवस एवं जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक रचना शुभकामनाएं..

स्वतंत्रता दिवस की घणी रामराम.

sandhyagupta said...

Aapko bhi badhai aur shubkamnayen.

अलीम आज़मी said...

wishing u very happy independence day to u and urs family....
reality ko aapne kured kar rakh diya hai behtareen umda
best regards
aleem azmi

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर.

Alpana Verma said...

सच्चाई को बयाँ करती कविता.
बस यही ईश्वर से प्रार्थना करुँगी ..'एक तू ही भरोसा एक तू ही सहारा..'


-स्‍वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही चित्र खीचा है.....आपने आज का।बधाई।

Mithilesh dubey said...

स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ........

बहुत खूब

ओम आर्य said...

natmstak hoo...........

अनिल कान्त said...

आपकी रचना ने हालातों को बयाँ किया है
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

Akanksha Yadav said...

स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

स्वतंत्रता रूपी हमारी क्रान्ति करवटें लेती हुयी लोकचेतना की उत्ताल तरंगों से आप्लावित है।....देखें "शब्द-शिखर" पर !!

Renu goel said...

हो मेरा प्यारा ऐसा वतन
खुशबू से महके हर चमन
रौशनी छीनने वालों से कह दो
डरेगा न यहाँ का बचपन
कौन कहता है हम तलवार उठा नहीं सकते
कौन कहता है हम वार कर नहीं सकते
लहू के हर कतरे में जोश है भरा
कर सकते हैं हम भी सर कलम

JAI HIND ...

jamos jhalla said...

Lutta LUTTA sa harkaarvaan hai.

sehmaa sehmaa sa har insaan hai ..Nashtar,bandook,talwaaren
jakhm daataa beintehaan hai.
HAPPY 63rd independence[swaadheentaa]day.jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com

प्रिया said...

harkeerat jee .... Nazm ka shabd- shabd bahut khoobsoorat hai....saath hi doordarshan ki kavya goshthi mein shirkat karne ki badhai.

regards,

priya

आनन्द वर्धन ओझा said...

जरा देर से नज़र पड़ी नज़्म पर. ये तो अपनी धरती की हालत का पूरा दस्तावेज़ है. एक ऐसा बयान जो रूह को सर्द कर देता है और जुबां को खामोश. इस सर्द खामोशी के आलम में में क्या कहूँ ? बस यही की खुदा खैर करे और आप isi जूनून से लिखती रहें ताकि कभी किसी करता-धरता के कानो पर रेंग जाए जूं.... साभिवादन...

daanish said...

फूल दीखते नहीं किसी शज़र पे
ज़ख्म उगे हैं हर शाख़ पे
ये कैसी जमीं है जहां
उगती हैं फसल के बदले गोलियाँ....

देश की भयावाह स्थिति का
सटीक वर्णन किया है
पूरी रचना
देश के रहनुमाओं को
दर्पण दिखाने जैसी बन पडी है....

एक-एक शब्द
आपकी रचना-शीलता को प्रमाणित करता है

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किये गए
इस भव्य काव्य-गोष्ठी में भाग लेने हेतु
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
---मुफलिस---

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

रचना गौड़ ’भारती’ said...

Harkirat Haqeer ji
न तीर चाहिए ,न तमंचे चाहिए ,न तलवारें चाहिए न मन्दिर चाहिए ,न मस्जिद चाहिए ,न गुरुद्वारे चाहिए खिल सकें जहाँ हर मज़हब के फूल हमें तो ऐसा अपना ये गुलज़ार - ऐ - वतन चाहिए
...........जय हिंद ............
शानदार पन्क्तियां
मेरे ब्लोग पर आने के लिए धन्यवाद
साथ ही यह भी लिख रही हूं कि यह हमारा ६३ वां स्वतंत्रता दिवस है परन्तु वर्षगांठ ६२ वीं ही है । मेरे द्वारा पहले भी लिखा गया था कि आप अपनी कोई गज़ल मेरी पत्रिका के लिए भेजें ।
मेरे ब्लोग पर पत्रिका देखने को मिल जाएगी \
ज़िन्दगी लाईव का ईमेल
गज़ल कृतिदेव,अर्जुन,कनिका,शुशा या यूनिकोड फोन्ट मे भेज सकती हैं ।
zindgi.live@yahoo.co.in

संजीव गौतम said...

काव्य-गोष्ठी में भाग लेने हेतु
बहुत बहुत बधाई.
रचना बहुत अच्छी है और संवेदनाओं को बहुत गहरे तक कुरेदने में समर्थ है.

Prem Farukhabadi said...

बहुत बहुत बधाई!!

सर्वत एम० said...

आजादी पर एक सशक्त रचना. हर बार की तरह इस बार भी आप बाजी मार ले गयीं...बधाई.

सुशील छौक्कर said...

सच अब समय बदलना चाहिए। जहाँ हर फूल खिल सके। हर भूख को मिले रोटी और हर हाथ को काम। ऐसा हो मेरे देश प्यारा। वैसे आपने सच को बयान किया है। बहुत बेहतरीन।

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा....... सटीक बयान किया है आज के हालत को............ इस लाजवाब रचना के लिए बधाई हो आपको......... सच में आज का माहोल सही आजादी नहीं देता...............

hem pandey said...

इन मजहबों के झगडे में

खुदा भी हुआ है लहू-लुहाँ

बता मैं कैसे मनाऊँ

ज़श्ने-आज़ादी ऐ 'हक़ीर '
- आपने एक ज्वलंत प्रश्न उठाया है.

amlendu asthana said...

Apne dard mein Apne sarhad ka dard bhi Mila diya. achchhi kavita hai. blog ek achchha parivar hai. Aplog mujh jaison ko bhi sambal dete hain to hausla badta hai. likhte rahiye bhavishye mein apka naam hoga.Subhkamna

amlendu asthana said...

Ek anurodh Hai, Apke Shahar mein disabled(mentally retarded)bachchon ki kyo sanstha ho to likhiyega.abhar ke sath Amlendu

समय चक्र said...

आपने आज का बहुत सही चित्र खीचा है.स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ...

Randhir Singh Suman said...

nice

के सी said...

कविता विध्वंस के स्थान पर देशप्रेम के उदात्त भावः को प्रकट करती हुई सी है, हज़ार कामनाएं हैं शांति की सूकून की सुख की और और एक समृद्ध राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के आसान हो जाने की. पहले तीन अंतरों के बाद बेचैन मन कुछ अधिक कठोर हो उठा है आईये इन पर विचार करें...

हिन्दीवाणी said...

संवेदनाओं का सागर उंडेल दिया है आपने इस नज्म में। तारीफ के लिए अल्फाज नहीं हैं।
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

गौतम राजऋषि said...

आपका ये नया अंदाज़ भाया मैम

Chandan Kumar Jha said...

लाजबाव पंक्तिया. आभार.

गर्दूं-गाफिल said...

हरकीरत जी
ऐसा गुलजार वतन किसे नहीं?चाहिए
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाये



मजहब नहीं सिखाते दंगा फसाद जुल्मत
हर पाप की वजह है ईमान की शहादत

न मन्दिर ने दिया खंजर न मसजिद ने कोई फतवा
मतलब के लिए अपने बोते हैं लोग नफरत

ईमान को तो लगता है मजहब का आसरा पर
बेईमानों के एकता के पीछे है फ़कत दौलत

आये नहीं अरसे से हमारे गरीब खाने
इस ब्लॉग को भी रहती है नजरे करम की चाहत

सदा said...

खुदा भी हुआ है लहू-लुहाँ

बता मैं कैसे मनाऊँ

ज़श्ने-आज़ादी ऐ 'हक़ीर '

रोता है दिल देख ...

उन लुटे घरों की तन्हाईयाँ
बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार्

केतन said...

बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया आपने..

संगीता-जीवन सफ़र said...

दिल से निकली बात कही आपने बहुत खूब।

Balvinder Balli said...

An appropriate post for Independence day. Well written. Bahut oonchey khayalaat hai aapke Harkirat Ji. Keep it up.

Nipun Pandey said...

बता मैं कैसे मनाऊँ

ज़श्ने-आज़ादी ऐ 'हक़ीर '

रोता है दिल देख ...

उन लुटे घरों की तन्हाईयाँ

डरी- डरी हैं ............

लुटी-लुटी हैं ............!!!


सच को बहुत अछे शब्दों में बयां किया है आपने.....
आवाहन है ये देशवासियो से ...
स्वतंत्रता दिवस की बधाइयाँ ...
इस उम्मीद के साथ कि अगले वर्ष स्थिति में कुछ सुधर होगा ....खुशियो मैं इजाफा होगा .....:)

mayank.k.k. said...

आपकी नज्म वास्विकता की दास्ताँ बयान कर रही है
शुभकामनाएं
9415418569

Neeraj Kumar said...

न तीर चाहिए ,न तमंचे चाहिए ,न तलवारें चाहिए

न मन्दिर चाहिए ,न मस्जिद चाहिए ,न गुरुद्वारे चाहिए

खिल सकें जहाँ हर मज़हब के फूल

हमें तो ऐसा अपना ये गुलज़ार - ऐ - वतन चाहिए




बहुत ही अच्छी दुआ है, इच्छा है...आमीन...
आपको भी ढेर साडी बढियाँ...
दूसरी रचना तो कहीं भीतर एक मुक्का मरती है...लेकिन सच भी यही है...हमने ऐसा ही वतन और जहाँ बना दिया है..

विधुल्लता said...

.इधर कई ब्लॉग पर तुम्हे पढ़ती रही हूँ ..बस वक़्त के इन्तजार में की कोई बेहतर पल में तुम्हारे ब्लॉग पर आउंगी ..सोचती रही ...आज आना हुआ अच्छा लगा ...तुम गुवहाटी में हो ख़ुशी हुई ..मार्च में आई थी वहां तुम्हारी कविता की ये पंक्तिया अच्छी लगी अनन्त shubh कामनाएं
फूल दीखते नहीं किसी शजर पे ज़ख्म उगे हैं हर शाख़ पे ये कैसी जमीं है जहां उगती हैं फसल के बदले गोलियाँ डरी-डरी है .............

somadri said...

na darr se kaho hum hindu hai... darr na rahe.. isi liye kaho hum hindu hai

http://som-ras.blogspot.com/2009/01/blog-post_27.html

दर्पण साह said...

SAtya hai...

....satya accha bhi hai !!

..Aur bayan karne ka lehja bhi accha hai !!

Swatntatr diwas ki aapko bhi hardik shubh kamnaaiyen...

Vinay said...

आपकी रचना ने सच्चे दिल की बात कह दी!

zindagi ki kalam se! said...

बेखौफ फिरते हैं आतताई लिए हाथों में खंजर

है मेरे हाथों में खूं से सनी रोटियाँ

bhaut dard...aur bahut umda!

vallabh said...

अच्छी रचना... बधाई .
कबीर साहेब की दो पंक्तियाँ आपके सम्मान में...
काशी काबा एक है एकै राम रहीम ...
मैदा एक पकवान बहु , बैठ कबीर जीम

manu said...

धुआं - धुआं है आसमां.
लुटी-लुटी हैं सरहदें
धुआं - धुआं है आसमां
डरी - डरी हैं बस्तियां........... डरा-डरा सा है समां

बहुत अच्छी लाइन...
और आपको उस में भाग लेने की बधाई....यहाँ पर शायद ये वाला रेडियो नही बजता...
क्या इसकी कोई रेकार्डिंग है....?

हरकीरत ' हीर' said...

Manu ji ,

ye program radio mein nahin durdashan mein hua tha DD-1 mein ise dikhaya gya tha .

महावीर said...

ज़र , ज़मीं , मज़हब, सिहासत , मस्लहत
इन मजहबों के झगड़े में
खुदा भी हुआ है लहू-लुहाँ
बता मैं कैसे मनाऊँ
बहुत सुन्दर रचना है.
महावीर शर्मा

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

पंजाब और पंजाबियत कहीं नही छिपती ,हरकीरत जी आप को, मेरीप्यार भरी सत् श्री अकाल ,आप अच्छा तो लिखती ही हैं, साथ ही उस मर्म को अभिव्यक्त करने की ,कला आप में है ,अभिनन्दन एवम आभार ॥

संजय भास्‍कर said...

बहुत शुभकामनाएं