इन दिनों वक्त कुछ की कमी सी है ....तो अपनी पुरानी डायरी में से ही एक नज़्म ...शायद ९८ के आस - पास लिखी गई ....
जो देते हैं दर्द उन ग़मों से क्या सिला रखना
बहा दो अश्कों से न उन्हें दिल में दबा रखना
वो भला क्या समझेंगे मोहब्बत की बातें
जिनकी है अदा हर दिल को ख़फा रखना
बेच दी हो जिसने गैरत भी अपनी
क्या उनके लिए दिल में गिला रखना
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
Friday, July 24, 2009
जो देते हैं दर्द उन गमों से क्या सिला रखना...............................................
Posted by
हरकीरत ' हीर'
at
11:22 PM
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43 comments:
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
बहुत सुन्दर | कविता की हरेक पंगती लाजवाब है |
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
waah bahut hi lajawab,man kuch mayus sa ho raha tha,ye aakhari sher padhkar dil khil gaya,shukran
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
आप लाज़वाब लिखती हैं। बस पढते रहें, मन यही चाहता है।
वक़्त की कमी है तो इस कमी पर ही गज़ल कहिये ..शायर को हर हाल मे कहना चाहिये ,मेरी शुभकामनायें
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
==
बहुत सुन्दर
भावपूर्ण
बहुत खूब....
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
बेहतरीन पंक्तियाँ.
बधाई.
दर्द टपकता जा रहा है !
खूबसूरत आपटीमिजम
'जरुरी है हर जख्म को खुला रखना...' ये एहतियात जरूरी था इस बहार के लिए. सुभान अल्लाह ! ग़ज़ल में ये शेर गज़ब का गिरा है. पुराने चावल पकते और परोसे जाते है तो सर्वत्र अपनी सुगंध बिखेर देते हैं ! बधाई !!
बहा दो अश्कों से न उन्हें दिल में दबा रखना
dil ka gamo se rishta kya...ishq ka hasil aansu kyun?....boht khoobsurati se dil ki baat kahi aapne.....
बेच दी हो जिसने गैरत भी अपनी
क्या उनके लिए दिल में गिला रखना
...वाह बहुत खूब...
लाजवाब है जी लाजवाब
बहुत गहराई है.. बहुत खुब..
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
बहुत ही बेहतरीन लिखा है, आभार्
AA CHALEN DIL KO BAHLAANE....
IN PANKTION ME AAPNE JIS TARAH SE DARD KO UKERAA HAI .... LAGTAA HAI MAHFOOJ RAKHAA THA AAJTAK KE LIYE... BAHOT KHUBSURAT NAZM.... SACH KAHTA HUN AAP NAZMO KI RAANI HAI .... BAHOT BAHOT BADHAAYEE
ARSH
वक़्त की कमी हो जाये, कोई बात नहीं
एहसास जिन्दा है, काफी है मेरे लिए!
ओम...
"आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना"
चलिये, यही सवाल आपके पाठक आप से कराते हैं?
ब्लौग का नया टेम्पलेट खूब फ़ब रहा है...
बेच दी हो जिसने गैरत भी अपनी
क्या उनके लिए दिल में गिला रखना....bahut sahi,shaandaar
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
लाजवाब ग़ज़ल है ........... खिलता हुवा है हर शेर......... आपका लिखा पढ़ना अच्छा लगता है
वाह इतनी सुन्दर रचना की रोमांचित हो गया खुद बी खुद रोम खड़े हो गए ! हर एक अल्फाज ख़ास अति अति सुन्दर !!
बहुत शानदार रचना है!
----
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
अच्छा है कि वक्त की कमी है, कम से कम कुछ पुरानी उम्दा रचनायें जो अब तक बन्द थीं डायरी में अब बाहर आयेंगीं.
दर्द को बखूबी बयां किया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
उम्मीद है ये वक्त की कमी और भी कुछ शानदार चीजें सामने लाने में मदद करेगी
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
बेहतरीन बहुत खूब ...
सुंदर ग़ज़ल के लिए धन्यवाद.
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
शानदार हरकीरत जी. बहुत अच्छी है.
आज अर्बाबे क़लम में आपकी पुस्तक की समीक्षा और एक रचना पढी दोनों के लिये ढेरों बधाईयां
बेच दी हो जिसने गैरत भी अपनी
क्या उनके लिए दिल में गिला रखना
lajvab .nishabd
Bahut hi achchi Gazal...dard ka saagar chhalak raha hai
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
waah ! waah !!
itni pyaari ghazal
aur itna asardaar sher !!
badhaaee svikaareiN.
---MUFLIS---
बहुत उम्दा खयालात हैं.
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
बेहतरीन पंक्तियाँ.
क्या बात है..
तो पहले आप गजल लिखते थे जी..?
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
बहुत गहरा लगा.....
मिल जायेंगे इस जहाँ में सैंकडों हमसफ़र
प्यार के फूल 'हक़ीर' दिल में खिला रखना
सुंदर मक्ता....
शानदार नज़्म
मेरे ब्लोग को देखें
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका के लिए नज़्म भेजें। अगला अंक दिवाली से संबंधित होगा ।
पत्रिका ज़िन्दगी लाईव मेरे ब्लोग पर मिल जाएगी
wah wah.... purani hai phir bhi utni hi katilana... :)
वो भला क्या समझेंगे मोहब्बत की बातें
जिनकी है अदा हर दिल को ख़फा रखना
kya baat hai..wah !
wah aapki puranee diary ke panne bahut khoobsurat hain.
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
वैसे भी मुझे आपकी लेखनी पर कुछ कहने से पूर्व ही दिमाग शून्य में चला जाता है.....
ख़ूबसूरत लिखा है आपने.....
jo dete hain dard un gamo se kya sila rakhna...
par kya hum wakai yeh kar paane mein saksham hain .. shayad nahi... ya hum jaan bhoojh un palo ko bhoolna nahi chahte ?
आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना
......zindgi sirf dard hi nahi balke kuchh aur bhi hai.....
......bahut khoob ...
"kya shiqawa rakhna kya gilaa rakhna." harqeerat ji mujhe yah rachna bahut pasand aai. "jaroori hai har zakhm ko khula rakhna..".
Laazabaab.
यह आपके लिए
http://blogsinmedia.com/2011/01/%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%9B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%97%E0%A5%9D-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-3/
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