आपसब की फरमाइश पर एक पुरानी ही नज़्म पेश कर रही हूँ .....उलझनों के बीच नया कुछ लिख ही नहीं पाई.....यह नज़्म शामिख फ़राज़ जी के ब्लॉग पे भी प्रकाशित हो चुकी है....वादा है अगली बार नया कुछ लेकर आउंगी ....!!
वक्त की नफ़ासत
बरसों पहले
जीवन मर्यादाएं
धूसर धुन्धल चित्र लिए
हस्तरेखाओं की तंग घाटियों में
हिचकोले खाती रहीं.....
उबड़ - खाबड़
बीहडों में भटकती
गहरी निस्सारता लेकर
कैद में छटपटाती
आंखों में कातरता
भय और बेबसी की
आवंछित भीड़ लिए
इक तारीकी पूरे वजूद में
उतरती रही ......
वक्त नफ़ासत पूर्ण तरीके से
सीढियों पर बैठा
तस्वीर बनाता रहा ...
तारों को
छू पाने की कोशिश में
न जाने कितने लंबे समय
और संघर्षों से
गुजर जाना पड़ा .....
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
रातों को आती है चाँदनी
दूर पुरनूर वादियों की
गहरी तलहटी से
दिखलाती है मुझे
शिलाओं का नृत्य करना
उच्छवासों से पर्वतों का थिरकना
समुंदरी लहरों के बीच
सीपी में बैठी एक बूंद का
मोती बन जाना
उड़ते हुए पन्ने में
किसी नज़्म का
चुपचाप आकर
मेरी गोद में
गिर जाना
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
Sunday, April 12, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
46 comments:
AAPKI NAZMON KE BAARE ME KYA KAHI JAAYE BAHOT HI SHANDAAR HAI... KAMAAL KA LIKHTI HAI SAB KUCHH JHAKJHORE KE RAKH DETI HAI AAP... AAPKI LEKHANIKO SALAAM...
ARSH
samudri lahron ke beech........................un sawaalon ke jawaab.
behtareen abhivyakti. bahut khoob.
kafi khubsurat najam hai .............aise hi likhate rahiye thanks alot........
मज़ा आ गया आपकी ये नज़्म पढ़कर ....आनंद की अनुभूति हो रही है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
हस्तरेखाओं की तंग घाटियों में.....
खूबसूरत और गहरी अभिव्यक्ति है,आपने इस रचना को भले ही पहले लिखा होगा लेकिन इसकी ताज़गी हमेशा बरकरार रहेगी
साधुवाद स्वीकारिये
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
हरकीरत जी ,
बहुत वजनदार और गंभीर मंथन से निकली कविता ..बधाई
हेमंत कुमार
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
सुखद अनुभूति...
आभार...
तारों को
छू पाने की कोशिश में
न जाने कितने लंबे समय
और संघर्षों से
गुजर जाना पड़ा .....
बहुत सुन्दर नज़्म।
आभार.............
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........
लाजवाब रचना है................
खूबसूरत नज्म है ..........जितनी बार बढो नयी बात समझ आती है
agar main kahu is rachna me apna ek darshan he aour vo rah rah kar mastishk me uchhlta he to shayad galat nahi hogi kyoki digambarji ne bhi usi baat ko pakda he jo mere dimaag me aa rahi thi ki jitni baar padho nau baat samjh aati he...
bahut khoob.
वाह हरकीरत जी वाह! फिर से एक बार एक अच्छी और सधी हुई नज़्म!
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
वाह जी वाह आपकी रचना ने नि:शब्द कर दिया
बैसाखी की आप सभी लख लख बधाईयां जी
बहुत बढ़िया नज्म . धन्यवाद.
kuch aise sawal hote hain Harkeerat ji ki unke jawab un sawalon ko aur vajni kar dete hain..waise poochhne men koi harj nahi hai
'आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है'
- इस आशावादी सोच के लिए साधुवाद.
अच्छा लिखा है आपने ,बधाई .
बहुत लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
...................................
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
इस सुन्दर प्रस्तुति और सकारात्मक सोंच पर आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
हरकीरत जी,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।बहुत अच्छी लगी यह रचना।
उड़ते हुए पन्ने में
किसी नज़्म का
चुपचाप आकर
मेरी गोद में
गिर जाना..
बहुत खूबसूरत हरकीरत जी ,एक स्तर पर आकर कविता कुछ कहती नहीं है बल्कि भावों के रेशमी अहसास से रूह को सहलाती है .आपका लेखन कुछ इसी तरह का है .
हमारे लिए तो नई है जी। और वो भी बहुत ही बेहतरीन लिखी हुई गहरी बातें कहते हुए। अपनी पसंद की लाईन ढूढने लगा तो कोई एक लाईन नही उठा सका। सारी रचना ही दिल को छू गई।
Achchhee nazm
badhaiyaan
क्या खूब लिखा है-
तारों को
छू पाने की कोशिश में
न जाने कितने लंबे समय
और संघर्षों से
गुजर जाना पड़ा .....
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
...लाजबाव।
bahut sundar rachana harkirat ..
badhai
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
bahut khoobsurti se aapne vartmaan ka ek bada sawaal samne rakh diya hai. par afsos ki in sawalon ka jawab dene ke liye abhi bhi unhi jeevan maryadaon aur hastrekhaon ki tang ghaatiyon ka hi prayog kiya jata hai.
baharhaal, bahut shubhkamnaayen.
हरकीरत जी बहुत है आपका ब्लाग और दर्द भरी कविताएं।
हरकीरत जी बहुत अच्छा है आपका ब्लाग और दर्द भरी कविताएं।
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!!
waah ! waah !!
---MUFLIS---
इतने दिनों से चल रहे विवाद के बाद आपकी बहुत ही खूबसूरत रचना पढने को मिली....
बहुत बहुत बधाई....
सीपी में बैठी एक बूंद का
मोती बन जाना
उड़ते हुए पन्ने में
किसी नज़्म का
चुपचाप आकर
मेरी गोद में
गिर जाना
wah ji wah kitna vismit krta hai sach ,utna ji vismit krta hai apki klm se utrta shbd prpat.
happy vaishakhi
HARKEERAT JEE,
AAPKE DARD KEE ANUBHUTI HAR SAMVEDNA KA 'SHANKHNAAD' BANE ........AUR 'DHAIRYA' SAHLATA RAHE .
AAMEEN !
RAJ
najm bahut achchi hai.... aap likhte rahiye lagataar....hum padne blog par aate rahenge.....
आज मैंने
अंधियारों को चीरकर
चाँद से बातें करना
सीख लिया है
गोया यूँ ही चाँद चारो से बाते करती रहिये ओर चांदनी कागजो पे बिखेरती रहिये....हमारी यही दुआ है.....उर्दू के साथ साथ हिंदी पर आपकी पकड़ खूब है.....
आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ...
वाह! बहुत खूब!
बहुत ही खूबसूरत नज़्म है हरकीरत जी.
[ग़नीमत है आप के ब्लॉग के मिजाज़ तो बदले!मेरे लिए तो यह भी नयी नज़्म ही है...आप की अगली पेशकश का इंतजार रहेगा.]
एक-एक शब्द अपने आप में कविता है और पूरी नज़्म अहसासों से परसा आकाश...
वक्त की नफ़ासत ही तो है जो भटकाती है हम सब को यत्र-तत्र सर्वत्र...
आशा है, उन तमाम विवादों से परे कुछ हल्का हुआ होगा मन आपका...
एक ताज़ी नज़्म की प्रतिक्षा में
... बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है!!!!!!!
रचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
आपने बेहद खूबसूरत नज्म पेश किया है । पूरा नज्म पढ़ने के लायक है । नज्म की ये पंक्तिया मुझे काफी अच्छी लगी ।आज जब
दूर दरख्तों से
छनकर आती धूप
थपथपाती है पीठ मेरी
धैर्य सहलाता है घाव
हवाएं शंखनाद करतीं हैं
तब मैं ....
वे तमाम तपते हर्फ़
तुम्हारी हथेली पे रख
पूछती हूँ
उन सारे सवालों के
जवाब ...........!! शुक्रिया
muje taarif karni nahi aati lekin itna hi kah sakta hu ki pada to apnapan laga.
praveen bhatt
http://insideuttarakhand.blogspot.com se
अरे वाह हरकीरत जी,
शानदार नज़्म लिखी है आपने ...पढ़ते पढ़ते किसी और ही दुनिया का नजारा हो गया ..
बेहद अच्छा लगा आज तो आपको पढ़ना ....मैं पागल इतने दिनों से सवेरे शाम आपके ब्लॉग पर आकर खाली कमेंट ही पढ़े जा रहा था.......
असल में तब मूड ही ना था पढने का....
बहुत प्यारी नज्म लगी है ...
yeh tmaam tapte haraf tumharee htheli pe rakh puchtee hun un sare swalo ke jwaab......kya kahun main?
pehle aap is link mein jakar google adsense mein join kijiye phie aage bataunga
https://www.google.com/adsense/www/en_US/adsense_india.html?sourceid=aso&subid=in-en_us-ha-google_lptest&utm_medium=ha&utm_term=adsense
Bahoot hi behtareen tehreereiN haiN aapki
क्या बात है।
Post a Comment