Sunday, March 29, 2009

मोहब्बत का नाम .....!

सोचा था इस बार कोई पुरानी ही नज़्म पेश करुँगी ......मुफ्लिश जी का भी कई दिनों से अनुरोध था एक नज़्म के लिए पर रात अचानक दर्द ने अंगडाई ली ......शब्दों ने रंगों का जामा पहना और एक नज़्म पन्नों पर उतर आई ......पेश है एक छोटी सी नज़्म ...... " मोहब्बत का नाम ....!!"

मोहब्बत का नाम......!

ब्बा ....!
क्या दर्द का कोई
मौसम नहीं होता.....?
कल जब तुम खैरात में
इक आग का फूल
मेरी झोली में डाल रहे थे
मैं अन्दर ही अन्दर
कहीं दफ्न होती रही

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

69 comments:

संध्या आर्य said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!

bahut khub kahane ke liye shabda nahi hai

"अर्श" said...

BAHOT HI KHUBSURAT NAZM,BAHOT HI KHUBSURATI SE HAK AADA KIYA HAI AAPNE APNE LEKHANI KA .... BADHAAEE,,,

ARSH

Alpana Verma said...

बहुत खूब लिखी है यह नज़्म!
आप की खूबसूरत नज़्म पढ़ कर 'लता जी की गाई एक ग़ज़ल याद आ गयी..
'दर्द से मेरा दमन भर दे या अल्लाह!
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह!'

दर्द और मोहब्बत का चोली-दामन का सा साथ ही तो होता है.

दर्पण साह said...

मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!


Gulzarana style hamesha se hi mujhe lubhata raha hai,
Chayavadi kavita ka utkrisht udaharan, jahan pe kisi shabd vishesh ka koi art nahi, wo kavita ke adwet roop main ghul jaata hai....
...maala ban jata hai.

ओम आर्य said...

क्या कहूँ आपके उस रब्बा को, जो खैरात में भी दर्द हीं बांटता है, वैसे खूबसूरत रचना, खास कर वो लाइने

कल जब तुम खैरात में
इक आग का फूल
मेरी झोली में डाल रहे थे
मैं अन्दर ही अन्दर
कहीं दफ्न होती रही

Anonymous said...

रब्बा ....!
क्या दर्द का कोई
मौसम नहीं होता.....?
कल जब तुम खैरात में
इक आग का फूल
मेरी झोली में डाल रहे थे
मैं अन्दर ही अन्दर
कहीं दफ्न होती रही.....

...... क्या कहूँ ? ...मेरी सोच का दायरा इतना विस्तृत नहीं है कि आपकी इस नज़्म पर कोई टिप्पणी कर सकूँ. पर पढ़ कर एक टीस सी हुई.

शुक्रिया.

डॉ .अनुराग said...

uss ne door rehna ka mashwara bhi likha hai
saath hi mohabbat ka wasta bhi likha hai
आपको पढ़कर किसी का लिखा यद् आ गया ,अलबत्ता जो ढूंढ रहा था वो मिला नहीं .किसी ओर दिन आपसे शेयर करूँगा

पहला कुछ यूँ है

uss ne yeh bhi likha hai mere ghar nahe ana
aur saaf lafzoon main raasta bhi likha hai
kuch huroof likhen hain zabt ki nasihat main
kuch huroof main uss ne hosla bhi likha hai
shukriya bhi likha hai dil se yaad karne ka
dil se dil ka hai kitna faasla bhi likha hai...:)


ओर दूसरा कुछ यूँ है.......


मैं ऐसी मोहब्बत करती हूँ

तुम कैसी मोहब्बत करते हो ?

तुम जहाँ पे बैठ के जाते हो

जिस चीज़ को हाथ लगाते हो

मैं वहीँ पे बेठी रहती हूँ

उस चीज़ को छूती रहती हूँ

मैं ऐसी मोहब्बत करती हूँ

तुम कैसी मोहब्बत करते हो ?

तुम जिस से हंस केर मिलते हो

मैं उस को दोस्त बनती हूँ

तुम जिस रास्ते पे चलते हो

मैं उस रास्ते पे आती जाती हूँ

मैं ऐसी मोहब्बत करती हूं

तुम कैसी मोहब्बत करते हो?

कुछ ख्वाब सजा के आँखों मैं

पलकों से मोती चुनती हूं

तुम से मिलने जुलने के

कितने ही बहाने रखती हूं

मैं ऐसी मोहब्बत करती हूं

तुम कैसी मोहब्बत करते हो





जिसे ढूंढ रहा हूँ वो शायद परवीन शाकिर का है.....

Anonymous said...

आग का फूल जब झोली में गिरेगा तो शब्‍दों के मोती एक बेहतरीन नज्‍म की माला तो गूंथेगें ही।

डॉ. मनोज मिश्र said...

रब्बा ....!
क्या दर्द का कोई
मौसम नहीं होता.....?.......
बहुत सुंदर नज़्म .

Unknown said...

वाह ... निशब्द हूं इन पन्क्तियों को पढ़्कर

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत रचना.....
वाकई दर्द का कोई मौसम, कोई वक़्त नहीं होता....
दर्द आ जाता है चुपके से दबे पाँव
कंहीं से भी .....

खूबसूरत कल्पना है आपकी
दर्द ने भी मुहब्बत उगाया

वर्षा said...

सुंदर है।

वर्षा said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....

वाकई गहरी अभिव्यक्ति सामने आयी आपकी इस रचना में ।

Harshvardhan said...

behatareen najm lagi.... aapko shukria

रश्मि प्रभा... said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!waah

इरशाद अली said...

सुंदर भावाभिव्‍यक्ति

राज भाटिय़ा said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!
बहुत ही सुंदर.
धन्यवद

MANVINDER BHIMBER said...

मन को एक कागज पर उतारना
जैसे झील में नहा लेना
और फिर से तरोताजा हो जाना
मन की सारी बातें उसमें रल जाना
फिर उसे रोज रोज देखना
और उसमें से अपने को खोजना
यह सिलसिला चलता रहता है

ताऊ रामपुरिया said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

बहुत ही खूबसूरत रचना. आपकी रचनाएं सबसे जुदा लगती हैं. ऐसे लगता है है कि आपकी रचना सीधे बात कर रही है. बोल रही है. ्नमन आपको.

रामराम.

Arvind Mishra said...

गहरी अनुभूति की कविता ! थोडा छायावाद का रिफ्लेक्शन लिए हुए !

अनिल कुमार वर्मा said...

हरकीरत जी, दर्द के साथ प्यार का रिश्ता बड़ा पुराना है और आपने इस रिश्ते को बड़े ही सुन्दर ढंग से शब्दों का जामा पहनाया है। दिल को छू गई ये नज्म। धन्यवाद।

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob , umda rachna. harkeerat ji, badhai.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें..

मोहन वशिष्‍ठ said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

वाह जी बेहतरीन नज्‍म लिखी है आपने बहुत बहुत बधाई

Ashok Pandey said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

बहुत सुंदर नज्‍म। पढ़ना अच्‍छा लगा।

कडुवासच said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
.....
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!
...प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

Anil Pusadkar said...

क्या कहूं,तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास्।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

हरकीरत जी ,
बहुत सुन्दर रचना ..ये पन्क्तियाँ तो दिल में गहरे तक उतर गयी
कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर
हेमंत कुमार

के सी said...

इस आलम में कैसे बुझेगी
प्यास बताओ सेहरा की
ऊँचे परबत खड़े हुए है
रस्ता रोके बादल का !!

विजय तिवारी " किसलय " said...

sundar abhivyakti.
vijay
कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

गर्दूं-गाफिल said...

दिल का मौसम ,दर्द का मौसम
मीत बिना यह भीड़ का मौसम

खैरात के जंगल में खुद्दारी
बाढ़ों में बरसात का मौसम

नाम ऐ मोहब्बत लिखकर किसने
भेजा है जज्बात का मौसम

सच सहने का हुनर सीख लो
दुनिया है ऐबात का मौसम

किन अल्फाजो शाबासी दूँ
गर्दू पर है गाज़ का मौसम

daanish said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

hamesha hi ki tarah ek
nayaab aur khoobsurat rachna
abhi to sirf SHUKRIYA kehne aaya hooN iss umda nazm ko hm sb tk pahunchane ke liye...
tabsire ke liye phir aata hooN.

---MUFLIS---

Mumukshh Ki Rachanain said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!

वाह जी!!!!!!
बेहतरीन नज्‍म लिखी है आपने!!!!!
बहुत बहुत बधाई

Prem Farukhabadi said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

नज्‍म लिखी है
बहुत बधाई

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut pyari poem hai...mohabbat aur dard k ahsas se bhari hui....amarjeet kaunke

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) said...

Love is also green.. recyclable.. deeply ingrained in nature...
go green go!

manu said...

दर्द का भला क्या मौसम होता होगा,,,?

अभी बादे-सबा ने छेडा इक नगमा सुहाना सा
अभी बादल घनेरे गम के लहराते चले आये,

जहां पर दामने-गुल में थी शबनम की हसीं रंगत
अभी सूरज उधर ही चल पडा है हाथ फैलाए,,,

आग का फूल भी खुदा,,,
बहुत देख भाल कर ही किसी की झोली में डालता है,,,

daanish said...

बड़ी मुश्किल पेश आती है जब किसी बहुत
अच्छी और स्तरीय रचना को पढ़ कर उस पर टिप्पणी करनी हो...

हिंदी कविता की प्रतिनिधि हस्ताक्षर
"हरकीरत हक़ीर" के काव्य-संसार में
विचारने के बाद बिलकुल यही महसूस होने लगता है कि मेरे पास अल्फाज़ की कमी क्यूं है

कोई भी रचनाकार तब सफल स्वीकार किया
जाता है जब पाठक उसकी रचनाओं में अपने-आप को खोजने लगे, अपने-आप को महसूस करने लगे , उसकी रचनाओं के पात्रों के साथ जिए , हँसे, रोये, और बातें करे

संवाद की कला हर लेखन की सब से बड़ी ज़रूरत है
और हक़ीर जी ... आप अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने पाठकों से संवाद स्थापित कर लेती हैं ... आपकी ये कुशलता आपकी
काव्य के साथ प्रतिबद्धता को प्रमाणित करती है
आपकी कविताओं की संजीदगी हमेशा कलात्मक होती है... और ये बात ...आपके द्वारा रचित काव्य-संकलन "इक-दर्द" की सभी रचनाओं से साबित होती है

मैंने ब्लॉग-जगत में आने से पहले भी आपको कई बार पढा है , और आपकी सृजन शीलता में आत्मीयता की aawaaz को pehchana है ...
आप की हाल की rachnaaein आपकी
सृजन-yatra का mahatav-poorn parhaav हैं ......
अब शायद हिंदी conversion साथ नहीं दे रहा है ....

dua करता हूँ कि माँ saraswati जी का aashirwaad आप पर yoon ही banaa रहे ... astu .
---MUFLIS---

हरकीरत ' हीर' said...

मुफलिश जी और मनु जी ,

इतनी तारीफ की अभी हक़दार नहीं हुई हूँ ...ये खुदा की दुआ ही है जो अल्फाज़ मेरे पन्नों में यूँ सिसक उठते हैं ...कई बार तो मैं खुद हैरां
होती हूँ अपनी ही नज़्म पर ....पर अन्दर कहीं कुछ मुझे बहोत बेचैन सा करता है और हर नज़्म के बाद बहोत सुकूं महसूस करती हूँ पता नहीं वो क्या है और क्यूँ है .....आप सभी की दुआ और स्नेह का असर भी हो सकता है ....." कहते हैं किसी की गयी दुआ में बहोत असर होता है......!! "

गौतम राजऋषि said...

थोड़ा विलंब से क्या आया कि बस....
मुफ़लिस जी के कह लेने के बाद कुछ शेष रह गया है क्या????
बस नम कर लेता हूँ आपको

....और हाँ, आना तो था हमें आपकी तरफ़ ही लेकिन आदेश परिवर्तित हो गये और अब आपके राज्य में न होकर एकदम विपरीत दिशा में हूं...

पूनम श्रीवास्तव said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

bahut sundar bhavnatmak kavita..
Poonam

सुशील छौक्कर said...

इस बार भी लेट हो गए। पर लेट होने का भी फायदा, कुछ और चीजें भी पढने को मिल जाती है। मसलन ... । क्या खूब लिखा मोहब्बत के नाम पर। सच ऐसी होती है मोहब्बत, कुछ दर्द की बूँदे के साथ सांसो से मोहब्बत का नाम लिते हुए। सच आप कितनी आसानी से शब्दों को लेकर एक सुन्दर सी रचना रच देती है।

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था ..

अद्भुत। एक बात जहन में आ रही है कि लगता है आपकी किताबें भी आ चुकी है सच्ची तो जरुर हमें किताब का नाम बताएं।

neera said...

वाह!

अभिषेक मिश्र said...

Mohabbat ko samarpit sundar ghajal.

ilesh said...

wah umda nazm

अमिताभ श्रीवास्तव said...

muflis ji dvara aapki rachna par jis andaaz me likha gaya he vo aapki rachna ko mila behtreen purskaar he...
iske baad yadi kuchh likha jaa sakta he to vo sirf yahi ki

L A A Z A V A A B

sanams hot cake said...

dard ne angdai li aur nam mohabat ka aa gaya wo bhi bahoot khub hi hoga jo aapko dard dekar khubsurat najam banwa gaya .
firstnews ke do anko me aapki rachna prakasit hui hai ,bahut jaldi aap tak pahucha raha ho
sanam

sanjay vyas said...

आपकी कविता भीतर कहीं उगती और विकसित होती है.ऐसा अनुभव हो कि इसे पढ़कर कुछ भी याद न आये सिवा इस कविता के तो समझे कविता में आपने गोता लगाया है न कि सिर्फ स्पर्श किया है.एक अनिर्वचनीय,अद्वितीय अनुभव.इसे व्यक्त सिर्फ नेति नेति के ज़रिये ही किया जा सके.
कुछ ऐसी ही है ये कविता.

mark rai said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर
......क्या कहूँ ? .बहुत सुंदर नज़्म ...

मोना परसाई said...

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!
खूबसूरत नज़्म .

अजित वडनेरकर said...

सुंदर .
दिल के काग़ज पर सारे मौसम देख लिए
हर इबारत पढ़ ली।

RAJ SINH said...

hamesha kee tarah ....saraltam shabdon me gahantam abhvyakti !

sanson me ug aayee pattiyon pe likha mohabbat ka nam ? bimb,bhav.shailee....... aur kya naheen ? sab kuch aur sankchipt bhee .

shayad kavita aise hee hotee hai !

जयंत - समर शेष said...

"कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर"

Too good... Speechless.

~Jayant

रवीन्द्र दास said...

shuddh kavita!

Sanjay Grover said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

अय खुदा !
अंगारों के बुझने तक
जीने दे ......!!!
Ai dekho maiN do mila ke ik kar ditti. asar duna ho gaya.

(ਅਛਾ.....?? ਅੱਜ ਪ੍ਤਾ ਲੱਗਾ ਤੁਸੀਂ ਚਸਮਾ ਕਿਓਂ ਪਾ ਕੇ ਰਖਦੇ ਹੋ.....!!)
BAQI jaldi hi aawange harikirtan ji de dere te pravachan karan. A viche viche gurmukhi kyon waad ditti e. mere layeN te kala akkhar bhains de barabar haiga

अबयज़ ख़ान said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

बहुत दर्द है आपकी कलम में... मेरे ब्ग पर आने का शुक्रिया.. अच्छा लगा आपका कमेंट्स। धन्यवाद

हरकीरत ' हीर' said...

मित्रो ,

पता चला है कि कोई ब्लॉगर मेरी रचनाओं को चोरी कर अपने नाम से उर्दू में प्रकाशित करवा रही है यह बड़ी लज्जाजनक बात है, और अपराध भी . मेरा उनसे अनुरोध है कि वे तुंरत अपनी गलती मान क्षमा याचना करें वर्ना कड़ी करवाई की जायेगी ...!!

pallavi trivedi said...

कल जब तुम खैरात में
इक आग का फूल
मेरी झोली में डाल रहे थे
मैं अन्दर ही अन्दर
कहीं दफ्न होती रही

uf...kya lines likh gayi aap. kya kahu..shabd dhoondh rahi hoon.

manu said...

जी हरकीरत जी,,,
आपके इस रचना के छापने के अगले ही दिन यही कविता अक्षरश उर्दू में छपी देखि है,,,,
आप जैसी इमानदार लेखिका की रचना की चोरी को हम खुद अपनी चोरी मानते हैं,,,,
बड़ी मुश्किल से एक एक शब्द जोड़ कर पढने की कोशिश की तो साफ साफ़ पाया के वो आपकी ही कविता है,,,,,
ऐसा करना सरासर गलत है,,,,,,हम इसका पूरी तरह से विरोध करते हैं,,,,,और किसी तरह उन से संपर्क स्थापित करने की कोशिश करते हैं,,,,,
हम सब आपके साथ हैं,,,,,;

हरकीरत ' हीर' said...

Manu ji,

Meri aanken is waqt nam hain
ye nazme yun hi nahin paida hatin....andar kahin kuch tutta hai..kuch rista hai...kahin dard hota hai... tab jakar ek nazam paida hoti hai....Munawwar Sultana ji aapko iski safai deni hogi....!!

rajesh singh kshatri said...

कुछ दर्द बूंदों में
बगावत कर उठा
कुछ ओस की बूंदों में
फैलता रहा पत्तों पर

कुछ पत्तियां अनजाने ही
उग आयीं सांसों में
मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
लिखा नाम था .....!!
kya khub kaha aapne...

Shahid Ajnabi said...

मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!
ek vishudh nazm nazar aayee ek lambe arse ke baad...
koi amrita preetam ji ki khali jagah bhar bhi sakta hai...han shayad wo aap hai........
shahid "ajnabi"
sampadak
"Nai Qalam- ubharte hastakshar"
http://www.naiqalam.blogspot.com

kumar Dheeraj said...

हमेशा की तरह खूबसूरत और पढ़ने के लिए मजबूर करती आपकी रचना । एक फिर आपने ये खत मोहब्बत के नाम लिखा है । शानदार रचना खासकर ये पंक्तिया हमें बहुत अच्छा लगा धन्यवाद

रजनीश 'साहिल said...

बहुत ही खूबसूरत नज़्म।
सिवा इसके और कुछ कहना मुमकिन नहीं कि-

"एक शोला सा उठता है
अपनी पलकें भिगोता हूँ
इस बहाने शबनम का कुछ
अहसास है मुझको"।

Mumukshh Ki Rachanain said...

मैंने देखा उनमें
मोहब्बत का
नाम लिखा था .....!!

कभी मैंने देखा कि इस नज्म में हरकीरत जी आपका नाम लिखा था,

इसीको अब देखता हूँ तो इस पर

मोहब्बत-ए- चोरी का
नाम लिखा है .....!!

सचमुच निंदनीय कृत्य, जितनी भी निंदा की जे कम है.

चन्द्र मोहन गुप्त

गर्दूं-गाफिल said...

हरकीरत जी ,
आपकी नज्म ने जादू डाला , सुल्ताना का दिल चुराया
दिल न माना सुल्ताना का उस बेबस ने नज्म चुरा ली ।
मुफलिस जी तो मुफलिस ठहरे उनने झट से रपट लिखा दी
मनु जी अपने फायर कर्मी उनने फट से आग लगा दी
अब तो हम मुंसिफ जी होगये बिना दरोगा कोतवाल के
सुनो फ़ैसला हम करते हैं देख भाल के
चोरी करने वाले ,हवा हवालात की खाते हैं
पर जिनकी रचना चोरी होती ,वे महान कहलाते हैं ।
सड़े गले को कौन चुराता ? महंगे पर हर मन ललचाता
आपके दुःख में शामिल हूँ ,पर इस सुख की बधाई हूँ देता

गर्दूं-गाफिल said...

हरकीरत जी ,
आपकी नज्म ने जादू डाला , सुल्ताना का दिल चुराया
दिल न माना सुल्ताना का उस बेबस ने नज्म चुरा ली ।
मुफलिस जी तो मुफलिस ठहरे उनने झट से रपट लिखा दी
मनु जी अपने फायर कर्मी उनने फट से आग लगा दी
अब तो हम मुंसिफ जी होगये बिना दरोगा कोतवाल के
सुनो फ़ैसला हम करते हैं सोच समझ कर देख भाल के
चोरी करने वाले ,हवा हवालात की खाते हैं
पर जिनकी रचना चोरी होती ,वे महान हो जाते हैं ।
सड़े गले को कौन चुराता ? महंगे पर हर मन ललचाता
आपके दुःख में शामिल हूँ ,पर इस सुख की बधाई हूँ देता
इतने भर से न घबराना ,ऐसी नज्मे रोज़ लिखोगी
कोई बदली क्या धक लेगी ,आसमान में अलग दिखोगी

बादल१०२ said...

bahut khoob harkirat ji
daad kabool farmayen aap.