ठहर जरा आसमां ज़ख्म ढक लेने दे कहीं तेरे आब से ये धुल न जायें .....!!
(१)
अपने अपने हिस्से का दर्द ....
बरसों तलक
अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर
(2)
टूटती उम्मीद ....
रात बहते हुए अश्कों ने
पूछा मुझसे ...
जब बरसों तलक
न बही थीं तुम्हारी आँखें
फिर ये आज क्यों.....?
मैंने मुस्कुरा कहा....
अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ....
(३)
दुःख ....
दुःख कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....
(4)
औरत हूँ ...
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
(५)
दर्द के नश्तर ......
कुछ अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नश्तर ....!!
Sunday, March 1, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
51 comments:
ये पाँचों तस्वीरें-उदासी के अज़ब से फ़्रेम में मढ़ी....पूरे ब्लौग-जगत को उदास कर जायेंगी रात ढ़ले
जाने कैसे-कैसे ख्वाब लेकर सोऊँगा...
"आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर"
वाह !
सही में दर्द की बरिकिओं से रूबरू कराती आपकी पांचो रचनाएँ ... हलाकि ये भी के कला है जो आपसे सिख लिया .... आभार आपका ...
अर्श
गहनतम अभिव्यक्ति है पीडा की. शुभकामनाएं.
रामराम.
harkirat ji apne khoye hue followers ko wapas paane ke sambandh me maine aapko aik mail kiya hai. kripya dekh len.
वाह बहुत ही भावूक कर गई आप की यह कविताये. अति सुंदर.
धन्यवाद
हर क्षणिकाएं कमाल की हैं,पर यह,
औरत हूँ ...
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!.........बहुत ही अच्छी लगीं....
सचमुच उदासी घुली हुई है माहोल में....
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
sabhi kshanikayen bahut hi gahare dard mein dubi hui hain....
Pankaj udhas ji ki gayi ek gazal yaad aayi...dard ki baarish sahi ....zara ahista chal..
दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से ....."
निःसन्देह इन पंक्तियों में बहुत गहरा भावार्थ और जीवनानुभव संपृक्त है. हर एक क्षणिका ही प्रभावी है. धन्यवाद
मेरे दिल की ख़ला में भटकते सय्यारों की तरह हर नज़्म आपकी!
हूँ ! विभिन्न मनोभावों की जादुई बेहतरीन अभिव्यक्तियाँ ! बधाई !
sari kavita bahut pasand aayi khas kar aurat hun,bahut badhai.
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!
... गहरी अभिव्यक्ति
अद्भुत अपूर्व सहज भाषा गंभीर अभिव्यक्ति वाह वाह
कुछ अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!
ये टुकडा जिंदगी के तमाम टुकडो में से अलग सी रौशनी लिए देखा लगा ...बावजूद उदासी के ....
सभी रचनाओं में कितनी पीडा,उदासी के गहरे भाव समाहित हैं..........
दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....
पाँचों में गहरी भावना और गहरी दर्द की अभिव्यक्ति है ..बहुत अच्छी लगी यह शुक्रिया
आपके शब्द एक बहता हुआ दरिया है, कहीं उदास, कहीं शांत सहज तो कहीं भरा पूरा आवेग है.
बहुत ही प्रभावशाली क्षणिकाएं . बहुत सुन्दर !!!
सुन्दर और सधी हुई क्षणिकायें. बहुत उम्दा!! बधाई.
बहुत सुन्दर रचनाऐं..
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
शायद इसीलिए कहा जाता है कि औरत के मन की बात औरत ही समझ सकती है।
पाँचों रचनाएं बहुत शशक्त, प्रभावी छाप छोड़ जाती हें दिल पर. बहुत पीडा है इन में, दिल की गहराई से आती हुयी आवाजें हें ये सब. अपने हिस्से का दर्द...........तो जैसे नारी को पूर्ण रूप से खुले आकाश की तरह सब का दर्द सिमटने का एहसास करा जाती है. बहुत लाजवाब लिखा है
गौतम राजरिशी ठीक ही कह रहे हैं।... वैसे इस पीड़ा/आक्रोश/संवेदना को औरत ही बयां कर सकती है।
dard men doobi kalamse likhi gai
meri kismat jaisi dekhi aur kahin
gagar men sagar, sagar men khara jal, jal............ansu.
कम शब्द में बहुत गहरे दर्द लिए हुई रचनाएं। क्या कहूँ नि:शब्द सा हूँ।
कुछ अनसिये ज़ख्म
वक़्त बे वक़्त
सिसक उठते हैं
नासूर की टीस लिए
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!
गजब।
दर्द में डूब सा गया ..... आपने रूबरू करा दिया ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
Harkeerat ji,
bahut achchhee bhavpoorna kshanikayen...kai kai bar padhne ka man hua.
Poonam
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे
ये मोती क्यों ?
मैंने कहा
औरत हूँ..
अच्छी लगीं.
हरकीरत जी ,
बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं ..लेकिन ये शब्द कहीं
ज्यादा शक्तिशाली लगे औरों की अपेक्षा .
दुःख ....
दुःख कभी कम नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....
हेमंत कुमार
हर रचना कुछ कहती है । आपने जो पोस्ट किया है लाजबाब है । खासकर मै औरत हूं वाली पोस्ट बहुत अच्छा लगा आपका आभार । महिलाओ पर लिखे मेरा पोस्ट अवश्य पढ़े और प्रतिक्रिया दे
हरकीरत जी
आंसुओं का सैलाब मुठ्ठी भर अल्फाज़ में..
बादल की तरह भिगो गया तन मन को...
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!
सब सुंदर, औरत हूं ख़ासकर, पर इतना दर्द क्यों है?
अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर
kya baat hai harkeeratji! tees bhi, dard bhi aur vyangya bhi! kamaal hai.
वाह, बहुत खूब लिखा है.
"......तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर.../"
-नारी चित्रण.. ,
"....अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ...."
-अरे, इसमें कहा टूटी उम्मीदे? हां जब नेपथ्य में झांका तो शब्द ने अहसास दिलाया.
"दुःख कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश....."
-ये सही है .
"...ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!"
-जवाब नहीं इस पंक्ति का.
"...यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!"
-याद होती ही चुभने के लिए है.
सच में आपने मन की बात को पटल पर ला दिया.
साधुवाद
Harkiratji,
udasi ko khushnuma banane ke liye likha hai,ya
dard ko fir bhavo ke sagar me dubone ke liye likha hai.
nahi maloom is jigar ka sach kya hoga?
shayad kalam se dil ko sahlane ke liye likha hai.
jo bhi likha hai aapne wo bahoot khoob likha hai.
aapki rachna hamari firstnews me prakashit hui hai ,aap tak kaise wo aaye -jara aap rasta battaye
sanjay sanam
दुःख कभी खत्म नही होते
सिर्फ़ छद्दम वेश
धारण कर लेते हैं
किसी जादू के
पिटारे से .....
बेहतरीन रचना , एक बेहद सुन्दर और सफल प्रयास.
दुःख स्वयं ही इंसान के रिश्तेदार बन जाते हैं और उसे रिश्तेदारी निभाने को वाध्य करते हैं. वह इंसान की परछाईं बन जाते हैं. इंसान बहुत प्रयत्न करता है दुखों से छुटकारा पाने को पर दुःख उस का पीछा नहीं छोड़ते. आखिर इन दुखों के लिए इंसान खुद ही तो जिम्मेदार है. उसके पूर्व जन्मों का फल हैं यह सुख और दुःख.
बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ा था -
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय.
कितनी सीधी और सच्ची बात है, पर इंसान न जाने किस उलट-फेर में लगा रहता है, दुखों को अपना रिश्तेदार बना लेता है और जीवन भर रोता रहता है.
ब्लॉग पर आने और टिप्पणी करने का धन्यवाद, हिन्दी मे भी लिखता हूँ, आज कल थोडा कम है, जल्द हिन्दी मे भी लिखूंगा
शुक्रिया
Harkirat ji...kya kamaal ki nazam hai...bahut khoob!
अकेले ही
पीती रही
अपने हिस्से का दर्द
आज जब उनकी बारी आई
तो तलाशने लगे
मेरे ही आँचल का छोर
Itni gehri samvedna ko mera salaam!
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada
og, hiqarat faqeerji, mera naaN gulshan nai sanjay haiga. aes taraN the bhede-bhede dil todan wale mazak na keeta karo.
harkirat ji
sorry for late arrival , i was on tour.
itni saari tippaniyon ke baad mujhe nahi lagta ki main kuch aur kah paane ki stithi men hoon..
" dukh" bahut jyada acchi hai ..ultimate ..
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
te Tandeep ji nu koi dhang tha banda (kavi) nai milya si? Hindi wale pallei pareshan su, hun punjabian thi wari e.
मित्रो,
मैं तनदीप जी शुक्रगुजार हूँ जो उनहोंने
मेरी नज्में पंजाबी में अनुवाद कर अपने ब्लॉग
आरसी में स्थान दिया है...स्वयम तनदीप जी
भी बहुत अच्छा लिखती हैं ...इनकी अनुवादित
रचनाएँ सुभास नीरव जी के ब्लॉग सेतु साहित्य
पर प्रकाशित हुई हैं ... रचनाएँ दिल को छूती हैं ... तनदीप जी
बहुत बहुत शुक्रिया आपका...!!
और एक खुसखबरी मैं आप सब से बाँटना चाहती हूँ इस माह की वर्तमान साहित्य में भी मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं ...!!
सादर ब्लॉगस्ते,
कृपया पधारें व 'एक पत्र फिज़ा चाची के नाम'पर अपनी टिप्पणी के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करें।
आपकी प्रतीक्षा में...
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
क्या शानदार ख्यालात हैं वाह। इसीलिए तो हमे भी आपकी रचनाओं के कायल हो गये हैं।
Harkirat ji,
shukriya, aap hamaare blog par aaye.
टूटती उम्मीद ....
रात बहते हुए अश्कों ने
पूछा मुझसे ...
जब बरसों तलक
न बही थीं तुम्हारी आँखें
फिर ये आज क्यों.....?
मैंने मुस्कुरा कहा....
अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ....
bahut khoob.
-अपने अपने हिस्से का दर्द ....
-औरत हूँ ...
bahut achhi lagi..
adhut tasveeren khichi hai aapane dard ki. thanks
ਖੂਬਸੂਰਤ ਕਵਿਤਾਵਾਂ !!!!
रात कुछ तारे
ज़मीं पे उतर आए
पूछने लगे ....
ये मोती क्यों ....?
मैंने कहा ....
औरत हूँ...!!
एक उदास नज्म
जब ....
यादों के कुछ टुकड़े
चुभो जाते हैं
दर्द के नस्तर ....!!
ਹਰਕਿਰਤ ਜੀ.....ਤੁੱਸੀ ਚੰਗਾ ਲਿਖਿਯਾ ਹੈ .....ਮੁਬਾਰਕਾ
Post a Comment