तेरे आँगन की मिट्टी से
उड़कर
जो हवा आई है
साथ अपने
कई सवालात लायी है
अब न
अल्फाज़ हैं मेरे पास
न आवाज़ है
खामोशी
कफ़न में सिला ख़त
लायी है ...............
तेरे रहम
नोचते हैं जिस्म मेरा
तेरी दुआ
आसमाँ चीरती है
देह से बिछड़ गई है
अब रूह कहीं
तन्हाई अंधेरों का अर्थ
चुरा लायी है ..............
दरख्तों ने की है
मक्कारी किसी फूल से
कैद में जिस्म की
परछाई है
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
उम्मीद जले कपडों में
मुस्कुरायी है ............
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
Sunday, February 15, 2009
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59 comments:
jindagi
aur kuch nahi
dard ka tarjuma hai
jo bhi padhta hai
rota hai
harkirat ji har bar ki tarah is bar bhi kamaal
आप तो हमेशा कमाल करती हैं शब्दों के साथ
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
उम्मीद जले कपडों में
मुस्कुरायी है
.... अद्भुत शब्द रचना..
प्रभावशाली काव्य!
हरकीरत जी,
आपके यहाँ आते तो हैं बड़ा खुशी खुशी,,,,,
पर एक नयी टेंशन लेकर ही उठते हैं,,,,,,,,
कभी इस ख़त को कफ़न के बजाय ,,,,,,,
दुप्पटे या चुनरी में भी सिल लिया कीजिये,,,,
शब्द आपकी कविता में आकर और निखर गए है. बधाई.
हूँ ,उफ़ !
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है....
शब्दों की कलाकारी तो कोई आपसे सीखे..कमल की रचना है..बधाई...
बस इतना ही --
लफ्जों में दर्द बयां है या
दर्द ने ओढ़ ली है लफ्जों की चादर
या कि मेरी रूह की
जख्मो से शनासाई है
..आपकी कलम से एक बार फिर एक बहुत ही उम्दा नज़्म का जन्म हुआ है जिसका हर हर्फ़ मन को छूता है.
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
......bahut hi achha likha
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
khubsurat.....bahot hi geharai se bhari baat keh di aapne.....
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
अनूठे शब्द चित्र...कविता बहुत गहरे असर करती है.
कैद में जिस्म की
परछाई है
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
बेहद खूबसूरत लिखा है
दरख्तों ने की है
मक्कारी किसी फूल से
कैद में जिस्म की
परछाई है
----वाह वाह बहुत खूब!
ये शब्द गिरे हैं या दर्द की लिखाई है?
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
अद्भुत लेखन है....सचमुच..... आप जब नज़्म लिखती है तो ऐसा लगता है जैसे लफ्ज़ गुफ्तगू कर रहे है ..अक्सर उदासी खूबसूरत भी होती है ये आपकी नज़्म पढ़कर जाना
आपके लिखे अल्फाज़ अद्भुत से होते हैं। और बहुत गहरी बात कह जाते हैं। और हम नि:शब्द हो जाते हैं।
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है।
सच में अद्भुत लिखा है।
साथ ही ये भी कहूँगा आपके ब्लोग का नया रुप भी बहुत ही सुन्दर हैं
। कई बार कहना चाह रहा था पर रचना पढने के बाद भूल जाता था। पर आज पहले ही ये लिख दिया फिर रचना पढी।
harkirat ji maine aapki batai hui change kar di hai. mafi chahunga ke k kavita me aik shabd rah gaya tha.
नज़्म लिखने में आपका जवाब नहीं...सही जगह सही शब्द दूंढ कर पिरोना आसान काम नहीं...बेहद खूबसूरत रचना...
नीरज
अनूठे बिम्ब....अनोख्री प्रस्तुति
ऐसी बेकली को
आप जैसे अल्फाजों की ही ज़रूरत है.
============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
लाजवाब शब्द संयोजन है. पढ कर शब्द गहरे में कही उतरते हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
Harkirat Ji,
beautiful!
Umeed jle kapdo me
muskrai hai...
Cheers!
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
दिल को छू गयीं आपकी कविता। बधाई।
jitna padha sab bejod or marmik
bhavo ko sabad dene ki kala ko dard kitna tarash deta hai nazmoN mein saaf dikhta hai.
khoobsurat or naayb sabdon ka priyog dard ko khoob zubaaN de raha hai ..jo bhi likha hai kavy ki drishti se naayab or manobhaav ki drishti se dard ki intihaa..
aap jaisi kaviyatri ne mere bikhre se lafzo ki saraha ye yakinan mere liye khushi ki baat hai.
sorry for late arrival ..
bnahut sunadar shabdchitra ,hamesha ki tarah ..
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
in final lines me to aapne hamesha ki tarah kamaal kiya hai .. amrita ji ki yaad aa gayi ..
wah ji wah
dil se badhai
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है।
हकीर जी क्या कहूं, सच कहूं तो बस इतना है कि मुझे बहुत कम समय लगता है ब्लाग पर आने का। और कुछ चुनिंदा लोग ही हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए आता हूं। आपकी नज़्म पढ़ी बस अल्फ़ाज ख़त्म हो गए। कहीं गुम हो गया।
aaj k daily news 'khushboo' (jaipur) m aapki kavita padhi. bahut achi lagi. badhayi saweekaren...
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
कितना दर्द उडेल दिया आपने.
मिट्टी जाने कितने, प्रश्न साथ लाती है,
भीनी सी इक गन्ध, हवा में बिखराती है।
रहम, दुआ और शब्द रहित हो कर के भी-
तन्हाई को चीर, सन्देशे अपने दे जाती है।।
Please Cheque ur yahoo id
डाक्टर साब के शब्दों को दोहराऊँ तो सचमुच जाने कैसे आप उदासी को भी इतना खूबसूरत बना देती हैं...
"तेरे रहम
नोचते हैं जिस्म मेरा "
शब्द-संयोजन अवाक कर गया...
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
हरकीरत जी
एक बहुत ही शशक्त, भावः पूर्ण, आवेग से भरी रचना है..........मेरे पास अल्फाज़ नही हैं, चुप रह गया हूँ इस को पढ़ कर,
सलाम है बस मेरा
हो सकता है गुजरे जमाने में लोग कहते हो उनके पास अमृता प्रीतम है या कलन्दर और कोई हम भी कह सकते है हमारे पास हरकिरत है।
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
... प्रभावशाली व संवेदनशील रचना है।
bahut badhiya ...aapka andaaz bilkul zuda hai!
read all the posts
feeling was great indeed
harkirat ji namaskar, ati uttam rachna ke liye badhai
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
aapka mere blog par aagman, swagat, dhanyawaad sahit.
कितनी तारीफ करुँ!!!!!
शब्द को पिरोना तो कोई आपसे सीखे.
सुंदर भावः पूर्ण रचना.
चन्द्र मोहन गुप्त
Aapko kamaal haasil hai.
Harkirat ji
Etane gahare vicharo aur bhavon ko aap kaise shabdon me dhal leti hai..
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
Nice , viry nice poem.
Regards
दरख्तों ने की है
मक्कारी किसी फूल से
****
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
Oji harkeerat ji tussi edda di kamaal di nazmaN likhde ho, mainnu ta pattyai nai si. Mere vallo bahut-bahut vadhaayi ji.
तेरे रहम
नोचते हैं जिस्म मेरा
****
Enna linna tha ziqr karna maiN bhull gayaa si. Muzaffar warsi ji tha ik she'r haiga :-
HAMDARDI-E-AHBAAB SE DARTA HUn MUZAFFAR/
MAIn ZAKHM TO RAKHTA HUn, NUMAYISH NAHIn KARTA.//
लाजवाब भाव , लाजवाब शब्द, लाजवाब रचना. साधुवाद.
अद्भुत अभिव्यक्ति.
दर्द जिस्म की परछाई में उतर आया है
aap behad hi accha likhti hain.shabdon mein utra dard dil ke andar samaa gayaa.
क्षमा करें देर से आया लेकिन आपके तेवर और आपका शिल्प फिर से कयामत ढा रहा है। बहुत बढिया कविता वाह।
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
Bahut Khoob
manu said...
हरकीरत जी,
आपके यहाँ आते तो हैं बड़ा खुशी खुशी,,,,,
पर एक नयी टेंशन लेकर ही उठते हैं,,,,,,,,
manu se main sahmat hoon.
अब रूह कहीं
तन्हाई अंधेरों का अर्थ
चुरा लायी है ..............
शब्दों एवं भावनाओं का सुमेल शायद इसी को कहते हैं.बहुत ही उम्दा प्रस्तुती.........
ab itni saari tippaniyo me me kidhar fit bethata hoo???
bahut achche bhavo se piroi gai kavita he.
दरख्तों ने की है
मक्कारी किसी फूल से
कैद में जिस्म की
परछाई है
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
उम्मीद जले कपडों में
मुस्कुरायी है ............
waah, aanand aa gaya ...khoobsurat shabdo ki maalaa he ye..aour jo arth ko vyakt karti he.
आप सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया ...! और उन सभी संपादकों का भी जिन्होंने मेरी
रचनाओं को अपनी पत्रिका में स्थान दिया ...पर एक गुंजारिश है उनसे मुझे भी पत्रिका भेज
दें तो अभारी रहूँगी...
मेरा पता-
हरकीरत 'हकी़र'
१८ ईस्ट लेन'सुन्दरपुर
हाउस न. ५, गुवाहाटी-५
Harkeerat ji,
bahut badhiya kavita .
तेरे रहम
नोचते हैं जिस्म मेरा
तेरी दुआ
आसमाँ चीरती है
देह से बिछड़ गई है
अब रूह कहीं
तन्हाई अंधेरों का अर्थ
चुरा लायी है ..............
man ko jhakjhor dene valee panktiyan.
HemantKumar
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना के लिये
बधाई ,
आभार
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!
MAREE PADEE AURAT.......
................HAQUEER KEE PARCHAYEE HAI ?
AISA NAHEEN KAHTE !
BAHADUR BANO !
kaho.......
....YE MAREE PADEE AURAT ?
KUCH BHEE HOGEE, 'HAQUEER' KYA HOGEE ?
bahut achche bhav. GUSTAKH NAHEEN MAIN PAR AGAR YOON KAHEN TO .....
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UDKE AANGAN SE TERE, MITTEE HAVA LAYEE HAI.
SAATH ME KITNE, SAWALAAT UTHA LAYEE HAI .
NAA TO ALFAAZ , NAA AAWAZ, MAHAJ KHAMOSHEE.
KITNE ANDAZ SE, SILWA KE , KAFAN LAYEE HAI.
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LEKIN YE TO AAPKE HEE NAAM DARZ . MAIN TO SIRF EK ALAG JUBAAN DE RAHA HOON.........DARD TO AAPKA HEE HAI !
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ACHCHA LAGTA HAI AAPKO PADHNA........PADHKE THODA UDAS HOTA HOON .
JAISE AATE HON YAAD APNE GUNAH, KAR CHUKA KAB KE, AAJ ROTA HOON.
CHAHE KUCH BHEE HON VAZOOHAT,MAGAR LAGTA HAI.
AISE ASKON ME,KAHEEN KUCH TO PAAP DHOTA HOON.
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YE MERE NAAM DARZ !
VAISE AAP KE DARD PAR BHAREE NAHEEN.SHAMIL HAIN.
Harkirat ji..mujhey aapki yeh nazam bhi bahaut pasand aayee hai..aur maine is ska Punjabi mein anuvaad karke Aarsi pe lagaeya hai.
रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है।
Bahut khoobsurat nazam hai. Badhai ho.
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada
its a wonderful nazm...
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