Sunday, February 1, 2009

जब दर्द ने रो लेना चाहा ........

अय ज़िन्दगी !
पता नहीं तू भी
क्या क्या खेल खेलती है ....

आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा है
तब
मेरी जीस्त के
तल्खियात भरे सफहों में
न प्रेम से भीगे वो शब्द हैं
न उन्स* भरे वो हाथ

अब एसे में
तुम ही कहो
मै कैसे उसे
सांत्वना दूँ ........!?!

उन्स* -स्नेह

54 comments:

ओम आर्य said...

aansuon ko sambhaale rakhna padta hai,nahi to ek samay ke baad nayno men sirf kharapan bach jaata hai.

kamal ki rachna.

"अर्श" said...

कमाल का लिखा है आपने ,बेहद उम्दा ,गज़ब की सोच को मुकम्मल तरीके से कागज पे उकेरा है आपने ,दर्द को उन्स की सान्तवना दिया आपने बेहद खुबसूरत बात कही आपने .. ढेरो बधाई आपको...

अर्श

News4Nation said...

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने!!
मैं शायद पहेले भी आपको बता चुका हूँ की मैं आपकी नज्मो का दीवाना हूँ!!
मजा आ गया !!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर ढंग से कविता मे अपने दिल की भावना हो दर्शाया है.
धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत भावः, सुंदर अभिव्यक्ति ............हमेशा की तरह
अच्छी कविता

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत ही उम्दा नज़्म.

सुशील छौक्कर said...

अद्भुत लिखा है आपने। सुन्दर शब्दों से सुन्दर भाव कह दिये आपने। बहुत ही उम्दा।

Amit Kumar Yadav said...

बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है आपकी.
युवा शक्ति को समर्पित हमारे ब्लॉग पर भी आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

रश्मि प्रभा... said...

waah,kya kamaal likha hai,dard kandhe par aa tika........main to maun hun is ehsaas ke kareeb

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा लिखा है.....जीवन में भी एसा पल भी आता है दर्द को उन्स की सान्तवना की बेहद खुबसूरत बात कही आपने

Arvind Mishra said...

हम्म्म !!

प्रशांत मलिक said...

bahut badhiya

महेन्द्र मिश्र said...

बेहद खुबसूरत बधाई

महेंद्र मिश्र "निरंतर"
जबलपुर

ताऊ रामपुरिया said...

लाजवाब और सुंदरतम रचना. शुभकामनाएं.

रामराम.

daanish said...

न शब्द हैं, न हाथ ,
लेकिन जीस्त के सफहों में प्रेम तो है !
जिसे नकारना तकरीबन नामुमकिन ही है . . .
प्रेम और उन्स की पावनता के बिना ,
समर्पण और बलिदान के बिना तो हार है . . .
और ये हार किस की है . . . ?

---मुफलिस---

Himanshu Pandey said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति. धन्यवाद

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...

लिखते हो अच्छा है
अच्छा अच्छा लिखते हो
दिख्ता है जो लिखता है
लिखना जो दिखता है
दर्द है
दर्द है
दर्द जो लिख्ता है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ss said...

जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा |

saral shabdon me gahre ahsaas| har baar kuchh seekhne ko milta hai|

neera said...

वाह! क्या बात है!

अभिन्न said...

आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ,इधर आकर पाया एक अलग सा साहित्यिक वातावरण है,अदब की एक नई शख्शियत पाकर अच्छा लगा
जब दर्द ने रो लेना चाहा यकीनन एक बेहतरीन नज़्म है आते रहेंगे और पढ़ते रहेंगे

राजीव करूणानिधि said...

दर्द जब हद से गुजर जाता है तो शायद दवा बन जाता है. अगर हम भी दर्द को जीने की सीख बना लें तो यही दर्द मजा देगा. बधाई आपको सुंदर कविता पढाने को .

Alpana Verma said...

मेरी जीस्त के
तल्खियात भरे सफहों में
न प्रेम से भीगे वो शब्द हैं
न उन्स* भरे वो हाथ


गज़ब का लिखा है...
हर शब्द दिल से सीधा कागज़ पर उतर आया हो जैसे-

manu said...

शाम-ऐ-तन्हाई में क्या-क्या कहर बरपाता है दिल,
क्या-ना-क्या कह जाता है, जब कहने पे आता है दिल..

वापसी का शुक्र है.....

fikra mein doobe safe jab dard se hon ru-ba-roo,
ik ghazal ummid ki , haule se likh jaataa hai dil..

Mohinder56 said...

दर्द को अगर दर्द की शिद्द्त का पता होगा तो खुद ही समझ जायेगा.. मायूस न हों..

उम्दा ख्यालात की रचना के लिये बधाई

गौतम राजऋषि said...

मनु जी के कह लेने के बाद तो कुछ बचता ही नहीं इस रचना पे कुछ कहना...

विजय तिवारी " किसलय " said...

एक बेहद भाव पूर्ण और उम्दा रचना के लिए बधाई हकीर जी .
आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा है
कितना सुंदर शब्दचित्र उकेरा है आपने
- विजय

बाल भवन जबलपुर said...

उत्कृष्ट
शुभ कामनाएं

vijay kumar sappatti said...

behad umda rachna harkirat ji

badhai

ilesh said...

आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा है
तब
मेरी जीस्त के
तल्खियात भरे सफहों में
न प्रेम से भीगे वो शब्द हैं
न उन्स* भरे वो हाथ



उम्दा भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....बधाई

seema gupta said...

मेरी जीस्त के
तल्खियात भरे सफहों में
न प्रेम से भीगे वो शब्द हैं
न उन्स* भरे वो हाथ

"hi, its mindbloiwng creation and combination of words, loved reading these lines"

Regards

Prem Farukhabadi said...

Harkirat Haqeerji,
Aapki rachna achchhi hai rulaane ke liye magar jamaane ko itna gamgin na karo aisi rachna karke.

Dard ko jagah do dil mein jamaane ko khush karne ke liye.
jindgi bada hashin hai kaho sabhi ko khush rahne ke liye.

Gam aur khushi ka nam hi to hai ye jindgi.
Gam dekho to gam khushi dekho to khuushi.

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ शब्द मित्रों के लिए......
मुफ्लिश जी जानती थी आपका कुछ ऐसा ही कमेन्ट आएगा फिक्र न
करें भले ही सफहों में प्रेम और उन्स भरे शब्द न हो तो भी फ़र्ज़
और इंसानियत तो है .....! प्रेम जी कविता तो मन का बोझ हल्का करने का एक माध्यम है इसी बहाने कुछ बोझ उसे दे देती हूँ आप वो भी बंद कर देना.........??

daanish said...
This comment has been removed by the author.
डॉ .अनुराग said...

वक़्त ने ये कैसा मोड़ पे ला दिया ..की उस लम्स में वो गर्मी नही रही.....जिंदगी सबको सोख लेती है आहिस्ता आहिस्ता .....

Science Bloggers Association said...

आपने जिंदगी के फलसफे को बहुत ही आसान लफजों में बयां कर दिया है।

Doobe ji said...

wah wah wah wah.....harkeerat ji sadar namaskar mere blog par ane ke liye dhanyawad aur tippani ke liye special thanx, vaise humari duniya bhi wahi hai jo sbki hai ,jo liya yahin se liya aur jo diya isi ko diya .

अमिताभ श्रीवास्तव said...

आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा है
...
behtreen...subhan allah..
aapki rachna me dard ka bhale hi shbdankan ho kintu mujhe to padkar aanand aayaa.

Publisher said...

बहुत गहरा लिखती हैं आप। लाजवाब। कहते हैं कविताएं दिल का आवाज होती हैं, दर्द और जज्बात से भरी हुई। भाव और विचार से सराबोर। आजकल लेखन में यही सब तो नहीं मिलते। ...और आपके लिखन में मुझे यह नजर आते हैं। जितना समझता हूँ, बेहतरीन काव्य है।

दिलीप कवठेकर said...

उन्स के बारे में बेहद उम्दा खयाल...

कडुवासच said...

आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कन्धों पर
सर रख रो लेना चाहा है
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

Straight Bend said...

Nice little poem! Liked the way you used the word "uns".

And thanks for your comments on my blog! appreciate it!

God bless
RC

Prakash Badal said...

क्षमा करें देरी हुई
लेकिन आपकी एक और बेहतर कविता पढ़कर अच्छा लगा। बढ़िया और काबिले तारीफ वाह वाह

Shamikh Faraz said...

harkirat ji main aapka bahut bahut shukraguzar hun ke aapne meri request maan li. aur aik baat ke lie aur main aapko dhanyavad dena chaunga ke aapne mere blog ke lie koi kavita bheji. bahut bahut shukriya.

sanjay vyas said...

अन्तिम स्पर्श तो अद्भुत बन पड़ा है.

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) said...

ਬਹੁਤ ਖੂਬਸੂਰਤ, ਹਰਕੀਰਤ ਜੀ!
ਅਨੁਵਾਦ ਕਰਕੇ ਪੰਜਾਬੀ ਸਰੋਤਿਆ ਤੀਕਰ ਵੀ ਪੰਹੁਚਾਵੋ ਇਹ ਦਰਦ ਭਰੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ।
"ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਆਪਣੇ ਹੀ ਮੋਢੇ ਤੇ ਸਿਰ ਰੱਖੇ.. " ਵਾਹ!

Harshvardhan said...

bhaav gahare hai
sundar abhivayataki hai

makrand said...

received your valuable comments and i feel to upgrade my photograph as soon as as scanner will be in line i will do
and i read the sort of poetry u write and feel could i write single line?
because it needs lot of caliber to write
regards

Poonam Agrawal said...

Bhavnao ko itni khoobsoorti se shabdon mein piroya hai....mere paas tarif ke alfaaj nahi hai....

Bas itna hi kahungi aise hi lafjon ko piroti rahiye...badhai...

Dev said...

Aapki kavitaye mujhe bahut achachhi lagati hai...
मुस्कानों का खून कर
ज़िन्दगी भी जैसे
चलते - चलते
ख़ुद अपने ही कन्धों पर
सर रख
रो लेना चाहती है ....
aapki aur kavito ka intajar rahega...

ramesh sadasivam said...

I dont know Hindi. Anyhow, Thanks for visiting my blog. :)

महावीर said...

एक ख़ूबसूरत नज़्म में ग़म की शिद्दत को अल्फ़ाज़ में बदलने का हुनर देखा है आपकी इस 'दर्द की दवा....' में। दाद क़ुबूल कीजिए।
महावीर शर्मा

Ashutosh said...

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने!!




हिन्दी साहित्य .....प्रयोग की दृष्टि से

hem pandey said...

बेहतरीन शब्द न्यास, गहरे भाव. साधुवाद.

Padm Singh said...

बेहतरीन नज्म ...