तखरीव का बादल
कोलतार सी पसरी रात
उम्मीदों के लहू में लिथडी़
बुदबुदा के कहती है
कोई दो घूंट पीला दे
दर्द का जा़म
दबोच रहा है
जैसे कोई गला
खराशें पड़ने लगीं हैं
सासों में
पथराई आँखों में है यथावत
इक मर्माहत प्यास
सूखे गलों में
अटकी पडी़ हैं
अधजली आवाजें
विश्वासों की जमीं
खिसकने लगी है
आक्रोश में पनपे
जहर के अंगारे
थिरकने लगे हैं
बाँध घुंघरू पैरों में
लील गया है सन्नाटा
स्वभाविक स्वाद
शब्द अटके पडे़ हैं
अधरों में
अवसाद और प्रताड़ना की
कातिल अभिव्यक्ति
है सडा़ध सिसकते
शयनकक्षों में
खौ़फ और दहशत
है अपने साये की
जु़म्बिश का
फूलों की ख्वाहिशें
डूब गई हैं
गिरते बुर्जों में
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
१.तखरीव- विनाश
प्रकाशित व पुरस्कृत (सितं ०८ हिन्द-युग्म)
Monday, January 5, 2009
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38 comments:
ये तय है कि ब्लॉग के टेम्पलेट की सुन्दरता कविता की सुन्दरता के आगे कुछ भी नही है . आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और हमें लग रहा है कि हमने अभी तक न आकर बहुत कुछ खोया है
वाकई बहुत सुंदर कवितायें हैं
बहुत ही उम्दा... वाकई
लील गया है सन्नाटा
स्वभाविक स्वाद
शब्द अटके पडे़ हैं
अधरों में
अवसाद और प्रताड़ना की
कातिल अभिव्यक्ति
है सडा़ध सिसकते
शयनकक्षों में
विनाश के भयानक मंजर को जिस तरह आपने शब्दों की माला में पिरोया है ,उसके लिए कोई शब्द ही नही है |
सादर
सीमा सचदेव
बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको....
harkirat ji mujhe aapki ye kavita bahut achhi lagi. Khastor par jo panktiyan sabse zyada mutassir karti hain vo ye hain
खौ़फ और दहशत
है अपने साये की
जु़म्बिश का
फूलों की ख्वाहिशें
डूब गई हैं
गिरते बुर्जों में
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
रात के कोलतार- से पसरने का ,
विश्वासों की जमीं के खिसकने का
आक्रोश में पनपे जहर के अंगारों के थिरकने का
सन्नाटे के स्वाभाविक स्वाद लीलने का
जवाब नहीं
.
सुन्दर बिम्ब-अद्भुत भाव...वाह!!
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
नियमित लेखन की शुभकामनाऐं.
कई बार नि:शब्द हो जाता हूँ। आज इसको पढकर भी हो गया।
इस बार कुछ नए प्रसंशको को देख खुशी हुई ...रौशनजी, सीमा जी, द्विज जी,उडन तश्तरी जी(हालाँकि
ये नाम सही नहीं लगता) और शामिख जी आपका स्वागत है...कुश, अर्श और सुशील जी आते
रहियेगा...!
उपमाए और बिम्ब देखते ही बनते है, कितना दर्द चाहिए ऐसा लिखने के लिए, सहजता और सवेंदना के साथ काव्य-बोध का गठजोड़ करना आपको खूब आता है। मैं फिर से कहूंगा सभी बिम्ब कमाल के है। इसको भावनात्मक विजूलाइजेशन कहते हैं।
आज कई कवितायें पढीं -सीमा गुप्ता और रंजना भाटिया के बाद आज की यह रचना भी बेहद अभिव्यक्तिपूर्ण है -कुछ भावों का अद्भुत साम्य भी इन तीनों नारी रचनाकारों में मिला आप ख़ुद देख लें -शायद श्रेष्ठतम अनुभूतियाँ भी देश काल व्यक्ति के निरपेक्ष होती हैं ! आपसे बहुत अपेक्षा है !
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
कमाल है बहुत खूबसूरती से दर्द को पेश किया है आपने बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.....
ढेर साड़ी भावनाओं को समेटे हुए
अक्षय-मन
मैंने आप का संकलन 'इक दर्द' पढ़ा था, और उस विमोचन सभा में भी था, ब्लॉग पैर आपसे पहली मुलाकात हो रही है, आप को नव वर्ष की बधाई.
लाजवाब शब्द और भाव लिए हुए है आप की ये रचना...
नीरज
bahut achhi rachna hai.
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
वाह बहुत जुदा है आपके कहने का अंदाज, कोई छटपटाहट सी नज़र आतीहै
रुंधे दर्द को पास रख दिया,
तारीफ से ऊपर की रचना है.....
हरकीरत जी आपकी टिप्प्णी का बहुत बहुत धन्यवाद ..
आपका पूरा ब्लाग पढ्ने की जुर्रत कर बैठा.. और यकीन मानिये कि खुद से बुदबुदाया ...
तारीफ में आपके लेखन की लिखें तो क्या लिखें,
कि चलती नहीं कलम, सज़्दा करने के बाद ...
आपकी स्पर्शी कविताओं का इन्त्जार रहेगा...
आदर सहित
aap ka mere blog pr aana wa mera aap tak jana ,silsila suru ho gaya hai bhav-path pr shabdo ke adan -pradan ka |
aapki kalam ka andaz aapke blog rupi chaman me kuch esa laga jaise dard ko bhi koi kushgwar bana kar kah raha ho ,sach aapki lakhni ne dard ko juban di hai aur wo hashi bahar ban kar aapke chaman ko mahaka raha hai |meri mangal kamanaye sweekare.
sanjaysanam
कई बार नि:शब्द हो जाता हूँ। आज इसको पढकर भी हो गया।
Susheel Kumar ji k yahi shab duhra sakta hu,bas.
------------------------"VISHAL"
comment kya kare ab...yahaan par kuch bhi padhna bas mere liye ek learning experience hai...amazing is the word :)
वैसे, तो मैं इस ब्लॉग पर पहले भी आया था पर सिलसिला कायम नही रख पाया.
मैं हरकीरत जी आपकी दी जाने वाली उपमाओं का बड़ा कायल हूँ, कहां से लाती हैं एकदम नई उपमाएँ उदाहरण बतौर :-
(१) खराशें पड़ने लगी हैं साँसों में.
(२) अधजली आवाजें.
(३) सिसकते हुये शयनकक्ष.
प्रभावी रचना के लिये बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
bahut behtarin hai aapki kalam.
vinaash ki daastan bayan kar rahi hai aapki ye nazm..
bahut sundar abhivyakti.
badhai ..
vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/
सुन्दर कविता, बधाई।
आपके कामेन्टस का बेहद शुक्रिया, अगली नज्म का इंतजार करिये.. लिखी तो बहुत पहले थी पर आज तक असरदार है... जैसे किसी शायर का ये शेर ः-
नये दीवानों को देखूं तो खुशी होती है
हम भी ऐसे थे जब आये थे वीराने में
आदर सहित
बहुत नये एंगल की नज़्में हैं आपकी.
ताज़गी का झोंका लिये.
कहीं भीतर तक उतरता सा है
इस शब्दों का भाव.
शब्द नि:शब्द न रहें
अभिव्यक्तियॉं बोलती रहें
कुछ हम कहें कुछ आप कहें
और बातें ऐसी ही चलती रहें।
दर्द ,दर्द और दर्द, आप की अभिव्यक्ति का i उर्जा स्त्रोत दर्द ही लगता है.,अच्छी अदायगी,
bahut accha likha hai apne,aap aise hi likhti rahe.
अब नई कविता की प्रतीक्षा है। ये कविताएं तो पढते रहेंगे ही,लेकिन आप नई भी तो डालिए न! लेकिन मेरे ब्लॉग पर यही कंडीशन न लगाईएगा क्योंकि सच ये है कि मैने बड़े दिनो से कुछ नहीं लिखा । लेकिन हमें पता चला है कि आपके पास तो बहुत सी अच्छी कविताएं हैं? हिन्दी कविता में आपकी लेखनी बहुत प्रभावित करती है।
तारीख का बादल .....
लील गया है सन्नाटा
स्वभाविक स्वाद
शब्द अटके पडे़ हैं
अधरों में
अवसाद और प्रताड़ना की
कातिल अभिव्यक्ति
है सडा़ध सिसकते
शयनकक्षों में
आप की कविता की विशेषता यह है की सीधे दिल को दस्तक देती है ....
दिल को छु गई ....
adbhut sampreshniyata se bhari kavitaen hain aapki.... hamesha ki tarah... or haan.. aapka sms bhi mil gaya tha. sadhuwaad swikaren.... ek baar fir behtreen...
सुंदर नहीं,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. पूरी रचना ही उद्धृत करने लायक है. फ़िर भी कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर देता हूँ.
सूखे गलों में
अटकी पडी़ हैं
अधजली आवाजें
विश्वासों की जमीं
खिसकने लगी है
आक्रोश में पनपे
जहर के अंगारे
थिरकने लगे हैं
बाँध घुंघरू पैरों में
खौ़फ और दहशत
है अपने साये की
जु़म्बिश का
फूलों की ख्वाहिशें
डूब गई हैं
गिरते बुर्जों में
तखरीव का बादल
बरस रहा है
दर्द की बूँद लिए.
इतनी उदासी क्यों टपकती है आप के लिखे मे .....?इस गम को कभी हौसलों से दूर भगायिये.....आपके लिखे मे एक खास अहसास है जिसकी एक अपनी पहचान है..अपना एक किरदार ....
लील गया है सन्नाटा
स्वभाविक स्वाद
शब्द अटके पडे़ हैं
अधरों में
bhut sundar likha he.
Bahut arthpurn ha aapki ye rachna..bahut-bahut badhai...
behad khubsurat!!!!!!!!!!!!!!
kya kahen??
harkirat ka arth kya hota hai??kripya batayeeyega??
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