Saturday, January 3, 2009

ये ताज क्यों जला फ़िर आग में............


ये फिजां में उठ रही लपट सी क्यों है ?

आज भगदड़ सी क्यो शहर में मची है ?

ये ाज क्यों जला फ़िर आग में

यहाँ इंसानियत क्यों सबके दिलों में मरी है ?


ये किसकी साजिश है जो सड़कों पे

खामोशी सी यूँ पसरी पड़ी है

लगीं है क्यों कतारों में लाशें

ये खून की होली फ़िर क्यों जली है ??


ये शहर ,ये गलियां, ये सड़कें ,ये मकान

बेजुबान हैं क्यों लोग यहाँ ?

पूछता नही कियूं कोई किसी से ?

ये किसकी अर्थी कन्धों पे उठी है ??


ये मेहँदी ,ये चूडियाँ ,ये सिन्दूर क्यों है बिखरा ?

क्या बाज़ारों में फ़िर कोई इज्जत बिकी है ?

ये किसकी हसीं उठी मकबरे से ?

ये चाँद पे फ़िर पैबंद सा कियूं लगा है ??


ये किसकी कब्र से उडी धूल यूँ ?

ये मजारों पे दीये क्यों बुझे पड़े हैं ?

हिकारत की निगाह में लिपटे

ये किसकी नज़्म के टुकड़े हवा में ??


आदमी ही आदमी का दुश्मन बना क्यों ?

बीच चौराहे पे क्यों ये गोली चली है ?

रात मेरी तो कट जायेगी 'हकीर ' सजदे में

कल तेरे भी किवाडों पे दस्तक पड़ेगी


हरकीरत कलसी 'हकीर'

१८, ईस्ट लेन , सुन्दरपुर

हाउस ., गुवाहाटी -

मोबाइल .9864171300

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