पितृ दिवस पर कुछ कवितायेँ .......
(१)
सूखती जड़ें ....
न जाने कितनी
फिक्रों तले सूखे हैं ये पत्ते
दूर-दूर तक बारिश की उम्मीद से
भीगा है इनका मन
शब्द अब मृत हो गए हैं
जो पिघला सकें इनकी आत्मा
लगा सकें रिश्तों में पैबंद
कांपते पैर अब जड़ों में
कम होती जा रही नमी
देख रहे हैं .....!!
(२)
बौने होते बुजुर्ग ...
एक कमरे में
पड़े चुपचाप
याद आते हैं वो हंसी
जवानी के दिन खुशहाल
बदल जाता है वक़्त
बूढ़े हो जाते हैं दिन
झड़ जाते हैं पत्ते
इक कोने में समेट दिया जाता है इन्हें
घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब ...
(३)
खामोश होते पिता ...
सबकी फरमाइशें
पूरी करने वाले पिता
खामोश रहते हैं अब
वो नहीं पूछते बेटे से
दवाइयां न लाने की वजह
चश्मे का फ्रेम न बन पाने का कारण
फटे जूतों की ही तरह
सी ली है उन्होंने अब
अपनी जुबान भी .....
(४)
सयाने बेटे ...
वे बुढ़ापे में हमें
अब बेसमझ लगने लगे हैं
और हम उनसे कहीं अधिक सयाने
इसलिए अब उन्हें
घर आये मेहमानों के सामने
आने की मनाही थी ....
५)
उपाय ....
न तुम
नौकरी छोड़ सकती हो
और न मैं ...
देखो अब एक ही उपाय बचा है
क्यूँ न हम पिता जी को
वृद्ध आश्रम में छोड़ दें ....
(१)
सूखती जड़ें ....
न जाने कितनी
फिक्रों तले सूखे हैं ये पत्ते
दूर-दूर तक बारिश की उम्मीद से
भीगा है इनका मन
शब्द अब मृत हो गए हैं
जो पिघला सकें इनकी आत्मा
लगा सकें रिश्तों में पैबंद
कांपते पैर अब जड़ों में
कम होती जा रही नमी
देख रहे हैं .....!!
(२)
बौने होते बुजुर्ग ...
एक कमरे में
पड़े चुपचाप
याद आते हैं वो हंसी
जवानी के दिन खुशहाल
बदल जाता है वक़्त
बूढ़े हो जाते हैं दिन
झड़ जाते हैं पत्ते
इक कोने में समेट दिया जाता है इन्हें
घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब ...
(३)
खामोश होते पिता ...
सबकी फरमाइशें
पूरी करने वाले पिता
खामोश रहते हैं अब
वो नहीं पूछते बेटे से
दवाइयां न लाने की वजह
चश्मे का फ्रेम न बन पाने का कारण
फटे जूतों की ही तरह
सी ली है उन्होंने अब
अपनी जुबान भी .....
(४)
सयाने बेटे ...
वे बुढ़ापे में हमें
अब बेसमझ लगने लगे हैं
और हम उनसे कहीं अधिक सयाने
इसलिए अब उन्हें
घर आये मेहमानों के सामने
आने की मनाही थी ....
५)
उपाय ....
न तुम
नौकरी छोड़ सकती हो
और न मैं ...
देखो अब एक ही उपाय बचा है
क्यूँ न हम पिता जी को
वृद्ध आश्रम में छोड़ दें ....
40 comments:
बहुत सामायिक और सार्थक रचनाएँ .
latest post पिता
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं हीर जी...
सादर
अनु
उन्होंने सी ली है अब
अपनी जुबान भी ..
अत्यंत मार्मिक ...कटु सत्य कहती क्षणिकाएं ...
बहुत सुन्दर ....
सभी रचनाएं बहुत ही मार्मिक और सोचने को विवश करती हैं, पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
क्यों कुरेदते हो राख दबी-दबी
दिल जला हैं मेरा यहाँ अभी-अभी .....
सच्चाई से रु-बी=रु कराती
आप की कवितायेँ .....
सभी अच्छी...दिल को छूने वाली..बधाई।
पिता जी कि याद..आँखें नं कर गई.......
यथार्थ को दर्शाती , भावुक करने वाली सुन्दर क्षणिकाएं।
पहले पिता ही सहारा होते हैं,
फिर वो खुद बेसहारा होते हैं।
ऐसे में जो नहीं बनते सहारा ,
वे बेटे कितने आवारा होते हैं।
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"
बहुत मार्मिक लेकिन सच्चाई को कहती क्षणिकाएं
आपको भी पितृ दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ
recent post
फेसबुक पर बढता स्पैम ,कैसे हटायें
mozilla firefox की ब्राउज़िंग की स्पीड बढाएं इस ट्रिक से
बदल जाता है वक़्त
बूढ़े हो जाते हैं दिन
झड़ जाते हैं पत्ते
इक कोने में समेट दिया जाता है उन्हें.
अत्यंत मार्मिक भाव परन्तु सच्चाई भी यही है काफी हद तक. सारी रचनाएँ भावुक कर देती हैं. पितृ दिवस पर शुभकामनाएँ.
कुछ एक रचनाओं ने ज़िन्दगी भर का सफ़र तय करा दिया.. नाम आँखों से आपको और आपकी रचनाओं को प्रणाम ....
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं
सुन्दर. हम तो कई दिनों से आश्रमों को ही देख परख रहे हैं.
संवेदनाओं पर जड़ी परत उतारती रचनायें..
हर रचना एक से बढ़ कर एक ...बहुत खूब
मर्म-स्पर्शीय ... किन्तु कितने सच ...
पता नहीं समाज ये दशा पहले से ही है या अब कुछ ज्यादा हो गई है ...
ब्लॉग बुलेटिन की फदर्स डे स्पेशल बुलेटिन कहीं पापा को कहना न पड़े,"मैं हार गया" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
उफ्फ बहुत मार्मिक ....
सभी रचनाएँ सुंदर मर्मस्पर्शी ....
सत्य से साक्षात्कार कराती रचना ....साभार ..
मार्मिक और सोचने को विवश करती हैं रचनाएं फादर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं.....!!
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
पितृ दिवस को समर्पित बेहतरीन व सुन्दर रचना...
शुभकामनायें...
सबकी फरमाइशें
पूरी करने वाले पिता
खामोश रहते हैं अब
वो नहीं पूछते बेटे से
दवाइयां न लाने की वजह
चश्मे का फ्रेम न बन पाने का कारण
फटे जूतों की ही तरह
उन्होंने सी ली है अब
अपनी जुबान भी .....
कुछ कहने को जी नहीं कर रहा.........
बहुत सुन्दर. आपकी रचनाओं ने दिल को छू लिया
VERY NICE
बौने होते बुज़ुर्ग और खामोश होते पिता दर्द से भरी दिल को छूती बेहतरीन
सच पिता जी ऐसे ही होते हैं
मन के भीतर पनपती सुंदर और सच्ची अनुभूति
पिता को नमन
सादर
बहुत मर्म स्पर्शी रचनाएँ ...आपकी लेखनी का जवाब नहीं , हम तो मुरीद है उसके .
बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...
घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब .....
बहुत कुछ बयान करती कवितायें , बहुत खूब
bahut sundar kavitaayen...
सभी सार्थक रचनाएँ हीर जी,
एक सत्य की ओर इशारा किया आपने,
बच्चों की खुदगर्जी की दास्ताँ बयाँ करते है ये वृधाश्रम...
घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब ..
कविताएं छू गईं दिल को हम भी तो कब से बुजुर्ग ही हैं अब ।
यह दर्दनाक समय हर एक को भोगना होगा ...
atiutam-***
उफ़्फ़्फ़्फ़।
सभी एक से बढ़ कर एक। कमाल लिखा है।
आप जानते हैं हरकीरत जी, मैं आपकी रचनाओं से बहुत प्रभावित होता हूँ।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि छूट जाएँ रिश्तों में लगे जंग... और वो फिर से चमकने लगें ।
sarthak rachnaayein ..ek sandesh ke sath ..na naukree tum chhod sakhtee ho na main chalo pita jee ko hee bridhhasharam chhod dete hain ...seedhe dil mein utar gaya ..dil ko bichar shoonyata kee sthiti mein khada kar diya aapke in shabdon nein ..saadar badhaayee ke sath
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