Sunday, June 16, 2013

पितृ दिवस पर कुछ कवितायेँ .......

 पितृ दिवस पर कुछ कवितायेँ .......
(१)
सूखती जड़ें  ....

 न जाने कितनी   
फिक्रों तले सूखे हैं ये पत्ते
दूर-दूर  तक बारिश की उम्मीद से
भीगा है इनका मन
शब्द अब मृत हो गए हैं
जो पिघला सकें इनकी आत्मा
लगा सकें रिश्तों में पैबंद
कांपते पैर अब जड़ों में
कम होती जा रही नमी
देख रहे हैं .....!!
(२)
बौने होते बुजुर्ग ...


एक कमरे में
 पड़े चुपचाप
याद आते हैं वो हंसी
जवानी के दिन खुशहाल
बदल जाता है  वक़्त
बूढ़े हो जाते हैं दिन
झड़  जाते हैं पत्ते
इक कोने में समेट दिया जाता है इन्हें
घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब  ...

(३)
खामोश होते पिता ...

सबकी फरमाइशें
पूरी करने वाले पिता
खामोश रहते हैं अब
वो नहीं पूछते बेटे से
दवाइयां न लाने की वजह
चश्मे का फ्रेम न बन पाने का कारण
फटे जूतों की ही तरह
 सी ली है उन्होंने अब
अपनी जुबान  भी .....
(४)
सयाने बेटे ...

वे बुढ़ापे में  हमें
अब बेसमझ लगने लगे हैं
और हम उनसे कहीं अधिक सयाने
इसलिए अब उन्हें
घर आये मेहमानों के सामने
आने की मनाही थी ....
५) 
उपाय ....

न तुम
नौकरी छोड़ सकती  हो
और न मैं ...
देखो अब एक ही उपाय बचा है
क्यूँ न हम पिता जी को
वृद्ध आश्रम में छोड़ दें ....

40 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सामायिक और सार्थक रचनाएँ .
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ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं हीर जी...

सादर
अनु

Anupama Tripathi said...

उन्होंने सी ली है अब
अपनी जुबान भी ..

अत्यंत मार्मिक ...कटु सत्य कहती क्षणिकाएं ...
बहुत सुन्दर ....

ताऊ रामपुरिया said...

सभी रचनाएं बहुत ही मार्मिक और सोचने को विवश करती हैं, पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

रामराम.

अशोक सलूजा said...

क्यों कुरेदते हो राख दबी-दबी
दिल जला हैं मेरा यहाँ अभी-अभी .....
सच्चाई से रु-बी=रु कराती
आप की कवितायेँ .....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सभी अच्छी...दिल को छूने वाली..बधाई।

Maheshwari kaneri said...

पिता जी कि याद..आँखें नं कर गई.......

डॉ टी एस दराल said...

यथार्थ को दर्शाती , भावुक करने वाली सुन्दर क्षणिकाएं।

पहले पिता ही सहारा होते हैं,
फिर वो खुद बेसहारा होते हैं।
ऐसे में जो नहीं बनते सहारा ,
वे बेटे कितने आवारा होते हैं।

Shalini kaushik said...

बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक लेकिन सच्चाई को कहती क्षणिकाएं

Anonymous said...

आपको भी पितृ दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ

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रचना दीक्षित said...

बदल जाता है वक़्त
बूढ़े हो जाते हैं दिन
झड़ जाते हैं पत्ते
इक कोने में समेट दिया जाता है उन्हें.

अत्यंत मार्मिक भाव परन्तु सच्चाई भी यही है काफी हद तक. सारी रचनाएँ भावुक कर देती हैं. पितृ दिवस पर शुभकामनाएँ.

Nai Kalam said...

कुछ एक रचनाओं ने ज़िन्दगी भर का सफ़र तय करा दिया.. नाम आँखों से आपको और आपकी रचनाओं को प्रणाम ....

ashokkhachar56@gmail.com said...

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं

P.N. Subramanian said...

सुन्दर. हम तो कई दिनों से आश्रमों को ही देख परख रहे हैं.

प्रवीण पाण्डेय said...

संवेदनाओं पर जड़ी परत उतारती रचनायें..

Anju (Anu) Chaudhary said...

हर रचना एक से बढ़ कर एक ...बहुत खूब

दिगम्बर नासवा said...

मर्म-स्पर्शीय ... किन्तु कितने सच ...
पता नहीं समाज ये दशा पहले से ही है या अब कुछ ज्यादा हो गई है ...

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की फदर्स डे स्पेशल बुलेटिन कहीं पापा को कहना न पड़े,"मैं हार गया" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

शारदा अरोरा said...

उफ्फ बहुत मार्मिक ....

Aditi Poonam said...

सभी रचनाएँ सुंदर मर्मस्पर्शी ....

सत्य से साक्षात्कार कराती रचना ....साभार ..

संजय भास्‍कर said...

मार्मिक और सोचने को विवश करती हैं रचनाएं फादर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं.....!!
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

मुकेश कुमार सिन्हा said...

पितृ दिवस को समर्पित बेहतरीन व सुन्दर रचना...
शुभकामनायें...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सबकी फरमाइशें
पूरी करने वाले पिता
खामोश रहते हैं अब
वो नहीं पूछते बेटे से
दवाइयां न लाने की वजह
चश्मे का फ्रेम न बन पाने का कारण
फटे जूतों की ही तरह
उन्होंने सी ली है अब
अपनी जुबान भी .....
कुछ कहने को जी नहीं कर रहा.........

Onkar said...

बहुत सुन्दर. आपकी रचनाओं ने दिल को छू लिया

Sarik Khan Filmcritic said...

VERY NICE

Ramakant Singh said...

बौने होते बुज़ुर्ग और खामोश होते पिता दर्द से भरी दिल को छूती बेहतरीन

Jyoti khare said...


सच पिता जी ऐसे ही होते हैं
मन के भीतर पनपती सुंदर और सच्ची अनुभूति
पिता को नमन
सादर





नीरज गोस्वामी said...

बहुत मर्म स्पर्शी रचनाएँ ...आपकी लेखनी का जवाब नहीं , हम तो मुरीद है उसके .

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...

Rajput said...

घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब .....
बहुत कुछ बयान करती कवितायें , बहुत खूब

रजनीश तिवारी said...

bahut sundar kavitaayen...

Suman said...

सभी सार्थक रचनाएँ हीर जी,

Tanuj arora said...

एक सत्य की ओर इशारा किया आपने,
बच्चों की खुदगर्जी की दास्ताँ बयाँ करते है ये वृधाश्रम...

Asha Joglekar said...

घर की बड़ी-बड़ी चीजों के आगे
बौने हो जाते हैं अपने ही
घर के बुजुर्ग अब ..

कविताएं छू गईं दिल को हम भी तो कब से बुजुर्ग ही हैं अब ।

Satish Saxena said...

यह दर्दनाक समय हर एक को भोगना होगा ...

Aditya Tikku said...

atiutam-***

Manav Mehta 'मन' said...

उफ़्फ़्फ़्फ़।
सभी एक से बढ़ कर एक। कमाल लिखा है।
आप जानते हैं हरकीरत जी, मैं आपकी रचनाओं से बहुत प्रभावित होता हूँ।

Dayanand Arya said...

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि छूट जाएँ रिश्तों में लगे जंग... और वो फिर से चमकने लगें ।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

sarthak rachnaayein ..ek sandesh ke sath ..na naukree tum chhod sakhtee ho na main chalo pita jee ko hee bridhhasharam chhod dete hain ...seedhe dil mein utar gaya ..dil ko bichar shoonyata kee sthiti mein khada kar diya aapke in shabdon nein ..saadar badhaayee ke sath