ताँका विधा में लिखी गई कुछ रचनायें ......
इबादत प्रेम की (ताँका )
1
ये कतरने
सियाह कपड़ों की
न धागा कोई
बता मैं कैसे सीऊँ ?
बदन ज़खमी है !
2
कैसी आवाज़ें
बदन पे रेंगती
गड़ी मेखों सी
पास ही कहीं कोई
आज टूटी है चूड़ी ।
3
किताबे -दर्द
लिखी यूँ ज़िन्दगी ने
भूमिका थी मैं
आग की लकीर -सी
हर इक दास्ताँ की
4
'हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले
5
सियाह कपड़ों की
न धागा कोई
बता मैं कैसे सीऊँ ?
बदन ज़खमी है !
2
कैसी आवाज़ें
बदन पे रेंगती
गड़ी मेखों सी
पास ही कहीं कोई
आज टूटी है चूड़ी ।
3
किताबे -दर्द
लिखी यूँ ज़िन्दगी ने
भूमिका थी मैं
आग की लकीर -सी
हर इक दास्ताँ की
4
'हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले
5
कुँआरे लफ्ज़
कटघरे में खड़े
मौन ठगे- से ...
फिर चीख उठी है
कोख से तू गिरी है ।
6
कटघरे में खड़े
मौन ठगे- से ...
फिर चीख उठी है
कोख से तू गिरी है ।
6
वह नज़्म है
ज़िन्दगी लिखती है
वह गीत है
खुद को जीती भी है
खुद को गाती भी है !
7
नहीं मिलता
कभी बना बनाया
प्यार का रिश्ता
प्यार तराशना है
प्यार उपासना है ।
8
पिंजरे कभी ज़िन्दगी लिखती है
वह गीत है
खुद को जीती भी है
खुद को गाती भी है !
7
नहीं मिलता
कभी बना बनाया
प्यार का रिश्ता
प्यार तराशना है
प्यार उपासना है ।
8
उमर नहीं देते
रिश्ते भी नहीं ,
कानून न रिश्तों का
न ही पिंजरों का है ।
33 comments:
बहुत खूबसूरती से लिखे शब्द है और भाव हैं.. उत्तम रचना.
बहुत प्यारे तांका हीर जी....
ज़िक्र मोहब्बत का हो तो आपका कोई मुकाबला नहीं...फिर विधा चाहे कोई भी हो :-)
सादर
अनु
sabhi tanka behad umda
"हीर' को पढना ही सुकून देता है...
समझा न पाऊं ,जो महसूस होता है |
स्वस्थं रहें!
प्रतीकात्मकता, भावना, अनुभूतियाँ, आकर्षण भाव सबका सुंदर सयोजन हुआ इस प्रेम की इबादत में. बस दिल खुश हो गया.
शब्द शब्द दर्द छलकाती रचना। बहुत मार्मिक।
अगाध प्रेम और घृणित दुष्कर्मों के बीच झूलता जीवनों का लेखा जोखा।
पिंजरे कभी
उमर नहीं देते
रिश्ते भी नहीं ,
कानून न रिश्तों का
न ही पिंजरों का है
... हर विधा में आपकी लेखनी बेहद सशक्त है
सादर
kya baat hai.....
बहुत खूबसूरत शब्द .. उत्तम रचना.
एक बार नहीं, कई बार पढ़ा... फिर भी दिल नहीं भरा ~ बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है आपने!
स~सादर!!!
ये कतरने
सियाह कपड़ों की
न धागा कोई
बता मैं कैसे सीऊँ ?
बदन ज़खमी है !
....नि:शब्द कर दिया इस दर्द ने ...!
हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले ...
बहुत खूब ... जो रब मिलता है प्रेम से तो किताबो में क्यों पढ़ें ... दिल का टांका बंध गया इस तांका से ...
बहुत ही सुन्दर कोमल भाव लिए प्रस्तुति...
:-)
वाह! बहुत सुंदर, बेहतरीन।
कविता की तांका विधा बारे में नहीं जानता लेकिन कविता के भाव संवेदना को जगाने वाले हैं मुझे लगता है कि आज के संवेदनहीनता और आत्मकेन्द्रीयता के युग में ऐसी रचनाओं की आवश्यकता है जो मन में प्रेम की सुसुप्त भावनाओं को जागृत करें आपकी कवितायेँ इस ज़रूरत की पूर्ति करती हैं
किताबे -दर्द
लिखी यूँ ज़िन्दगी ने
भूमिका थी मैं
आग की लकीर -सी
हर इक दास्ताँ की ... आपको पढ़ते हुए मुझे बस हीर याद आती है अमृता सी
वाह हीर जी...सभी एक से बढ़कर एक रचनाएँ...बहुत प्रभावपूर्ण!
'हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले ---
वाह ! प्रेम रब दा दूजा नाम !
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं लिखी हैं।
लेकिन ये तांका विधा क्या होती है , यह समझ नहीं आया।
आद दराल जी ये क्षनिकाएं नहीं हैं हाइकू की ही तरह ये भी 5,7,5,7,7 के क्रम से लिखी जाती हैं इन्हें 'तांका' हैं ....
बहुत खुबसूरती से अपने दर्द को सिलने की कोशिश की है ..
एक से बढ़कर एक
क्या खूब लिखे हैं आपने ये तांकें। एक से बढ़कर एक। बहुत लोग 'हाइकु' में 5+7+5 और तांका में '5+7+5+7+7' के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि यह भी कविता का एक छोटा रूप है, ये कविता हो, यह बेहद ज़रूरी है… इतनी कम पंक्तियों में एक अनुशासन में बद्ध होकर कविता को बनाए रखना बहुत कठिन कार्य होता है, आपने यह कठिन कार्य बखूबी निभाया। बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण हैं आपके ये तांकें। बधाई !
बढिया भाव
सुंदर रचना
वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
क्या बात है !
आदरणीया हरकीरत हीर जी
तांका विधा में लिखी गई इन कविताओं में हीर का चिर-परिचित रंग बरकरार है ...
बेहतरीन कविताएं !
मुबारकबाद !!
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले
बहुत सुन्दर, सार्थक सभी है ....एक नविन विधा से परिचय हुआ रचना में ...
आपके लिखने का अंदाज बहुत ही निराला है ,जैसे मोतियों की माला हो।
अति सुंदर कृति
---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
टाँक दिया जो
कागज पर ताँका
दिल मेरा भी
तड़प कर काँपा
लिखा बहुत खूब..
बधाई हो आपको।
....
टीप भी ताँका में देने का प्रयास है। सही है?
हीर-राँझा' है
इबादत प्रेम की
बंदे पढ़ ले
मिल जाए रब ,जो
तू दिल में लिख ले
हीर की रचना *हीर सोनी लैला* की याद दिला दी सादर !!
bahut khub likha aap ne ,man ko chhu gaee ye rachna
बहुत खूबसूरत तांका
किताबे -दर्द
लिखी यूँ ज़िन्दगी ने
भूमिका थी मैं
आग की लकीर -सी
हर इक दास्ताँ की
हर एक हाईकू शानदार ..
सादर !
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