Wednesday, January 23, 2013

कुछ पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें .....


समकालीन भारतीय साहित्य के दिसं -जनवरी  अंक और गर्भनाल के फरवरी अंक में प्रकाशित मेरी कुछ रचनायें .....
एक खुशखबरी और समकालीन भारतीय साहित्य की कवितायेँ पढ़ दिल्ली के अशोक गुप्ता जी ने मुझे ये ख़त लिखा .....

मान्यवर हरकीरत जी,
नमस्कार. 16th दिसंबर 2012 को  दिल्ली में हुए एक सामूहिक बलात्कार कांड से समाज में जो आक्रोश उपजा है उससे जुड कर मैंने एक पुस्तक संपादित करने के काम हाथ में लिया है जिसमें यौन उत्पीडन से जुड़े आलेख, कहानिया तथा कानून विशेषज्ञों के आलेख लेने का मेरा मन है. उस पुस्तक के फ्लैप पर मैं आपकी दो कविताएं लेना चाह रहा हूँ.मैंने इस कविताओं को समकालीन भारतीय साहित्य के ताज़ा अंक (नवंबर-दिसंबर २०१२) में पढ़ा है. सचमुच यह बहुत ही मर्मस्पर्शी और अनुकूल सन्देश को प्रेषित करती कविताएं हैं. यथा प्रस्ताव चयनित कविताएं हैं, 1 तथा 7 .


बहुत बहुत धन्यवाद.
अशोक गुप्ता 
Mobile 09910075651 / 09871187875    

दुआ है ये नज्में उस आक्रोश को बढ़ाने में कामयाब हों ......

और अब पंजाबी से अनुदित एक नज़्म आप सबके लिए .....

मुहब्बत ...

वह रोज़
दीया जला आती है
ईंट पर ईंट रख 
शब्दों की कचहरी में खड़ी हो
पूछती है उससे
मजबूर हुई मिटटी की जात
रिश्तों की  धार  से छुपती
वह उसे आलिंगन में ले 
गूंगे साजो से करती है बातें ....

पिंजरे से परवाज़ तक 

वह कई बार सूली चढ़ी थी
इक- दुसरे की आँखों में आँखें डाल 
साँसों के लौट आने तक
ज़िन्दगी के अनलिखे रिश्तों की
पार की कहानी लिखते 
  वे भूल गए थे 
मुहब्बतें अमीर  नहीं हुआ करती   .....
यदि धरती फूलों से ही लदी  होती
तो दरिया लहरें न चूम लेते ...?

इक दिन वह

कुदरत की बाँहों में झूल गया था 
और अक्षर-अक्षर हो
पत्थर बन गया था
मोहब्बत का पत्थर ....

गुमसुम खड़ी हवाएं

दरारों से आहें भरती रहीं
कोई रेत का तिनका
आँखों में लहू बन जलता रहा
घुप्प अँधेरे की कोख में
वह दीया  जला लौट आती है
किसी और जन्म की 
उडीक में .....!!

हरकीरत 'हीर'

27 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बधाई हो!
सुन्दर प्रस्तुति!
वरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बधाई हो!
सुन्दर प्रस्तुति!
वरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




बहुत बहुत बधाई !



रंजू भाटिया said...

बहुत बहुत बधाई आपको हीर :)

रश्मि प्रभा... said...

बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

आपको ढेर सारी बधाइयाँ
व हार्दिक शुभकामनाएँ!:-)
~सादर!!!

ओंकारनाथ मिश्र said...

बधाई हो.

Shikha Kaushik said...

शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

डॉ टी एस दराल said...

सार्थक लेखन को उचित स्थान मिला है।
बधाई और शुभकामनायें जी ।

रचना दीक्षित said...

अनेकानेक बधाइयाँ. दोनों कवितायेँ सही सन्देश देती हैं. लेकिन दूसरा चित्र खुल नहीं रहा है. उसमे क्या है पता नहीं चला.

Khushdeep Sehgal said...

वो जिधर देख रहे हैं,
सब उधर देख रहे हैं,
हम तो बस,
देखने वालों की नज़र,
देख रहे हैं...

लगदा वे साणू वी सूट-शूट पाणा शुरू करना पऊ...

जय हिंद...

Unknown said...

शुभकामनायें

रश्मि शर्मा said...

बहुत खूब....बधाई और शुभकामनाएं

Ramakant Singh said...

बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

vandana gupta said...

बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

प्रवीण पाण्डेय said...

बधाई आपको।

Rajesh Kumari said...

बहुत- बहुत बधाई और शुभकामनायें

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या बात.... बहुत बहुत बधाई.

nayafanda said...

Superb
www.nayafanda.blogspot.com

कविता रावत said...


बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत बधाई हो!

Onkar said...

हमेशा की तरह बहुत सुन्दर रचनाएँ

Anju (Anu) Chaudhary said...

इक दिन वह
कुदरत की बाँहों में झूल गया था
और अक्षर-अक्षर हो
पत्थर बन गया था
मोहब्बत का पत्थर ...........

मोहब्बत में ही इतना दर्द क्यों है?????

Asha Joglekar said...

गुमसुम खड़ी हवाएं
दरारों से आहें भरती रहीं
कोई रेत का तिनका
आँखों में लहू बन जलता रहा
घुप्प अँधेरे की कोख में
वह दीया जला लौट आती है
किसी और जन्म की
उडीक में .....!!

kya kahoon shabd nahee mil rahe.

Suman said...

बधाई और शुभकामनायें ....

kumar zahid said...

khushi ki bat hai..badhai.