नव वर्ष आया पर साथ में इतना दर्दनाक हादसा लाया कि जेहन में न कोई ख़ुशी रही न उठकर उसका स्वागत करने की हिम्मत .....
16 दिसम्बर की वह चलती बस में की गई इतनी घिनौनी हरकत (गैंग रेप )कि जिसे सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं पर जिसने उसे भोगा , झेला ,सहा और 13 दिनों तक उस दर्द के साथ ज़िंदा रही (29 दिस को उसकी मौत सिंगापुर के किसी अस्पताल में हो जाती है )उसने कैसे जरा होगा ये सब हम तो सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं ....
अपने आप को उस स्थिति में रखती हूँ तो आंसू थमते नहीं ......
रब्ब दामिनी की आत्मा को मुक्ति दे इसी दुआ के साथ पेश है दामिनी को समर्पित कुछ हाइकू और एक ग़ज़ल .....
इसे संवारने में सहयोग दिया है चरनजीत मान जी ने ......
(1)
तू बुझी नहीं
ये मशाल है अब
मेरे हाथों में
(2)
दिल ज़ख़्मी है
रूह छलनी , पर
आँखों में आग
(3)
हम करेंगे
सजा मुकम्मल
काट अंगों को
(4)
मोमबत्तियां
नहीं, हैं ये जलते
हुए अंगारे
(5)
इक सरिया
आर-पार अंगों के
उफ़्फ़ या रब्बा !
(6)
इंसा नहीं वो
हैवान भी नहीं वो
थे वो दरिंदे
(7)
जम गई है
बरफ़ सी भीतर
जैसे मुझ में
(9)
उफ्फ !क्यों तूने
मज़लूम की चीखें
सुनी न रब्बा .. !
(10)
अय कमीनों
है थू -थू तुझ पर
हर नज़र
(11)
थमा गई तू
जिस्म अपना जला
जलती शमा
(12)
रो रही आत्मा
संग तेरे दामिनी
है जग सारा
बुझ गई तेरे लिए जलती हुई छोड़ के लौ.......
आज अँगारों के बिस्तर पे बसर करती है
देख हर लड़की ही आज आँख को तर करती है
खुद तो हूँ बुझ गई देकर के मैं हाथों में मशाल
देखना क्या कि चिंगारी ये कहर करती है
एक मज़लूम की चीखें न सुनी रब तूने
मौत के बाद यह फरयाद क़बर करती है
नहीं महफूज़ आबरू किसी लड़की की यहाँ
अब कि डर-डर के यह दिल्ली भी बसर करती है
देह भी लूट दरिन्दों ने ली,सांसें छीनी
बददुआ जा तेरे जीवन को ज़हर करती है
अै खुदा़ आँधियों ने दी उजाड़ ज़ीस्त मेरी
यह हवाएं भी तुझे रो- रो खबर करती है
16 दिसम्बर की वह चलती बस में की गई इतनी घिनौनी हरकत (गैंग रेप )कि जिसे सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं पर जिसने उसे भोगा , झेला ,सहा और 13 दिनों तक उस दर्द के साथ ज़िंदा रही (29 दिस को उसकी मौत सिंगापुर के किसी अस्पताल में हो जाती है )उसने कैसे जरा होगा ये सब हम तो सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं ....
अपने आप को उस स्थिति में रखती हूँ तो आंसू थमते नहीं ......
रब्ब दामिनी की आत्मा को मुक्ति दे इसी दुआ के साथ पेश है दामिनी को समर्पित कुछ हाइकू और एक ग़ज़ल .....
इसे संवारने में सहयोग दिया है चरनजीत मान जी ने ......
कुछ हाइकू दामिनी को नम आँखों से .....(श्रद्धांजलि स्वरूप )
तू बुझी नहीं
ये मशाल है अब
मेरे हाथों में
(2)
दिल ज़ख़्मी है
रूह छलनी , पर
आँखों में आग
(3)
हम करेंगे
सजा मुकम्मल
काट अंगों को
(4)
मोमबत्तियां
नहीं, हैं ये जलते
हुए अंगारे
(5)
इक सरिया
आर-पार अंगों के
उफ़्फ़ या रब्बा !
(6)
इंसा नहीं वो
हैवान भी नहीं वो
थे वो दरिंदे
(7)
जम गई है
बरफ़ सी भीतर
जैसे मुझ में
(9)
उफ्फ !क्यों तूने
मज़लूम की चीखें
सुनी न रब्बा .. !
(10)
अय कमीनों
है थू -थू तुझ पर
हर नज़र
(11)
थमा गई तू
जिस्म अपना जला
जलती शमा
(12)
रो रही आत्मा
संग तेरे दामिनी
है जग सारा
बुझ गई तेरे लिए जलती हुई छोड़ के लौ.......
आज अँगारों के बिस्तर पे बसर करती है
देख हर लड़की ही आज आँख को तर करती है
खुद तो हूँ बुझ गई देकर के मैं हाथों में मशाल
देखना क्या कि चिंगारी ये कहर करती है
एक मज़लूम की चीखें न सुनी रब तूने
मौत के बाद यह फरयाद क़बर करती है
नहीं महफूज़ आबरू किसी लड़की की यहाँ
अब कि डर-डर के यह दिल्ली भी बसर करती है
देह भी लूट दरिन्दों ने ली,सांसें छीनी
बददुआ जा तेरे जीवन को ज़हर करती है
अै खुदा़ आँधियों ने दी उजाड़ ज़ीस्त मेरी
यह हवाएं भी तुझे रो- रो खबर करती है
बुझ गई तेरे लिए जलती हुई छोड़ के लौ
दामिनी आज भी हर बस में सफ़र करती है
कमीनो शर्म करो जाओ , कहीं डूब मरो
आज देखे जो तुम्हें थू-थू नज़र करती है
38 comments:
ऐ खुदा़ आँधियों ने दी उजाड़ ज़ीस्त मेरी
यह हवाएं भी तुझे रो रो खबर करती है
बुझ गई तेरे लिए जलती हुई छोड़ के लौ
दामिनी आज भी हर बस में सफ़र करती है
हर पंक्ति सच कहती हुई ....
देह भी लूट दरिन्दों ने ली,सांसें छीनी
बददुआ जा,जीवन तेरा ज़हर करती है
एक उम्दा ख्याल है ....लेकिन दर्द भरा है , और इसके प्रत्यक्षदर्शी हैं हम सब .......निहत्थे जैसे ...!
:(
बस उसी दिन नव वर्ष की खुशियाँ सुकून पायेंगी
जब इंसाफ़ की फ़सल लहलहायेगी
और हर बेटी के मुख से डर की स्याही मिट जायेगी
दिल के कोर कोर को छू गए हर शेर.
हर लफ्ज़ दिल को छू गया --
खुद तो हूँ बुझ गई देकर के मैं हाथों में मशाल
देखना है चिंगारी क्या कहर करती है ....
!!!!
सुना था इक्कीस दिसम्बर को धरती होगी खत्म
पर पाँच दिन पहले ही दिखाया दरिंदों ने रूप क्रूरतम
छलक गई आँखें, लगा इंतेहा है ये सितम
फिर सोचा, चलो आया नया साल
जो बिता, भूलो, रहें खुशहाल
पर आ रही थी, अंतरात्मा की आवाज
उस ज़िंदादिल युवती की कसम
उसके दर्द और आहों की कसम
हर ऐसे जिल्लत से गुजरने वाली
नारी के आबरू की कसम
जीवांदायिनी माँ की कसम, बहन की कसम
दिल मे बसने वाली प्रेयसी की कसम
उसे रखना तब तक याद
जब तक उसके आँसू का मिले न हिसाब
जब तक हर नारीसुना था इक्कीस दिसम्बर को धरती होगी खत्म
पर पाँच दिन पहले ही दिखाया दरिंदों ने रूप क्रूरतम
छलक गई आँखें, लगा इंतेहा है ये सितम
फिर सोचा, चलो आया नया साल
जो बिता, भूलो, रहें खुशहाल
पर आ रही थी, अंतरात्मा की आवाज
उस ज़िंदादिल युवती की कसम
उसके दर्द और आहों की कसम
हर ऐसे जिल्लत से गुजरने वाली
नारी के आबरू की कसम
जीवांदायिनी माँ की कसम, बहन की कसम
दिल मे बसने वाली प्रेयसी की कसम
उसे रखना तब तक याद
जब तक उसके आँसू का मिले न हिसाब
जब तक हर नारी न हो जाए सक्षम
जब तक की हम स्त्री-पुरुष मे कोई न हो कम
हम में न रहे अहम,
मिल कर ऐसी सुंदर बगिया बनाएँगे हम !!!!
नए वर्ष मे नए सोच के साथ शुभकामनायें.....
.
http://jindagikeerahen.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html#.UOLFUeRJOT8
यही आक्रोश सभी के दिलों में है। सोच में बदलाव लाना ही होगा।
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
आज अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है
देख हर लड़की ही आज आंख को तर करती है
समूचे देश की तरह हमारे जहनो-दिल भी अशांत हैं ...
आदरणीया हरकीरत हीर जी
आपकी लेखनी से निकला आक्रोश अपराधियों को नेस्त-नाबूद करने के लिए काफी है ...
कमीनो शर्म करो जाओ कहीं डूब मरो
आज देखे जो तुम्हें थू-थू नज़र करती है
सरकार का हिस्सा बने बलात्कारियों/अपराधियों पर भी लानत ...
हां ,
चरनजीत मान जी का कुछ परिचय मिल जाता तो ...
आपके साथ साधुवाद उन्हें भी !
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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dukh aur vedna ke bhaavoN ki
achhee abhvyaktii ....
dukh aur vedna ke bhaavoN ki
achhee abhvyaktii ....
बस अब तो यह लौ सबके सीने में जलती रहे, यही सोचना है यही करना है .......गहन वेदना को मुखरित कर तन-मन झिन्झोरती रचना के लिए आभार...
बीते साल में जो दर्द मिला है अंत में वह एक नयी राह दिखाए यही कामना है.
नव वर्ष में शुभकामनाओं सहित...
बेटी दामिनी
हम तुम्हें मरने ना देंगे,
जब तलक जिंदा कलम है..
नया वर्ष मंगलमय हो
अच्छी रचना
सामयिक संदेश
नया वर्ष मंगलमय हो
कमीनो शर्म करो जाओ , कहीं डूब मरो
आज देखे जो तुम्हें थू-थू नज़र करती है ।
आज हर दामिनी के दिल में यही है बद्दुआ
तुम्हें अपनी जिंदगी भी मौत से बद्रतर लगे ।
आशा है नया साल हमारे समाज में कुछ अच्छा बदलाव लायेगा ।
शुभ नववर्ष ।
नहीं महफूज़ आबरू किसी लड़की की यहाँ
अब कि डर-डर के यह दिल्ली भी बसर करती है ......... चैन की नींद मयस्सर ही नहीं
मार्मिक हाइकू ओर आक्रोश लिए गज़ल के अलफ़ाज़ ...
कितनी कडुवी सच्चाई है ... २०१२ कैसा बीता है ...
आशा है २०१३ उम्मीद की किरण लेके आएगा ...
अै खुदा़ आँधियों ने दी उजाड़ ज़ीस्त मेरी
यह हवाएं भी तुझे रो- रो खबर करती है
२०१३ नई आशा लेकर नए सोच के साथ नई दिशा लेकर आएगी ....
Heer ji navvarsh achha beete ye dua karata hun .....bahut hi marmik gajal ....hr sher ap me ak mishal kayam kr rha hai ....es sundar prastuti ke koti koti aabhar .
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी यह पोस्ट 3-1-2013 को चर्चा मंच पर चर्चा का विषय है
कृपया पधारें
dil ke bhavo vyakt karti Rachna .Badhai ..
तेरी बेबसी का, दिल को मलाल बहुत है दामिनी
शर्म आती है अब तो, खुद को इंसान कहने पर।
http://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post_23.html
dil ke bhavo vyakt karti Rachna ..
http://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post_23.html
बोलने को कुछ रहा नही ...करने को बहुत कुछ ??
कुछ कर के दिखाएँ ...तो कुछ बोलें.......
ek hasaas,aur bar-waqt tehreer-ghazal aur hykoo , Harkirat ji ki qalam se.
Mera role is men do-eik jagah behr men laane ki koshish ke siva kuchh nahin
-shukriya Raajendra ji,aur aap ko bhii naye saal ki shubh kaamnaayen
लो राजेन्द्र जी चरनजीत मान जी ने आकर अपना परिचय खुद दे दिया है ...इससे पहले कि मैं इनकी कलम से लिखी गजलों की तारीफ कर आपको बताती आप खुद ही इनके ब्लॉग पे देख लें ..ये हिंदी और पंजाबी दोनों में लिखते हैं .....हाँ इनकी क्षनिकाएं आपने 'सरस्वती- सुमन' में भी पढ़ी होंगी ...!!
दिल में जलती आग की सुन्दर अभिव्यकि .यह आग जलती रहना चाहिए.हर दिल् मे .
"काश ! सभ्य न होते " http://kpk-vichar.blogspot.in
me aapka swagat hai.
तू बुझी नहीं
ये मशाल है अब
मेरे हाथों में
यह मशाल
बुझने न पायेगी
क्रान्ति लाएगी !
मन को छू लेने वाली रचनाएं....
खुद तो हूँ बुझ गई देकर के मैं हाथों में मशाल
देखना क्या कि चिंगारी ये कहर करती है!
...हम सब साथ साथ है हरकीरत जी!..चिंगारी ही कहर ढाएगी!
ईश्वर करे आपकी बद्दुआ इन हरामजादों को लगे ......
बददुआयें तो पूरा देश दे रहा है सतीश जी .....
इन कर्मों पर शर्म सभी को..
दर्द ही दर्द छोड़ गई है दामिनी
आग बरसाती रचनाएँ. इस आग की ज़रूरत है
दिल में आग
आँखों में भरे शोले
न्याय तो मिले ।
मर्मस्पर्शी रचनाएँ ।
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