(समीक्षा त्रैमा. ‘सरस्वती-सुमन’/मुक्तक विशेषांक, अक्तू.-दिस.-११)
त्रैमा. ‘सरस्वती-सुमन’ (देहरादून) का ‘मुक्तक-विशेषांक’ (अक्टू.-दिस.-11) मेरे हाथों में है- आठ देश, नौ भाषाएँ, ५४ औज़ान और लगभग तीन सौ रचनाकारों के मुक्तक-रुबाइयाँ-क़त्आत्... यह है- अतिथि संपादक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी की एक वर्ष की कड़ी मेहनत का श्रीफल...! इस विशेषांक को ‘जौहर’ जी ने तर्कपूर्ण ढंग से ‘मुरुक़ विशेषांक’ कहकर एक नया एवं सटीक शब्द गढ़ा है- ‘मुरुक़’ (यानी ‘मु+रु+क़’), जिसे प्रधान संपादक डॉ. आनन्दसुमन सिंह जी ने भी ‘मेरी बात’ में रेखांकित किया है।
ग़ौरतलब है कि इस विशेषांक ने अपने प्रकाशन के एक महीने के अन्दर ही लोकप्रियता की नयी ऊँचाइयों का स्पर्श किया है। उप्र हिन्दी संस्थान, लखनऊ के ‘निराला सभागार’ में इसके भव्य विमोचन का समाचार प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आते ही साहित्य-जगत में इसकी भरपूर माँग होने लगी थी। माँग तो होनी ही थी...आख़िर यह एक ‘अभूतपूर्व साहित्यिक दस्तावेज’ जो है...‘मुरुक़ दस्तावेज’...मुक्तक+रुबाई+क़ता का ‘विश्वकोश-सा’! एक-साथ तीन-तीन पीढ़ियों के कवियों की रचनात्मक उपस्थिति में आख़िर 1500 से अधिक मुक्तक/क़त्आत और 200 से अधिक विलक्षण प्रयोगवादी रुबाइयाँ किसी एक ही ग्रंथ में एक-साथ कहाँ मिल सकेंगी? इसमें ‘हाइकु रुबाइयाँ’, आदि बहुत कुछ ऐसा भी शामिल है, जो हिन्दी-उर्दू साहित्य में पहली बार प्रकाशित हुआ है...कमाल की खोज की है- जितेन्द्र ‘जौहर’ जी ने!
आज जब मैं खुद भी इस कार्य को लेकर बैठी हूँ, तो समझ सकती हूँ कि यह अतिथि-संपादन... वो भी ‘विशेषांक’ का कार्य... कितना मुश्किल है... ख़ासकर ‘मुक्तक विशेषांक’ तो और भी क्योंकि इसमें मात्राओं, वज़्न, लय, आदि का भी ध्यान रखना पड़ता है.... तिस पर भी जितेन्द्र जी का यह लिखना कि- ‘अभी-अभी लौटा हूँ, 'मुरुक-प्रदेश' की एक ‘रोचक’ यात्रा से...’ उनकी क़ाबलियत और विद्वता को दर्शाता है क्योंकि इस यात्रा को 'रोचक' तो वही लिख सकता है, जो खुद इसमें पारंगत हो, निपुण हो... और यह सत्य भी है। इस विशेषांक में जितेन्द्र जी ने न केवल विभिन्न साहित्यकारों, रुबाईकारों और स्वयं मुक्तक, रुबाई और क़ता की विस्तृत जानकारियाँ दीं, बल्कि 'मुरुक-संग्रहों' की एक शोधपूर्ण सूची को सामने रखा जो कि निश्चित रूप से विद्वानों, जिज्ञासुओं और शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। इसके अलावा इस ‘मुरुक़ विशेषांक’ में ‘जौहर’ जी ‘विविध भाषा वाटिका, दूर देश से, विनम्र श्रद्धांजलि, पर्यावरण, हास्य-व्यंग्य, नारी, दोहा-मुक्तक, हाइकु-मुक्तक’ आदि-आदि विभिन्न आयाम जोड़ दिये हैं...इसे लम्बे समय तक याद रखा जायेगा।
जितेन्द्र जी को मैं इस कार्य के लिए सलाम करती हूँ क्योंकि आसान नहीं था उनका ये ‘सफ़र’... वो भी इतनी लम्बी व अलग-अलग प्रयोगवादी मुक्तकों की यात्रा... सिर्फ़ यात्रा ही नहीं, बल्कि वे यात्रा के साथ-साथ उसका भूगोल, इतिहास और व्याकरण भी बताते गये जिसके लिए जितेन्द्र जी मेरी बधाई के वास्तविक हक़दार हैं... यह एक बेजोड़/अभूतपूर्व विशेषांक है... संभवत: भारत में अपनी तरह का यह पहला विशेषांक है, जिसमें इतने प्रयोगवादी मुरुक़ (मुक्तक-रुबाई-कता) एक साथ प्रकाशित हुए हैं- हाइकु रुबाइयाँ, मुहावरेदार, सन्अते-मुसल्लस , ज़ंजीर, ज़ुल/सह्-काफ़्तैन, फ़ाईलुन, मुर्सरा, एकाक्षरांतर रुबाइयाँ आदि। इसके अलावा इसमें संस्कृत, उर्दू, भोजपुरी, अवधी, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, पंजाबी, नेपाली मुक्तकों को भी बानगी के तौर पर पेश किया गया है। ...और जहाँ तक मुक्तकों का प्रश्न है, तो कहना पड़ेगा- ‘माशाल्लाह! चुन-चुन कर रखे हैं जौहर जी ने, जो कि पाठको व मंच-संचालकों के लिए एक अनुपम भेंट साबित होंगे। स्वयं अतिथि-संपादक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी के मुक्तक/क़ता का एक उदाहरण देखें-
फ़कत ये फूस वाला आशियाना ही बहुत मुझको
बदन पर एक कपड़ा ये पुराना ही बहुत मुझको
मुबारक हो तुम्हें झूमर लगी ये चाँदनी ‘जौहर’
दरख़्तों का क़ुदरती शामियाना ही बहुत मुझको।
१८० पृष्ठ के इस ‘मुरुक़ विशेषांक’ में न सिर्फ़ भारत के, बल्कि उन्होंने आठ अन्य देशों के रचनाकारों को भी इसमें शामिल कर इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करते हुए साहित्य-जगत को एक अज़ीम तोहफ़ा दिया है।
इसके अतिरिक्त ‘अमर-काव्य’ के अंतर्गत अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, दुष्यंत कुमार, शमशेर बहादुर सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान, उमर ख़य्याम, ‘जोश’ मलीहाबादी, साहिर लुधियानवी, अकबर इलाहाबादी आदि को पढ़ना अत्यन्त सुखकर लगा। पत्र-पत्रिकाओं में मुक्तक विधा पर किये जाने वाले कार्यों में ‘हरिऔध’ जी का नाम उपेक्षा का शिकार रहा है। इस बारे में जौहर जी लिखते हैं- ‘मुरुक़ पर किये जा रहे कार्यों में उनके नाम का उल्लेख न होना, किसी दुराग्रह अथवा अज्ञान का प्रतीक है...सहधर्मियों की इस भूल को न दोहराते हुए, इस विशेषांक में प्रथम प्रस्तुति के रूप में ‘हरिऔध’ जी का मुक्तक ‘अमरकाव्य’ के अन्तर्गत दिया गया है...’
इस विशेषांक में एक और सुखद आश्चर्य देखने को मिला... जितेन्द्र जी और उनकी धर्मपत्नी रीना जी के बनाये चित्र ...भावों के अनुरूप हर चित्र में उनकी कलाकृति को देखना अलग ही आनंद देता है...!
पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ। आनंदसुमन जी हार्दिक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने सुपरिचित कवि/समालोचक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी को यह दायित्व देकर हम पर इनायत की...जिससे यह ख़ूबसूरत दस्तावेजी विशेषांक एक विशुद्ध साहित्यिक धरोहर के रूप में सामने आया है। निश्चित रूप से यह अंक उन शोधार्थियों एवं विश्वविद्यालयों के लिए भी संग्रहणीय है, जो ‘मुरुक’ पर शोध करना चाहते हैं...!
अगर आप इच्छुक हैं पत्रिका के इस विशेष अंक के लिए तो संपर्क करें जितेंदर जौहर जी से ०९४५०३२०४७२ पर ......
अगर आप इच्छुक हैं पत्रिका के इस विशेष अंक के लिए तो संपर्क करें जितेंदर जौहर जी से ०९४५०३२०४७२ पर ......
पत्रिका: त्रैमा. ‘सरस्वती सुमन’
(मुक्तक विशेषांक, अक्तू.-दिस.-११)
कुल पृष्ठ सं.: 180 पृष्ठ, बड़ा आकार (लगभग 300 मुक्तककार)
मूल्य: रु 500/- (पाँच वर्षीय शुल्क)
अतिथि संपादक: जितेन्द्र ‘जौहर’ (सोनभद्र, उप्र)
प्रधान संपादक: डॉ. आनन्द सुमन सिंह (देहरादून)
( अंत में सभी से क्षमा चाहते हुए ...पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण किसी के ब्लॉग पे नहीं आ पा रही हूँ ...कृपया अन्यथा न लें .....)
44 comments:
यह तो ऐसा धमाका है जिसकी गूँज अनवरत सुनाई देती रहेगी..! बहुत बधाई जितेन्द्र जी..वाकई यह 'जौहर' का काम है।
वाकई जौहर जी ने बहुत ही मेहनत की है. अब बस इस अंक का जल्द से जुगाड़ करना है. बधाई जौहर जी. हीर जी , आपने बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की है.
जितेन्द्र जी को बधाई और आपका आभार जो यह जानकारी हम तक पहुंचाई ...
मूल्य के विषय में स्पष्ट नहीं हो पाया .. ( पाँच वर्ष
के लिए )
संपर्क के लिए कोई मेल आई डी भी है क्या ?
हम्म. ब्लाग का ये रंग अच्छा है. पढ़ा जा सकता है अब.
बहुत बधाई जितेन्द्र जी..वाकई यह 'जौहर' का काम है। आपका आभार जो यह जानकारी हम तक पहुंचाई ...
Sunder pustak vishleshan.
Ise kharidne ki utsukta badh gai hai.
Jaankaari pradaan karne ke liye aabhaar..!
इस कार्य के लिये बधाई के पात्र हैं जितेन्द्रजी।
इस कार्य के लिए निश्चित रूप से जितेन्द्र जी बधाई के पात्र हैं .. उन्हें बधाई सहित शुभकामनाएं एवं आपका आभार ।
जौहर जी ने बहुत ही मेहनत की है...बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र जी
नमस्कार हरकीरत जी..
मेरी ओर से जीतेंद्र जी को बधाई..
आपका बहुत आभार कि आपने ये जानकारी हम तक पहुंचाई..
बहुत शुक्रिया...
जाना कि आप व्यस्त हैं..मगर आपकी कमी महसूस होती है.
सादर.
जितेन्द्र जी को बधाई और आपका आभार जो यह जानकारी हम तक पहुंचाई
बहुत ही अच्छा काम किया है जितेन्द्र जी ने......फ़र्ज़ सबसे ऊपर है अन्यथा का तो सवाल ही नहीं उठता |
अच्छी समीक्षा, इस अंक को पढ़ना ही पड़ेगा। ब्लॉग पर आप आ तो रहीं हैं, कौन कहता है कि नहीं आ रहीं। सक्रिय लेखन के लिए मेरी बधाई!
बहुत ही अनमोल कृति है' सरस्वती सुमन 'का 'मुक्तक विशेषांक '....एक बार पढ़ने बैठी तो पूरा पढ़ कर ही दम लिया !
इस साहित्यक उपक्रम के लिए जितेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई !
बधाई बधाई बधाई
नीरज
Jitendra "jauhar" ji ko
bahut bahut mubarakbad .
जीतेन्द्र जिस शहर से ताल्लुक रखते हैं उसकी साहित्य के क्षेत्र में अपनी कुछ ख़ास पहचान नहीं रही है. मगर आज, हम बड़े फख्र से कह सकते हैं कि जीतेंद्र ने उस शहर को एक पहचान दी है जहाँ कभी हमें भी तालीम लेने का मौक़ा मिला था. आखिर गंगा के जल ने अपना रुतबा दिखा ही दिया. जीतेंद्र जी को बहुत-बहुत बधाईयाँ ...शुभ कामनाएं. हीर जी का आभार ...इस महत्त्वपूर्ण सूचना को हम तक पहुंचाने के लिए.
हाइकु रुबाइयाँ, मुहावरेदार, सन्अते-मुसल्लस , ज़ंजीर, ज़ुल/सह्-काफ़्तैन, फ़ाईलुन, मुर्सरा, एकाक्षरांतर रुबाइयाँ आदि--
हीर जी , अपने तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा ।
लेकिन आपने इतनी अच्छी समीक्षा और तारीफ़ की है तो जोहर जी बधाई के तो पात्र हैं ही ।
शुभकामनायें ।
जीतेंद्र ’जौहर’जी को बहुत बहुत बधाई
आप सब को बधाई.
पत्रिका का अच्छा परिचय मिला... आभार।
सार्थक प्रयास, आभार
badhaai jitendra ji ko aur aapko jisne yeh jaankari di hai.
आद. संगीता जी और डॉ साहब .....
आपकी जिज्ञासाएं जौहर साहब तक पहुंचा दी गयीं हैं ...
आग्रह करुँगी कि जवाब वे खुद आकर दें .....
हार्दिक बधाईयाँ....
सादर.
@ सबसे पहले आद. हरकीरत ‘हीर’ जी को हार्दिक धन्यवाद कि उन्होंने लोकप्रिय त्रैमा. ‘सरस्वती सुमन’ के भारी-भरकम ‘मुक्तक विशेषांक’ का अध्ययन करके अपने Blog पर विस्तृत समीक्षात्मक अभिमत Post किया।
सभी मित्रों का हार्दिक आभार...सद्भावनाओं/शुभकामनाओ के लिए...विशेषांक में रुचि प्रकट करने के लिए!
आज हरकीरत जी ने संगीता स्वरुप जी एवं डॉ. टी. एस. दराल जी के प्रश्न मुझे ईमेल किये, सो उनके उत्तर प्रस्तुत हैं-
@ आद. संगीता जी,
हरकीरत जी ने सबसे नीचे ‘विशेषांक-विवरण’ में
जो ‘पंचवार्षिक शुल्क= रु. 500/-’ दिया है, वह सही है। वार्षिक या एकल प्रति का मूल्य निर्धारित नहीं है। इच्छुकजन अपनी सहयोग-राशि M.O. द्वारा सीधे देहरादून के पते पर भेज सकते हैं- 1, छिब्बर मार्ग (आर्यनगर), देहरादून-248001.
@ आद. डॉ. टी.एस. दराल जी,
आप द्वारा उठाया गया प्रश्न- (’हाइकु रुबाइयाँ, मुहावरेदार, सन्अते-मुसल्लस , ज़ंजीर, ज़ुल/सह्-काफ़्तैन, फ़ाईलुन, मुर्सरा, एकाक्षरांतर रुबाइयाँ आदि...’ के सन्दर्भ में) -बहुत विस्तृत उत्तर की माँग करता है। बिना उदाहरण प्रस्तुत किये विषय को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। इसके लिए आपको उक्त विशेषांक अथवा ‘मु+रु+क़’ विधा-विशेष की कतिपय कृतियों से गुजरना पड़ेगा।
संक्षेप में कहूँ तो उपर्युक्त सभी रुबाइयों के विविध प्रकार हैं। धन्यवाद!
जितेन्द्र जी, और हीर जी ....
इस नाचीज़ की तरफ़ से भी मुबारक कबूल करें !
हरकीरत जी आप पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वाह करके भी बहुत काम कर रही हैं। आपकी समीक्षा सराहनीय है । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत ही सुंदर समीक्षा की है आपने पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ ....आको भी हार्दिक बधाई | जौहर साहब का सम्पादित मुक्तक विशेषांक तो कबीले तारीफ है ही साथ आपका कर्म भी कोई कम जौहर का नहीं था |
हरकीरत जी,
डॉ. टी.एस. दराल जी ने ‘रुबाई’ विषयक जो प्रश्न पूछा था, उसका आंशिक उत्तर संयोगवश निम्नांकित लिंक पर उपलब्ध हो गया है-
http://thalebaithe.blogspot.com/2011/12/blog-post_22.html
कृपया उन्हें सूचित कर दीजिएगा।
शुक्रिया जितेन्द्र जी । और हीर जी , आपका भी जो दर्शन दिए तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी ।
अलग अलग तरह की कुछ रुबाइयाँ पढ़कर कुछ तो ज्ञान चक्षु खुले ।
बेशक बड़ी मुश्किल विधा है इस तरह रुबाई लिखना ।
क्या रुबाई और मुक्तक एक ही चीज़ है ?
वाह!!! सुखद समाचार...
घोर उत्सुकता जग गयी....
जल्दी ही संपर्क करती हूँ पत्रिका हेतु संपादक मंडल से...
come here from Malaysia =)
Jeetendraji ko badhai. Aapko dhanyawad ki aapne hamen bataya.
जितेन्द्र जौहर जी को उनकी इस महती उपलब्धि के लिए बधाई।
प्रस्तुत समीक्षा के लिए आपके प्रति आभार।
आपकी 'हूँ' ने किया है कमाल
मेरा ब्लॉग हो गया मालामाल
मेरे ब्लॉग पर आप जो आयीं.
हर की कीरत बन के हैं छाईं.
बहुत बहुत आभार आपका'हीर'जी.
आपकी साहित्यिक प्रतिबद्धता प्रभावित करती है !
बहुत ही अच्छी समीक्षा...... बधाई!
सरस्वती सुमन का बहुप्रतीक्षित मुक्तक विशेषांक प्राप्त हुआ, देखा, पढ़ा और इसे अपनी उम्मीदों से अधिक पाया. कुछ भी कहने से पहले मैं एक ड़िस्क्लोज़र देना चाहता हूँ कि मेरा इस पत्रिका से या संपादक से किसी प्रकार का कोई आर्थिक हित नहीं जुड़ा है. ये कहना उचित ही होगा कि यदि कोई भी पुस्तक एक आम व्यक्ति को पसन्द हो तो उसे खास लोगों की चहेती बनने में कोई समय नहीं लगता. मैं कोई पेशेवर रिव्यूवर अथवा टीकाकार तो नहीं हूँ परन्तु इस पत्रिका की साज-सज्जा एवं रचनाओं की गुणवत्ता देख कर अनायास ही मुँह से निकला ‘आफरीन’. इस पत्रिका को जो ‘मुरूक’ की संज्ञा दी गई है वह सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होती है. इस प्रकार के संग्रह को धन एवं असीमित साधनों से भी प्रकाशित करना शायद संभव नहीं हो सकता जब तक संपादक स्वयं एक एक मुक्तक रुबाई या कत्आ का सूक्ष्म विश्लेषण न कर ले. ज़ाहिर है यह कार्य जनाब जितेन्द्र जौहर साहेब के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति शायद ही कर पाता. इस अंक में अत्यंत प्रतीष्ठित एवं उभरते रचनाकारों की बेहतरीन कृतियों को शामिल किया गया है. अतिथि सम्पादकीय बहुत दिलचस्प लगा. मेरे नज़रिए में इस संग्रह का संपादन जौहर साहेब से बेहतर शायद कोई कर भी नहीं पाता क्योंकि उनकी श्रेणी का कोई तथ्यपरक समीक्षक, आलोचक एवं संवेदनशील चिन्तक कम से कम मेरे ज़ेहन में कोई दूसरा नज़र नहीं आता. जौहर साहेब ने यह जिम्मेवारी अत्यंत मनोयोग से निभाई है. वैसे भी साहित्य सृजन जैसा लोक भलाई का कार्य कोई भी व्यक्ति रोज़ी-रोटी के लिए नही करता. अगर किसी ने कभी ऐसा करने की कोशिश भी की तो उसका सफल होना लगभग असंभव ही है. अगर इस संग्रह को एक एतिहासिक दस्तावेज होने के साथ साथ ‘मुरुक’ विधाओं का प्रेरणा स्रोत कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी. भाषा की कलात्मक अभिव्यक्ति जो मुक्तक एवं रुबाइयों में देखने को मिलती है वह लाजवाब है. जिस प्रकार काफियों में विविध परिवर्तन लाकर अथवा हाईकू आधारित रुबाइयाँ दी गई हैं उसी प्रकार हो सकता है एक दिन रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को एक नए रूप में प्रस्तुत करने का यत्न करे. इस दृष्टि से यह अंक एक शोध-प्रबंध का भी पूरक बन सकता है. परिसंवाद के अंतर्गत औजाने-रुबाई, प्रोफेसराना रुबाइयाँ- एक संस्मरण, मुक्तक एवं रुबाई आलेख अति सुन्दर लगे. मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूँ कि इस ग्रन्थ से नए रचनाकारों को मुक्तक एवं रुबाइयाँ लिखने की प्रेरणा मिलेगी. कुल मिलकर “यह एक ऎसी पुस्तक है जो शायद कभी भी पुरानी नहीं पड़ेगी.” ऐसा मेरा विश्वास है
sukhad jaankari ....aabhaar
@ टी. एस. दराल जी के प्रश्न (क्या रुबाई और मुक्तक एक ही चीज़ है?) का उत्तर:
जी नहीं, मुक्तक और रुबाई में कुछ मूलभूत अन्तर है। हर ‘रुबाई’ आवश्यक रूप से एक ‘मुक्तक’ है, लेकिन हर ‘मुक्तक’ (अथवा उर्दू में क़ता) रुबाई नहीं होता। रुबाई-वर्ग में परिगणित होने के लिए किसी भी छंदोबद्ध चतुष्पदी रचना का ‘सम-सम-विषम-सम’ अर्थात् (AABA) अथवा ‘सम-सम-सम-सम’ अर्थात् (AAAA) की तुकान्त-योजना के साथ रुबाई के निर्धारित औज़ान (कुल औज़ान संख्या 24, 36, 54) में होना अनिवार्य शर्त है। कविवर डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन’ जी अपनी प्रसिद्ध कृति ‘मधुशाला’ को ‘रुबाई’ विधा की कृति मान बैठे थे, जबकि वह मुक्तकाधारित ‘पार्यायबन्ध’ कृति है, यह सत्य उन्हें अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में पता चला था।
-जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक : ‘मुक्तक विशेषांक’)
.........................................................................................................
--
जितेन्द्र ‘जौहर’
Jitendra Jauhar
स्तम्भकार: ‘तीसरी आँख’
(त्रैमा. ‘अभिनव प्रयास’, अलीगढ़, उप्र)
(संपा. सलाहकार: त्रैमा. ‘प्रेरणा’, शाहजहाँपुर, उप्र)
पत्राचार : आई आर-13/6, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218.
कार्यस्थल : अंग्रेज़ी विभाग, ए.बी.आई. कॉलेज।
मोबाइल : +91 9450320472
ईमेल : jjauharpoet@gmail.com
वेब पता : http://jitendrajauhar.blogspot.com/
कविता कोश : जितेन्द्र 'जौहर' - Kavita Kosh
नेट लॉग : http://www.netlog.com/jitendrajauhar
जीतेंद्र जी को बहुत२ बधाई ,.....
नया साल "2012" सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
मै बारह दिनों के लिए रिफ्रेशेर क्लास के लिए हैदराबाद चला गया था ! अतः ब्लॉग की क्रम / उपस्थिति बंद हो गयी थी ! आज ही लौटा हूँ ! इस अवसर पर वश यही कहूँगा ---भगवान सभी के दिल में शांति और सहन की शक्ति दें ! मै और मेरी धर्मपत्नी की ओर से आप सभी को सपरिवार -नव वर्ष की शुभ कामनाएं !
bahut bahut badhai Jauhar ji
Post a Comment