प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और केंद्र सरकार के बीच शांति वार्ता शुरू कराने में अहम भूमिका निभाई वाली प्रख्यात असमिया लेखिका इंदिरा गोस्वामी अब हमारे बीच नहीं रहीं .
मंगलवार 29 नवम्बर की सुबह गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (जीएमसीएच) में लम्बी बीमारी के बाद अंतिम सांस लेने वाली 69 वर्षीया शिक्षिका इंदिरा गोस्वामी जो कि मामोनी रायसन गोस्वामी नाम से लिखती थीं। उन्हें फरवरी में मस्तिष्काघात हुआ था। तभी उन्हें इलाज के लिए नई दिल्ली ले जाया गया था, लेकिन जुलाई में उन्हें यहां वापस ले आया गया और तब से उनका जीएमसीएच में इलाज चल रहा था। वह पक्षाघात की अवस्था में अब तक वेंटिलेटर पर कोमा में थीं।
उन्हें भारतीय साहित्य जगत का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ मिला था। गोस्वामी ने उल्फा और केंद्र सरकार के बीच शांति वार्ता में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन साल 2005 में उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया।
भूपेन दा के बाद अब ब्रह्मपुत्र की उदार पुत्री कही जाने वाली प्रख्यात असमिया लेखिका इंदिरा गोस्वामी के निधन से साहित्य जगत में एक रिक्तता सी आ गई है जिसकी भरपाई में काफी वक्त लगेगा. उनके निधन से जो अपूर्णीय क्षति हुई है वह वर्षों तक अपनी कमी दर्शाती रहेगी . कभी उन्होंने अपने कुछ उदगार यूँ व्यक्त किये थे - '' मैं मानती हूं कि लेखक को राजनीति से नहीं जुड़ना चाहिए. उसे हमेशा मानवता का साथ देना चाहिए. लेकिन मैं अपने राज्य असम को शांत देखना चाहती हूं इसलिए मैंने वहां मध्यस्थ बनना स्वीकार किया.मैं रहती दिल्ली में हूं. दिल्ली ने मुझे बहुत कुछ दिया है. लेकिन मेरी आत्मा असम में बसी है.वहां की हर समस्या से मैं जुड़ी रही हूं. '' सच है कि इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं में समूचा असम क्षेत्र सांस्कृतिक तौर पर रचता-बसता रहा है.
पिछले साल उन्हें 'असम रत्न सम्मान' भी दिया गया था. साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ से सम्मानित और लेखन को मानवीय सरोकारों से जोड़ कर रखने वाली इंदिराजी ने अलगाववादी संगठन युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा को वार्ता की मेज में लाने में अहम भूमिका निभाई.
गोस्वामी को उनके मौलिक लेखन के लिए जाना जाता है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर काफी लिखा था। उन्होंने भारत में महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया था।
14 नवम्बर 1942 को जन्मी डा.गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा शिलांग में हुई लेकिन बाद में वह गुवाहाटी आ गई और आगे की पढ़ाई उन्होंने टी सी गल्र्स हाईस्कूल और काटन कालेज एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पूरी की।
उनकी लेखन प्रतिभा के दर्शन महज 20 साल में उस समय ही हो गए जब उनकी कहानियों का पहला संग्रह 1962 में प्रकाशित हुआ जबकि उनकी शिक्षा का क्रम अभी चल ही रहा था।
वह दिल्ली श्विश्वाविद्यालय में असमिया भाषा विभाग में विभागाध्यक्ष भी रही। उनकी प्रतिष्ठा की चमक के कारण उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मानद प्रोफेसर का दर्जा प्रदान किया। उन्हें डच सरकार का 'प्रिंसिपल प्रिंस क्लाउस लाउरेट' पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।
वह देश के चुनिंदा प्रसिद्ध समकालीन लेखकों में से एक थीं। उन्हें उनके 'दोंतल हातिर उने खोवडा होवडा' ('द मोथ ईटन होवडाह ऑफ ए टस्कर'), 'पेजेज स्टेन्ड विद ब्लड और द मैन फ्रॉम छिन्नमस्ता' उपन्यासों के लिए जाना जाता है।कई साल पहले बीबीसी को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने बताया था- मेरा जन्म असम के एक पारपंरिक ज़मींदार परिवार में हुआ था. मेरे जन्म के समय नगर-ज्योतिषी ने कहा था कि ऐसे अशुभ ग्रह में जन्म लेने वाले बच्चे के दो टुकड़े कर ब्रह्मपुत्र में डाल देना चाहिए. हालांकि मेरे जन्म के समय की यह कहानी मुझे बहुत बाद में मालूम हुई क्योंकि घर में अंधविश्वास और ज्योतिष के लिए कोई जगह नहीं थी. मेरे माता-पिता पढ़े-लिखे और खुले विचारों के इन्सान थे. मां का उन बातों में बिल्कुल विश्वास नहीं था. पिता असम राज्य के शिक्षा निदेशक थे. मां की रूचि रवीन्द्र साहित्य और संगीत में थी. पुराना जमींदार परिवार था. इसलिए घर पर नौकर-चाकर के साथ-साथ आने जाने के लिए हाथी थे. एक हाथी हम भाई-बहन के खेलने के लिए भी था. बचपन में मुझें असमिया पढ़नी लिखनी नहीं आती थी. लेकिन पिता के ज़ोर देने पर मैंने असमिया सीखी और आगे चल कर इसी भाषा में मैंने अपने लेखन की शुरूआत की. मेरे लेखन के विषय, मेरे-अपने समाज की समस्याएं ही रहे हैं. जैसे मैंने ब्राह्म्ण विधवाओं की, हर पल परीक्षा से गुज़रने के सघंर्ष और विडबंनाओं को लोगों के सामने लाने की कोशिश की है. मुझे अपनी सारी रचनाएं प्रिय हैं लेकिन मुझे ‘दोतल हातिएर ओईये खोवा हाउदा” से ज्यादा लगाव रहा है.जहॉ तक सवाल पुरस्कार का है, तो मुझे खुशी है कि मुझे ज्ञानपीठ जैसा सम्मान मिला. लेकिन सम्मान और पुरस्कार के लिए मैंने कभी लिखा नहीं, बल्कि सच यह हैं कि लेखन मेरे लिए ऐसा है जैसे रगो में बहता लहू.
उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी का परिचय उनके आत्मकथात्मक उपन्यास 'द अनफिनिशड आटोबायोग्राफी'में मिलता है। इसमें उन्होंने अपनी जिन्दगी के तमाम संघर्षों पर रोशनी डाली है यहां कि इस किताब में उन्होंने ऐसी घटना का भी जिक्र किया है कि दबाव में आकर उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का प्रयास किया था। तब उन्हें उनके बेपरवाह बचपन और पिता के पत्रों की यादों ने ही जीवन दिया। शायद इसी ईमानदारी तथा आत्मालोचना के बल ने उन्हें असम के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।
इंदिरा गोस्वामी ने अनेक उपन्यास लघु कथा संग्रह और अध्ययनशील लेख लिखे जिनमें उन्होंने समाज के मजलूम तबके के दर्द को उकेरा और एक शाब्दिक आन्दोलन का नेतृत्व करती रहीं.चिनाकी मरमा कइना हृदय एक नदीर नाम प्रिय गल्पो, उपन्यास चिनाबेर स्रोत, नीलकंठी ब्रज, अहिरोन, उने खाओआ, हौदा दशरथेर पुत्र खोज तथा संस्कार उदयभारनुर चरित्र आदि तीन समवेत उपन्यास के अलावा आत्मकथा आधा लेख दस्तावेज शामिल है. उनकी आत्मकथा 'अधलिखा दस्तावेज' साल 1988 में प्रकाशित हुई।
डा.गोस्वामी ने माधवन राईसोम आयंगर से 1966 में विवाह किया था लेकिन शादी के महज डेढ़ साल बाद कश्मीर में हुई एक सड़क दुर्घटना में माधवन की हुई मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया। इसके बाद वह पूरी तरह से टूट गईं। एक समय तो वह वृंदावन जाने का मन बना लिया था, जिसे हिंदू विधवाओं के लिए एक गंतव्य माना जाता है।उन्हें इस सदमे से उबरने में काफी वक्त लगा। वह इससे बाहर तो आई लेकिन गमजदा होकर। यह तकलीफ उनके लेखन में सहज ही महसूस की जा सकती है।
उन्हें 1983 में उनके उपन्यास 'मामारे धारा तारवल' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
तथा साल 2000 में साहित्य जगत का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला और 2008 में प्रिंसीपल प्रिंस क्लॉस लॉरिएट पुरस्कार मिला। उन्हें रामायण साहित्य में विशेषज्ञता के लिए साल 1999 में मियामी के फ्लोरिडा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार मिला था। इसके अलावा उन्हें असम साहित्य सभा पुरस्कार 1988, भारत निर्माण पुरस्कार 1989, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सौहार्द्र पुरस्कार 1992, कमलकुमारी फाउंडेशन पुरस्कार १९९६ जैसे कई सम्मान व पुरस्कार मिले थे. इसके अतिरिक्त "दक्षिणी कामरूप की गाथा" पर आधारित हिंदी टी वी धारावाहिक तथा उक्त उपन्यास पर असमिया में निर्मित फिल्म "अदाज्य" को राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय ज्यूरी पुरस्कार प्राप्त।
गोस्वामी की किताबों का कई भारतीय व अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
इंदिरा गोस्वामी असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं । उनके निधन से न केवल असमिया अपितु समस्त भारतीय साहित्य जगत को अमूल्य क्षति हुई है . आज मेरी उन्हें नम आँखों से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है .
48 comments:
@@ मैं मानती हूं कि लेखक को राजनीति से नहीं जुड़ना चाहिए. उसे हमेशा मानवता का साथ देना चाहिए. लेकिन मैं अपने राज्य असम को शांत देखना चाहती हूं इसलिए मैंने वहां मध्यस्थ बनना स्वीकार किया.मैं रहती दिल्ली में हूं. दिल्ली ने मुझे बहुत कुछ दिया है. लेकिन मेरी आत्मा असम में बसी है.वहां की हर समस्या से मैं जुड़ी रही हूं. '' सच है कि इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं में समूचा असम क्षेत्र सांस्कृतिक तौर पर रचता-बसता रहा है. @@
'' इंदिरा मामोनी रायसन '' जी को विनम्र श्रद्धांजलि ......उनके द्वारा व्यक्त किये गए उद्गारों को अपनाने की जरुरत है ....काश ऐसी भावना सबकी होती .....जहाँ तक अपूर्णीय क्षति का सवाल है ....व्यक्ति की रिक्तता की कभी भरपाई नहीं होती ......हाँ आने वाली पीढियां उनका अनुसरण कर उनके विचारों को आगे बढ़ा सकती हैं .....!
आपकी कलम से आज '' इंदिरा मामोनी रायसन '' जी का विस्तृत परिचय मिला, उनकी भावनाओं को जाना समझा, उन्हें सादर विनम्र श्रद्धांजलि ... प्रस्तुति के लिए आपका आभार ।
इंदिरा जी को पढ़ा तो था, लेकिन इतने करीब से जानने का मौका आज मिला. विनम्र श्रद्धांजलि.
इंदिरा मामोनी रायसन जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
"इंदिरा मामोनी रायसन" जी को विनम्र श्रद्धांजलि ....
इंदिरा जी द्वारा असम के लिए किये गए कार्य हमेशा उन्हें देशवासियों के दिलों में जीवित रखेंगे .
उन्हें विनम्र श्रधांजलि .
INDIRA JI MERI BHI SHAT-SHAT VINMRA SHRADHNJLI .
BAHUT SATEEK SHABDON ME AAPNE UNKE JEEVAN V KRITTV SE PARICHIT KARANE KA SARTHAK PRAYAS KIYA HAI .AABHAR .
Eshwar unki aatma ko shanti pradan kare...
Deepak..
बहुत दुखद...विनम्र श्रद्धांजलि..
......................
हमारी श्रद्धांजलि इंदिरा जी को|
'इंदिरा मामोनी रायसन' जी को विनम्र श्रद्धांजलि...
ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे..
विनम्र श्रद्धांजलि!
आपके इस आलेख ने लेखिका से विस्तृत परिचय कराया...
उन्हें अवश्य पढ़ेंगे, देखें कब अवसर मिलता है!
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि।
आप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - जानकारी ही बचाव है ... - ब्लॉग बुलेटिन
विनम्र श्रद्धांजलि।
इंदिरा जी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार।
हम छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि पर उनके द्वारा लखिे उपन्यास 'अहिरन' के कारण उन्हें खास तौर पर याद करते हैं, विनम्र श्रद्धांजलि.
विनम्र श्रद्धांजली...
विनम्र श्रद्धांजलि..
विनम्र श्रद्धांजलि .
इंदिरा जी को विनम्र श्रद्धांजलि.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
भूपेन दा के बाद इंदिरा जी का जाना उत्तरपूर्व ही नहीं पूरे भारत के लिए अपूर्णीय हैं...
जय हिंद...
श्रद्धांजलि..
विनम्र श्रद्धांजलि ...
आपका आभार इस अनमोल पोस्ट के लिए.
सादर नमन.
इस विस्तृत परिचय के लिये आभार
इन्दिरा जी को विनम्र श्रद्धाँजलि
इंदिरा मामोनी रायसन जी को विनम्र श्रद्धांजलि .
आपने सुन्दर आलेख प्रस्तुत किया. आभार.
इतने विस्तार से इनके विषय में आज जाना...
बहुत बहुत आभार आपका..
ऐसे व्यक्तित्व कईयों का जीवन प्रकाशित सुरभित कर ,यह बताते हैं की देखो, जीवन ऐसे जिया जाता है...
विनम्र श्रद्धांजलि...
ईश्व उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें॥
मेरी विनन्र श्रद्धाजंलि !
विनम्र श्रद्धांजलि।
आपके द्वारा उनका विस्तृत परिचय मिला ... इंदिरा जो को विनम्र श्रधांजलि है ...
इंदिरा मामोनी जी को विनम्र श्रद्धांजलि. असम तो सचमुच दुःख के सागर में डूबा है. प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
बहुत दुखद...विनम्र श्रद्धांजलि..
आपके इस आलेख ने लेखिका से विस्तृत परिचय कराया.... इंदिरा जो को विनम्र श्रधांजलि है ...
इंदिरा मामोनी रायसन जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
बहुत ही सुंदरता से आपने इंदिरा जी के बारे में
जानकारी कराई है.
सुन्दर जानकारीपूर्ण लेखन के लिए आपका आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,हीर जी.
हनुमान लीला पर अपने अमूल्य विचार
प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा.
Your blog is very interesting. I am loving all of the information you are sharing with everyone
From Great talent
इंदिरा गोस्वामी जी का परिचय और निधन का दुखद समाचार एक साथ पढा ।
ऐसे व्यक्तित्व को सादर श्रध्दांजली ।
Mamoni ko shradhhanjali
हीर जी,
बहुत दिनों बाद बंद ब्लॉग का ढक्कन खोला और डॉ. कुमार विमल जी पर एक संस्मरण लिखने लगा. अचानक पिछली होली पर किखी अपनी चार पंक्तियों पर आयी टिप्पणियों की बढ़ी हुई संख्या पर नज़र गई तो टिप्पणियाँ देखीं. आपने क्षणिकाएं मांगी थीं, मुझे इसका इल्म ही नहीं था. लिहाजा आपके उस आग्रह पर कोई कार्यवाही न कर सका. अपनी इस असावधानी के लिए क्षमा चाहता हूँ.
साभिवादन--आनंद.
कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
आपका तहे दिल से इंतजार करता हूँ 'हीर'जी
अपने ब्लॉग पर.सुन लीजिये न मेरी भी पुकार.
आप नास्तिक हैं या आस्तिक
पर हर की कीरत 'हीर'हैं.
और हरती मन की पीर हैं.
मेरी पुकार सुन आप मेरे ब्लॉग पर आयीं
आपकी 'हूँ' ने मुझ में सुन्दर आस जगाई.
आप तो बस आप ही हैं जी.
बहुत बहुत शुक्रिया जी
बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
इंदिरा गोस्वामी जी को विनम्र श्रंद्धांजलि।
आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
अब क्या कहूँ मैं आपको,डरते डरते फिर आ गया हूँ
आप की 'हूँ...'से ही मैं कुछ साहस पा गया हूँ.
समय मिलन पर मेरे ब्लॉग पर आप फिर से आयें
अपने सुवचनों का कृपा प्रसाद दे मुझको हरषायें.
इस प्रस्तुति के लिए आभार !!
vinamra shraddhanjali indira goswami ji ko...
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