काफी अर्सा दूर रही आपसे...कुछ संपादिका की जिम्मेदारी कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझी रही ....इस बीच अस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के हिसाब-किताब में मिट्टी डोलते देखी ...ज़िन्दगी को भला कोई खरीद पाया है .....?...मौत उसे कब शिकस्त दे दे पता नहीं ...डर गई हूँ ...ज़िन्दगी और मौत से ज्यादा मुहब्बत से .....इसलिए तो दाँत भींचे बैठी हूँ ...न जाने खुदा कब लिबास उतार दे .....
(१)
मुहब्बत के पत्ते .....
बरसों ....
आग की चिंगारियों में
जलाया है ज़िस्म
अब .....
झुलस जाते हैं पत्ते भी
मेरे छूने भर से .....
अय हवाओ ...!
ये मुहब्बत के पत्ते
मेरे आँगन में मत
फेंका कर ....!!
(२)
झूठ .....
झूठ .....
कुछ यूँ टँगा रहता है
लोगों की जुबाँ पर
के हर रोज़ उतारती हूँ
ज़िस्म के ....
टुकड़ों के साथ ......!!
(३)
इक और दर्द.....
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था
धरती में ...
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
(४)
भईया .....
कमरे में जलती
लाल-हरी बत्ती की तरह
तुम्हारी साँसें भी ...
जलती-बुझती सी
इस सलाईन की लगी बोतल से
पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं
तुम्हारी जर्द आँखों में
आज मैंने बचपन देखा है .....!!
(अस्पताल से - जर्द हुए भाई के लिए )
(५)
मौत .....
वह ....
उतरती रही
आँखों से देह तक
देह से हड्डियों तक
हड्डियों से साँसों तक
दर्द की करवटों में
ओह पापा ....!
मुझे मुआफ करना
मैंने मौत से आँखें चुराई हैं .....!!
( कैंसर से जूझते पिता -ससुर के लिए )
Sunday, May 29, 2011
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103 comments:
आप जो दर्द झेल रही थी, वह सारा का सारा उढ़ेल दिया है इन खूबसूरत क्षणिकाओं में. ईश्वर शीघ्र ही सारी परेशानियों से निजात दिलाये, ऐसी कामना और इतनी मसरूफियत के बाद भी ब्लॉग के लिए समय निकाला इसके लिए धन्यबाद.
आपकी कविता एक अनुभव है.. एक एहसास है.. जिसका असर एक अरसे तक रहता है... सभी कवितायेँ सुन्दर.. अंतिम कविता भावुक कर गई..
बहुत भावुक कर देने वाली क्षणिकाएं ... हर क्षणिका पूरी ज़िंदगी का अनुभव कह रही है ..
एक पल कि साँस भी कोई नहीं खरीद सकता ... पर जब तक ज़िंदगी है हर कोई जूझता है इसके लिए ...
दर्द ही दर्द बिखरा है यहां..
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था धरती में
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......
आदरणीया हीर जी
बहुत दर्द भर दिया है आपने इन सब क्षणिकाओं में ..सब एक से एक बढ़कर हैं ...!
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था धरती में
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
आपने तो दर्द-सागर का मंथन कर दिया!! मार्मिक वेदना!!
पिताजी के स्वास्थ्य-लाभ की शुभकामना सहीत!!
कमरे में जलती
लाल-हरी बत्ती की तरह
तुम्हारी साँसें भी ...
जलती-बुझती सी
इस सलाईन की लगी बोतल से
पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं
भईया .....
तुम्हारी जर्द आँखों में
आज बचपन झांका है ....
aap ki jitni tarif ki jaaye kam hai ,jindagi ki sachchai ko anubhav ko badi khoobsurati se piroya hai apne rachna me .aapki taklif main samjh sakti hoon ,ishwar jaldi door kare inhe .
अय हवाओं ...!
ये मुहब्बत के पत्ते
मेरे आंगन में न फेंका कर ....!!
हीर जी
हवाओं पर भला किस का जोर … ?
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
रब्बा ! आपकी कविताओं के लिए क्या कहूं ?
आपके रचनालोक में प्रवेश करते ही संसार में नये-नये आए जीव - सी स्थिति हो जाती है , जिसके लिए अपनी इच्छानुसार कितना कुछ करना संभव होता है …
# ईश्वर भैया को शीघ्र स्वस्थ करे… आमीन !
# श्वसुरजी की सेवा करती रहें … छत्रछाया जब तक बनी रहे …
आपने तो पूरा जीवन समर्पित किया है सेवा में …
सादर शुभकामनाओं सहित …
एक प्यारी सी कविता, जो अच्छी लगी,
वह ....
उतरती रही
आँखों से देह तक
देह से हड्डियों तक
हड्डियों से साँसों तक
दर्द की करवटों में
ओह पापा ....!
मुझे मुआफ करना
मैंने मौत से आँखें चुराई हैं .....!!
दर्दभरी क्षणिकाएं..... बहुत वेदना लिए हैं शब्द
आद. हीर जी,
आपको पढकर, तमाम लफ्ज़ बौने हो जाते हैं और भावनाएं पर्वत....
भईया और श्वसुर जी को ईश्वर शीघ्र स्वस्थ्य करें.... आमीन..
प्रार्थना और शुभकामनाएं...
कमरे में जलती
लाल-हरी बत्ती की तरह
तुम्हारी साँसें भी ...
जलती-बुझती सी
इस सलाईन की लगी बोतल से
पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं
भईया .....
तुम्हारी जर्द आँखों में
आज बचपन झांका है .....!!
aur iski salamati ke liye maine bhi zindagi maangi hai
सभी कवितायेँ सुन्दर.. अंतिम कविता भावुक कर गई..
दर्द को शब्द देना भी दर्दनाक एहसास रहा होगा..!
shayad isi ka nam jindgi hai .aap par prabhu ki krapa ho aur sabhi ka swasthay shighr achchha ho aisi shubhkamnaon ke sath .
aap ki kshanikaon ka dard prabhavit karta hai khuda aap ke bhaiya aur papa ko lambi umr aur achchha swasthy ata kare (ameen)
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था धरती में
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
padhne waale ke zehan me saaraa dard utar jaaye aisi rachnaa hai. Humaari duaa aapke saath hai
हालात अनुसार खूबसूरत क्षणिकाएं ।
अस्पताल , जहाँ --
आशा निराशा की
एक नाज़ुक डोर से लटकती
झूलती है जिंदगी ।
यहाँ आकर सब कुछ बेमायने सा लगने लगता है ।
इस कष्ट के समय हौंसला बनाये रखिये ।
सारा ब्लॉगजगत आपके साथ है ।
MAM SAB THIK HO JAYEGA. AAP CHINTA NA KAREN.
JAI HIND JAI BHARAT
samvedanshil man ke liye ati piradayak panktiyan.........
parmeshwar in parishthitiyon se sighra mukti den..............
pranam.
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था धरती में
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
दर्द में भीगे यह शब्द ... भावुक करते हुये ...शुभकामनाएं सब ठीक हो ...।
हीर जी,
बहुत मार्मिक क्षणिकाएँ लगी
दुःख की इस घड़ी में हम सब आपके साथ है !
समझ सकती हूँ ऐसे हालात मे पीडा का दर्शन और अनुभव …………गु्जरी हूं ऐसे हालातों से………हर क्षणिका दर्द की ताबीर है।
bahut hi samwedansheel abhivyaktiyan....
kuchh hi kshano me saara dard aur jard bayaan kar diya aapki kshanikaaon ne.....
waakai dar hai khuda se, na jane kab vo libaas utaar de.......
ACHHE SWASTHYA KI KAAMNA KARTA HUN..
ऐसी नज्मो पर बहुत खूबसूरत ....शानदार नहीं कहा जाता ... दुःख का कोई शोर्ट कट नहीं होता ... बना भी नहीं है....ओर शायद बन भी न पाए ..कहते है इश्वर ने दुःख .आदमी को अपने आप को न भूलने के लिए दिए है ....कब किसे क्यों किस पैमाने पर दिए जाते है ये अलबत्ता आज तक कोई नहीं जान पाया ...
भईया .....
तुम्हारी जर्द आँखों में
आज बचपन झांका है .....!!
kya kahein, nazm, kavita ya fir dil kee batein....
bahut hee sunder or swednaaon se ot-prot
हृदयस्पर्शी कविताएं।
आपके भाई और ससुर जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूं।
दर्द से झूझने के लिये ...शुभकामनाएँ !
ये दिन भी निकल जौएँगे !
शब्द शब्द में पीड़ा टपक रही है, क्या कहूँ?
सारी ही क्षणिकाएं दर्द से लबरेज़ हैं.
मन भर आया पढ़कर.
एक एक क्षणिका अपने में अलग ... बहुत खूब
very emotional poem
हर क्षणिका सीधे में दिल में उतर रही है...पीड़ा को शब्द देना कोई आपसे सीखे
नीरज
सभी कविताओं ने भावुक कर दिया हीर जी।
ये मुहब्बत के पत्ते, मेरे आंगन में न फेंका कर।
कैसे जी कड़ा करके लिखा होगा, समझ सकता हूं।
uff!
ise ghadee hum sabhee aap ke sath hai .
shubhkamnae .
pata nahee kyo aapse baat karne ka bada man ho aaya hai. kash ye gum aur dukh bhee hum bant paate.
डॉ अनुराग ठीक कह रहे हैं । खूबसूरत और सुन्दर नहीं, अति संवेदनशील कहना चाहिए ।
वह ....
उतरती रही
आँखों से देह तक
देह से हड्डियों तक
हड्डियों से साँसों तक
दर्द की करवटों में
ओह पापा ....!
मुझे मुआफ करना
मैंने मौत से आँखें चुराई हैं .....!
...gahan dard ko bahut kareebi ahsas karati....padhkr mujhe meri MAA jo pichle 5 saal se jyada samay se cancer se lad rahi hai...ka dard mahsus hone laga...kya batau...ankhen bhar aayen hai..............
वह ....
उतरती रही
आँखों से देह तक
देह से हड्डियों तक
हड्डियों से साँसों तक
दर्द की करवटों में
ओह पापा ....!
मुझे मुआफ करना
मैंने मौत से आँखें चुराई हैं .....!!
बहुत भावुक कर देने वाली क्षणिकाएं अब कुछ नहीं कहना निशब्द कर दिया आपने ...
हीर जी, आपका ब्लॉग जब बहुत दिन तक अपडेट नहीं हुआ था तो चिंता हुई थी। आपने अपने भाई और श्वसुर के बीमार होने की बात मेल से बताई थी। आपकी ये छोटी छोटी कविताएं उस दर्द की ईमानदार अभिव्यक्ति हैं। ईश्वर आपको यूं ही रचनारत रखे और आपके परिवारजनों को शीघ्र स्वस्थ करे।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
कभी कभी शब्द नहीं होते, और कभी कभी वाकई होने भी नहीं चाहियें।
आपके प्रियजनों के स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनाएँ।
कवितायेँ सुन्दर, एक से एक बढ़कर हैं!
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था
धरती में ...
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
इन कविताओं को पढने के बाद मैं यही कहूंगा कि आपकी कवितायें दिल से निकलती हैं और दिल पर असर करती हैं.
---देवेंद्र गौतम
dard ki is ghadi me hum aapke saath hain....
दर्द से भरी ..समय के फेर में बंधी हुई .....जीतीजागती क्षणिकाएं ...सीधे ह्रदय तक पहुँच रहीं हैं ...!!
बहुत सुंदर लेखन ...!!
dard se vabasta hain hum kisi na kisi roop me ...milbaant kar zindagi aage badhati rahe ...!!
shubhkamnayen .
bahut hi daramai.bhavmai,sambedansheel chadikayen.dil ko choo gai.badhaai aapko.
please visit my blog and feel free to comment.thanks.
आद. हरकीरत जी,
हर नज़्म में दर्द जैसे शब्दों में प्राण बन कर प्रवाहित हो रहा है ! इतनी गहरी संवेदना इतने प्रभावपूर्ण शैली में प्रकट करना किसी और के लिए नामुमकिन है !
आपकी लेखनी को नमन !
इतनी पीड़ा एक साथ ....कैसा नसीव है की पियूष भी पत्थर बन गए !
झूठ .....
झूठ .....
कुछ यूँ टँगा रहता है
लोगों की जुबाँ पर
के हर रोज़ उतारती हूँ
ज़िस्म के ....
टुकड़ों के साथ ......!!
dard bhari nazme ..
कौवा बिरयानी सरकार ..जन लोकपाल बिल लोचे में पड़ा
http://eksacchai.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.html
dard me dubi bhi sari kshanikaye!
apne aap main, sampurn jivan darshan hain!
aapko dil se naman!
हीर जी कब से इंतज़ार रहता है कि आपकी कोई रचना आये....आप आते हो और रुला के, कई बार तो झंझोड़ कर चले जाते हो.......सच है अच्छी रचनाएँ रोज रोज नही आती !
आदरणीया हीर जी ,
आज तो कुछ भी टिप्पड़ी करने का मन नहीं कर रहा ...आपने अपने भाई , पिता जी और ससुर जी की जिस असहनीय पीड़ा को शब्दों में ढाला है .....बस ईश्वर उन्हें स्वस्थ करे और आपके साहस को बढ़ाये , यही प्रार्थना है |
आपका दर्द एक एक शब्द में उभर कर आया है.
बहुत भावुक कर देने वाली क्षणिकाएं हैं.
इश्वर उनको जल्दी से स्वस्थ करें , बस इतना ही कहना है उनसे. आमीन.
झूठ .....
कुछ यूँ टँगा रहता है
लोगों की जुबाँ पर
के हर रोज़ उतारती हूँ
ज़िस्म के ....
टुकड़ों के साथ ......!!
शब्द नही है ब्यान करने के लिए .....देर से आई पर धमाका !!!
अपने दर्द को इन गीतों में पूरी वेदना के साथ ढाला है... पर क्या सचमुच मौत इतनी दर्दभरी होती है? .... नहीं ना!
चंद्रमौलेश्वर जी ये तो निर्भर करता है मौत कैसे आती है ....
कभी कैंसर के मरीज को देखिएगा .....
वो भी जिसे बोन कैंसर हो ...
हड्डियां शरीर का वजन भी सहारने से भी जवाब दे जाती हैं ...
और दर्द मौत मांगता है पर वह आती नहीं .....
इस लिए तो मैं आँखें चुरा हरी हूँ ...
कि वह आये और ले जाये .....
मुझे क्षमा करें ये कहने के लिए ...
par इस उम्र में इसका इलाज नहीं हो सकता .....
बहुत भावुक कर देने वाली क्षणिकाएं.हर क्षणिका पूरी ज़िंदगी का अनुभव कह रही है ..
आदरणीया हीर जी,आपने तो दर्द का सागर मंथन कर दिया
हीर जी,बहुत ही गहरे और मार्मिक एहसास से भरी हुई प्रस्तुति... अपनोँ के प्रति जो आपने एहसास दिखाये है वो अतुल्यनीय है। भगवान जल्द सबको स्वास्थ्य लाभ देँ।
आस पास की अनुभूतियों को क्षणिकाओं में खूबसूरती से संजोया है.अति सुन्दर.
पीड़ा प्रखरतम अभिव्यक्ति पाती है आपकी रचनाओं में...
क्या कहूँ...
उत्कृष्ट...मार्मिक ....
मोहब्बत के पत्ते मत फैको मेरे सम्पर्क से झुलस जायेगे क्यों ? कारण आपने पहली लाइनों में ही दे दिया है 2. सच बढे या घटे सच ही रहे झूंठ की इन्तहा ही नहीं । 3.रचनाकार जब तक अपने आप मे सारी कायनात का दर्द नहीं समेटेगा तो फिर क्या ये .......लोग समेटेंगे ।धरती में नहीं बल्कि रचनाकार के दिल में दर्द समाया है।4.5.विचलित करती पक्तियां
आपको पढ़ कर अब यकीन होता है ज़िन्दगी में कुछ दर्द इतने असहनीय होते है की दर्द शब्द भी छोटा है उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए......
इस दर्द से निजात मिले बस यही प्रार्थना करती हूँ......
आपके लेखन की जितनी तारीफ की जाये कम होगी इसलिए बस यही कहूँगी-आपको पढ़ते रहने का बहुत दिल करता है......
Behad dard bharee, bhaw bharee kshanikaen Bhaee aur papa wali to laga ki jaise mere hee anubhaw ko aapne shabdon me dhala hai. seedhe dil pe ja lageen.
बरसों ....
आग की चिंगारियों में
जलाया है ज़िस्म
अब .....
झुलस जाते हैं पत्ते भी
मेरे छूने भर से .....
मैडम जी...ये बोर्ड लगा कर रखिए...
सावधान...खतरा...440 वोल्ट...
जय हिंद...
खुदा आपके भाई और ससुर को फैज़ दे......आमीन|
दर्द से रूबरू करवाती रचनाएँ ...
बेहद भावनात्मक
हीर जी,
पूरी कायनात का दर्द
जैसे सिमट गया था धरती में
और धरती ......
कल ही दफ़्न हुई थी
मेरे सीने में ....
पियूष की एक बूंद
लब तक आकर ठहर गई
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
बहुत सुन्दर रचना........
कलम तुम्हारी अच्छी है, दर्द से नाता बुरा, इंतजार है जब तुम्हारी कलम से खुशी के शब्द निकलेंगे, और तेरे दिल के किसी कोने में इक खुशी होगी। दिन मंगलमय हो।
ye libas utarne kee baat kyun?
Bhavanaein behatareen hain
दर्द से भरी रचनाएं। हर शब्द से दर्द बह रहा है।
काश कि इंसान के पास ही इनका इलाज भी होता।
ये मुहब्बत के पत्ते
मेरे आँगन में मत
फेंका कर ....!!
और मैं देखती रही उसे
बूंद से पत्थर होते हुए ......!!
इस सलाईन की लगी बोतल से
पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं
तुम्हारी जर्द आँखों में
आज मैंने बचपन देखा है .....!!
इस पीड़ा दर्द को शब्द देना बड़ा मुशिकल होता, सोच रहा हूँ कितना दर्द महसूस किया होगा इनको लिखते हए ..............
शुभकामनाएँ!!!
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html
कृपया ,
शस्वरं
पर आप सब अवश्य visit करें … और मेरे ब्लॉग के लिए दुआ भी … :)
शस्वरं कल दोपहर बाद से गायब था …
हालांकि आज सवेरे से पुनः नज़र आने लगा है …
लेकिन आज भी बार-बार मेरा ब्लॉग गायब हो'कर उसके स्थान पर कोई अन्य ब्लॉग रिडायरेक्ट हो'कर खुलने लग जाता है …
कोई इस समस्या का उपाय बता सकें तो आभारी रहूंगा ।
हीरजी
आपकी रचनाएं पढ़ने फिर आया था …
आशा है , आदरणीय ताऊजी की तक़्लीफ़ें कम होंगी । परमात्मा से दुआएं हैं …
झूठ .....
कुछ यूँ टँगा रहता है
लोगों की जुबाँ पर
के हर रोज़ उतारती हूँ
ज़िस्म के ....
टुकड़ों के साथ....
चमत्कारिक पंक्तियाँ..........
सभी कवितायेँ काबिले-तारीफ़ हैं!
speechless...
marmsparshi rachnaayen........ dil ko chhune wali.... badhaaiiiiiii...
Aakarshan
हीर जी ,
दुबारा इस विश्वाश के साथ आया हूँ कि आपका दर्द अवश्य कम किया होगा ईश्वर ने |
आपके भाई साहब , पिता जी और ससुर जी को स्वास्थ्य लाभ जरूर मिला होगा |
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
Asha hi ab sab kux normal hoga..!
किस रचना को कम कहूँ - बस तुलसी की पंक्तियों में - "को बड़ छोट कहत अपराधू" - भुत खूब हरकीरत जी.
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वाह बहुत सुंदर
Ki apane ke dard ko mahasoos karte huye hospital ki bhayanak raate jehan me kbhi n bhoolane vali yaad ban jati hai. kavita shayad aise vakt hi aati hai. aur vo kalam Harkirat ji ki ho to fir kya kahane
सुकुंने -दिल के लिए दर्द लाजिमी शै है
इसी को लोग बहुत कम तलाश करते हैं
..सुल्तान अख्तर
क्षणिकाएं क्या हैं, दर्द का मुज्जसमा है , हीर जी ! "जिस तन लागे सो तन जाने " को चरितार्थ करती हुई. इश्वर सब को दुःख से निजात दिलाये !
मोहतरमा
एक बार फिर आपकी नज्मों ने आपका कायल बना दिया.......एक पल कि साँस भी कोई नहीं खरीद सकता ... पर जब तक ज़िंदगी है हर कोई जूझता है इसके लिए ...!!!!!
शनिवार १८-०६-११ को नयी-पुराणी हलचल पर आपकी किसी पोस्ट की है हलचल ...
आइये और शामिल हो जाइये इस हलचल में ...
हरकीरत हीर जी बहुत सुन्दर क्षणिकाएं -दर्द सारा उड़ेल दिया आप ने सब जीवंत हो उठा अस्पताल में भाई -पिता -ससुर असलियत क्या नहीं जानता पर प्रभु सब को इससे उबरे दर्द हर ले
शुक्ल भ्रमर ५
झूठ .....
कुछ यूँ टँगा रहता है
लोगों की जुबाँ पर
के हर रोज़ उतारती हूँ
ज़िस्म के ....
टुकड़ों के साथ ......!!
हृदयस्पर्शी कविताएं।
परिजनों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूं।
"मौत" बहुत अछ्छि लगी.
kya aapki in panktiyon k baad kuchh kah jana baaki rah gaya hai..??
cancer ki pida ko maine bhi kaafi kareeb se dekha h...aapki baat padhte hi mahsoos ho gayi...bas..ab aage kuchh aur nahin...
Harkeerat ji
aaj pahli baar aapke blod par pahunchi , shayad dard se yahin mulakaat karni thi. ek dard hi to hamara hai jo saath saath chalta hai, nibhata hai aur ant mein vahi dawa bhi ban jaata hai. sajeev marmic bimb haqeeqt mein kahin n kahain hum sab ke jeevan ka hissa bante hai...ati sunder aur anokhe saty ko darshate bimb!
हर क्षणिका जीवन के कटु अनुभवों और दर्द से गुज़रती हैं..बहुत भावुक और आँखों को नम कर दिया..हरेक क्षणिका दर्द का प्रतिरूप..सादर शुभकामनायें !
बहुत भावपूर्ण रचना |
आशा
charn ashparsh,
aap hain kidhar ....mahino se koi new post nahi na mili.
tabiyat to thik hai na aapki??
भैया ....बहुत मार्मिक रचना ..हार्दिक शुभकामनायें आपको !
आज अविराम में आपकी क्षणिकायें पढी
Reading this kind of article is worthy .It was easy to understand and well presented.
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bahut khubsoorat rachnayen hain
:)
The pain that you were suffering from God will soon get rid of all the troubles, after such an desire and so much interest Thanks so much for this article.
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