Monday, January 17, 2011

मुहब्बत ....तकदीर ...और कुछ चुप्पियों के बादल .....

()

मुहब्बत ...


उठती लपटें
आग से चुगली खाती हैं
किस उम्र की नज्में
मुहब्बत के गीत लिखें ...?
सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!

()

तकदीर.....

बता....!
इस तकदीर का मैं
क्या करूँ ....?
जो नज्मों के सर चढ़
बोली है ......
लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे
जवानी आई है
इधर देख ,बुर्के की ओट में
किस कदर मौत
मुस्कुराई है .....!!

()

चुप्पियों के बादल .....

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......
गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की .....

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!

()

वक़्त के नाम .....

अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!

()

कब्र .....

तुमने कहा था ...
तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें
सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है
मैं बरसों तुम्हें ...
सड़क के हर छोर पे
तलाशती रही ....
पर तुम कहीं मिले
बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!

78 comments:

सदा said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!

वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम है इन क्षणिकाओं में लाजवाब ..!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

हरकीरत जी, हर नज़्म बेहद उम्दा है,
और ये
अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!
बस...अल्फ़ाज़ तलाश रहे हैं तारीफ़ के लिए.

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय हीर जी
नमस्कार !
बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएं....क्या खूब अंदाज़ है आपका, हर नज़्म दिल को छू गई.

संजय भास्‍कर said...

सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ...।

shikha varshney said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई
एक एक नज़्म काबिले तारीफ है हमें तो शब्द ही नहीं मिलते बयान करने को.

सोमेश सक्सेना said...

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......

बहुत खूब। सारे नज़्म भावपूर्ण हैं।

समयचक्र said...

bahut sundar najm hain ...abhaar

vandana gupta said...

हर नज़्म बेहद गहन और मार्मिक्…………हमेशा की तरह दिल को झंझोड जाती है।

फ़िरदौस ख़ान said...

उठती लपटें
आग से चुगली खाती हैं
किस उम्र की नज्में
मुहब्बत के गीत लिखें ...?
सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!

हर नज़्म बेहद उम्दा...

संजय कुमार चौरसिया said...

आदरणीय हीर जी
नमस्कार !
बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएं....क्या खूब अंदाज़ है आपका, हर नज़्म दिल को छू गई.
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक

विशाल said...

आदरणीय हीरजी, मुझे सबसे अच्छी कब्र लगी. आपको कब्र तो मिल गयी,यहाँ तो कोई निशां ही नहीं मिलता.आपकी कलम को सलाम.

mark rai said...

इधर देख ,बुर्के की ओट में
किस कदर मौत
मुस्कुराई है .....!!
...बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम...

रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......

...लाजवाब ..

आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को ...

एक एक नज्म भावपूर्ण है ...मेरे पास शब्द नहीं मै तो इन नज्मो को पढ़कर ही जीना चाहता हूँ .

Alpana Verma said...

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......

*****बहुत खूब लगी यह नज़्म!

*फिर उदासी.. फिर आँखें पथराई सी लिए सभी नज्में बेहतरीन लगीं.

इस्मत ज़ैदी said...

वक़्त के नाम .....

अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!

बहुत ख़ूब !
और बिल्कुल सच भी !
वाक़ई एक हल्की सी मुस्कुराहट ,एक सरगोशी ,एक नज़र ,एक लह्जा जो काम करता है वो दुनिया की कोई दवा नहीं कर पाती
बहुत उम्दा !

नीरज गोस्वामी said...

वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती

क्या कहूँ ? हरकीरत जी लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे...पढ़ कर स्तब्ध हूँ...सारी नज्में बेहतरीन हैं...पता नहीं कैसे लिख लेती हैं आप ऐसा...वो भी लगातार एक के बाद एक बेहतरीन नज्में...कमाल है...खुदा आपकी गुलाब के फूलों सरीखी कलम को नज्मों की खुशबुओं से हमेशा महकाए रखे...

नीरज

daanish said...

"आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!"
"गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की ....."
"इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!"
"सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है"

लफ़्ज़-लफ़्ज़
सीधे दिल पर असर छोड़ता है ...
मन ,
मना करता है होटों से कुछ कहने को
और खुद
बेकल हो जाता है ... !!

हर नज़्म
शानदार ,,, कामयाब ,,, यादगार
हमेशा की तरह !!!

Kailash Sharma said...

सभी रचनायें बहुत खूबसूरत है और दिल को छू जाती हैं. ये पंक्तियाँ तो कमाल की हैं :
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!

निशब्द कर दिया आपकी प्रस्तुति ने..आभार

रचना दीक्षित said...

हर बार की तरह इस बार भी हर एक नज़्म बेहद खूबसूरती से गढ़ी है हीर जी, कुछ बिम्ब तो अद्भुत हैं दिल को छू जाने वाले:

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......

बधाई स्वीकार करें.

रचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

खूबसूरत शब्द और खूबसूरत चिनाई शब्दों की..

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

वो
रात दिन मशगूल रहती है
घावों के छोरों को तलाशती रहती है
किधर से टाँके लगाने शुरू करूँ ....यह सोचती रहती है
पूरी रात गुज़र जाती है यूँ ही ....
छोर कोई दो-चार या दस-बीस हों तो मिलें भी
यहाँ तो घाव बड़ी बेतरतीबी से फटे हैं
रात भर की मशक्कत से थकी हीर
सुबह उठकर टांग देती है अपनी खामोश पीर
अपने ब्लॉग की खूंटी पर
आते-जाते लोग ठिठकते हैं
देख कर एक नज़र खूंटी की ओर
कहते हैं .....
"उफ़ ! क्या दर्द है ....वाह क्या नज़्म है ....."
"कमाल है हीर ! .....क्या गज़ब लिखती हो ........"
हीर सुनती है ...सिर पे दुपट्टे को खींचती है
और घूम कर चल देती है
हमेशा की तरह ...
ओढ़कर खामोशी की चादर
मुझे अच्छी तरह मालूम है ...
अब वह अन्दर जाकर जार-जार रोयेगी

Dr.Uma Shankar Chaturvedi said...

अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती

दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
आप की रचनाओं में बड़ी पीड़ा हैं। धन्यवाद के साथ कहना चाहूँगा कि -

कई तस्वीर है कविता,

नई तदवीर है कविता,

समेटे दर्द ढेरो सा -

ह्रदय की हीर है कविता।

डॉ टी एस दराल said...

ये सर्द मौसम का असर है या
आपकी खूबसूरत नज़्मों का ।
जिसे देखो
शायराना हुआ जा रहा है ।

वाह , वाह , वाह !
बेहतरीन !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर नज़्म पर जैसे एक आह निकलती है और न जाने कहाँ गहरे में पैठ जाती है ...और मन उन लफ़्ज़ों के आस पास ही भटकता सा रहता है ...हर नज़्म पर दाद क्या दूँ ? दर्द का हिसाब कर रही हूँ ..

रश्मि प्रभा... said...

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......
गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की .....

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!
aur maa ko sunate hue her nazm main bhi chupchaap ho gai hun

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!


हर नज़्म बेहद उम्दा ....काबिले तारीफ ...

mridula pradhan said...

koi shabd hi nahin mil raha hai.wah.

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी लगी सभी रचनायें धन्यवाद

उपेन्द्र नाथ said...

बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई.....हर नज़्म बहुत ही भावपूर्ण.......

प्रवीण पाण्डेय said...

गहन अभिव्यक्तियाँ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

Anonymous said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!

wahh...wahhh.....wahhhhh...!!! kya kahoon, aap kuch kehne layak chodti hi nahin..har baar qatl...too much !

Kunwar Kusumesh said...

आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....

वाह वाह.
जी हाँ,जी हाँ. ऐसे ही तो जन्म होता है कविताओं का.
हीर जी,आप दिल से लिखती है शायद इसीलिए बहुत अच्छा लिखती हैं.

Anonymous said...

हीर जी,

वाह...वाह...वाह..वाह....वाह....वाह....

और क्या कहूँ आप उन चुनिन्दा लोगों में से है जिनके ब्लॉग पर कहने को शब्द ही नहीं रह जाते.....टिप्पणी में शब्दों के माध्यम से मैं सिर्फ अपनी उपस्थिति ही दर्ज करवाता हूँ.......नहीं तो आपकी नज्मों की तारीफ शब्दों में नहीं बंध सकती......उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है|

Ravi Shankar said...

"सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!"

आपकी नज़्मों में तारीफ़ के लायक हिस्से चुनना बड़ी मशक्कत का काम है क्योंकि हर हर्फ़ काबिल-ए-तारीफ़ होता है। नज़्मों का यह गुच्छा भी बहुत उम्दा है। दिल को छूती गयीं सारी नज़्में।

सादर !

surjit said...

very good ji, as always !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई
अति सुन्दर , लाजबाब रचना !

nilesh mathur said...

शब्दों से दर्द टपकता है, ना जाने कहाँ से इतना दर्द आप उड़ेल देती हैं हमेशा ही रचनाओं में, बेहतरीन!

Suman said...

harkirat ji,hamesha apki rachnaye padhkar niruttar ho jati houn.sachmuch bhitar hi koi aag hogi jo is kadar sunder najmonko janm deti hai.........sabse sunder mujhe kabr lagi.......

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

आदरणीया हीर जी ;
आपकी सभी नज्में पूर्व की भांति अपूर्व हैं |
दर्द की अविरल सरिता प्रवाहमान हो रही है ...

'आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज्म को....'
......................................
'कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गयी ..
................................
'अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल '
.......................................
'बस एक सिरे पर ये आज
कब्र मिली है '

बहुत-बहुत आभार !

अरुण चन्द्र रॉय said...

हीर जी आपकी चारो कवितायें अदभुद हैं... आखरी कविता 'कब्र' तो मुझे भी ऐसी सड़क पर ले गई जहाँ मैं इन्तजार किया करता रहा सदियों तक.. इसी तरह 'चुप्पियों के बादल'.. चुप रहकर भी बहुत कुछ बोलते हैं... बेहतरीन कवितायें...

Avinash Chandra said...

'चुप्पियों के बादल' निस्संदेह बहुत असरदार है.

कविता रावत said...

गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की .....

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!
....
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
.....हरकीरत जी! आपकी धारदार नज्में बोलती है.....झकझोरती हैं मन को बहुत .....

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वन्दे मातरम,
एक एक नज़्म काबिले तारीफ है.....आज हमें शब्द नहीं मिल रहे तारीफ करने के लिए |

महेन्‍द्र वर्मा said...

हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ...
गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की ...
कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई ...!!

वाह ,हीर जी, वाह,
हमेशा की तरह मन को मुग्ध कर देने वाली पंक्तियां।
हर नज़्म बेमिसाल।
अमृता प्रीतम जी फिर याद आईं।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँस’

यह छेड चलती रहे और सुंदर गीतों की रफ़्तार बढे:)
बढिया कविताओं के लिए बधाई ‘हीर’ जी॥

'साहिल' said...

पर तुम कहीं न मिले
बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!


कमाल की अभिव्यक्ति है ..........

Meenu Khare said...

कब्र .....

तुमने कहा था ...
तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें
सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है
मैं बरसों तुम्हें ...
सड़क के हर छोर पे
तलाशती रही ....
पर तुम कहीं न मिले
बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!


बेहद उम्दा नज़्म.

Pradeep said...

हरकीरत जी प्रणाम !

"वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती"

वाह.......क्या बात कही है आपने....

Mithilesh dubey said...

एक एक नज़्म काबिले तारीफ , लाजवाब प्रस्तुति ।

वाणी गीत said...

बस एक सिरे पर आज ये कब्र मिली है ...
फिर कोई कमजोर सी दीवार चुपचाप ढह गयी ...

सुन्न कर देती है आपकी क्षणिकाएं !

जयकृष्ण राय तुषार said...

bahut hi gahare bhavarth se saji hui sundar si lajavab se najme.bahut bahut badhai.

neera said...

दर्द फिरसे चांदनी का लिबास पहन कर आया है हर नज़्म में अपना अलग रूप दिखाया है...

Akhil said...

Harkeerat ji,
ek lambe arse ke baad aapko padhne ka saubhagya mila hai aaj...wo hi andaaz-e-bayan hai aapka..bahut bahut khoob..

दिगम्बर नासवा said...

तुमने कहा था ...
तुम आना मैं मिलूँगा तुम्हें
सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है
मैं बरसों तुम्हें ...
सड़क के हर छोर पे
तलाशती रही ....
पर तुम कहीं न मिले
बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!

आपकी नाजन दिल की गराइयों से निकली हुयी चीख की तरह है जिसकी आवाज़ नहीं होती ... बस घाव रह जाता है ... बेहद उम्दा .....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

हीर जी, सादर नमस्कार,
आपको पढ़ना अलग ही एहसासात से रूबरू होना है...
मुहब्बत पढ़कर ज़ेहन में अमृता जी के अलफ़ाज़ झलक आये...

"मेरी आग मुझे मुबारक
की आज सूरज मेरे पास आया
और एक कोयला मांग कर उस ने
अपनी आग सुलगाई है..."

चुप्पियों के बादल/ कब्र/ वक़्त के नाम/ तकदीर... शुभांअल्लाह...
बेहद आभार.

rashmi ravija said...

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई

ख़ूबसूरत क्षणिकाएं...हमेशा की तरह

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

Hir ji,
Aapko padhkar lagata hai jaise ehasaas ke gahre samandar men dub gaye hon.
Itani gaharaai men dub kar likhana sabke bas ki baat nahi hai.
Har kavita men neye vimb aur shabdon ki bunawat ak kashish paida karne me safal hue hain.

Khushdeep Sehgal said...

मत कर हाथों की लकीरों पर इतना भरोसा,
तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते...

जय हिंद...

Sunil Kumar said...

सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!
बहुत ही खूबसूरत .....

दर्शन कौर धनोय said...

हिरजी ,इतना दर्द क्यों हे आपकी नज्मो में !हर नज्म एक से बढकर एक हे | खासकर' कब्र ' ? ऐक शे'र अर्ज हे ---
तडपते अरमान तमाम सिने में दफन है |
हम चलती फिरती लाशें मजारो से कम नही |

Parul kanani said...

aap to umda hain aur rahengi!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

baap re baap....kyaa bolun main....in kavitaaon ne abhi to niruttar kar diyaa hai mujhe....

दर्शन कौर धनोय said...

हीर जी मेरे ब्लोक पर आए !और अपनी अमूल्य राय कविता के रूप में दे |

Anonymous said...

आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!

लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे
जवानी आई है

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़

हरकीरत जी, आपकी नज्में पढ़ कर अमृता प्रीतम जी की रचनाएँ याद आती हैं... उनकी रचनाओं में भावोँ की तल्खी के साथ साथ जो शब्दों का अनोखा सौंदर्य होता है वो आपकी रचनाओं में भी साफ नज़र आता है. " आज फिर भीतर की आग, जन्म देगी, इक नज़्म को .....!!" इतनी सीधी और सुच्ची अभिव्यक्ति... बस सीधे मन पर दस्तक देती है.
मंजु

amit kumar srivastava said...

beautiful configuration,congrats and good wishes.

Ravi Rajbhar said...

wah...wah...wah......aapka kalam padhkar jo mujhe sukha milta hai mai usaka byakhyan nahi kar sakta.

bahut dino baad aane ke liye mazrat chahunga.r

Ashok Vyas said...

बस इतना कि
हमने कुछ अच्छा किया है
इतनी अच्छे नज्में पढ़ने को मिली
इतने सारे अनछुए बिम्ब
और
कसक पर लरजती खूबसूरत संवेदनशीलता

'वो कौन सी जगह हैजहाँ से नज्मों के
फूल खिलते हैं
वाहन के मौसम पर ऊपरवाले का
करम बना रहे'

रवि धवन said...

वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
अहा! बेहद खूबसूरत।

JAGDISH BALI said...

very beautiful.

Suman said...

ajke akhbar me apke bare me chapa hai maine apko is bare me mail kiya hai krupya chek kare...........

हरकीरत ' हीर' said...

सुमन जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया ....
ये चंद खुशियाँ ही तो लिखने का संबल बन जाती हैं ....
अगर ये पत्र भेज सकें तो आभारी रहूंगी .....

hem pandey said...

'बस एक सिरे पे ये आज
कब्र मिली है .....!!'

- कब्र में है

शायद

एक जिन्दा लाश

सीने में हसरतें लिए हुए !

Minakshi Pant said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग मै आई पर हर लफ्ज़ को पढके सिर्फ दर्द का ही एहसास हुआ दोस्त , पर उस दर्द को भी किस खूबसूरती से आपने अपने शब्दों मै पिरोया है हम तो थोड़ी देर के लिए बस खो से गये !

बहुत सुन्दर अंदाज़ है आपका !

Udan Tashtari said...

गज़ब!

दीपक बाबा said...

@लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे
जवानी आई है
इधर देख ,बुर्के की ओट में
किस कदर मौत
मुस्कुराई है .....!!


उफ्फ़ ये मौत की मुस्कराहट ........


@कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!


@मुहब्बत गीत नहीं लिखती


@सड़क की उस हद पे
जहाँ गति खत्म होती है

हरकीरत जी, प्राणाम आपको ...... आपके शब्दों को.... आपकी भावनाओं को.... दिल करता है ....
पहुँच जाऊं उस जगह और बहुत कुछ चुराने को बेकरार रहता हूं. उस जगह पर, ..... - जहाँ से आप चुन चुन कर ये शब्द लाती हैं और पंक्तियाँ बनाती हैं, -


फिर इक वार, प्रणाम जी,

वीना श्रीवास्तव said...

अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती

सभी क्षणिकाएं अच्छी हैं यह बहुत पसंद आई....

ज्योति सिंह said...

Monday, January 17, 2011
मुहब्बत ....तकदीर ...और कुछ चुप्पियों के बादल .....

(१)

मुहब्बत ...

उठती लपटें
आग से चुगली खाती हैं
किस उम्र की नज्में
मुहब्बत के गीत लिखें ...?
सूरज आदतन
फिर छेड़ गया है
ज़िस्म की साँसें
आज फिर भीतर की आग
जन्म देगी
इक नज़्म को .....!!

(२)

तकदीर.....

बता....!
इस तकदीर का मैं
क्या करूँ ....?
जो नज्मों के सर चढ़
बोली है ......
लोग कहते हैं तेरी नज्मों पे
जवानी आई है
इधर देख ,बुर्के की ओट में
किस कदर मौत
मुस्कुराई है .....!!

(३)

चुप्पियों के बादल .....

कुछ चुप्पियों के बादल
आहों के बीज से उगे हैं
दर्द के तिनके एक-एक कर
बनाते हैं घरौंदे छाती में
हसरतों के लफ्ज़
रेत के पानी का तकिया बना
डूब जाना चाहते हैं
समंदर में ......
गुम हुए आँखों के सपने
उदासी से तकते हैं राह
किसी फकीर की .....

कोई कमजोर सी दीवार
फिर चुपचाप ढह गई .....!!

(४)

वक़्त के नाम .....

अय वक़्त ...
अगर बदलना है तो
अपने दिल की हैवानियत बदल
वह मकां बेरौनक होते हैं
जिनकी दीवारों पे
मुहब्बत गीत नहीं लिखती
इक हलकी सी मुस्कराहट भी
पुरअश्क ज़िन्दगी को
उतार जाती है
सलीबों से .....!!
zabardast ,padhkar dimag shoonya sa ho jata hai magar ye shoonya khali nahi hota ,sirf thahra hota hai .gantantra divas ki badhai ,jai hind .

धीरेन्द्र सिंह said...

हरकीरत की नज़्में
गुदगुदाती हैं, कुलबुलाती हैं
आसमान के रंगों में डूबोते
धरती के खुरदुरेपन में भिंगोते
भाव सोचते हैं
विचार उलझते हैं
फिर भी यह मसला
नहीं होता है हल
कि
नज़्में हकीरत के लिए हैं
या
हकीरत नाम है नज़्म का.