Sunday, January 9, 2011

ज़र्द पत्ते ......

()

ज़र्द पत्ता ....
फिर टूटा है अपने कद के
हरे पत्तों के बीच ....
जनवरी महीने का उगता सूरज
दरख्तों के वजूद को
नापने लगा है ...
हवा बड़े एहतियात से
ढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....
पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

()

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....
कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों में
उन पंखुड़ियों में कोई
इबादत छिपी थी ...
वह तुम्हारा वहम ही था
या फिर तुम्हारे अपने आँगन की
महक रही होगी
जो तुमने महसूस की ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

()

दन की मिट्टी ...
फिर कांपी है ठिठुरते
वक़्त के साथ ....
कोई हवा महक लिए गुजरी है
टूटे मकान से ....
कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ....
रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

()

रा ने सुबह के ......
चार चक्कर* काटे, देखा
धूप एक कोने में बैठी थी ...
उसने हौले से उसका हाथ पकड़ा
और बोली .....
बहुत सिहरन होती है
तुम्हारे बिना ....
अलसुब्ह नींद तकती है
तुम्हारी अँगुलियों का मीठा स्पर्श
सहला जाये माथे को कोई
गालों पे रख जाये गर्म सा चुम्बन
दिनभर की ऊर्जा के लिए
कंधे थपथपाकर झाड़ दे
बदन के सारे ज़र्द पत्ते ...
कभी मेरे घर आना
धूप ......!?!

चार चक्कर*- चार फेरे (चार लावां) सिखों के विवाह में चार ही फेरे होते हैं ....

81 comments:

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर, बेहतरीन, आपकी रचनाओं का तो हमेशा हमें इंतज़ार रहता है, और हर बार इंतज़ार का फल मीठा ही होता है!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

हीर जी
नमस्कार !
सतश्रीअकाल !
आदाब अर्ज़ !

"ज़र्द पत्ते ......" शृंखला की चारों नज़्में मन को छू गईं …

अभी बीकानेर में माइनस 2-3 डिग्री सेल्सियस है तापमान । सदी की सर्वाधिक हाड कंपाने वाली सर्द सर्दी में मेरे लिए राहत - से ये शब्द -
कभी मेरे घर आना न
धूप ......!?!

… शुक्रिया !

हार्दिक मंगलकामनाएं !

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

अभी लौट कर आना है इन नज़्मों के लिए फिर से …

Pratibha Katiyar said...

Behtareen!

फ़िरदौस ख़ान said...

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....
कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों में
न उन पंखुड़ियों में कोई
इबादत छिपी थी ...
वह तुम्हारा वहम ही था
या फिर तुम्हारे अपने आँगन की
महक रही होगी ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!



बहुत सुन्दर...
वाक़ई मुहब्बत के पत्ते कभी ज़र्द नहीं होते...

shikha varshney said...

पहली और चौथी रचनाएँ बेहद पसंद आईं .गहरा ख्याल संवेदनशील अभिव्यक्ति.

मनोज कुमार said...

लाजवाब!!

राज भाटिय़ा said...

सभी रचना बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

vedvyathit said...

jrd ptton ka vjood bcha le koi
pyar ko jrd hone se bcha le koi
smjh lo thik se vhi to jnnt hai
jnnt ko bhi jnnt hi bna le koi
behd khoobsoort rchnayen apne kthy v shilp ka poornta se uchchtm nrvhn krte huye
bahut 2 dil se bdhai

प्रवीण पाण्डेय said...

जर्द पत्ते, मन के कितने भावों के गवाह।

amar jeet said...

बेहतरीन रचनाये अब तो शब्द भी कम पड़ने लगे है पढ़ पढ़ कर ............

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

Samandar ki gaharai hai aapki kavitaaon men.
Baar baar padane par bhi ji nahi bharata.
Gyanchand marmagya

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin chitrn or bhtrin alfaazon kaa mishran he yeh rchnaa ismen jzbaat rqs krte hen or alfaaz munh se blote hen bhut khub bhn ji bhut khub mubaark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय हीर जी
नमस्कार !
.गहरा ख्याल संवेदनशील अभिव्यक्ति

ashish said...

भाव आते है , महसूस भी करते है , छटपटाते भी है व्यक्त करने को लेकिन शायद अभिव्यक्ति जर्द पत्ते की तरह साथ छोड़ जाती है . आप तो जर्द पत्ते में भी नज़्म ढूंढ़ लेती हो . अभिव्यक्ति की श्रृंगार है ये नज्मे . आभार .

Kunwar Kusumesh said...

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....
कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों में
न उन पंखुड़ियों में कोई
इबादत छिपी थी ...
वह तुम्हारा वहम ही था
या फिर तुम्हारे अपने आँगन की
महक रही होगी ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

सच मुहब्बत के पत्ते ज़र्द नहीं होते.
सहमत सहमत सहमत.
अरे हाँ हीर जी ,
मुहब्बत के पत्ते तो तुरुप के इक्के होते हैं. हैं न.

palash said...

पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

bahut koob kahaa aapane

डॉ टी एस दराल said...

मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

अति संवेदनशील ।

मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

सही कहा जी ।
लेकिन आपने तो फूल भेजे ।

कभी मेरे घर आना न
धूप ......!?!
मर्मस्पर्शी ।


हमेशा की तरह लाज़वाब क्षणिकाएँ ।

Meenu Khare said...

बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएं.सारे द्रश्य आँखों के सामने जी उठे .नववर्ष की शुभकामनाएं.

हरकीरत ' हीर' said...

आदरणीय दराल जी ,
उन फूलों के साथ पत्ते भी तो थे .....
न भी हों तो कल्पना से रख लें ....

उपेन्द्र नाथ said...

हीर जी , सारी क्षणिकाये. हृदयस्पर्शी, संवेदनशील और गहरे एहसासों से भरी है.... सुंदर प्रस्तुति.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले .....
वाह वाह हरकीरत जी, कमाल है

उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते ...
क्या खूब अंदाज़ है आपका, हर नज़्म दिल को छू गई.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....’

.... और वो जो संख कर किताबों में पड़े हैं :(

रचना दीक्षित said...

चारों नज्में बहुत ही खूबसूरत है. एक से बढ़ कर एक

हवा बड़े एहतियात से
ढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....

मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

या फिर

जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....

या

आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

या

रात ने सुबह के ......
चार चक्कर काटे, देखा
धूप एक कोने में बैठी थी ...

चलिए ये तो इत्मिनान हुआ की मोहब्बत के पत्ते जर्द नहीं होते, बहुत आभार आपके इस साल के पहले तोहफे का.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

कोर्निश ....... आदाब....... ! हुज़ूर नें ज़र्द पत्तों को इसलिए समेट लिया कि किसी के पैरों तले न कुचले जाएँ .......ग़नीमत है पल्लू में नहीं बाँध लिया ....वैसे ज़र्द पत्ते होते हैं बड़े काम के .......खाद बनाके गमले में डाल देना .......फूलों की खुशबू पहले से बेहतर हो जायेगी.......और इन ज़र्द पत्तों में "जैन्थोमिन" भी मिलता है........कैंसर की रोकथाम करते हैं.

Dr Xitija Singh said...

हर नज़्म कमल है हीर जी ... इससे ज्यादा और क्या कहूं ... लाजवाब !!

कडुवासच said...
This comment has been removed by the author.
कडुवासच said...

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ....
कोई रहस्य नहीं था मुट्ठियों में
न उन पंखुड़ियों में कोई
इबादत छिपी थी ...
वह तुम्हारा वहम ही था
या फिर तुम्हारे अपने आँगन की
महक रही होगी ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!
.......... behatreen !!

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत सुन्दर, बेहतरीन, आपकी रचनाओं का तो हमेशा हमें इंतज़ार रहता है, और हर बार इंतज़ार का फल मीठा ही होता है! लाजवाब
सभी रचना बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

Unknown said...

बदन की मिट्टी ...
फिर कांपी है ठिठुरते
वक़्त के साथ ....
कोई हवा महक लिए गुजरी है
टूटे मकान से ....
कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ....
रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

बेहतरीन हर पंक्ति अपने आप में एक पूरी कविता है...बस पढ़ता चला गया ग़ज़ब का विरलता....

Satish Saxena said...

बहुत खूब ...
हार्दिक शुभकामनायें !

deepti sharma said...

bahut khub

mere blog par
"main"
kabhi yha bhi aaye

aapko nav varsh ki shubhkamnaye

दर्शन कौर धनोय said...

हर कीरतजी,सतश्रीअकाल,चारो कविताए लाजबाब है | न.1 किसे कंहू समझ नही पा रही हूँ -----

" मुहब्बत के पत्ते
जर्द नही होते |"

इन पंक्तियों को पढ़कर याद आता है ---
"अब ये भी नही ढीक की हर दर्द मिटा दे -|
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए होते है ||"

सदा said...

मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

बहुत ही भावमय करते शब्‍द ...सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ...।

मुकेश कुमार तिवारी said...

हरकीरत जी,

करीब एक बरस के अर्से बाद आज फिर ब्लॉग जगत में सक्रियता बढ़ा रहा हूँ। और शुरूआत ही
एक बहुत ही खूबसूरत नज्म के साथ हुई, उम्मीद यह साल अच्छा जायेगा :-

आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

बहुत ही गहरी बात है......

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

फ़िरदौस ख़ान said...

हरकीरत जी
पंजाबी अखबारों के लिए अपनी रचनाएं देना चाहें तो संपर्क कर सकती हैं...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

charon najmen marm ko shpars karti..
bhav aur unki abhivyakti lajawab.
'mohabbat ke patte...
jard nahi hote..'
........................
'kabhi mere ghar aana
na dhoop...'
kya kahna!

Anonymous said...

हीर जी,

सुभानाल्लाह.......तारीफ में लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे....ज़र्द पत्ते ...वाह ...वाह...

लफ़्ज़ों का इतना अच्छा चयन तो कोई आपसे सीखे....मुझे पहले वाला सबसे अच्छा लगा........बहुत ही खूब......हैट्स ऑफ टू यू .....

Parul kanani said...

कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ....
mujhe to aapki kalpna shakti par hamesha hairat hoti hai...kya kehoon..

Arvind Jangid said...

गहन अभिव्यक्ति.....आपका आभार.

दिगम्बर नासवा said...

कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ...

Aapki nazmein baha kar le jaati hain kaheen door ... sapnon ki duniya mein ...

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत उम्दा कलाम !


पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

बहुत नर्म सा एह्सास
बहुत बढ़िया !

डॉ टी एस दराल said...

हीर जी , कल्पना का महत्त्व एक कवि/ कवयित्री से बेहतर भला कौन जान सकता है । लेकिन कल्पना में पत्ते क्यों , फूल न सही ।

हरकीरत ' हीर' said...

दराल जी इन ज़र्द पत्तों के साथ उम्र बीत गई ...
अब फूलों से मोह ही नहीं रहा .....
आप सब के कहने पर लिख तो देती हूँ ...पर कलम फिर उसी राह पर चल पड़ती है ...
तो कसूर मेरा नहीं ...इन ज़र्द पत्तों का है ....

Arvind Jangid said...

....................................
"तुमने मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी" नयी पोस्ट पर आपकी टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी. "arvindjangid.blogspot.com"
....................................

Avinash Chandra said...

इक ज़र्द पत्ता ....
फिर टूटा है अपने कद के
हरे पत्तों के बीच ...
=============
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!
==================
रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
================

इन सब के बाद इन पत्तों पर कुछ कहना, ऐसी गुस्ताखी मैं नहीं कर सकता.

और सबसे कमाल...

"कभी मेरे घर आना न
धूप ......!?!"

जबरदस्त!!!

उदासी की भी एक अलग ही खूबसूरती है.
शुक्रिया.

mark rai said...

सुनो.....
जो नववर्ष के फूल
तुम्हें तोहफ़े में भेजे थे
वो महज़ फूल ही थे ..
....बहुत सुन्दर...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हरकीरत जी....क्या कहूँ....मैं....आपके इन गहरे-प्यारे उदगारों पर....नरम-कोमल...गर्म फाहों-सी लगी मुझे आपकी यह कवितायें....सचमुच.....!!

M VERMA said...

मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!

दिल को छू लेती हैं आपकी नज़्में

Anonymous said...

मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!
कितना सुंदर लिखती हैं आप ! आप को देखने को जी चाहता है ! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

Razi Shahab said...

हीर जी मैं जब भी आपकी कविताएं पढ़ता हूं खो जाता हूं, दुआ कीजिए मैं भी आप की तरह लिख पाउं, कोशिश करता हूं मगर हर बार कुछ कमी सी महसूस होती है मुझे अपनी रचनाओं में...अगर हो सके तो मेरे ब्लाग पर आ कर कुछ सलाह दीजिएगा.. ताकि मेरा क़लम भी जवान हो जाए और उसके अन्दर भी ज़ोर आ जाए...आपका आभारी रहूंगा...

अरुण अवध said...

आप बहुत खूबसूरत लिखती हैं !
एक साथ कई नज्मो पर एक साथ टिप्पणी करना मुश्किल है !
फिर इतनी अच्छी नज्मों पर जिन पर अच्छी से अच्छी
टिप्पणी भी बौनी लगती हो ! फिर भी --
बेहद उम्दा लेखन !बहुत बधाई !

Anonymous said...

bohot bohot hi khoobsurat hain saari nazmein.....amazing. kahan tak koi tareef kare, mindblowing likna to aapki aadat hai....bas itna hi keh sakte hain, kaas kisi din is level tak pahunch paaun :)

Creative Manch said...

"उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!"

सभी नज़्म बेहद दिलकश व सुन्दर हैं
बधाई
आभार

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत ही सुंदर ... और आप कैसी हैं? मैं आपकी सारी छूटी हुई पोस्ट्स इत्मीनान से पढ़ कर दोबारा आता हूँ...

Patali-The-Village said...

गहन अभिव्यक्ति.....आपका आभार.

Kunwar Kusumesh said...

लोहड़ी तथा मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

हरकीरत हीर जी

आपको सपरिवार


~*~लोहड़ी की हार्दिक बधाई ! शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !~*~


¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤


शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ज़र्द पत्ते पर अंतर्मन के भाव..... बहुत खूब.....

Sunil Kumar said...

सारी क्षणिकाये. संवेदनशील और एहसासों से भरी है.... सुंदर प्रस्तुति.

केवल राम said...

जो तुमने महसूस की ....
उन पत्तियों को गौर से देखना
मोहब्बत के पत्ते ....
ज़र्द नहीं होते .....!!
बार बार पढने के बाद एक ही निष्कर्ष निकला ..
मैं चुप रहूँ
कुछ न कहूँ
मोहब्बत में एहसास ..रखते हैं बहुत मायने
बस महसूस करूँ ..करता रहूँ ...
शुक्रिया ..आपका

Dr.Uma Shankar Chaturvedi said...

बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद

Suman said...

bahut sunder. jitni bhi tariff karun kam hai.....

दर्शन कौर धनोय said...

हरकीरतजी ,सबसे पहले तो आप और आपके सारे परिवार नु 'लोहड़ी ' की लख -लख बधाईया होवे जी | नवे साल मे आपके जीवन के सारे ' जर्द- पत्ते ' खुशबूदार फूलो मे बदल जाए --यही अरदास है वाहेगुरु से -- सतश्री अकाल |

वन्दना अवस्थी दुबे said...

हवा बड़े एहतियात से
ढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....
पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ..
बहुत सुन्दर क्षणिकायें है हरकीरत जी. बहुत सधी हुई क्षणिकाएं होती हैं आपकी. बधाई.

विनोद कुमार पांडेय said...

हरकिरत जी, लाजवाब लिखना कोई आप से सीखे..भावनाओं का जो प्रवाह आप अपने कविता को देती है ..किसी और के लिए असंभव है..लेखनी ज़िंदाबाद..बढ़िया रचना के लिए बधाई

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

ultimateeeeeeeeeee

सु-मन (Suman Kapoor) said...

heer ji
aapka lekhan hat kar hai ...
bahut khoob ....

प्रदीप कांत said...

इक ज़र्द पत्ता ....
फिर टूटा है अपने कद के
हरे पत्तों के बीच ....
जनवरी महीने का उगता सूरज
दरख्तों के वजूद को
नापने लगा है ...
हवा बड़े एहतियात से
ढूंढ लेती है ज़र्द पत्ते ....
पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!
_______________________


ज़र्द पत्तों की इतनी फिक्र ....

इससे गहन संवेदना क्या हो सकती है?

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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

देर से आना हुआ ...

ज़र्द पत्तों ने बहुत कुछ कहा ...मन अभी भी इनमें ही भटक रहा है ...हर नज़्म अलग अंदाज़ लिए हुए ...बहुत खूबसूरत

جسوندر سنگھ JASWINDER SINGH said...

मन की सम्वेदना निकलती है
कभी जर्द पत्तों का सहारा ले कर
कभी टूटे पत्ते की जगह
सिम्ते पानी को महसूस कर के
कुछ अछा लगता है तो .....
जब टूटे पत्ते की जगह
नई कोम्पले फूटती हैं

विशाल said...

आदरणीय हीर जी ,चाहे ज़र्द पत्तों के बारे लिखे चाहे हरे पत्तों के बारे में, चाहे फूलों की बात करे या पत्तों की,बस लिखते रहिये.आप की कलम में जादू है.मैंने आपको पहली बार पढ़ा है.और कोशिश करूँगा आप की पूरी पोस्ट पढ़ डालूं .अल्लाह करे जोरे कलम और ज्यादा हो

pallavi trivedi said...

बदन की मिट्टी ...
फिर कांपी है ठिठुरते
वक़्त के साथ ....
कोई हवा महक लिए गुजरी है
टूटे मकान से ....
कोई चुपके से पोंछ गया है
नज़्म की आँखों से
दुखते शब्द ....
रात कैद की रस्सियाँ
सहलाने लगी है ....
आज मुस्कराहट
रात भर रोएगी
ज़र्द पत्तों के साथ .....!!

kya baat hai...regular aana nahi ho papa aapke blog par lekin jab bhi aati hoon kuch behatreen padhkar jati hoon.

सुभाष नीरव said...

हीर जी, आपके ब्लॉग पर आकर और आपकी कविताएं पढ़कर कभी नहीं लगता कि समय बर्बाद क्या। कुछ न कुछ हासिल ही होता है। बेहद सुन्दर भावपूर्ण कविताएं लगीं इस बार भी !

संदीप said...

लाजवाब!!

संदीप said...
This comment has been removed by the author.
Kailash Sharma said...

पिछले वर्ष भी देखा था इनकी
डरी-सहमी आँखों में
रौंदे जाने का खौफ़ ....
मैं हौले से समेट कर इन्हें
एक तरफ कर देती हूँ
किसी के पैरों तले
कुचलने से पहले ......!!

कितने मर्मस्पर्शी अहसास और उनकी खूबसूरत अभिव्यक्ति. सभी नज्में दिल को छू लेती हैं..बहुत सुन्दर. आभार

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सर्दियों में लिखी यह रचना दिल को छु रही है बेहतरीन रचनाएं... आज चर्चामंच पर आपकी ये रचनाये रखी है और ब्लॉग भी ... आपका आभार ..


http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_21.html

रजनीश तिवारी said...

जर्द पत्तों पर बहुत से भाव दिखे ...सुंदर और बेहतरीन ... धन्यवाद ! एवं शुभकामनाएँ

अनुभूति said...

शब्दों से भी सुन्दर ...मन स्पर्शी कोमल रचनाएँ...ढेर सारी शुभकामनाएं एवं अभिनन्दन !!!!

अनुभूति said...

डॉक्टर नूतन जी !!! कविताओं के इस सुन्दर भावुक संसार में ले जाने के लिए आपका कोटि कोटि अभिनन्दन .....