आज मन बहुत उदास है ....पोस्ट डालने का मन भी न था ...पर लगा कि आप सब इंतजार में होंगे ... पहली दो नज्में पंजाबी में लिखी थीं जिसका यहाँ हिंदी अनुवाद है .....और बाकी कुछ उदास मन की अभिव्यक्ति ....शायद इस बार मैं सबके ब्लॉग पे न आ पाऊँ .....
आखिरी हँसी ......
कविता ने ...
उसकी ओर आखिरी बार
हसरत भरी आँखों से देखा
नीम-गुलाबी होंठ फड़फड़ाये
अश्कों से भरी पलकें ऊपर उठीं
और धीमें से मुस्कुराकर बोली ......
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!
(२)
मिलन .....
मुहब्बत से भरी
इक नज़्म .....
इश्क़ के कलीरे* बांधे
हौले-हौले सीढियां उतर
तारों की राह चल पड़ी ....
खौफज़दा रात ....
कोयलों पर पानी
डालती रही .....!!
कलीरे -सूखे नारियल और कौड़ियों से से बने कलीरे जो शादी के वक़्त लड़की को कलाइयों में बांधे जाते हैं
(३)
जिब्ह होते सपने .....
इक खामोश शमा
चुपचाप जलती है
मैं पलटकर ....
आईने में देखती हूँ
चेहरे पर सूखे गजरे की
झड़ती पत्तियों की सी
वीरानी है .......
जिब्ह होते सपनों का
आर्त्तनाद है ......
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!
(४)
अतिक्रम .....
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिस है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
(५)
कब्र का सच ....
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
Sunday, December 19, 2010
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79 comments:
सभी क्षणिकाएं लाज़वाब हैं। दर्दनाक।
इसके कहने का अंदाज काफी प्रभावशाली व मारक है..
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
...बहुत बधाई।
subhan-allah..
ओह! बेहद दर्द भरी हैं नज्म। ह्रदय की पीड़ा का शब्दों से वर्णन करना कोई आपसे सीखे।
वैसे उदासी भी एक रंग है, पर ज्यादा दिन रहना ठीक नहीं।
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
ओह ! किस ज़ालिम ने ये ज़ुल्म किया है ।
इतनी बेबाक रचना दर्द भरे दिल से ही निकल सकती है ।
फिलहाल हम तो क्षणिकाओं के दर्द में डूबे गोते लगा रहे हैं ।
बेहद प्रभावशाली रचनाएँ हैं हरकीरत जी ।
सुंदर ओर लाजवाब जी, दर्द हमेसा की तरह से झलकता हे, धन्यवाद
अतिक्रम और कब्र का सच
या लबालब औरत का दर्द ..
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
एक औरत के भय को क्या खूब जुबां दी है ...
सभी नज्में उदासी और दर्द में डूबी ...
चलो ...ये भी जीवन का एक रंग है ....!
"हीर"
हरकीरत जी
आज कहने को जी हो रहा है …
क्यूं उदासी की तस्वीर बन कर खड़े
ग़म उठाने को दुनिया में हम जो पड़े …
आपकी कविताओं तक तब पहुंचूं , जब भूमिका से निकल सकूं …
मौसम इधर भी अधिक ख़ुशगवार नहीं … स्वास्थ्य सम्हाले रहें, कृपया !
कविताएं बहुत प्रभाव छोड़ने वाली हैं , लेकिन अब प्रभाव हमें नहीं छोड़ने वाला … :)
फिर आऊंगा अभी …
अभी का मतलब अभी नहीं , एक-दो दिन में …
ख़ुश रहो, हर ख़ुशी है तुम्हारे लिए …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रभावशाली रचना ! पीड़ा शदों में घुल सी गयी है...
आपको साधुवाद.
kaafi muddat baad internet kaa saath milaa hai...
yaaad kar rahe hain...ki kahaan par chhodi thi blogging...
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....
shaayad aisaa hi hai...
हरकीरत जी ,
किस रचना की बात की जाए और किसे छोड़ा जाए ??????बहुत कठिन है किसी एक को चुनना ,
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति,"अतिक्रम" विशेष रूप से बहुत हृदय्स्पर्शी है
arey...kya hua...inni udaas kyun, chalo cheer up please....smile........dekho dekho dekho...smile aa rahi hai.... :)....haan, thodi aur... :D hmmm, thats better ;)
bohot bohot pyaari nazmein hain....kitne kamaal ke thoughts hain, ekdum naye. raat koylon par paani daalti rahi...wahhh....!!!
सुंदर ओर लाजवाब
बेहद प्रभावशाली रचनाएँ हैं हरकीरत जी
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
..............................
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
gun rahi hun, ek kabra meri soch me aur kalam mere haath me
मिलन तबाह होता है.....
जिबह होते सपनों के बीच.
और
अपनी ही मौत की तारिख..
लिखते लिखते
जो आखिरी हंसी दिल
से निकलती है..
उस दर्द को बखूबी उकेरा है आपने.....
हमेशा की तरह बेहतरीन
हरकीरत जी ,
आपकी कविताएँ मन को गहराई से छू गयीं !
ऐसी ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं कि पाठक सोचने पर विवस हो जाता है.जैसे-
"मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!"
और-
"इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!"
आभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!
sach me aisa hai kya...
harkeerat jee.......
please aap jo bhi likhennn
man ko to hara bhara rakhen...:)
god bless mam!!
अजब सी गहराई लिये होती हैं आपकी शब्द-संरचना।
हीर जी, सारी क्षणिकाये बहुत ही सुंदर और मार्मिक पीड़ा को व्यक्त कर रही है............ गहरे भावों से भरी हुई......
कविता ने ...
उसकी ओर आखिरी बार
हसरत भरी आँखों से ताका
नीम-गुलाबी होंठ फड़फड़ाये
अश्कों से भरी पलकें ऊपर उठीं
और धीमें से मुस्कुराकर बोली ......
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ....jisne aakhiri hansi ko sanjo liya , uske shabd dharti se jude hain
har nazm lajawab...
'jab tak ..
tumhare hathon me
jaal hain,pinjare hain,machis hai
main samundr me rahoon ya gharon me
rahoongi to tumhare
khauf tale...!!
kya kahna!
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
क्या लिख डाला है....उदासी ऐसी तीक्ष्ण कविताएँ लिखवा डालती है??...गज़ब के भाव हैं..आपकी कविता में
फिर भी दुआ करुँगी...आप इस उदासी से जल्दी ही निक आएँ...हँसे मुस्कुराएँ और जीवन से भरा कोई गीत गुनगुनाएं
आदरणीय हरकीरत हीर जी
नमस्कार !
..........सभी क्षणिकाएं लाज़वाब हैं।
भीतर बैठी उदासिया जब वजूद को ढकने लगे ...तो खुशियों के लिए खिड़की खोल देनी चाहिए ......
बेहद प्रभावशाली रचनाएँ हैं|धन्यवाद|
हर कीरत हीर जी ,आप की कविताओं से गुजरा हूँ लगता है गहन एकांकी संवेदना के सागर से गुजरा हूँ ,.अपने आप को तलाशती ये कवितायें बहुत मार्मिक हैं .आप ने जिस कदर इनको तराशा है उसमें भावनाओं का प्रबल आवेग है .बधाई
कविता ने ...
उसकी ओर आखिरी बार
हसरत भरी आँखों से ताका
नीम-गुलाबी होंठ फड़फड़ाये
अश्कों से भरी पलकें ऊपर उठीं
और धीमें से मुस्कुराकर बोली ......
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!
बेहद भावपूर्ण रचना है...
दर्द का हर आयाम प्रस्तुत कर रही हैं……………हर रचना एक अलग ही हाल बयाँ कर रही है।
‘रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!’
इस तारीकी की वजह :(
अरे!! इतनी उदास क्यों हैं?
adbhut kalam se likhi behatreen najmen badhai with regards
Sunday, December 19, 2010
आखिरी हँसी ...जिब्ह होते सपने.... और कब्र का सच .......
आज मन बहुत उदास है ....पोस्ट डालने का मन भी न था ...पर लगा कि आप सब इंतजार में होंगे ... पहली दो नज्में पंजाबी में लिखी थीं जिसका यहाँ हिंदी अनुवाद है .....और बाकी कुछ उदास मन की अभिव्यक्ति ....शायद इस बार मैं सबके ब्लॉग पे न आ पाऊँ .....
आखिरी हँसी ......
कविता ने ...
उसकी ओर आखिरी बार
हसरत भरी आँखों से देखा
नीम-गुलाबी होंठ फड़फड़ाये
अश्कों से भरी पलकें ऊपर उठीं
और धीमें से मुस्कुराकर बोली ......
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!
(२)
मिलन .....
नज़्म ने ...
इश्क़ के कलीरे* बांधे
और हौले से सीढियां उतर
तारों के घर की ओर
चल पड़ी ........
रात खौफज़दा सी ...
कोयलों पर पानी
डालती रही .....!!
कलीरे -सूखे नारियल और कौड़ियों से से बने कलीरे जो शादी के वक़्त लड़की को कलाइयों में बांधे जाते हैं
(३)
जिब्ह होते सपने .....
इक खामोश शमा
चुपचाप जलती है
मैं पलटकर ....
आईने में देखती हूँ
चेहरे पर सूखे गजरे की
झड़ती पत्तियों की सी
वीरानी है .......
जिब्ह होते सपनों का
आर्त्तनाद है ......
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!
(४)
अतिक्रम .....
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!off kya bhav hai........
aapka nadaze baya...gazab dha jata hai .
meree nayee poem kisee ke bhee blogs par update nahee ho paee hai ...lagta hai system naraz hai.
ek sach ----
skht htheli pe kudrt ki do cheer hai ik jindgi ki ik mout ki
maine jindgi ki cheer ko klm se ghra rng diya
mout ne hs ke kha teri syhi fiki hai .
to btao hrkeerat ji kya hsna chhod de , nhi na ! to aao kuchh khushnuma phool khilaye our use fiza me bikher de .udasi khud b khud chht jayegi .
बहुत दर्द है आपकी रचनाओ में एक एक शब्द जैसे अपने आप में दर्द को समेटे हुए
‘रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!’
शब्द नहीं है कहने को ............
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
mahino bad aaj blog jagat se juda aur sabse pahle aap ke blog par aya aur phir padhata hi raha.....
dard ki itni sunder abhiyakti!!!!
bahutkhoob!
आपकी रचनाएँ सीधे दिल पर असर करती हैं और इनकी प्रशंशा के लिए मुझे कभी लफ्ज़ नहीं मिल पाते...जो दिल कहता है वो लफ्ज़ कहने में ना काफी रहते हैं...कमाल लिखती हैं...
नीरज
... sundar rachanaayen ... prasanshaneey !!!
ओह ! कितनी दर्दभरी नज़्मे है सभी ....हर एक बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है
हर क्षणिका उत्कृष्ट है और वेदना छलक रही है . कई बार मेरे शब्द नहीं होते है आपकी रचना के बारे कुछ कहने के लिए .आज भी ऐसा ही है .
heer ji,aap apne najmome itna dard kanha se lati hai? padhte vakt palabhar ko man vahi par taharsa jata hai. bahut gaharai hai maturity hai rachnavonme baar baar pdhne ko man chahata hai.yek sukun sa milta hai..............
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!
क्या बात है ...बहुत ही नाजुक सा ख्याल आपने
जिसे शब्दों में ढाल दिया है पंक्ति बना के ..लाजवाब ...।
लाजवाब, सिर्फ एक शब्द लाजवाब
सभी नज्में बहुत मार्मिक सी ....
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
यह कैसा समाज है ....सोचने पर विवश करती हुयी सारी नज्में ... ..
sabki sab bemisaal hain.
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
aur
चेहरे पर सूखे गजरे की
झड़ती पत्तियों की सी
वीरानी है .......
जिब्ह होते सपनों का
आर्त्तनाद है ......
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!
....man mein ek hook see uthti hai aapki rachnaon ko padhkar...
dard ka gahra rishta hai aapki rachnaon mein...
प्रभावशाली रचनायें...
बहुत खूब हरकीरत जी… छोटी मगर बहुत प्रभावशाली कविताएं…
अंदाज-ए-बयाँ कुछ और है … अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर! बेहतरीन!!!
1
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
2
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
बहुत ही असरदार क्षणिकाएं हैं ..दाद कुबूल फरमाएं..
पर जिन्दगी की राहें बेहद पेचीदा हैं..आशा है निराशा भी है..नाउम्मीदी हैं तो उम्मीदों के दराचे भी हैं..
आप अल्फाज़ के जरिये जो तस्वीरे गढ़ रही हैं... लाजवाब हैं..कुर्बान..
सुन्दर.......
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
Very good expression and very true too !
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
बड़े गूढ़ अर्थ छुपे होते हैं आपकी क्षणिकाओं में
bahut badiya..
Please visit my blog..
Lyrics Mantra
हीर जी, सादर नमस्कार...
यहाँ आने से पहले कुछ गुनगुना रहा था...
"अजीब सा एहसास है, बिना वजह.
शाम कुछ उदास है बिना वजह."
आपके ब्लॉग में ऐसे ही उदास लम्हों से मुलाक़ात हो गयी..
अद्भुत अभिव्यक्ति हैं. सभी..... और
"अतिक्रम" ने तो अपने अथाह आगोश में ले लिया है मुझे...
सादर.
हीर जी, सारी क्षणिकाये बहुत ही सुंदर और मार्मिक पीड़ा को व्यक्त कर रही है..,"अतिक्रम" विशेष रूप से बहुत हृदय्स्पर्शी...
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
सभी क्षणिकाएं सुंदर....कम शब्दों में लाजवाब अभिव्यक्ति
हीर जी,
सारी रचनाएँ लाजवाब हैं.......हमेशा की तरह......आपने अपने हिस्से के दुःख को आत्मसात कर लिया है.......पर उस महासुख का क्या होगा?.......जो आपके भीतर है और बाहर आने को आतुर है......एक दीवार है दुःख की जिसकी नीव खुद आपने ही रख रखी है.......खुदा आपको हर बाला से महफूज़ रखे......आपकी हसरत को पूरा करें......आमीन
Merry Christmas
hope this christmas will bring happiness for you and your family.
Lyrics Mantra
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख ....!!
ओह, दिल की अनंत गहराइयों से निकले ये शब्द...
ये शब्द नहीं, मोती हैं जो भावनाओं की माला में नज़ाकत से पिरोए गए हैं।
आपको पढ़ते हुए अमृता प्रीतम के नज़्मों की याद आ जाती है।
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिश है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
xxxxxxxxxxxxxxxxx
आदरणीय हरकीरत हीर जी
नमस्कार
सभी क्षणिकाएं बहुत अर्थपूर्ण हैं ...जीवन की विसंगतियां इन में उभर कर सामने आई हैं ....और खौफ के साये में रहना ....जिन्दगी की सच्चाई ...और मानसिक द्वंद्व को सामने लाता है....शुक्रिया
आज तेरे घर.......
ज़िन्दगी की आखिरी हँसी
हँस चली हूँ ...... !!
....खुदा न करे .........
मन किसी
गुमसुदा व्यक्ति की तरह
औंधा पड़ा है ....!!
.... ' ' मन की बात ........
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
............ ? ? ...........
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
........ जीभ बाहर निकल आती है ....
......कार में लटकी गुड्डी की तरह.......
रचनाएं पढने के बाद
कुछ पल तो शून्य-सा हो गया
क्या लिख गया ,, ये पढ़ कर ही एहसास हुआ
फिर ज़रा देर बाद लगा कि
सांझ जी सामने हैं और आप धीरे धीरे
उनकी बात माने चली जा रही हैं ......
ज़रूरी भी है ,,,,
दरालजी का सवाल ,
और
स्वरणकार जी का प्रोत्साहन भी तो साथ है
हरकीरत जी आपकी सारी कवितायें बेहतरीन हैं.. मुझे खुद पर खीझ हो रही है की अब तक इतनी अच्छी कविताओं और ब्लॉग से दूर रहा...
खैर.. अब इस ब्लॉग पर नियमित आता रहूँगा..
बधाई एवं आभार
इक अजीब सी
उन्मत्त कामना लिए
मैं अनिमेष सी
अपनी ही कब्र पर बैठी
रातभर लिखती रही
अपनी मृत्यु की
तारीख .....!!
सभी क्षणिकाएं लाज़वाब हैं, बधाई
बहुत ही सुंदर.
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
हरकीरत जी ! मैं जा नहीं पा रहा हूँ यहाँ से ...विषाद तो ठीक है ......पर ये आखिरी हंसी मुझे परेशान कर रही है .....जरा देखिये तो कितने लोग हैं ज़ो आपको बे-इन्तेहा प्यार करते हैं ..........आप अब व्यक्ति नहीं रहीं .....समष्टि की आशा हो गयी हैं .......कई लोग आपकी नज्मों में अपने आप को पाते हैं...आप उन सबका प्रतिनिधित्व कर रही हैं ......हम यह भी आशा करते हैं कि आप फूलों और चिड़ियों के गानों की भी बात करेंगी ......हम सब बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं ...एक ऐसी रचना के साथ ...जैसे कि बादलों के पीछे से अभी-अभी चाँद झांक कर मुस्कुरा रहा हो .प्लीज़ ! zldee से bahr aiye.
इतनी अच्छी क्षणिकाओं के लिए सबसे पहले आभार कह दूँ.
सभी इतनी ख़ूबसूरत हैं, किसी एक-दो को चुना नहीं जा सकता.
"कलीरे" का नायब इस्तेमाल बहुत भाया.
माचिस ही है या 'माचिश' का भी कोई मतलब होता है.
फिर से शुक्रिया
अविनाश जी गलती सुधार दी गई है .....
शुक्रिया ......
उम्मीद है आगे भी ध्यान दिलाते रहेंगे .....
शंका का समाधान करने के लिए आपका धन्यवाद।
आप को नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
आने बाला बर्ष आप के जीवन में नयी उमंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप परिवार सहित स्वस्थ्य रहें एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे !
नवबर्ष की शुभ-कामनाओं सहित
संजय कुमार चौरसिया
naye varsh ki anek shubh kamnaye.............
बढ़िया प्रस्तुती।बहुत सुन्दर!!
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जब तक ...
तुम्हारे हाथों में
जाल है , पिंजरे हैं , माचिस है
मैं समुन्द्र में रहूँ या घरों में ...
रहूंगी तो तुम्हारे
खौफ़ तले .....!!
आज पहली बार आपकी रचनाएँ पढ़ी, सब एक से बढ़ कर एक हैं, बहुत अफ़सोस हो रहा है खुद पर कि अब तक कैसे मै अन्जान रह गयी इस खजाने से.
एक एक शब्द ,एक एक भाव सीधे दिल पर दस्तक देता है.
मंजु
Lost for words... Amazing
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