Monday, October 18, 2010

तहज़ीब....पुकार....और तबशीर ......

ख्मी जुबाँ बहुत कुछ कहना चाहती थी ...पर कलम ने मुँह फेर लिया ...इस बीच मन में कई चूडियाँ टूटीं ....कई पन्ने लिखे और फाड़े .....मित्रों ने सलाह दी कमजोर बनूँ .....मैंने सारे पत्थर चुन कर रख लिए ....वैसे भी अब इन पत्थरों से इमारत बनने वाली है ....ज़िन्दगी की चादर है ही कितनी ...? रात परिंदे की सी कैद में कट जाएगी और सुब्ह दुआ मांगते ....पर ये लफ्ज़ हमारे पास वैसे ही जिंदा रहेंगे जितने कसैले हम बोयेगें ....
पहली नज़्म उन्हीं लफ़्ज़ों के नाम ...और फिर कुछ उदास आवाजों में मुहब्बत के नाम .....


()

तहज़ीब ....

जी चाहता है
इस मिट्टी की
सारी ख़ामोशी चुरा लूँ
और ओढ़ लूँ
किसी ताबूत में बैठ ...
यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं
मेरे हाथों में .....
और इसलिए भी कि ....
इनके पीछे छिपी हैं
दो गहरी उदास आँखें
जो मेरी सोच को
और पुख्ता करती हैं
मुझ से न्याय मांगती हैं
हो सके तो कभी .....
उन
आँखों से दो बूंद
आँसू
बहने देना .....!!

()

फूल.....

काले लिबास में
कोई फ़कीर इक
गजरे का फूल ...
डाल गया है झोली में
पनीली आँखों में
फिर तेरा ख्याल उतरा है
सोचती हूँ ....
अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!

()

इक बार ....

जानती हूँ ....
तुम्हारे मंदिर में
अब जगह नहीं है मेरी
फिर भी जाने क्यों
ये सूरज ज़िस्म की डोर
खींचे लिए जाता है ...
लिखने दे इक बार ख़त मुझे
गुलाब की पत्तियों से
के मौत ने आज जरा सा
घूँघट उतारा है ......!!

()

पुकार .....

हवा....
ढ़ नाची है
पत्तियों पे आज
रंग कोई सुर्ख सा
उसने चुराया है ...
ख्वाहिशें रंगसाज से
रंगवा लाई हैं दुपट्टा मेरा
ख्वाबों ने रातों में
फिर मोहब्बत को
पुकारा है .....!!

()

कोई तो दे तबशीर ....

फिर
गिरी है दुआ ...
आज फिर हाथ उठा है
रात कपड़े उतारे बैठी है
फासले गर्द से भरे हैं
अय खुदा...!
कोई तो तबशीर दे मुझे
के आज मुहब्बत
अपनी हथेली फैला
खूब रोई है .....!!

तबशीर- शुभ सुचना

91 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

सुभानअल्लाह !


… … … …
… … … … …

केवल राम said...

वाह क्या बात है ,
जिन भावों को आपने इन शब्दों मैं पिरोया है ,उनके द्वारा कमाल के अर्थ संप्रेषित हुए हैं .

प्रवीण पाण्डेय said...

सोचने को प्रेरित करती हर रचना।

Anonymous said...

आपकी नज्मों में जो दर्द होता है, वो इनकी खूबसूरती को कई गुना बढा देता है...सारी नज़्म एक पर एक...
बधाई स्वीकार करें...
मेरी भी दो पोस्ट पर नज़र डालें...

ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना ....

सुनहरी यादें ....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

जी चाहता है
इस मिट्टी की
सारी ख़ामोशी चुरा लूँ
और ओढ़ लूँ
किसी ताबूत में बैठ ...
यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
बहुत सुन्दर. हरकीरत जी, बहुत सुन्दर टेम्पलेट है आपका, लेकिन इसका काला रंग अक्षरों के साथ आंख-मिचौली खेलने को मजबूर करता है, या फिर मेरी आंखें ही.....

रचना दीक्षित said...

एक एक बात दिल के दर्द को और बढ़ाती है और दिल में कहीं गहरे उतर जाती है

Amit Chandra said...

हर बार की तरह इस बार भी सारी कविताएं एक से बढ.कर एक।
आपकी रचना इतनी प्यारी होती है कि मैने आपका ब्लाग फॉलो कर लिया है।

palash said...

आपकी रचनाओं ने मेरी सोच को इक नयी दिशा दे दी
जिन्दगी के इक और पहलू से मेरी गुफ्तगू कर दी
किस तरह शुक्रिया कहे समझ नही आता
आपकी नजमों ने हमे रोशनी की मशाल दिखा दी

उस्ताद जी said...

7.5/10


नज़्म पढ़कर तारीफ़ के लिए कई शब्द जहन में आये फिर यह सोच के रह गया कि ये काम तो बाकी लोग कर ही देंगे.
जो लोग नज़्म लिखना चाहते हैं या पसंद करते हैं, उन सभी को ये पोस्ट जरूर पढनी चाहिए.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं...
हर नज़्म बहुत उम्दा लगी...
हरकीरत जी,
बस आप ऐसे ही लिखती रहें...
हमें आपके ब्लॉग पर आकर हर बार बहुत अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलती हैं.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हर विचारणीय और सधा हुआ .... बहुत सुंदर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हर शब्द ...

रानीविशाल said...

वैसे तो हर बार ही आपको पढ़ कर.... बार बार पढ़ने को जी चाहता है लेकिन आज है कि कई बार पढ़ कर भी कशिश पहली बार सी ही है .....इतने भाव इतना दर्द कहाँ से ले आती है आप !!
अगर ईमानदारी से कमेन्ट करने बैठू तो हर एक क्षणिका पर अलग अलग एक एक पेज के कमेन्ट करना होंगे मुझे .....हर क्षणिका अपने आप में बेशकीमती है लेकिन तहज़ीब और फूल ने बड़ा गहरा प्रभाव डाला मुझ पर ......आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
और हाँ समय निकल कर यहाँ भी मिलिएगा अनुष्का से
अनुष्का

Apanatva said...

la jawab..............

Asha Joglekar said...

Har bar kee tarah behatareen kawitaen. par meri priy hai ye.
रंग कोई सुर्ख सा
उसने चुराया है ...
ख्वाहिशें रंगसाज से
रंगवा लाई हैं दुपट्टा मेरा
ख्वाबों ने रातों में
फिर मोहब्बत को
पुकारा है .....!!

M VERMA said...

अय खुदा...!
कोई तो तबशीर दे मुझे
के आज मुहब्बत
अपनी हथेली फैला
खूब रोई है .....!!
सुन्दर और शानदार रचनाएँ. विस्तृत कैनवास पर दर्द की लकीर जैसी ..

Coral said...

जख्मी जुबाँ बहुत कुछ कहना चाहती थी ...
पर कलम ने मुँह फेर लिया


बेहतरीन ........

इस्मत ज़ैदी said...

यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं
मेरे हाथों में .....
और इसलिए भी कि ....
इनके पीछे छिपी हैं
दो जोड़ी उदास आँखें
जो मेरी सोच को
और पुख्ता करती हैं
मुझ से न्याय मांगती हैं

क्या बात है हरकीरत जी ,
आप नज़्म के साथ हमेशा ही न्याय करती हैं

संजय कुमार चौरसिया said...

lekhan ke is behtreen andaaj ko salamm,

bahut sundar rachna, koi jabab nahin

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

हीर जी,

...........................................................................
..........................................................................
(लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास....उम्मीद है आप मेरे मौन को समझ लेंगी)

आपसे एक गुज़ारिश करना चाहता हूँ.....पर उससे पहले आपकी इजाज़त का तलबगार हूँ....

Dr Xitija Singh said...

wah ... dil ko chu gayi aapki rachnaein ... bahut khoobsurat

Apanatva said...

sabhee ek se bad kar ek ....
dubara padne chalee aaee........

kya kare...........
aap likhtee hee aisa hai.........

हरकीरत ' हीर' said...

कहिये इमरान जी आप सब के लिए ही तो लिखती हूँ .....
बस दर्द से अलग होने के लिए न कहियेगा .....!!

vandana gupta said...

हमेशा की तरह इस बार भी दर्द मे कलम को डुबो कर लिखी हैं नज़्मे…………………हर नज़्म अपना प्रभाव छोड गयी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जानती हूँ ....
तुम्हारे मंदिर में
अब जगह नहीं है मेरी
फिर भी न जाने क्यों
ये सूरज ज़िस्म की डोर
खींचे लिए जाता है ...
लिखने दे इक बार ख़त मुझे
गुलाब की पत्तियों से
के मौत ने आज जरा सा
घूँघट उतारा है ......!!

बहुत सुन्दर !

सागर said...

हिला गयी मैडम .... झंझावात महसूस कर रहा हूँ..... प्रस्तावना अपने आप में पूरी एक पोस्ट है इसे अगली बात हमारे लिए थोडा और बढाइये... क्या विडंबना है आप ऐसे मूड में जंचती हैं...

shikha varshney said...

बेहतरीन कवितायेँ हैं सब .
फूल सबसे अच्छी लगी.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

harek rachna behatreen hai !
aapto dard ko alag alag swad mein paros rahi hain ... ab kise chakhun aur kise nahi

शारदा अरोरा said...

कैसे कैसे हादसे धो डालती है कलम !

सुनील गज्जाणी said...

heer mem!
pranam !
aap ki abhivyakti bahut sunder hai , achchi lagi aap ki saari nazme .
sadhuwad
saadar !

Parul kanani said...

ultimate!

सदा said...

अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!

भावपूर्ण शब्‍दों का अनुपम संगम ....।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

"उदासी की
लम्बी, एकांत पगडंडी पर
चलता रहा कलम दूर तक
बोता हुआ बीज
लफ्जों के निरंतर...
पैरों के रिसते छाले
सींचते रहे बंजर ज़मीन...
लहलहाने लगी फसल पीड़ा की....

अब सहेजनी भी तो है काटकर
यह फसल कोठरी में दिल के..... "

Avinash Chandra said...

यों मेरे पास शब्द कभी नहीं रहते, पर आज मौन भी चुपचाप है...आप शायद पढ़ सकेंगी उसकी खामोश आवाज..तारीफ़ करना ना करना, मायने ही कहाँ रखता है इस कमाल पर...

नादान उम्मीदें said...

aadarniya harkirat ji,,,kuch likha hai, aapko pdhne ke liye aamantran de raha hu,samay mile to jarur pdhiyega,,dhanyawaad

Udan Tashtari said...

सोचती हूँ ....
अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!


-बस, आवाक फिर फिर गुजर रहा हूँ रचनाओं के भीतर से...

गज़ब!!!

डॉ टी एस दराल said...

तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं
मेरे हाथों में .....

अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!


लिखने दे इक बार ख़त मुझे
गुलाब की पत्तियों से---

ख्वाबों ने रातों में
फिर मोहब्बत को
पुकारा है .....!!

रात कपड़े उतारे बैठी है
फासले गर्द से भरे हैं--

आपकी अभिव्यक्ति हमें निशब्द कर देती है । हर बार कुछ नया सीखने को मिलता है आपकी रचनाओं से ।
सुभानअल्लाह , इन्तहा हो गई !
ग़ज़ब !

रश्मि प्रभा... said...

jab bhi yahan aati hun ... sirf ek hi baat mann me aati hai, kisko pahle kahun, kise baad me

महेन्‍द्र वर्मा said...

अनोखी कल्पनाएं...अनोखे भाव...अनोखे शब्द...अनोखी कविताएं...बहुत खूब।

Kailash Sharma said...

अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!

लाजवाब...हर पंक्ति भावों से ओतप्रोत..बहुत सुन्दर..

अनामिका की सदायें ...... said...

यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं...


लाजवाब प्रस्तुति.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हमने जो पंक्तियां चुनी थी वाहवाही के लिए वो पहले से ही पसंदीदा बताई गई है तो हम क्या कहें

अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!

बहुत खूब :)

चैन सिंह शेखावत said...

ख्वाहिशें रंगसाज से
रंगवा लाई हैं दुपट्टा मेरा
ख्वाबों ने रातों में
फिर मोहब्बत को
पुकारा है .....!!

behtareen ...
kasi hui aur bheetar tak dhansi hui rachnaen...
badhai..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब..
..नाजुक खयाल को अभिव्यक्त करना बेहद कठिन है..

कितना मुश्किल है एक प्यारा गीत लिखना
और कितना आसान है उसे हंसते हुए गुनगुना देना
..बधाई।

Manoj K said...

ब्लॉग जगत में ६ महीने से ऊपर होने को आये पर आज यहाँ पहुंचा..

क्या लिखतीं हैं आप, मुरीद हो गया..

मनोज खत्री

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

हरकीकत जी! आपके ब्लॉग में जब भी आती हूँ , कुछ देर को चुप्पी सी छा जाती है.शब्दों को इस तरह तराशने की कला सच में बहुत कम दीखती है.आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है.यह कहना भी कम लगता है.

Anonymous said...

हीर जी,

शुक्रिया.....नहीं-नहीं....ये आपका अपना जीने का अदाज़ है...अगर आपने अपने दुःख को ही अपना सुखा बना लिया तो कोई आपको उससे जुदा नहीं कर सकता.....

मैं ये कहना चाहता था की आप मूलरूप से पंजाब से हैं....जो सूफी फकीरों की ज़मीन रही है...मुझे सूफीवाद से बहुत लगाव है .....पर हिंदुस्तान में जो थोडा बहुत सूफी साहित्य या संगीत है वो ज़्यादातर पंजाबी भाषा में ही है....और मुझे पंजाबी नहीं आती है.......तो मैं आज तक उस महान साहित्य और संगीत से महरूम हूँ......मेरी आपसे गुज़ारिश है अगर आप उन सूफी फकीरों का अपने अंदाज़ में अनुवाद कर सकें तो ये सोने पे सुहागा होगा जी.........

खास करके......वारिस शाह की 'हीर'.......बुल्ले शाह की काफियाँ.....बाबा फरीद और जो आपको बढ़िया लगे .......शायद आपको भी इससे एक आंतरिक शांति का अनुभव हो.........मैं आपके लिखने के अंदाज़ का क़ायल हूँ......और जब आप अपने अंदाज़ में इसे लिखेंगी तो मेरे जैसों के लिए ये बहुत अच्छा होगा.......आप इस बारे में ज़रूर सोचें और मुझे अपने फैसले से अवगत ज़रूर कराएँ..... आपके जवाब के इंतज़ार में.........

इमरान

दीपक बाबा said...

आंसुओं में डूबे लफ्ज़ परेशान करते है... पर रोक नहीं पाता इन लफ्जों को अपने भीतर उतरने से...


.... सुना है आंसुओं का भी रिश्ता होता है.

सुधीर राघव said...

बेहतरीन!!!!!!!!!

पूनम श्रीवास्तव said...

harkirat ji
namskar
kaya likhun ,badi hi pesho-pesh me hun. aapki har najm, har gazal , har rachna lazwaab v bahut hi behatreen hoti hain is baar bhi kuchh aisa hi hai sab ek se badh kar ek.
ye panktiyan kuchh jyaada hi pasand aai---
जानती हूँ ....
तुम्हारे मंदिर में
अब जगह नहीं है मेरी
फिर भी न जाने क्यों
ये सूरज ज़िस्म की डोर
खींचे लिए जाता है ...
लिखने दे इक बार ख़त मुझे
गुलाब की पत्तियों से
के मौत ने आज जरा सा
घूँघट उतारा है ......!!
baut khoob--------------poonam

नीरज गोस्वामी said...

आपके लफ्ज़...उफ्फ्फ...कितनी टीस जगाते है पढते वक्त...कमाल करती हैं आप...

नीरज

Shabad shabad said...

बहुत सुंदर भाव, हमेशा की तरह !!

daanish said...

काले लिबास में
कोई फ़कीर इक...
.... .......
अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!
...............
के आज मुहब्बत
अपनी हथेली फैला
खूब रोई है .....!!

एक एक लफ़्ज़....
एक मुकम्मल नज़्म !
हर बार की तरह
दिल की गहराईयों तक उतर जाने वाली
और ...
इनके पीछे छिपी हैं
"दो जोड़ी" उदास आँखें...
रचना और रचनाकार दोनों की
आँखों की दास्ताँ बनी ऐसा खूबसूरत काव्य !!

हरकीरत ' हीर' said...

इमरान अंसारी said...
@ मैं ये कहना चाहता था की आप मूलरूप से पंजाब से हैं....जो सूफी फकीरों की ज़मीन रही है...मुझे सूफीवाद से बहुत लगाव है .....पर हिंदुस्तान में जो थोडा बहुत सूफी साहित्य या संगीत है वो ज़्यादातर पंजाबी भाषा में ही है....और मुझे पंजाबी नहीं आती है.......तो मैं आज तक उस महान साहित्य और संगीत से महरूम हूँ......मेरी आपसे गुज़ारिश है अगर आप उन सूफी फकीरों का अपने अंदाज़ में अनुवाद कर सकें तो ये सोने पे सुहागा होगा जी.........

इमरान जी मुझे ख़ुशी होगी ....
आप उन सूफी फकीरों का साहित्य उपलब्द्ध कराएं तो मैं देखूं .....

प्रिया said...

sabne itna kuch kaha ......ham soch rahe hain ham kya kahen..I would like to say excellent usage of unusual metaphors

جسوندر سنگھ JASWINDER SINGH said...

जी चाहता है
इस मिट्टी की
सारी ख़ामोशी चुरा लूँ
और ओढ़ लूँ
किसी ताबूत में बैठ......ਇਕੱਲੇ ਇਕੱਲੇ ਅੱਖਰ "ਆਹ " ਨਿਕਲ਼ਦੀ ਹੈ ਮਨ ਵਿੱਚੋਂ । "मैंने सारे पत्थर चुन कर रख लिए ....वैसे भी अब इन पत्थरों से इमारत बनने वाली है ....ज़िन्दगी की चादर है ही कितनी ...? रात परिंदे की सी कैद में कट जाएगी और सुब्ह दुआ मांगते ..." ਰੱਬ ਸੱਚਾ ਤੁਹਾਡੀ ਕਲਮ ਨੂੰ ਸਦੀਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਦੇਵੇ
ਬਹੁਤ ਸਮੇ ਬਾਅਦ ਚੱਕਰ ਲੱਗਾ ਹੈ ਤੁਹਾਡੇ ਬਲੌਗ 'ਤੇ ਕਾਲ਼ ਚੱਕਰ ਬਹੁਤ ਔਝੜੇ ਰਾਹਾਂ ਤੇ ਲੈ ਗਿਆ ਸੀ । ਦੁਬਾਰਾ ਜੁੜਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵਿੱਚ ਹਾਂ

संध्या आर्य said...

dard ko aap panah deti hai .....our dard ekakar ho jata hai ham sab ke dard ke rup me .....yah sirf aapaka dard nahi balki ham pathako ki bhi hai .....bahut bahut shukriya

Anonymous said...

हीर जी,

शुक्रिया आपने मेरी गुज़ारिश कबूल की.......एक लिंक मिला है जिसमे कुछ कलाम उर्दू और पंजाबी भाषा में है........यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ.....आपको वक़्त मिले तो देखना...अगर आपको उर्दू भी आती हो तो इस लिंक पर लगभग सबका कलाम मौजूद है........अब आप देख कर फैसला कर सकती हैं .......

लिंक- http://www.apnaorg.com/poetry/heerg/

कृपया हो सके तो जवाब मेरे ब्लॉग पर या मेल कीजियेगा......मैं इंतज़ार करूँगा........

rashmi ravija said...

हमेशा की तरह कमाल की नज्में हैं
निशब्द कर देती हैं...बिलकुल. .

ज्योति सिंह said...

जी चाहता है
इस मिट्टी की
सारी ख़ामोशी चुरा लूँ
और ओढ़ लूँ
किसी ताबूत में बैठ ...
यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं
मेरे हाथों में .....
और इसलिए भी कि ....
इनके पीछे छिपी हैं
दो जोड़ी उदास आँखें
जो मेरी सोच को
और पुख्ता करती हैं
मुझ से न्याय मांगती हैं
हो सके तो उन आँखों से कभी
दो बूंद आँसू बहने देना .....!
sabhi hi laazwaab ,aesa lagta hai nazare phere hi nahi .aap likhti bhi sundar hai aur hamare blog par tippani bhi bahut hi sneh se deti hai ,main dil se aabhari hoon aapki .

Sunil Kumar said...

आज फिर
गिरी है दुआ ...
आज फिर हाथ उठा है
रात कपड़े उतारे बैठी है
फासले गर्द से भरे हैं
अय खुदा...!
कोई तो तबशीर दे मुझे
के आज मुहब्बत
अपनी हथेली फैला
खूब रोई है .....!!
वाह क्या बात है

Dr.R.Ramkumar said...

काले लिबास में
कोई फ़कीर इक
गजरे का फूल ...
डाल गया है झोली में
पनीली आँखों ने
फिर तेरा ख्याल उतारा है
सोचती हूँ ....
अगले जन्म के लिए ही सही
कुछ रेखाएं खिंचवा लूँ उसी से
हथेली में ......!!


HARKIRAT JI, AAPKE BIMB PRABHAVIT KARTE HAIN, HAMESHA KI TARAH IS BAR BHI ---REKHAYEIN TO HAM BHI KHINCHWANA CHAHTE HAIN...KALE AUR UJLE K BEECH


AAPKI RACHNAYEIN KALI PRASHTBHOOMI MEIN TAQLEEF DETIN HAIN..
AGAR HO SAKE TO BACKGROUND CHASMFAREB BANA DEIN...

priyadarshini said...

कमाल का लिखती हैं आप ...इतनी अच्छी रचनाओं पर कमेंट देना मेरे बस की बात नहीं..

कडुवासच said...

... bahut khoob ... laajavaab rachanaaten !!!

आनन्द वर्धन ओझा said...

हीरजी,
आपकी चिंता बेमानी नहीं थी! पिछले महीने से विजयादशमी तक अजीब हलचलों में रहा--हॉस्पिटल की दौड़ में भी ! मैं तो ठीक ही था, घर के लोग बीमार थे ! इसी कारण आपकी पिछली प्रविष्टियों पर दृष्टि भी न डाल सका ! खेद है, और आपकी शुभ-चिंता के लिए आभारी भी हूँ !
आपकी इन क्षणिकाओं और नज़्म पर क्या कहूँ ? बहुत-से अहसासों को चंद पंक्तियों में आपने बाँध कर रख दिया है ! 'हथेली फैला कर मोहब्बत के रुदन' में एक पुकार भी है; एक ऐसी सदा है, जो देर तक गूंजती है और विचलित करती है ! एक ऐसी कशिश है, जो पास बुलाती है और अपने रंजो-गम से सराबोर कर जाती है--पाठक को !
नज़्म और चारों टुकड़े बेमिसाल; आभार !
साभिवादन --आ

Anonymous said...

हीर जी,

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया की आपने कोशिश की........मैंने नेट पर बहुत खोज की पर पंजाबी साहित्य की सिर्फ यही एक वेबसाइट मिली मुझे ........

एक बात.... क्या आपको उर्दू आती है?

- अगर हाँ तो यहाँ एक लिंक है जिसमे सम्पूर्ण 'हीर' है ......आप देख लें...
लिंक - http://www.apnaorg.com/poetry/heercomp/

- अगर नहीं तो गूगल में पंजाबी भाषा में सर्च करें ...वो मैं नहीं कर सकता, क्योंकि मैं पंजाबी बिलकुल भी नहीं पढ़ सकता.......

- अगर फिर भी नहीं तो मैं कोशिश करूँगा की कहीं से आपको किताब उपलब्ध करवाऊं |

- अगर वो भी नहीं मिलती तो इसे सिवाय मेरी ख़राब किस्मत के क्या कहिये|

फिर भी आपने कोशिश की उसका तहेदिल से शुक्रिया|

Unknown said...

यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
तुम्हारे लफ्ज़ अभी भी जिन्दा हैं
मेरे हाथों में .....
और इसलिए भी कि ....
इनके पीछे छिपी हैं
दो जोड़ी उदास आँखें
जो मेरी सोच को
और पुख्ता करती हैं
मुझ से न्याय मांगती हैं
हो सके तो उन आँखों से कभी
दो बूंद आँसू बहने देना .....!!


अगर एहसास कोई शख्स होता...और अगर उसकी ज़ुबां होती तो भी शायद वो खुद को इतने बेहतर तरीके से बयां नहीं कर पाता...
क्या बात है...

Pradeep said...

प्रणाम....
चीखती ख़ामोशी क्या होती है आपकी नज्में पढ़ के पुख्ता हुआ ........
गत माह आपने उत्साह बढाया था......धन्यवाद!
एक और रचना प्रस्तुत है.....कृपया मार्गदर्शन करें ..

http://pradeep-splendor.blogspot.com/2010/09/blog-post.html

#vpsinghrajput said...

बहुत सुन्दर. हरकीरत जी

जयकृष्ण राय तुषार said...

Very much thanks for your nice comment with regards

निर्मला कपिला said...

और ओढ़ लूँ
किसी ताबूत में बैठ ...
यहाँ इल्म की आँखें बड़ी हैं
और मेरी तहज़ीब छोटी
और सोचती हूँ अगले जन्म के लिये -----
वाह हरकीरत जी आप तो इतनी गहराई मे चली जाती हैं कि कुछ कहते नही बनता। मन करता है आपकी कलम चूम लूँ। शुभकामनायें।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

हरकीरत जी,
नमस्कारम्‌!
आज ‘मुक्तछंद’ कविता को ‘छंदमुक्त’ बनाने पर तुली हज़ारों कवियों की भीड़ में खड़ा होकर यह कहने का साहस कर सकता हूँ कि--

भीड़ के बहुतेरे कवियों को ‘मुक्तछंद’ में सृजन हेतु काव्य-भाषा की समझ Develop करने के लिए आपके इस ब्लॉग पर आना ही चाहिए।

अब एक बात आपसे यह कि ब्लैक टेम्पलेट जल्दी ही बदल दें, पढ़ने में असुविधा होती है। आपकी कविताएँ मुझसे ज़बरदस्ती कर रही थीं कि--"रुक जा ‘जौहर’...यहाँ गम्भीर सरोकारों की कविताएँ हैं!"

लेकिन...आँखें कह रही थीं कि-- "जल्दी भागो यहाँ से...वरना धुँधलका छा जाएगा, आँखों पर!"

जयकृष्ण राय तुषार said...

karva chauth ki shubhkamnayen

विनोद कुमार पांडेय said...

शब्द और भाव दोनों कहीं से किसी से कम नही..सब कुछ लाजवाब...बहुत बढ़िया रचना हरकिरत की एक यूनिक और बेहतरीन ब्लॉगिंग...धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर नज़्म मन तक पहुंचती हुई ...अंतिम वाली बेमिसाल ...

Anonymous said...

हीर जी,

मेरे ब्लॉग जज़्बात....दिल से दिल तक....... पर मेरी नई पोस्ट जो आपके ज़िक्र से रोशन है....समय मिले तो ज़रूर पढिये.......गुज़ारिश है |

सुधीर राघव said...

बहुत ही सुंदर कविताएं

वीरेंद्र सिंह said...

Really very nice..... like always.
Congrats.

Girish Kumar Billore said...

वाह
जख्मी जुबाँ बहुत कुछ कहना चाहती थी ...पर कलम ने मुँह फेर लिया ...इस बीच मन में कई चूडियाँ टूटीं
विरहणी का प्रेम गीत

RAJWANT RAJ said...

sab umda mgr pukar , kya khe ab ise ! aaj sirf meri shbdo ki kmi ko mhsoos kro .

उपेन्द्र नाथ said...

हीर जी
हर नज़्म बहुत ही सुंदर लगी... इसके बारे जिनता कुछ कहा जाये कम है........

jogeshwar garg said...

हरकीरत आपा !
आपकी इन छोटी छोटी नज्मों में बहुत दर्द भरा है.
कहाँ से उठा लाई हैं आप इतना सारा दर्द ?

"बहुत गहरी तीरगी है
तीर-सी गहरी चुभन
बख्शती है कसमसाहट
छीन कर चैन-ओ-अमन"

सुभाष नीरव said...

पिछले एक माह से कंप्यूटर पर काम करने की सख़्त मनाही थी। आँख का आप्रेशन हुआ था। अब इजाजत मिली तो आपके ब्लॉग पर आया। आपकी इन कविताओं को पढ़कर पूरे एक माह की बोरियत और उदासी दूर हो गई। भीतर तक स्पर्श कर गईं एकबार फिर आपकी कविताएँ… एक एक लफ़्ज कविता में मोती सा पिरोआ हुआ है… इतनी गहरी सोच और इतनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति ! उफ़्फ़ !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया हरकीरत हीर साहिबा
नमस्कार !
दीपावली की अग्रिम मंगलकामनाएं !

गुलाबी रंग मुबारक हो ! परिवर्तित टेम्पलेट अच्छा है । हालांकि मेरी आंखें उस काले ज़ादू की अभ्यस्त हो चली थीं ।
कोई बात नहीं , इसका भी अभ्यास हो ही जाएगा … धीरे - धीरे … !
आपकी रचनाओं पर कहने की सामर्थ्य , योग्यता तलाश रहा हूं … कभी बता दूंगा ।

राजेन्द्र स्वर्णकार

VIJAY KUMAR VERMA said...

इतने भाव इतना दर्द कहाँ से ले आती है आप !!

कविता रावत said...

जानती हूँ ....
तुम्हारे मंदिर में
अब जगह नहीं है मेरी
फिर भी न जाने क्यों
ये सूरज ज़िस्म की डोर
खींचे लिए जाता है ...
लिखने दे इक बार ख़त मुझे
गुलाब की पत्तियों से
के मौत ने आज जरा सा
घूँघट उतारा है ......!!
....Har vishya par bahut hi sadhe, sughad shabdon mein aapki lekhni jab chalti hai to sach mein padhte-padhte man kahin sudoor kho saa jaata hai...
..bahut sundar bhav sampreshan

रवि धवन said...

कोई तो तबशीर दे मुझे
के आज मुहब्बत
अपनी हथेली फैला
खूब रोई है .....!!
अब इसके आगे क्या कहें। बेहतरीन रचना है।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

ਮੈਨ੍ਕ੍ਯ ਹੀਰ ਜੀ,
ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
ਅਸੀਂ ਕਿਤ੍ਥੋਂ ਲਾਇਏ ਇੰਨਾ ਮਗਜ ਜੇ ਸਾਨੂ ਸਮਝ ਆ ਜਾਉ ਤੁਹਾਡੀ ਕਵਿਤਾ!?
ਫੇਰ ਵੀ ਜੇ ਤੁਸ੍ਸੀਂ ਲਿਖੀ ਹੈ ਤਾਂ ਵਧਿਯਾ ਹੀ ਹੋਗੀ!
ਆਸ਼ੀਸ਼
---
ਪਹਿਲਾ ਖੁਮਾਰ ਔਰ ਫਿਰ ਉਤਰਾ ਬੁਖਾਰ!!!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

ਮੈਨ੍ਕ੍ਯ ਹੀਰ ਜੀ,
ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
ਅਸੀਂ ਕਿਤ੍ਥੋਂ ਲਾਇਏ ਇੰਨਾ ਮਗਜ ਜੇ ਸਾਨੂ ਸਮਝ ਆ ਜਾਉ ਤੁਹਾਡੀ ਕਵਿਤਾ!?
ਫੇਰ ਵੀ ਜੇ ਤੁਸ੍ਸੀਂ ਲਿਖੀ ਹੈ ਤਾਂ ਵਧਿਯਾ ਹੀ ਹੋਗੀ!
ਆਸ਼ੀਸ਼
---
ਪਹਿਲਾ ਖੁਮਾਰ ਔਰ ਫਿਰ ਉਤਰਾ ਬੁਖਾਰ!!!

Ruchin said...

beautiful...........