बदल न सकी मैं हाथों की लकीरें
हाथ तो बहुत मिले खुशगवार ह्बीबों के ......
हाथ तो बहुत मिले खुशगवार ह्बीबों के ......
लकीरें तो नहीं बदलतीं ....पर हाँ पल दो पल की ये खुशियाँ बरसों की तल्खियात को कमोबेश कम तो कर ही देती हैं ....आज राजेंद्र जी का दिया ये तोहफा आप सब के साथ बांटना चाहती हूँ .....राजेंद्र जी से तो आप सभी परिचित हैं ही .....रब्ब ने मुसीकी में इन्हें अद्भुत हुनर बख्शा है ....खुद अपनी ही बनाई धुन पर ये गज़ब का गाते हैं .....आज हीर के लिए इन्होने ...."दर्द भरी सरगम हरकीरत " गाकर जो इज्जत बख्शी है ....हीर धन्य हुई ....रब्ब इन्हें और शोहरत दे ,और हुनर दे , जहाँ में इनका नाम फरोजां रखे ....सच्च इस तरह के तोहफे कई कीमती तोहफों से ज्यादा मायने रखते हैं ....जो मित्र इनकी खुशबू से परिचित नहीं हैं वो इनके ब्लॉग par जाकर इन्हें महसूस कर सकते हैं .....
नीचे की लिखी मेरी दो ग़ज़लों को इन्होंने अपना स्वर दिया है ....और ये तस्वीर भी इन्हीं की भेजी हुई है इसलिए इसे लगाने पर मैं मजबूर हुई .....
पेश है पहले राजेंद्र जी की गाई ग़ज़ल .....दर्द भरी सरगम हरकीरत ......
( जब राजेन्द्र ने हीर की बहुत सारी कविताएं पढ़ लेने के बाद उसकी अलग छवि महसूस की …)
(1)
दर्द भरी सरगम हरकीरत.......
क्यों पलकें हैं नम हरकीरत
बदलेगा मौसम हरकीरत
दिल पर अपने पत्थर रखले
पत्थर मीत – सनम हरकीरत
अश्क़ तेरे पी’ भीगा सहरा
सुलग उठी शबनम हरकीरत
हर इक शय यूं कब होती है
बेग़ैरत – बेदम हरकीरत
रब की दुनिया में तेरा भी
है हमग़म – हमदम हरकीरत
बेशक , चोट लगी है तुमको
तड़प रहे हैं हम हरकीरत
ज़ख़्म तेरे लूं पलकों पर , दूं
अश्कों का मरहम हरकीरत
इंसां ही बांटे इंसां के
दर्द मुसीबत ग़म , हरकीरत
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इसे यहाँ सुन सकते हैं .....
(2)
दोहे ( राजेन्द्र ने हीर को उसके कंमेंट्स के आधार पर जितना जाना …)
हर कीरत , हर जानता , या कोउ साचा पीर !
निज छबि देखन जगत को , दी हरकीरत ' हीर ' !!
निर्मल मन हैं आप …ज्यों , बहता निर्मल नीर !
आप ख़ुशी - मुसकान हैं , धन हरकीरत ' हीर ' !!
लफ़्ज़ - लफ़्ज़ में है शहद , मिसरी , अमृत , शीर !
शुक्राना रब ! जगत को , दी हरकीरत ' हीर ' !!
हाल देख , रब ! रहम कर ! जग कितना बेपीर !
दी इक ही ; क्यों दी नहीं … लख हरकीरत ' हीर ' !?
रब ! अब कर संसार की , तू ऐसी तक़दीर !
हर घर को तू बख़्शदे , इक हरकीरत ' हीर ' !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(3)
हीर की लिखी इस ग़ज़ल को भी स्वर दिए है राजेंद्र जी ने .......
रात पहलू में आ'कर कोई सो गया.....
रात पहलू में आ'कर कोई सो गया
दिल में आया कोई और मेरा हो गया
इक सितारे ने महफिल में चूमे क़दम
शर्म से चांद उठ' अपने घर को गया
ख़्वाब मेरे महकने लगे ; कौन ये
मोगरे की फसल सांस में बो गया
छा गया है ख़यालों में वो इस कदर
गीत ज़िंदा कोई नज़्म में हो गया
हो गई है मुहब्बत , बचा रब मेरे
दिल गया हाथ से , ये गया , वो गया
दिल लिया , दर्दे- दिल भी मेरा ले लिया
तब ज़रा - सा यक़ीं मुझको हो तो गया
हीर सच्ची मुहब्बत मुबारक तुझे
कोई है , प्यार में जो तेरे खो गया
इसे यहाँ सुन सकते हैं ......
दर्द भरी सरगम हरकीरत
लौ जलती मद्धम हरकीरतक्यों पलकें हैं नम हरकीरत
बदलेगा मौसम हरकीरत
दिल पर अपने पत्थर रखले
पत्थर मीत – सनम हरकीरत
अश्क़ तेरे पी’ भीगा सहरा
सुलग उठी शबनम हरकीरत
हर इक शय यूं कब होती है
बेग़ैरत – बेदम हरकीरत
रब की दुनिया में तेरा भी
है हमग़म – हमदम हरकीरत
बेशक , चोट लगी है तुमको
तड़प रहे हैं हम हरकीरत
ज़ख़्म तेरे लूं पलकों पर , दूं
अश्कों का मरहम हरकीरत
इंसां ही बांटे इंसां के
दर्द मुसीबत ग़म , हरकीरत
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इसे यहाँ सुन सकते हैं .....
(2)
दोहे ( राजेन्द्र ने हीर को उसके कंमेंट्स के आधार पर जितना जाना …)
हर कीरत , हर जानता , या कोउ साचा पीर !
निज छबि देखन जगत को , दी हरकीरत ' हीर ' !!
निर्मल मन हैं आप …ज्यों , बहता निर्मल नीर !
आप ख़ुशी - मुसकान हैं , धन हरकीरत ' हीर ' !!
लफ़्ज़ - लफ़्ज़ में है शहद , मिसरी , अमृत , शीर !
शुक्राना रब ! जगत को , दी हरकीरत ' हीर ' !!
हाल देख , रब ! रहम कर ! जग कितना बेपीर !
दी इक ही ; क्यों दी नहीं … लख हरकीरत ' हीर ' !?
रब ! अब कर संसार की , तू ऐसी तक़दीर !
हर घर को तू बख़्शदे , इक हरकीरत ' हीर ' !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(3)
हीर की लिखी इस ग़ज़ल को भी स्वर दिए है राजेंद्र जी ने .......
रात पहलू में आ'कर कोई सो गया.....
रात पहलू में आ'कर कोई सो गया
दिल में आया कोई और मेरा हो गया
इक सितारे ने महफिल में चूमे क़दम
शर्म से चांद उठ' अपने घर को गया
ख़्वाब मेरे महकने लगे ; कौन ये
मोगरे की फसल सांस में बो गया
छा गया है ख़यालों में वो इस कदर
गीत ज़िंदा कोई नज़्म में हो गया
हो गई है मुहब्बत , बचा रब मेरे
दिल गया हाथ से , ये गया , वो गया
दिल लिया , दर्दे- दिल भी मेरा ले लिया
तब ज़रा - सा यक़ीं मुझको हो तो गया
हीर सच्ची मुहब्बत मुबारक तुझे
कोई है , प्यार में जो तेरे खो गया
इसे यहाँ सुन सकते हैं ......
(४)
और अब वो ग़ज़ल जो आप पहले भी पढ़ चुके हैं ...बस मत्ला बदला गया है .....
हमेशा चाहतों के सिलसिले...........
हमेशा चाहतों के सिलसिले क्यूं छूट जाते हैं
मुहब्बत से भरे मा'सूम दिल क्यूं टूट जाते हैं
नज़र हो मुंतज़िर कोई ; कभी हम लौट भी आते
उमीदों के घरौंदे ही तो अक्सर टूट जाते हैं
शज़र हम जो लगाते हैं , वो अक्सर सूख जाते हैं
मुहब्बत हम जहां करते , शहर वो छूट जाते हैं
जफ़ा देखी वफ़ा देखी , जहां की हर अदा देखी
नकाबों में , चमन ख़ुद बाग़बां ही लूट जाते हैं
हवाओं से बिखरती जा रही बेबस , वो कश्ती हूं
बहाना था वगरना दिल कहां यूं टूट जाते हैं
कभी तो मुस्कुरा कर भी सनम देते सदा मुझको
बहारें लौट आतीं , फिर… गिले सब छूट जाते हैं
घरौंदे साहिलों पर 'हीर' तुम बेशक बना लेना
बने हों रेत से घर …वो बिखर कर टूट जाते हैं
*****************************
इसे यहाँ सुन सकते हैं ......
70 comments:
वाह , वाह , वाह ! हरकीरत जी , एक से बढ़कर एक ।
आज तो दिल बाग़ बाग़ हो गया ।
आपकी ग़ज़लों में कहीं खो गया ।
मुबारकवाद दे ही डालें अब तो ।
किसी ख़ुशी का इंतज़ार हमको भी है ।
राजेंद्र जी की आवाज़ मे तो जादू है………………एक कशिश ,एक दर्द क्या कुछ नही है……………आवाज़ ने ही दिल मोह लिया…………उस पर गज़ल के अल्फ़ाज़ का तो कहना ही क्या…………………सीधे दिल मे उतरती चली गयी……………………बेहतरीन,लाजवाब्।
उफ़ कितना कर्णप्रिय स्वर है राजेन्द्र जी का ..और लाजबाब ग़ज़लें ..बहुत बहुत सुन्दर हरकीरत जी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
अच्छे स्वर और शब्दों की बारिश हुई है.
सब तो बहुत अच्छा है !
क्या गजल ! क्या गायन ! क्या भाव !
प्रसन्नता-प्रद तोहफा !
रचनाओं को सुरों में ढालने का उत्तम सफ़ल प्रयास... दिलकश रचनायें दिलकश अन्दाज में पेश... आभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
राजेंद्र जी की आवाज़ मे तो जादू है
Gajal aur dohe ke har shabd ka kya kahna......:) jabab nahi!!
upar se Rajendra jee kee jadui awaaj....ek alag sa dard aur kashish.....!!
har kuchh umda!!
naye post ke saath mera blog......:o
राजेन्द्र तो राजेन्द्र
अलग है स्वर्णकार
शब्दोँ का बाज़ीगर
स्वरोँ का फनकार ।
हरकीरत को गा कर धन्य कर दिया ।बधाई हो हरकीरत जी !
राजेन्द्र स्वर्णकार बेहतरीन ग़ज़ल गो हैँ। ग़ज़ल कहते भी अच्छी हैँ और गाते भी अच्छी हैँ।आपकी ग़ज़ल गाने के लिए न जाने उनको कैसे फुरसत मिल गई ! एक बार फिर बधाई!
आपकी ग़ज़लोँ मेँ भी दर्द ओ कशिश कम नहीँ है हरकीरत जी ।शायद उसी ने राजेन्द्र को कायल-घायल किया है।
जी ओम पुरोहित जी ,
ये तो रब्ब जाने इस स्वरों के फनकार ने कैसे इतना समय मेरी गजलों को दिया ...न सिर्फ मेरी बल्कि मेरे लिए लिखी भी .....और गयी भी .....तीन दिन इन्होने कड़ी परेशानी से गुजरने के बाद इसकी रिकार्डिंग की ...मसलन हैड फोन का खराब हो जाना ....सर दर्द ...और बार बार की रिकोर्डिंग ....रात दो-दो बजे तक बैठ कर ....जब इन्होने मेल से मुझे ये सब बताया ....तो अपने पर फख्र सा होने लगा ...बहुत मुश्किल होता है किसी को यूँ समय देना ....और मेरे पास तो उन्हें देने के लिए दुआओं के सिवा कुछ नहीं .....रब्ब उनके फन को कामयाबी दे .....!!
gazab thaya aap ne bhi rajendar ji
bahut khub
dhanyawad aap ko ye bahtrin tohfa ham tak pahuchane ke liye
एक रचनाकार का दूसरे रचनाकार को दिया गया बेशकीमती व बेहतरीन तोहफा .
आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं.
बहुत खूब शानदार प्रस्तुती
.... बधाई व शुभकामनाएं!!!
राजेंद्र जी की आवाज़ मे जादू,स्वर कर्णप्रिय है गज़ब की जादूगरी शब्दों से !!!!!!!!!!!!!वाह.. वाह वाह हरकीरत जी !
बहुत गहराई है राजेंद्र जी की आवाज़ में...बहुत सुन्दर
अद्भुत.... इसके सिवा आैर क्या कहूं।
कमाल है.... आपकी लेखनी भी आैर राजेन्द्र जी की आवाज़ भी।
शुक्रिया....बहुत-बहुत शुक्रिया।
ek se badhkar ek harek ,sachmuch anmol hai yah tohfa jo nashwar hai jo kano me amrit gholta .heer gakar rajendra ji ne char chand laga diye sach kaha aapne aese kadradan kam milte hai ,dua ke alawa har shai fiki hai ......laazwaab khoobsurat
Behad khubsurat aawaj Rajendra ji, badhayee ho.
Aur Harkirat ji, aap waqai is prashansa ki shat pratishat hakdaar hain :)
likhne ka shukriya
आपको बहुत बहुत बधाई !!!! खुशनसीब हैं आप हरकीरत जी ! आज के समय मे कोई किसी सुनना भी नही चाहता ... और आपको तो राजेंद्र जी ने गाया .......कमाल है !
हरकीरत जी , एक से बढ़कर एक ।
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
क्यों पलकें हैं नम हरकीरत
बदलेगा मौसम हरकीरत
इंसां ही बांटे इंसां के
दर्द मुसीबत ग़म , हरकीरत
इन पंक्तियों से पूर्णतया सहमत ।
हीर सच्ची मुहब्बत मुबारक तुझे
कोई है , प्यार में जो तेरे खो गया
मुबारक जी मुबारक।
राजेन्द्र जी की बनाई तस्वीर की तारीफ इसलिए नहीं कर पा रहे क्योंकि तारीफ लायक लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे जी ।
आपको राजेन्द्र जी से तोहफ़ा मिला ....और आप्ने हमे दिए तोहफ़े.......वाह बहुत खूब !!!!
शब्द और स्वर का अद्भुत समागम देखने को मिला इस पोस्ट में। हरकीरत जी बहुत अच्छी ग़ज़लें और नज्में लिखती हैं। राजेंद्र जी अपने स्वर के लिये एक सही रचनाकार को ही चुना.इनकी धीर गंभीर आवाज़ ने हरकीरत जी के भावों को साकार कर दिया। दोनों महानुभावों को बहुत बहुत बधाई
सुन्दर शब्द और स्वर-संयोग। बधाई हरकीरत जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
राजेंद्र स्वर्णकार जी ने आप के लिए आप पर इतनी खूबसूरत गज़लें लिखीं और उस पर उन्हें अपने शानदार स्वर में प्रस्तुत किया भी...पढ़ कर सुनकर बहुत ही खुशी हुई .
..आप में खासियत तो है ही आप लिखती इतना अच्छा हैं..कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता.
वे तो खुद ही बहुत अच्छा लिखते हैं इसलिए उन्हें अच्छा लिखे की पहचान भी है.
उन्हें और आप को बहुत बहुत बधाईयाँ और आभार इस तोहफे को हम सब में बांटने के लिए.
शब्दों और स्वर का अनूठा संगम...बहुत ही सुन्दर संयोजन..
एक संग्रहणीय पोस्ट...बार बार सुनने और पढने को दिल चाहे
ये पन्ना तो हमने अब बुकमार्क कर लिया//बेहतरीन..जबरदस्त!! आनन्द आ गया सुनकर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!एक से बढ़कर एक ।
दराल जी ,
हा...हा...हा....आपकी चुहलबाजी अच्छी लगी ...!!
वैसे बता दूँ ये ग़ज़ल मैंने बहुत पहले की लिखी थी और इसे तिलकराज जी ने इस्लाह किया था ...पर आज जब मैंने राजेंद्र जी से इसे गाने की फरमाइश की तो इन्होंने इसे अपनी सुविधा अनुसार रदीफ़ और काफिया बदल दिया .....और आपको मौका मिल गया ....खैर कभी हमारी बारी भी आएगी ......!!
क्यों पलकें हैं नम हरकीरत
बदलेगा मौसम हरकीरत
बेशक , चोट लगी है तुमको
तड़प रहे हैं हम हरकीरत
...सुंदर गजल, मीठी आवाज.
बेचैन मगन हो गया आज.
क्या खूब तोहफ़ा है हरकीरत जी. अभी ऑडियो नहीं सुना, फ़ुरसत मिलते ही सुनूंगी.
वाह! हरकीरत जी... शब्दों की तारीफ़ करूँ या स्वर की... इसे कहते हैं सोने पर सुहागा...
"राजेंद्र जी का हीर को तोहफा ........"
पोस्ट का शीर्षक ग़लत लिखा है ।
लिखना चाहिए था …
"हीर का राजेंद्र को तोहफा… !"
तोहफ़ा तो हीरजी ने ही राजेन्द्र को दिया है दरअस्ल !
आप सबने हीरजी के सुर में सुर मिला कर मेरी इतनी ता'रीफ़ की है ,
कि मैं असमज़स में हूं कि शुक्रिया पहले किसका अदा करूं … आप सब करमफ़र्माओं का या हीरजी का ?
मित्रों ,यहां मन की एक बात कर रहा हूं …
हिंदी ब्लॉगिंग में साहित्य और कलाओं से संबद्ध ब्लॉगों पर
ख़ुलूसो-मुहब्बत , सहयोग-सौहार्द , आत्मीयता -अपनत्व की ऐसी साझा पोस्टों की एक शृंखला चलनी चाहिए ।
मैं विशेष निजी कारणों से टिप्पणी बक्से में देरी से आया , मा'फ़ कर दीजिएगा ।
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया ! आभार ! धन्यवाद !
शस्वरं पर भी आप सबका हार्दिक स्वागत है ,
आशीर्वाद देने के लिए अवश्य पधारें !
बुला लेना मुझे अपना समझ कर जब भी तुम चाहो
फ़ना मैं क्यों न हो जाऊं , कहीं कुछ काम आ जाऊं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
निर्मल मन हैं आप …ज्यों , बहता निर्मल नीर !
आप ख़ुशी - मुसकान हैं , धन हरकीरत ' हीर ' !!...
कौन नहीं मानता होगा ...
आप पर लाख गज़लें लिखी जाये तो भी कम ...
राजेंद्र जी की आवाज़ में आपकी ग़ज़ल ...क्या कहने ...
कम्प्लीट पॅकेज है आज की पोस्ट ...!!
बहुत खूबसूरत प्रस्तुती दोनो को बधाई
गज़लेँ तो सभी हीरे
सी जगमगा रही हैँ।
अभी सुन नहीँ पाया
जल्द सुनूँगा।
बहुत बधाई।
राजेंद्र जी का कहना ठीक है आपकी रचनाओं में इतनी कशिश और ख़ूबसूरती है के अनायास ही गुनगुनाने गाने का दिल करता है...फिर भी राजेंद्र जी ने जितना ख़ूबसूरती से लिखा है उतनी ही ख़ूबसूरती से गया भी है...उनके गले में माँ सरस्वती का वास है...उम्मीद है आपकी दूसरी रचनाएँ भी उनके सुरीले गले से सुनने को मिलेंगी...
आज का दिन सफल हुआ...बाहर इश्वर बरसात करवा रहा है और अन्दर राजेंद्र जी ने सुरों की बारिश कर दी...वाह...अभिभूत हुआ पढ़ सुन कर...
नीरज
वाह ... एक से बढ़ कर एक .... राजेन्दर जी कई आवाज़ का जादू चल गया ... में तो अभी भी इस कशिश भारी आवाज़ का मज़ा ले रहा हूँ .... ऊपर से आपकी ग़ज़ल के अल्फ़ाज़ ... जब दो फनकार मिलते हैं तो शब्दों को मायने मिल जाते हैं ... और ठीक ऐसा ही हो रहा है आपके ब्लॉग पर आज ....
कदम दर कदम मोंगरे के फूल महकते रहे , हम खुशबुओं को सुनते रहे
क्या ख़ूब निभाई ग़ज़ल 'राजेन्द्र'(जी) ने 'हीर' की
स्वर पीर में डूबा - तो अदा थी फ़कीर की
सूखे गुलों में कोई उड़ेले नई ख़ुश्बू-
अच्छी लगी अदा ये सुरों के अमीर की
वाह...आपके शब्द और राजेन्द्र जी की आवाज...जैसे सोने में सुगंध
पूरा सुन के कमेंट करता हुँ जी
वैसे बहुत अचछा गाया है रजिन्दर जी ने।
दुर्भाग्य !
जहाँ मै हूँ वहां पर स्वर सुनवाने की क्षमता सुलभ नहीं . सिर्फ कल्पना . पर शब्दों में ही हर समाये हैं ; ' कीरत ' और ' हीर ' .
चश्मेबद्दूर !
क्या बात है। एक तो अनमोल शब्द आपके हीर जी। उस पर दिल को छूती आवाज। इसी को कहते हैं सोने पे सुहागा.....
आप दोनों को सफ़लता के लिए ढेरों शुभकामनाएं.
मैं बस यही कहूगा कि दो उस्तादो का मिलना कमाल कर गया, दोनो की क़लम बेमिसाल है.
और राजेंद्र जी गायन भी बहुत खूबसूरत है.
हीर जी और राजेंद्र जी लिये बस यही दुआ है कि
"अल्लाह करे ज़ोरे क़लम और ज़्यादा"
आमीन.
jitne sindar shabd hai utne hi sundar awaj me gaya gaya hai...
लाजबाब प्रस्तुति हमेशा की तरह ...आभार
awaaz aur ghazlein..dono behad khoobsurat hain...Badhai
ये तो बड़ा ही नायाब तोहफ़ा दिया राजेंद्र जी ने हम सब को। कुछ ग़ज़लें सुनी कुछ सुनने के लिए दोबारा आना पड़ेगा।
राजेंद्र जी और आपको - दोनों को हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया , नायब गजलें
और राजेंद्र जी की आवाज ने चार चाँद लगा दिए इसमें :)
आदरणीया हरकीरत हीर जी
नमस्कार !
मुफ़्लिस साहब ने मुझे मेल भेजी , जो यहां कॉपी - पेस्ट कर रहा हूं…
********************************
muflis dk
to me
show details Jun 20 (2 days ago)
सम्माननीय राजेंद्र जी
नमस्कार
आपकी पुरसोज़ और पुर-कशिश आवाज़ का जादू
अभी तक कानो में गूँज रहा है
अभी हीर जी के ब्लॉग पर हो कर आया हूँ
शब्द और स्वर का अनुपम मेल रंग ले ही आया है
शब्द ,,, बेहद पाकीज़ा और असरदार शब्द तो मानो
हीर जी की क़लम की नोक पर बैठे हीर जी के आदेश का इंतज़ार ही करते रहते हैं
और उस पर आपकी खूबसूरत , गहरी , जादुई आवाज़ ने तो
हरकीरत जी की हर रचना को नई ज़िन्दगी बख्श है ....
आप दोनों को बहुत बहुत बधाई .
माँ सरस्वती जी की अपर कृपा आप दोनों रचनाकारों पर यूं ही बनी रहे ... अस्तु .
ख़ैर ख्वाह ,
'मुफ़्लिस'
*********************************
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
nice ghazals
कई दिन बाद आये...
और एक साथ कई रचनाओं का लुत्फ़ उठा लिया...
समझिये के बल्ले बल्ले...शावा शावा हो गया.....
:)
ईश्वर आप दोनों कलाकारों के फन को और उंचाइयां बख्शे...!
कई दिन बाद आये...
और एक साथ कई रचनाओं का लुत्फ़ उठा लिया...
समझिये के बल्ले बल्ले...शावा शावा हो गया.....
:)
ईश्वर आप दोनों कलाकारों के फन को और उंचाइयां बख्शे...!
waah behad sunder
आपकी गजल.....बेहतरीन और सुन्दर
wah wah! kya baat hai!
log on http://doctornaresh.blogspot.com/
i just hope u will like it!
हरकीरत जी,शब्द और आवाज़ मिल करजादू सा असर दे गए हैं. संवेदना की दुनियां में एक कचोट.राजेन्द्र जी और आप दोनों को बहुत बहुत बधाई.
सुंदर ...अति सुंदर ...इसी लिए कहते हैं कि जैसे -जैसे कलाकार कला को गढ़ता है, वैसे ही कला भी कलाकार को गढ़ते हैं और राजेन्द्र जी तो हरकीरत की रचना में समा ही गए हैं जी ...
एक से बढ़कर एक ग़ज़लें।
नज़र हो मुंतज़िर कोई ; कभी हम लौट भी आते
उमीदों के घरौंदे ही तो अक्सर टूट जाते हैं
शज़र हम जो लगाते हैं , वो अक्सर सूख जाते हैं
मुहब्बत हम जहां करते , शहर वो छूट जाते हैं
....वाह !! वाह !! हरकीरत जी ...
बहुत खूब ...
ग़ज़ल सुनते हुए, पढने का आनंद ही कुछ और है ||
तारीफ़ में क्या लिखूं , निःशब्द हूँ ||
इंसां ही बांटे इंसां के
दर्द मुसीबत ग़म , हरकीरत
बहुत -बहुत बधाई आपको, इतने सुन्दर शब्दों का चयन लाजवाब कर दिया राजेन्द्र जी ने ।
राजेन्द्र जी ने आपको देखने के लिए बेहद खूबसूरत आंखें पाई है...रोजन्द्र जी की आंखें ताकयामत सलामत रहें कि आपका नूर छलकता रहे..
मुबारक राजेन्द्र जी का बेशकीमती तोहफा ।
मुबारक राजेन्द्र जी का बेशकीमती तोहफा ।
लाजबाब
बहुत खूब......
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