Saturday, May 8, 2010

हथेलियों पे लगा इक खुशनुमा रंग है .............मुहब्बत
खूबसूरती का महकता एहसास है ..................मुहब्बत
अँधेरे से रौशनी की ओर चलता ख्याल है .....मुहब्बत
उदास चेहरों पर खिली मुस्कान है ............. ...मुहब्बत
जन्मों - जन्मों की इक तलाश है .............. ...मुहब्बत
मुहब्बत मिट्टी के वजूद पर खिला इक सुर्ख गुलाब है ............

पेश हैं कुछ क्षणिकाएं ....जो आज फिर मुहब्बत के दरवाजे पे दस्तक दे रही हैं ........


(१)

प्रेम .....

ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चलना है
मित्र ......!!


(२)

अनकहे शब्द ......


तु .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!

(३)


तेरा ज़िक्र .....

बार पलटी हूँ
मुहब्बत के दर से खाली हाथ
इसलिए नहीं देती मैं
तेरी चाहत को
इश्क़ का नाम
तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है .......!!

(४)

सुर्ख होते पत्ते .......

दीवाना खरीद लाया
इश्क़ के गहने मेरे लिए
जो मैंने पहने ....
तो बदन के ज़र्द पत्ते
सुर्ख हो गए ......!!

(५)

मुहब्बत का रंग .....

तु आना ....
मैं आसमां के सारे रंग
उड़ेल दूंगी तुम्हारे पैरों पर
तुम बस इक रंग मुहब्बत का
मेरे लबों पे सहेज जाना .....!!

(६)


मुहब्बत के रस्ते ....


-जब ....
मुहब्बत की ऊँगली में
इश्क़ ने अंगूठी पहनाई
उम्रों के पत्ते कट गए ...
रब्बा....!
ये मुहब्बत के रस्ते
मौत की कगार से
क्यूँ चलते हैं .....!?!

91 comments:

Darshan Lal Baweja said...

बहुत खूब .....

नरेश चन्द्र बोहरा said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!

बहुत ही ज़ोरदार. बहुत ही अच्छा लिखा है. ये अनकहे शब्द या अनकही मन की बात जिंदगी भर तड़पने के लिए मजबूर कर देते हैं.

दिलीप said...

har kavita ek se badhkar ek...bahut khoob...

Alpana Verma said...

इक दीवाना खरीद लाया
इश्क़ के गहने मेरे लिए
जो मैंने पहने ....
तो बदन के ज़र्द पत्ते
सुर्ख हो गए ......!!

***गज़ब !
-------------------------
ये मुहब्बत के रस्ते
मौत की कगार से
क्यूँ चलते हैं


--अनसुलझा प्रश्न!
-----------
'मुहब्बत मिट्टी के वजूद पर खिला इक सुर्ख गुलाब है'---कितनी खूबसूरत बात कही है!

प्रिया said...

Mohabbat ke rang mein rachi basi ye saari rachnaaye lajawaab hain....Ankahi baatein to ultimate hain...Express nahi kar paa rahe ham...gazab likha hai aapne

Mithilesh dubey said...

क्या कहूँ निशब्द कर दिया है आपने , बहुत ही उम्दा ।

Ashish (Ashu) said...

अपकी रचना वाकई लाजवाब हॆ
बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

dipayan said...

बहुत खूब । ऐसा लगा जैसे कई फूलों ने मिलकर एक खूबसूरत गुलदस्ता बना दिया हो ।

nilesh mathur said...

कल से ही आपकी पोस्ट का इंतज़ार था, क्या टिप्पणी दें इन क्षणिकाओं पर, पढ़ते पढ़ते इतना खो जाते हैं की शब्द भी नहीं मिल पाते, बहुत ही गूढ़ अर्थ लिए हैं सभी क्षणिकाएँ, खास तौर पर
ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चला है
मित्र ......!!
बहुत अच्छी लगी , इसमें शायद चला की जगह चलना होगा! बहुत शुभकामना!

राज भाटिय़ा said...

अभी तुझे चला है
मित्र ......!!
हरकीरत जी लगता है आप ने चलना लिखना था, क्योकि चला जांचता नही,
माफ़ी चाहूंगा अगर मै ने गलत कहा हो, क्योकि मुझे तो कविता की पहली लाईन भी लिखनी नही आती, लेकिन जब पढने मै लगा तो आप को बता दिया.
बहुत ही सुंदर लगी सभी लघु कविताये.
धन्यवाद

Khushdeep Sehgal said...

हरकीरत हीर और गलती...नामुमकिन...

एक-एक शब्द को तराश कर माला पिरोने वाली हीर कोई चूक करें, कम से कम मैं नहीं मान सकता...

ये प्रेम आगे चलने वाला नहीं, जिसे चला जा चुका है, वो प्रेम है...

जय हिंद...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

अनकहे शब्द ......


तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!


बेहतरीन .........

KALAAM-E-CHAUHAN said...

kya nazme kahin hain mohtarma .....

khass kar ke akhiri nazm..aa ha ha .

subhanallah subhan allah.............

KALAAM-E-CHAUHAN said...

aisee choti nazme peerzada qasim sahab bhee kamal kehte hain....aur kehne me gurez nahee ki..... aapko padhne ka man karta hai aap ko padhne ke baad..............

Dr.Ajmal Khan said...

ज़िंदगी के अलग अलग रंग को आप ने कितने सच्चे तरीके से उभारा है कि आप की क़लम क़ाबिले दाद है.
ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चला है
मित्र ......!!
प्रेम आप का अह्सान्मंद हो गया हीर जी आप ने उसको सहारा दिया . क्या अंदाज़े नज़र है आप का .बहुत खूब.....

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!
अब मैं क्या कहू आप ने सब कह दिया
गागर मे सागर भरी है आप ने.
रब मेहर रखे आप पर.

हरकीरत ' हीर' said...

निलेश जी राज़ जी ,
वो शब्द चलना ही था ....शुक्रिया बताने के लिए ......!!

M VERMA said...

तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है .......!!
और जो उस पाक नाम से उस जिक़्र को बरकरार रखना चाहता है वह कितना ऊपर है!!
कभी खामोशी से कह जाती है और कभी कसक दे जाती हैं आपकी रचनाएँ.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर क्षणिकाएं हैं ... खास कर "तुम" मुझे बहुत अच्छी लगी

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

तुम आना ....
मैं आसमां के सारे रंग
उड़ेल दूंगी तुम्हारे पैरों पर
तुम बस इक रंग मुहब्बत का
मेरे लबों पे सहेज जाना .....!!

पढकर मौन हुँ,झांक रहा हुँ
अंतस की गहराई में।
गहरे और गहरे उतर रहा हुँ
बस मौन हो गया हुँ

आभार

डॉ टी एस दराल said...

आज मौसम के मिजाज़ बदले बदले से हैं ।
अच्छा लग रहा है , इन मुहब्बत की पुरवाइयों के साथ विचरते हए।
बेहतरीन और लाज़वाब क्षणिकाएं ।

वाणी गीत said...

ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी .....

कट ही गयी ...वाह ...बहुत खूब ...!!

इसलिए नहीं देती मैं
तेरी चाहत को
इश्क़ का नाम
तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है ..

कुछ नहीं ...सिर्फ मौन ...!!

ये मुहब्बत के रस्ते
मौत की कगार से
क्यूँ चलते हैं .....!?

पता चल जाए तो बता देना अपनी वाणी दी को भी ...:):)

कितना गहरा डूबी उतरी ...शब्दों में नहीं बता पाई ...तुम्हारे जितने/जैसे शब्द हर किसी के पास कहाँ ...

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

"ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!"

बहुत सुन्दर.. अनकहे शब्द.. ये भी बहुत कुछ कहते है.. :)

सुशीला पुरी said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!
---- हीर जी ! आपने अपने इन नन्हें -नन्हें वेला के फूलों से ब्लॉग को महका दिया ...प्रेम की इतनी खूबसूरत व्याख्या !!!!

अरुण अवध said...

बेहद खूबसूरत नज्मेँ
हैँ ।जख्म कुरेद गईँ,
लहू रिस आया, पर
ये राहत सी क्या है....

Deepak Shukla said...

Hi..

Muhabat..
Ek ahsaas,
dilon ke sang,
roohon ka mail..
Duniya ke mele main..
Jeevan ka khel..

Kshnikayen nazmon sa vistaar liye hain.. Ek ek shabd ek kahani..

Wah..

DEEPAK..

प्रवीण पाण्डेय said...

हर कणिका प्रेम के एक पहलू की अभिव्यक्ति ।

आदेश कुमार पंकज said...

a

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक एक क्षणिका मुहब्बत के पैमाने से लबरेज है....बहुत खूब

सुर्ख होते पत्ते .......

इक दीवाना खरीद लाया
इश्क़ के गहने मेरे लिए
जो मैंने पहने ....
तो बदन के ज़र्द पत्ते
सुर्ख हो गए ......!!

ये सबसे ज्यादा अच्छी लगी....

चैन सिंह शेखावत said...

मुहब्बत के अहसास को खुबसूरत लफ़्ज़ों में बयां किया है आपने.
अलग-अलग होते हुए भी सभी क्षणिकाएँ
समग्रता का आभास कराती हैं.
बेहतरीन रचना.

दिगम्बर नासवा said...

तुम आना ....
मैं आसमां के सारे रंग
उड़ेल दूंगी तुम्हारे पैरों पर
तुम बस इक रंग मुहब्बत का
मेरे लबों पे सहेज जाना ..

ग़ज़ब ... प्रेम के अछूते पहलू समेत लाई हैं आज आप ..... बहुत ही अनुपम क्षणिकाएँ ... स्तब्ध कर देती हैं पढ़ने के बाद ...

Razi Shahab said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!
behtareen

Manish Kumar said...

"मुहब्बत की ऊँगली में
इश्क़ ने अंगूठी पहनाई
उम्रों के पत्ते कट गए ...
रब्बा....!
ये मुहब्बत के रस्ते
मौत की कगार से
क्यूँ चलते हैं .....!?!"

हम्म्म..सही कहा आपने..सोचने वाली बात है कि आखिर ऐसा क्यूँ है..

adhuri baaten¤¤~~ said...

बेहद खुबसूरत रचना, अब क्या कहूँ, निशब्द हो चूका हूँ!

hem pandey said...

'तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है .......!!'

- सुन्दर.

jogeshwar garg said...

ग़ज़ब !
आपकी क्षणिकाएं
इश्क को नई ऊंचाइयां,
प्रेम को और गहराइयां,
मुहब्बत को नए मुकाम और
प्यार को नई परिभाषाएं बख्श गयीं.
बधाई !

ताऊ रामपुरिया said...

नायाब.

रामराम.

neera said...

सब क्षणिकाएं छूती हैं पर "प्रेम "और "अनकहे शब्द" भिगोती हैं...

आपका अख्तर खान अकेला said...

kaash aaapne jo likhaa he voh sch ho jaaye or chaaron trf nfrt kaa zehr khtm ho kr mohbbt ki khusbu mehk jaaye to bs ye desh fir se sone ki chidiyaa h jaaye aapne behtrin likhaa he iske liyen bdhaai. akhtar khan akela kota rajasthan

ज्योति सिंह said...

ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चलना है
मित्र ......!!
जबरदस्त हमेशा की तरह ,प्रेम को इस नये रूप मे ......क्या बात है ?

राजकुमार सोनी said...

एक बात बताइए आप इतना अच्छा लिख कैसे लेती है। कभी वक्त मिला तो अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में भी पाठकों को बताएं। बहुत खूब। लगा जैसे आसपास ही कोई खरगोश टहलते हुए अपनी मासूम आंखों से देखने लगा है।

हरकीरत ' हीर' said...

राजकुमार जी ,
हर अच्छे कवि के पीछे उसका तप होता है ....दर्द से गुजरना भी एक तप ही तो है .....और इस तप के बाद खुदा भी कुछ करीब आ जाता है ....ये शब्द उस खुदा की देन हैं .....!!

विनोद कुमार पांडेय said...

हरकिरत जी आपकी रचनाएँ बहुत दिनों से पढ़ते आ रहा हूँ वही ताज़गी और सुंदरता..बेहतरीन भाव..हरकिरत जी बधाई

kunwarji's said...

ji behtareen!

kunwar ji,

kunwarji's said...

behtereen hai ji.....

kunwar ji

अनामिका की सदायें ...... said...

hamesha aapka likha mujhe goonga kar jata hai...

fir bhi ye muhobbat tumhare dar tak mujhe kheench lati hai..

kabi mera sab blog anamka.blogspot.com bhi dekhe. iltza hai.

ओम पुरोहित'कागद' said...

बीज मंत्र सरीखी सभी क्षणिकाएं जोरदार हैँ। बधाई हो!

Renu goel said...

कई बार पलटी हूँ
मुहबत्त के दर से खाली हाथ ,
इसलिए नहीं देती मै
तेरी चाहत को
इश्क का नाम ,
तेरा ज़िक्र
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है ...

मोहबत्त की सही परिभाषा यही है

Avinash Chandra said...

bahut hi khubsurat hai har kshanika

arvind said...

कई बार पलटी हूँ
मुहब्बत के दर से खाली हाथ
इसलिए नहीं देती मैं
तेरी चाहत को
इश्क़ का नाम
तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है .......!!
...bahut hi khubsurat rachanaayen.

shikha varshney said...

बेहतरीन क्षणिकाएं ....पहली वाली सबसे सुन्दर लगी.

jamos jhalla said...

बहुत ही वधिया जी

रजनीश 'साहिल said...

बहुत खूबसूरत क्षणिकाएं। पर माफी की गुज़ारिश के साथ कह रहा हूं कि जाने क्यों इनमें आपकी हमेशा की तरह छू जाने वाली बानगी उतनी शिद्दत से महसूस न हो सकी।

डॉ .अनुराग said...

कोई ओर भी है जो....सपनो को बांटता है बेखोफ होकर ....



अपने सर्द कमरे में
मैं उदास बैठी हूँ
नीम वादरीचों से
नाम हवाएँ आती हैं
मेरे जिस्म को छूकर
आग सी लगाती हैं
तेरा नाम ले लेकर
मुझको गुदगुदाती हैं

काश मेरे पर होते
तेरे पास उड़ आती
काश मैं हवा होती
तुझको छू के लौट आती
मैं नहीं मगर कुछ भी
संगदिल रिवाज़ों के
आहनी हिसारों में
उम्र क़ैद की मुल्ज़िम
सिर्फ़ एक लड़की हूँ





फिर उलहाना देता है सबको.......पर ऐसे ही लफ्जों को रखकर मांगता है .....मोहब्बत को ......

बारिश अब से पहले भी कई बार हुई थी
क्या इस बार मेरे रंगरेज़ ने चुनरी कच्ची रंगी थी
या तन का ही कहना सच कि
रंग तो उसके होंठों में था




नवेद कोई बनाम-ए-मौसम
न तहनियत कोई चश्म ऐ नाम को
न मुस्कराने का था सबब कुछ
मगर मिले तो
ख़ुशी छुपाए न छुप रही थी
हम अपनी आवाज़ सुन के हैरान हो रहे थे
हमारे लहज़े में
रात में होने वाली बारिश खनक रही थी



ओर इस बार बारिश को कैसे पकड़ कर ........ठीक वैसे ही.......जैसे किसी ने अपनी नज़्म फेंकी हो किसी के सिरहाने आवाज़ देकर उसे जगाने वास्ते






नवेद कोई बनाम-ए-मौसम
न तहनियत कोई चश्म ऐ नाम को
न मुस्कराने का था सबब कुछ
मगर मिले तो
ख़ुशी छुपाए न छुप रही थी
हम अपनी आवाज़ सुन के हैरान हो रहे थे
हमारे लहज़े में
रात में होने वाली बारिश खनक रही थी




अनकहे शब्दों का इंतजार लम्बा भी होता है ओर बैचैन भी.....बदन के ज़र्द पत्ते सुर्ख ही फबते है कुछ चेहरों पर.........


आसमान का रंग भी सुर्ख सा है .....आज!!!!

आप के बहाने आज परवीन शाकिर को भी याद कर लिया....

rashmi ravija said...

ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चला है
मित्र ......!!

क्या बात है...बहुत ही सुन्दर...सारी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक

रश्मि प्रभा... said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!



कई बार पलटी हूँ
मुहब्बत के दर से खाली हाथ
इसलिए नहीं देती मैं
तेरी चाहत को
इश्क़ का नाम
तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है .......!!


हाँ तभी तो तू हीर है .............

योगेन्द्र मौदगिल said...

wahwa..khoob kaha...

Parul kanani said...

bas padhti jati hoon baar baar
kain baar!

RAJWANT RAJ said...

bdn ke jrd ptte surkh ho gye
sch prmatma ki bdi rhmt hai aap pr jo es pak ehsas ko es khoobsurti se bya krti hai.aaj ki sham aap ke blog ke nam.

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!
tareef me shabd abhivyakt karne ka saahas mere paas nahi hai..............par itna kaha ja sakta hai ki wo har koi bhot bhagyashaali hoga jo apki rachnaaye padh paata hoga!!!!!!

सुभाष नीरव said...

हरकीरत जी, आपकी इन कविताएं को पढ़ना मुहब्बत के पाक अहसास से गुजरने जैसा लगा। इन छोटी छोटी कविताओं में आपने क्या कुछ नहीं कह दिया है। सहेज कर रखने वाली कविताएं हैं। बधाई !

Satya Vyas said...

ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!

इतनी सी बात मे ही सम्पूर्ण जीवन है .

Anonymous said...

yun hi likhte rahein...
-----------------------------------
mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/

Anonymous said...

aapki kavitaayein achhi lagti hain....

Shri"helping nature" said...

sanvednaon se bhari

Ravi Rajbhar said...

Har baar ki tarah is baar bhi khamosh hai...

Anonymous said...

"तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!"

हर अच्छे कवि के पीछे उसका तप होता है ....दर्द से गुजरना भी एक तप ही तो है .....और इस तप के बाद खुदा भी कुछ करीब आ जाता है ....ये शब्द उस खुदा की देन हैं .....!!
खुदा के दिए हुए इन शब्दों को शत शत नमन!

kavi surendra dube said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कअच्छा लिखा है आपने टती गयी ......!!

kavi surendra dube said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कअच्छा लिखा है आपने टती गयी ......!!

kavi surendra dube said...

तुम .....
मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कअच्छा लिखा है आपने टती गयी ......!!

हर्षिता said...

क्या बात है, सारी क्षणिकाएं। बहुत ही सुन्दर है।

RAJWANT RAJ said...

kl aapki sari post pdhi
kbr our njm ,kuchh our apne trishul ki vo laene
''ekveriym me kaid mchhli ko vh roj dal jata hai roti ka ek tukda
our nikl pdta hai..............
....tkhti pr likha tha..prem niwas.''
wahhhh,kya likhti hai.kl mere chawl jla diye .aaj khana bna ke baithi hu. .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कई बार पलटी हूँ
मुहब्बत के दर से खाली हाथ
इसलिए नहीं देती मैं
तेरी चाहत को
इश्क़ का नाम
तेरा ज़िक्र ....
उस पाक नाम से
कहीं ऊपर है ...
हरकीरत जी...कुछ कहते नहीं बन रहा है..
आपकी नज़्में ऐसी कैफ़ियत पैदा कर देती हैं...
लाजवाब अंदाज़....बेहतरीन शायरी

Satya Vyas said...

एक बात और जो मह्सूस की है

तुम आना ....
मैं आसमां के सारे रंग
उड़ेल दूंगी तुम्हारे पैरों पर
तुम बस इक रंग मुहब्बत का
मेरे लबों पे सहेज जाना .....!!
आप बारहा अम्रिता प्रीतम की याद दिला जाती हैँ
सत्य

Pawan Kumar said...

मोहतरमा.....
आपने तो नज्में लिख कर महफ़िल लूट ली......कोई एक हो तो उसकी तारीफ करूँ सारी नज्में एक से बढ़ कर एक...... यह तो लाजवाब है......
जब-जब ....
मुहब्बत की ऊँगली में
इश्क़ ने अंगूठी पहनाई
उम्रों के पत्ते कट गए ...
रब्बा....!
ये मुहब्बत के रस्ते
मौत की कगार से
क्यूँ चलते हैं .....!
ऐसे ही लिखती रहें....हमारी दुयाएँ हैं.

Yashwant Mehta "Yash" said...

आपकी शायरी से मोहब्बत हो गयी हैं

R.Venukumar said...

मेरी लिखी नज्मों में
ढूंढते रहे अपने लफ्ज़
मैं तेरी लिखी सतरों में
ढूंढती रही कुछ छूटे हर्फ़
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!


कमाल की सतरें
आदाब

अपूर्व said...

मुहब्बत की शीरीं चाशनी मे पगी हुई क्षणिकाएँ..इस एक लफ़्ज के कई जुदा रंगों को मआनी देती हैं..
सबसे बेहतरीन क्षणिका दूसरी वाली लगी..कितने अनपढे लफ़्ज़, अनकहे अल्फ़ाज, अनलिखे हर्फ़, अनदेखे वर्क जिंदगी की किताबों मे छूट जाते हैं..एक अधूरापन रह जाता है..किसी इंतजार सा..
ज़िन्दगी यूँ ही तेरे
अनकहे शब्दों के
इंतजार में
कटती गयी ......!!

मगर यही अधूरापन ही जिंदगी की इस कहानी को मुकम्मल भी बनाता है..!!
..वहीं पहली नज़्म प्रेम को एक सिक्के सा पैरहन देती है..कि लगातार चलने के बावजूद उसकी कीमत कम नही होती..और अहमियत भी!!

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत बढ़िया लिखा आपने...पसंद आई आपकी तीनों रचना.


______________
पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब..
देर से आने का भी मज़ा है...
प्रेम के सागर में गोते लगाओ और आशिकों की आहें सुनो, मेरा मतलब है पढ़ो..
बहुत खूब.

सर्वत एम० said...

बहुत... लम्बे अरसे के बाद... यहाँ तक आने में सफल हो सका.
कविता पर क्या कहूं? आपकी नज्में निः शब्द कर देती हैं. इस विद्या में आप माहिर हैं और माहिरों को इस अकिंचन की ओर से ----------- "क्या कहा जाए" जैसे सन्नाटे का सामना करना पड़ता है. फिर, ८२ कमेंट्स के बाद आने वाले पर निगाह भी पड़ेगी, शक है.

Sumit Pratap Singh said...

really nice...

Anonymous said...

aap bahut achchha likhti hai aunty..

स्वप्निल तिवारी said...

in rachnaon me se amrita jiu ki khushbu aa rahi hai ... bahut khushbudar kshanikayen lageen ye mujhe.. :)

RAJESHWAR VASHISTHA said...

बहुत अच्छा लिख रहीं हैं आज कल ....छोटी-छोटी सभी कविताएँ बहुत बड़ी हैं.....अद्भुत.

palaash ki talaash said...

as always very beautiful and picturesque compositions...
your poetry are seeds of imagination which blossom in many hearts and many lives....

ओम पुरोहित'कागद' said...

हरकीरत जी,
सतश्रीअकाल!
आप जी दियां कवितावां दर्द लपेटियां पर दूजेयां दा दर्द सांझा कर दियां हन।इन्नी राप गए वी होरुं पड़ण नूं मजबूर कर दियां हन।फेर बधाइयां।
*तुस्सी मेरे ब्लाग ते अपणा फोटो क्योँ नीँ लाया?ऐ ते नाराजगी आळी गल हो गई।

SHIVLOK said...

प्रेम .....

ऊंचाई से लुढ़क के
पेड़ों के झुरमुटे में
कहीं अटका पड़ा था प्रेम
मैंने उसे उठाकर खड़ा किया
धूल झाड़ी और कहा.....
अभी तुझे चलना है
मित्र ......!!

VAH VAH
BAHUT ACHHA
BAHUT SUNDER
REALLY GREAT
THANX

प्रशांत भगत said...

सड़क के किनारे लगे
बैनर , पोस्टरों से
इशारे करता है तेरा ख्याल
झिड़क देती हूँ तो
बड़ा मासूम सा .....
किसी लैम्प पोस्ट के नीचे
जा खड़ा होता है
तेरा ख्याल .......!
क्या बात है
क्या खूब परिकल्पना है /
मुरीद हो गया मै /

jitendra jitanshu said...

apki ki kitab ki pratiya khatm ho gayee hain dsusre sankaran ki baat ker le
jitendra jiotanshu
kolkata

MY HEART said...

हम तो अभी ब्लोग्स के दुनिया में नए है.बस आपनी भावनाए लिख देता हु .दिल में उठे भाव को ब्लोग्स से बात कर लेता हु. आपका बहुत बहुत धन्वाद