न इश्क़ दरिया है ........न इश्क़ है शराब ....इश्क़ मरहम है ....हर रिसते ज़ख्म पर रखा ...ईमान है ...इश्क़ खुदा है ...कभी इश्क़ की किताब कायदे से पढ़ लेना ...ज़िन्दगी संवर जाएगी ...... .....
आज न जाने ये कैसी
बेमुरब्बत सी हवा चली
के बुझती आँखों में
फिर हसरत लिए
हूँ अडोल सी खड़ी ....
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
Friday, April 9, 2010
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63 comments:
sundar...
आप बहुत अच्छा लिखती है। बढिया ,बहुत ही बढिया....
बहुत सुन्दर अमृता प्रीतम याद आ जाती है इसको पढ़ते हुए
"इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......"
बड़ी सरलता से आप अपनी बात कह जाती है!
बहुत बढ़िया जी एक बार फिर!
कुंवर जी,
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
बहुत खूब... अंदाजे बयां एकदम जुदा!
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
hamesha ki tarah dil ki athah gahraiyon se nikli nazm.
लाजवाब रचना...हमेशा की तरह...धीरेन जी को शीघ्र स्वस्थ्य लाभ हो ये ही कामना करता हूँ...
नीरज
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
मुरीद हैं हम तो आपकी नज़्मों की गहराई के.
भाव बेहतरीन
ati sunder...........
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
आज फिर दिल ने इक तमन्ना की है,
आज फिर दिल को मत समझाइये ।
बिलकुल अलग रचना पढ़कर दिल खिल खाया , हरकीरत जी।
इस नज़्म में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है। इस को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।
आपकी उपमाय़ें एक विशेष चमत्कार उत्पन्न करती हैं.
Ishwar Dheerendra ji ko swasthya laabh dein....Ranju je ne sahi kaha....kuch shabd amritaji se hi lage
chaand ke jism se hizra kee aag....nazm ise kahte hain
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
बहुत सुन्दर भाव.....वाह
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
बहुत खूबसूरत
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
kya tod diya hai shabdo ka. waah.
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
mujhe bhi aapko guru dron banaana padega.
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही ..
kya baat hai....superrrb.
नज़्म मे डूबी तो निकल न सकी ........दिल से मुबारक .
क्या खूब कहा है !
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर मुझे
पढ़ती रही .......!!
behad khoobsoort....
कब्र तो आँखें मूंदे पड़ी रही ...
चांदनी पंचम स्वर में गीत गाने लगी ...
सुन्दर ...!!
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
ek ek alfaaz kaabil-e-taarif..........apki har rachna ati vishisht hai........kya baat hai
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
Bahut sundar bhavanatmak abhivyakti-----
Poonam
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्नकाफिया
तोड़ चली .....
बेहतरीन भाव...
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली .....
बहुत ही आसानी से सहज ही कह दी इतनी गहरी बात .... अमृता की याद दिलाती हैं आप सच में ...
हुस्नकाफिया तोड़ चली - विलक्षण प्रयोग , प्रशंसनीय ।
इश्क़ दरिया नहीं ........इश्क़ शराब भी नहीं ....इश्क़ मरहम है ....हर रिसते ज़ख्म पर रखा ईमान है ...इश्क़ खुदा है कभी इश्क़ की किताब कायदे से पढ़ लेना ...ज़िन्दगी संवर जाएगी ...... .....
bahut khoob kaha hai .....bhai waah ! maza aagaya .....subah se kuch badihya padhne ka yog tha kundali mein . abhi abhi poora ho gaya....
लफ्जो के तानो से
जब इश्क के अक्षर फिसल कर गिरते है
कोरे दिल के कागज पर
इश्क के सुर्ख रंग का चढ तो लाजमि है!
ishq hai sirf ishq !! adhbhut !
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
bahut sunder nazme ..mano her alfaz kuch kahe raha hai humse "
" dil jeet liya "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
आप तो लगता है दर्द को दुबारा जगा के ही दम लेंगी. बुझी आग को राख से सुलगा के ही मानेंगी.....
behatareen.
are...........!!??
main to chuppa hi rah gayaa....अरे ...........!!??
मैं तो चुप्पा ही रह गया
हरकीरत जी,
आप वास्तव मेँ बहुत अच्छा लिखती हैँ।ये पोस्ट बहुत अच्छी लगी।बधाई!
रब्ब वी नीँ जाणदा इश्के दी मार, जे जाण दा ते सानूं हेठ कांनूं भेजदा!उत्ते व्है के हसदा कान्हूं?
Hi..
Khubsoorat nazm..
Bhavpurn shabd jo dil ko chhoo gaye..
Wah..
DEEPAK SHUKLA..
बहुत सुन्दर..
लिखा था जिस किताब में "इश्क तो हराम है हु ही वही किताब गुम......"जगजीत की गायी ग़ज़ल याद आ रही है...
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
pahar amrita ki ek nazm yaad aa gayi...
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
ये अंदाज़े-बयां
कोई चुराये भी तो क्योंकर?
harkirat ji ,
aakhir panktiyan to gajab ki likhi hai aapne ...bahut dino baad aapki kalam se behad shaandar rachna ka janm hua hai ..
aabhar aapka
vijay
pls read my new poem on my blog
www.poemsofvijay.blogspot.com
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
कई बार, पढ़ा मैंने
पता नहीं और कितनी बार पढूँगा ||
मुझे एक शेर याद आया :
तुझको सोचा तो बहुत, पर लिखा कम मैंने ,
कि तेरी तारीफ के काबिल मेरे अलफ़ाज़ कहाँ !!!
बधाई स्वीकारें .....
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
aap ko kya kahoon ,har baar hi laazwaab hoti hai ,yahan aakar ek geet ke bol yaad aate hai ----
gam ka khazana tera bhi hai mera bhi .........
Har ek sabak yad hai mujhe ishq ka ae rafeeq!
Zindagi maashooka hai aur maut uski saut hai!
"इश्क़" ही हैं दुनिया मेरी .................और मैं सज़दे हूँ आपकी नज़्म के ........................
मोहतरमा हीर जी
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....!!
इस नज़्म को पढने के बाद लगा कि नज़्म कैसे लिखी जाए यह तो आपसे पूछा जाना चाहिए............लफ्ज़ और एहसास जब मिलते हैं तो नज़्म बनती है........
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
lajabab rachna .......
मैं आज तक नज़्म नहीं कह सका, बहुत गहरा एहसास चाहिये होता है अच्छी नज़्म कहने के लिये, और फिर उस एहसास को सही अल्फ़ाज़ न मिलें तो एहसास से अन्याय होगा। बहुत से टिप्पणीकारों ने इस नज़्म पर सही कहा है कि ये अमृता प्रीतम जी की याद दिला रही है। यही अंदाज़े बयॉं था उनका और ठहर ठहर कर उनकी प्रस्तुति, ऐसा लगता था जैसे किसी अलग ही दुनिया में पहुँच गये। ये नज़्म पढ़कर वही एहसास जिन्दा हो गया।
आपको पढ़ते हुए मुझे अमृता प्रीतम की आवाज सुनाई देती है !दिल के तार बज उठे ! बधाई !
इशक की परिभाषा सही लिख दी। वैसे इशक की किताब कायदे से कहाँ पढते है हम?
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही ..
........... अद्भुत।
KUCH NAHI...... KUCH NAHI
BUS PADHTA JA RAHA HUN. MUSALSAL, BARAHA....
OR KUCH NAHI ..........
SATYA.
bahut sunder ...
"इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......"
..................
ओये होए ......!!
-एक ब्लाग में आपका कमेंट पढ़ा और उसी से यहाँ कट पेस्ट कर दिया।
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली .....
__वाह! लगता है नज़्म आप की कलम से बहती है..
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी .......
Mohabbat ke deewan ki yahi sachchi hai ki ek hi misre mein radeef bhi hai aur kafiya bhi,habeeb bhi aur raqeeb bhi ---
Ap malkous ki gamak ki tarah shabdo ki bandishein lagati hai..uah...
आज लफ़्ज़ों ने
छेड़ दी है जो तान
इश्क़ की ...
कब्र तो आँखें मूंदे
पड़ी रही ...
और नज़्म ......
अक्षर- अक्षर उसे
पढ़ती रही .....
आपकी नज़्म पढ़ कर क्या लिखूं बस लाजवाब और क्या
आपके अश’आर एक रूहानी एह्सास जगाते हैं, ज़ुबान ख़ामोश और दिल अदायगी से लफ्ज़ों की गीला हो जाता है...
क्या कहूँ.... दिल को पूरा उतार कर रख दिया ...लफ़्ज़ों से....
बहुत अच्छी लगी ...नज़्मों की गहराई.... दिल को छू गई....
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
ye to lajavaab hai....
इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......
जादू है आपके शब्दों में । बहोत खूब ।
क्या ग़ज़ब का लिखती हैं आप ! पढके मज़ा आ गया !
Aap bahut achcha likhti hai
waqayi aapko padh kar andar tak ujala rahat fail jaata hai
WAH!!! KYA BAAT HAI
.."इश्क़ ने खोले हैं
दिल के कोरे वरके
चुपके से इक नज़्म
हुस्न का काफिया
तोड़ चली ......"
A wonderful composition..
Thanks Harkirat Ji for sharing.
God bless.
उठने लगी है
चाँद के ज़िस्म से
हिज्र की इक आग सी
चाँदनी पंचम स्वर में
गीत गाने लगी ...
क्या बात है हरकीरतजी , बहुत ऊंचे दर्जे की ग़ज़ल लिखी है आपने. मेरी लेखनी बहुत बहुत बौनी है आपकी रचनाओं के सामने.
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