इक नज़्म ......
सूखे पत्ते सी ज़िन्द
टूट के गिरी यूँ ....
के इक कोरी सी नज़्म
ज़िस्म में उतर गयी है ....
काँपा है फिर वजूद
लफ़्ज़ों की अदालत में
रात तनफ्फुर* के फूल
उगाये बैठी है ......
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
ख़ामोशी लबों से
जिरह किये बैठी हैं ......
छीना है ये किसने
पत्तों से बूंदों का लम्स
वक़्त की मुट्ठी में उम्रें
गाफ़िल* हुई बैठी हैं .....
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* सी लाशें
ज़मीं खोदती हैं ......
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
१) तनफ्फुर-घृणा, नफरत २) लम्स -स्पर्श
३) गाफ़िल-संज्ञाहीन ४) बोसीदा- सड़े-गले, फटे-पुराने
Saturday, March 6, 2010
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66 comments:
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
bahut khoob......jeet isi mein hai ki zamein na dee jaye
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
Ye to ulimate hai...Khamoshi behtar
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं ...
वाह बहुत खूब ....हर लफ्ज़ कुछ कह गया बेहतरीन
जिरह और सीढियां ... क्या खूब अंदाज है ये दोनों... बेशक ...
अभी पिछली नज़्म से उबार नहीं पाया था और आपने ... मार डालने की जिद फिर कर दी ...
हाय रे ....
अर्श
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं ...
aapkee kalam ka koi sanee nahee.....
the words and their explanation are interlaced with emotions
great way to describe
well edited compostion
काँपा है फिर वजू
लफ़्ज़ों की अदालत में
रात तनफ्फुर* के फूल
लिए बैठी है ......
...........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
क्या कहें हम... सोचना पड़ेगा...
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ........
bahut sundr,aabhar.
najm bahut achi lagi....bahut sudar likhi hei...ek line samajh nahi ayi hei.....aap thoda vistar se samjha de to acha lagega.....
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
लाँघ गया इक ख्याल... फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा से रिश्ते ज़मीं मांगते हैं ......
ये कौन छोड़ गया... उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां...उतरने लगी है ........
अय धूप...संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा....यहाँ स्याह रात....हुस्न लिए बैठी है ...
क्या कहा जाये नज़्म के इस खूबसूरत अंदाज़ पर.....
वाह के सिवा
ए हीर,
इतना क़ातिल लिखने से पहले इन बोसीदा बाशिंदों को कुछ अल्फ़ाज भी भेज दिया कर जो तेरी शान जताते वक्त कहीं से बौने न दिखें...
जय हिंद...
आप तो हमेशा बेहतरीन ही लिखती हैं.
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं .....
nishabd kar diya hai .........kuch nhi kah sakti.
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
बहुत सुन्दर....आज तो ब्लॉग का रंग-रूप ही बदल गया..अच्छा है.
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं ....
बेहद उम्दा भाव और उन्हे रूप देते खूबसूरत शब्द....लाज़वाब रचना..धन्यवाद हरकिरत जी
लाँघ गया इक ख्याल...
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा से रिश्ते ज़मीं मांगते हैं ....
क्या खूब कहा है...सारी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक...हमेशा की तरह
बहुत सुंदर.
रामराम.
यशवन्त मेहता "फ़कीरा" said...
najm bahut achi lagi....bahut sudar likhi hei...ek line samajh nahi ayi hei.....aap thoda vistar se samjha de to acha lagega.....
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
यसवंत जी ,
वो सड़े- गले रिश्ते जो बोझ बन गए हैं खत्म हो जाने के लिए ज़मीं मांगते हैं .....!!
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ...
Bahut khoobsoorat khyaal ... aap gazab ka nasha banaa deti hain apni rachnaaon mein ..
अंतर मन तक झकझोड़ने वाले अलफ़ाज़+रात की ख़ूबसूरती का राज़[स्याही] वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
स्याह रात का हुस्न क्या कहने
बहुत खूब
चित्र उभर आया
बेहद उम्दा नज़्म हीरजी ! शब्द-शब्द बोल रहा है और दिमाग में एक तूफ़ान पैदा कर रहा है :
"लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......"
इस ख़याल में आज भी इतनी गर्मी बाकी है कि दहलीज़ लांघकर वे आ खड़े हुए है और बोसीदा रिश्ते के लिए ज़मीं मांग रहे है.... पढ़कर सिहरन होती है !!
जानता हूँ, आपकी कलम के पैनेपन को ! बहुत खूब ! बहुत बधाई !!
साभिवादन--आ.
ऐ हीर की नज्मों के दीवानों
संभल कर पढ़ना
हीर इस नज़्म में
शब्दों के खंज़र लिए बैठी है!
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
wah! kya bat hai..bahut khoob..bahut khoob...
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना ........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ਵਾਹ!!!!
ਇੱਕ ਬਿੰਦੂ
ਸਮੇਟੀ ਬੈਠਾ
ਸਫਿਆਂ ਦੀ ਕਹਾਣੀ
.........
ਅੱਖ ਦਾ ਇੱਕ ਝਮੱਕਾ
ਸਾਂਭੀ ਬੈਠਾ
ਸਦੀਆਂ ਦੀ ਕਹਾਣੀ
............
ਗਗਨ ਦੇ ਥਾਲ਼ ਵਿੱਚੋਂ
ਇੱਕ ਤਾਰਾ
ਸਮੋਈ ਬੈਠਾ
ਮੇਰੇ ਪਿਆਰ ਦੀ ਕਹਾਣੀ
...............
ਲੁਕੀ ਹੋਈ
ਇੱਕ ਕਦਮ ਵਿੱਚ
ਪੂਰੇ ਸਫਰ ਦੀ ਕਹਾਣੀ
...........
ਬੂੰਦ ਵਿੱਚ
ਸਿਮਟੀ
ਸਮੁੰਦਰ ਦੀ ਕਹਾਣੀ
ਤੁਹਾਡੀ ਨਜ਼ਮ ਦੇ ਇੱਕ ਇੱਕ ਅੱਖਰ ਦੇ ਉਹਲੇ ਕਈ ਕਿਤਾਬਾਂ ਘੁੰਡ ਕੱਢੀ ਬੈਠੀਆਂ ਨੇ ....
achha hai!! bahut achha!!
बहुत खुब लगी आप की यह रचना
धन्यवाद
बेहतरीन। लजवाब।
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
वाह लाज़वाब ।
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
har baar main aapki rachnao ko padhane ke baad sochane lagta hun..ki kya kahun..aur antatah koi shabd nahi mitla mujhe aapki tarrif men..
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
bahut khoob...!
स्याह रात का हुस्न ..बहुत मनमोहक बिम्ब है ।
हीर जी
छीन लिया फिर
किसी ने पत्तों से
मींह की बूंदों का लम्स
वक़्त की मुट्ठी में उम्रें
गाफ़िल* हुई बैठी हैं .....
ये पक्तिंयां मन को छू गई
सुमन ‘मीत’
again
बल्ले-बल्ले!
शब्दों को खतरनाक बनाना कोई आपसे सीखे।
हर लफ़्ज सीधे दिल की गहराई में उतरता सा महसूस होता है...दिल से लिखी गई इस कविता को दिल से सलाम...
'लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......'
वाह ! वाह !!हरकीरत जी ग़ज़ब का लिखा है!
बहुत ही खूबसूरत सी नज़्म है ..
zindgi ke safar mein kuch pal, kuch log yun bookmark ho jaate hain ki kabhi bhulaye nahi bhulate... bahut khoob!!
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है
बेहद खूबसूरत लफ़्ज़ों में लिपटे एहसास आपकी कलम से ही कहे जा सकते हैं...आप के इस हुनर को सलाम ...
नीरज
thanks for reading my lines
this photo is of my son
which keeps parallel line intact
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ...
अद्भुत।
आप कहाँ से ले आती है इतने गहरे और सुन्दर शब्द।
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ......
क्या कहूँ आप कुछ कहने के लिए जगह ही कहाँ रखती हैं.वैसे भी आपके ब्लॉग पर आकर तो शब्दों का जैसे अकाल ही पड़ जाता है
उनका सूरज
कब का डुब चुका
मेरे आंचल मे
स्याह रातो ने कई बार चाँद से
उम्मीद लगाये बैठी रही
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं ......
jireh kar lene do
hotho ko
varna aansu jeet gaye
to mushkil hogi...
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
le lene do zami
rishte bosida hi sahi
aaj itni himmat to ki
ki dehleez tak aa pahuche....
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
syaah raat ko hi
dulhan ban jane do
dhoop to ang jala degi..
क्या अंदाज़ है!
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
भावनाओं की गहराई तो आपकी रचनाओं में हमेशा ही दिखती है। इस बार भी महसूस हुई। पर पढ़ते वक्त एक प्रवाह नहीं बन सका मन में।
aap jaisi kavityatri ke baare me kahne ko hamare pass alfaaz nahi hote ....har ek rachna aapki apni khasiyat liye hoti hai ...bahut andaaz me har alfaaz ke saath insaafi kiya hai ....bahut khoob
best regards
aleem azmi
ओर मुई धुप फिर भी मशवरा मानती नहीं ......इस रत से ठिठोली करती रहती है ......इस सफ़र में कोई मोड़ नहीं है ?
कोई राह चलता,
खुशियों को
तेरे दर का पता दे दे,
तेरे दर्द को
कोई
खाली घर का पता दे दे।
Bhavpurn sabd sayojan se saji atarman ko udelit karti rachna ke liye bahut badhai
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
वाह, बेहतरीन
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से रिश्ते
ज़मीं मांगते हैं ......
हरकीरत जी आपके अहसास अहसासों की जमीन पर गहरे धंसते हैं..जिस तरह आप षब्दों की बुनावट के साथ अहसासों का कसीदा करती है वह ...काबिलेसलाम है
आदाब
कभी ग़रीबखा़ने में भी तसरीफयाब हों
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
हर शब्द पंक्तियों को पूरा करने के साथ ही जाने कितना कुछ कहता हुआ, बधाई ।
लाँघ गया इक ख्याल
फिर तेरी दहलीज़ आज
बोसीदा* से लाशें
ज़मीं खोदती हैं ......
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
syaah raat husn liye baithi hai
waah kya andaaz hai baat kahne ka
स्याह रातों का हुस्न!!..और धूप से गुजारिश...क्या बात है..ब्लॉग टेम्प्लेट भी यही बात कहता हुआ सा लगता है..वैसे इस हुस्न का एक पोशीदा पहलू इसकी राजदारी का भी होता है..जो स्याहपन बढ़ने के साथ गहरा होता जाता है..शायद रात का यही जहरीला जादू उसके तारीक जिस्म मे छुपा होता है..
खामोशी की लबों से जिरह के बीच दर्द की गली की हंसी की बात दूर तक जाती लगती है..
दूसरे स्टैन्जा मे वजू है या वजूद..थोड़ा कन्फ़्यूजन हुआ...
नज्म मे दर्द भरी खूबसूरती है..मगर अब यह दर्द का मौसम भी बदलना चाहिये...
अपूर्व जी ,
वजू को वजूद कर दिया गया है ....शुक्रिया ध्यान दिलाने के लिए ......!!
tusi te kamal ee karde ooo
hameshaa ki tarah...
ek nayaab ...lajwaab...
bhaavpoorn rachnaa
aur urdu ke alfaaz to
kamaal hi kamaal
bataa ye hunar toone.....!?!
क्या कहें....सिर्फ मौन....कहीं अंदर तक....
वैसे बिना दाढी वाली का जवाब पोस्ट में ही है...
''''यार अब, दाढ़ी बना कर कितने स्मार्ट हो जाएंगे....अभी लंगुर लगते हैं, बिना दाढ़ी के बंदर लगने लगेंगे...'''''
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
ख़ामोशी लबों से
जिरह किये बैठी हैं
title ke shabd hi man ko sparsh kar gaye , rachna ke baare me kahne ko shabd hi nahi sujhe bas ahsaas hi kafi raha yahan ,khoob bahut khoob .
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
- बहुत सुन्दर.
इक हँसी सी उठी
दर्द की गली में ...
आँसू लबों से
जिरह किये बैठे हैं ..
Behtareen ! Nice lines..
ये कौन छोड़ गया
उँगलियों के निशाँ आज
के मुहब्बत दिल की सीढियां
उतरने लगी है ........
अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!
kyaa ending karti hain aap..fir se ek jabardast nazm aapki janib se...
yahan syaah raat husn liye baithi hai..waaaaaah
सूखे पत्ते सी ज़िन्द
टूट के गिरी यूँ ....
के इक कोरी सी नज़्म
ज़िस्म में उतर गयी है ....
bahut khoob..behtreen nazm hai..ek arse baad kuch aisa padhne ko mila jo dil men bahut gahre utar gaya..
Bahadur Shah Zafar bhi taras gaye 'Do gaz zameen' ke liye , to fir inn 'boseeda' se rishton ki bisaat kya hai?
"अय धूप
संभल कर चलाकर
इन रास्तों पे जरा
यहाँ स्याह रात
हुस्न लिए बैठी है ......!!"
मेरे पास तो इतने शब्द ही नहीं जो आपकी कल्पनाशीलता की मुकम्मल तारीफ भी कर सकूँ.
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