Tuesday, February 16, 2010

कुछ कड़वाहटें ...ख़ामोशी ...और रब्ब से इक सवाल .........

तू हादसों की तफ़सील सुनाती रही ज़िन्दगी
मैं रफ्ता-रफ्ता तुझे तलाक देती रही .....




कुछ कड़वाहटें ....ख़ामोशी ....और रब्ब से इक सवाल .........


(१)

ख़ामोशी की गलियों में ......


कुछ दिन गुजारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
सांसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे .......

(२)

तड़पती है काया .....

सफ़्हों पे तड़पती है
हर्फों की काया
कई दिनों से वह* मुझे
घूँट-घूँट जो पीती रही .....

वह* - मौत
(३)

कड़वाहटें .....

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......

(४)

मन की लाशें ....


जब मन की लाशें
डूबती हैं कुएं में
रस्सी पीटती है छाती
मौत हिफाजत से रखती है पैर
रूहें अपना वंश बढ़ाने लगती हैं
इक पत्थर धीरे-धीरे तोड़ता है चूडियाँ
सांसों की .......

(५)

मौत.......

तुमने देखी है
नीली आँखों वाली
सुनहरी मौत .....?
मैंने बांध रखी है
हथेली पे ......

(६)

रब्ब से सवाल ......

बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?

(७)

मर्सिया.....

जब भी उठता है
धुआँ लफ़्ज़ों में
ज़िस्म की चिता जलने लगती है
धीरे-धीरे हवाएं गाने लगतीं हैं
मर्सिया .......

63 comments:

रश्मि प्रभा... said...

हर क्षणिका अपने में एक अलग विशेषता लिए है........

डॉ .अनुराग said...

मैंने सुना है वो शख्स जो रूबरू बहुत खामोश रहता है ....सफ्हो पर बहुत बेबाकी से बोलता है .....अब भी उसके फेंके गये कई लफ्ज़ उठाकर उनके मायने तराश रहा हूं ....डर है कही उसकी रूह को छूकर न गुजर जाऊ .....

दिगम्बर नासवा said...

बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?

सवाल सवाल सवाल ... ऊपर वाला अगर जवाब भी लिख दे तो जिंदगी आसान न हो जाए ... कितना कमाल का लिखा है ..

जब भी उठता है
धुआँ लफ़्ज़ों में
ज़िस्म की चिता जलने लगती है
धीरे-धीरे हवाएं गाने लगतीं हैं
मर्सिया .......
जिस्म तो जल जाता है ... पर लफ़्ज भटकते रहते है .. अर्तों की तलाश में ...

सब क्षणिकाएँ अपना अलग अंदाज लिए है ... कमाल का लिखती हैं आप हरकीरत जी ...

सागर said...

मर्सिया बहुत अच्छी लगी...

धीरे-धीरे हवाएं गाने लगतीं हैं
मर्सिया ......

वाह ...

Alpana Verma said...

'सफ़्हों पे तड़पती है
हर्फों की काया
कई दिनों से वह* मुझे
घूँट-घूँट जो पीती रही .....'

--------
जब भी उठता है
धुआँ लफ़्ज़ों में
ज़िस्म की चिता जलने लगती है
धीरे-धीरे हवाएं गाने लगतीं हैं
मर्सिया .......

---वाह भी और आह भी! -------
दिल को भेद रही हैं आप की ये सभी क्षणिकाएँ.

रजनीश 'साहिल said...

ख़ामोशी की गलियों में ......


कुछ दिन गुजारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
सांसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे .......

बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति |

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत ही बढ़िया मनभावन रचना . आभार

Mithilesh dubey said...

सभी एक से बढ़कर एक , लाजवाब ।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर व उम्दा प्रस्तुति।

"मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......"

बहु खूब!!

Yashwant Mehta "Yash" said...

आज ये तबीयत इजाजत नहीं देती
कि दर्द भरे इन मोतियों को किसी तराजू पर तोल कर कहूँ
"वाह वाह" या "खूब लिखा है"

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

हरकीरत जी, आदाब
ये अंदाज....
कुछ दिन गुजारे हैं फिर...ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी...सांसों का भी कोई पता नहीं...बस पत्ते पैर छूते रहे .......
ये लहज़ा.....
सफ़्हों पे तड़पती है....हर्फों की काया....
ये ख्याल....
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से...फूटते हैं ......
आपकी नई पोस्ट का इंतजार यूं ही नहीं रहता..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

Razi Shahab said...

sundar poetry

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......
क्या कहूं हरकीरत जी...ऐसा लिख देतीं है कि शब्द ही गुम हो जाते हैं..

अलीम आज़मी said...

bahut sunder likha hai ... har ek line ki apni ek visheshta vo gudwatta liye hue .... aap tareef ke paatra hai ....

रवि धवन said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता......
बार-बार पढऩे को जी करता है

रंजना said...

शब्द और भावोद्गारों के बीच कुछ देर को अपने आप को पूरी तरह खो देने के लिए आतीं हूँ आपकी प्रविष्टियों के पास...
और यहाँ आकर निःशब्द हो जाती हूँ...

बस, कमाल कमाल कमाल...

jamos jhalla said...

हृदय पर चिर स्थाई अंकित मर्सिया सराहनीय +बधाई

Anita kumar said...

PM

तू हादसों की तफ़सील सुनाती रही ज़िन्दगी
मैं रफ्ता-रफ्ता तुझे तलाक देती रही .....

श्यामल सुमन said...

तुमने देखी है
नीली आँखों वाली
सुनहरी मौत .....?
मैंने बांध रखी है
हथेली पे ......

बहुत खूब हरकीरत जी। यूँ तो हर एक क्षणिका अपने आप में गम्भीर संदेश लिए है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

kya kahun...........ek hi shabd.........sabhi anupam.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अंदाज वही..दर्द वही..
फिर भी
सब कुछ लागे नयाँ-नयाँ.
...सुंदर क्षणिकाएँ....बधाई.
हाँ, पहली नहीं समझ पाया..
जहाँ पेड़ों की छाया नहीं होती वहाँ पत्ते भी नहीं होते.

vandana gupta said...

harkirat ji

maun hun ...........kis kshanika ke bare mein kya kahun ............bas yahi kahungi har kshanika dil ko choo gayi.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उफ

हरकीरत ' हीर' said...

देवेन्द्र जी ,
जो आप नहीं समझ पाए शायद और भी कई न समझ पाए हों ....इसलिए जवाब यहीं दे रही हूँ .....

ख़ामोशी की गलियों में ......


कुछ दिन गुजारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
सांसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे .......

यहाँ पत्ते भी नायिका के ही बदन के थे ...जो उस आग से झुलस कर झड रहे थे .....!!

جسوندر سنگھ JASWINDER SINGH said...

बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?

ਵਾਹ ਖੂਬਸੂਰਤ
ਸਵਾਲ ਦੇ ਬੀਜ ਵਿੱਚੋ
ਪਸੀਨਾ ਉੱਗਿਆ
ਪਸੀਨੇ ਵਿੱਚੋਂ
ਜਬਾਬ ਲੱਭਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼
ਵਿੱਚ ਫਿਰ ਸਵਾਲ
ਸ਼ਾਇਦ ਬੀਜ
ਆਪਣੀ ਪ੍ਰੀਭਾਸ਼ਾ
ਨਹੀ ਬਦਲਨਾ ਚਹੁੰਦਾ
............
ਗਜ਼ਬ ਗਜ਼ਬ ਗਜ਼ਬ

श्रद्धा जैन said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......


waqayi yahi halat ho jaati hai .......jab wafa ko chot lagti hai

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

हरकीरत जी, आपके सवालों के जवाब में मुझे लगा कि आज मुझे अपसे अपनी एक कविता बांटनी ही चाहिए:-

"जिंदगी बस उदासी ही है
ऐसा भी तो नहीं…
पहली किरण सुबह की,
एक हरा पत्ता कोमल सा,
किसी बच्चे की नाहक मुस्कान,
हवा का एक झोंका,
या फिर
कुछ भी...
कुछ भी बहुत है मेरे मुस्कुरा देने भर के लिए.

ये बस मेरे सोचने की बात है.
बस मेरे सोचने की बात है ये."
0----0

सुशीला पुरी said...

हरकीरत जी ! आपने इन नन्ही नन्ही कविताओं में कई कई आसमान बांध रखे हैं --------
बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?
वाह !!!!!!!!!!कितनी सुन्दर लाइने.

हरकीरत ' हीर' said...

काजल जी ,
आपके जवाब में बहुत कुछ है कहने के लिए ......मगर मैं फिर भी खामोश हूँ ......!!
आप पुरुष नहीं समझ सकते .इन बातों को ...कभी कभी मेरे ब्लॉग पे संध्या आर्य आती हैं उनसे पूछियेगा वो रो क्यों पड़ती हैं मेरी नज्में पढ़ कर ......!!

ज्योति सिंह said...

kis kis ki taarif karoon yahan to koi kisi se kam nahi ,
मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......
bahut khoob

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......


क्या बात है.... कांपती है ज़ुबां मोहब्बत के नाम से.... बहुत सुंदर पंक्ति... इस क्षणिका ने मन को मोह लिया.....


बहुत अच्छी ...मनभावन पोस्ट.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर क्षणिका गागर में सागर के समान ....मन के भावों को अभिव्यक्त करती हुई....

"अर्श" said...

नज्मों की रानी से एक गुजारिश है के इतनी कीमती रचनाएँ एक बार में ना पोस्ट करें ... एक एक कर के ही रखें बर्दास्त के लिए एक ही काफी है ... किश्तों में खुदकशी का मजा हमसे पूछिये...


अर्श

shikha varshney said...

har kashanika kamal hai or ye to
सफ़्हों पे तड़पती है
हर्फों की काया
कई दिनों से वह* मुझे
घूँट-घूँट जो पीती रही
katal hai bas...........

राज भाटिय़ा said...

सभी का अलग अलग आंदाज,अलग अलग रंग, बहुत सुंदर सभी,
आप का धन्यवाद

Rohit Singh said...

बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?

जवाव कहीं नहीं मिलते पर उसकी तलाश जारी रहती है..कभी जवाव मिलता है तो हम पहचान नहीं पाते....यही तो मुश्किल है..अगर जिदगी इतनी आसान न हो, तो दुश्वारियां भी इतनी क्यों होती है ....?????

कडुवासच said...

.... हरेक क्षणिका "चांदनी रात" मे तारों की भांति "टिमटिमा" रही है ...बहुत बहुत बधाई!!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

धन्यवाद.

हरकीरत ' हीर' said...

"अर्श" said...
नज्मों की रानी से एक गुजारिश है के इतनी कीमती रचनाएँ एक बार में ना पोस्ट करें ... एक एक कर के ही रखें बर्दास्त के लिए एक ही काफी है ... किश्तों में खुदकशी का मजा हमसे पूछिये...

अर्श जी ,
आपकी इस पंक्ति ने मुस्कुराहट ला दी ....सच कहा आपने ....एक ही बार मरने से अच्छा है तड़प तड़प कर मरा जाये दर्द के साथ ....वाह -वाह ...क्या बात कही ....जिसने दर्द का मज़ा न लिया उसने क्या जिया ......बहुत खूब .....आपकी बात का ध्यान रखा जायेगा ......!!

वाणी गीत said...

तडपती काया ...छाले बदन के ...मन की लाशें ...सुनहरी मौत ...
क्या क्या रंग दिखा रही है हर क्षणिका ....
हमारे रंग में रंग कर देखिये ....सब कालिख धुल जायेगी ...ग़मों की ...

neera said...

क्षणिकाएं हैं या आसमा से बरसता गम का तूफ़ान..
कैसे वश में कर देती हो इसे शब्दों में पिरो कर? ..

अनामिका की सदायें ...... said...

heer ji....shayed ham sab ke paas kuchh shabd hi hai jinse ham dard ko surat de pate hai...aur aap ke paas to in shabdo ka bharpoor stock hai..na jane kon se sagar se moti chun kar lati hai jo dard ki surat kristal clear si ho jati hai..naman apki lekhni ko...aur apko.

Ravi Rajbhar said...

har chhadika bahut hi ummda hai...aapka naam dekhar man barbas hi aapki rachnao tak pahuch jata hai...hai padhane ke baad lagta hai..sabse pahle maine kyon nahi padha...!

Khushdeep Sehgal said...

ख़ामोशी की गलियों में...

छोड़ आए हम वो गलियां...

हरकीरत जी, इक सलाह देणी सी, ए काले रंग दी बैकग्राउंड नू बदल देयो...काले नाल रीडेबिलिटी घट लगदी वे...हो सकदा ए मेरा वहम होए...

जय हिंद...

पूनम श्रीवास्तव said...

मौत.......

तुमने देखी है
नीली आँखों वाली
सुनहरी मौत .....?
मैंने बांध रखी है
हथेली पे ...... हरकीरत जी, सभी उम्दा क्षणिकाओं में से इस पर दिल और दिमाग दोनों ठहर गये। पूनम

संध्या आर्य said...

न दर्द लब्जों के काँधे से उतरे
न उन लब्जों से बने सवालों को हीं मौत आई

ना हीं सन्नाटे के कान पिघले उन सवालों से
और न खामोशिओं के पाँव हीं रुके

पत्थर था, जिसपे वो सर पीटती थी

Pawan Kumar said...

जब भी उठता है
धुआँ लफ़्ज़ों में
ज़िस्म की चिता जलने लगती है
धीरे-धीरे हवाएं गाने लगतीं हैं
मर्सिया ...............
उफ़ क्या अंदाज़ है लफ़्ज़ों -अहसासों का !
बहुत ही शानदार नज़्म है यह......

पूनम श्रीवास्तव said...

harkirat ji,
is behatarin post ke liye
mujhe shabd hi nahi mil pa rahe hain.
iske jawab me yahi kah sakati hun ,
ek shandar , jaandaar belajabab rachana.
poonam

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत सुन्दर सवाल
रब्ब से सवाल ......
बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?
बहुत बहुत आभार

RAJ SINH said...

अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से.......

क्या होता होगा ऐसा अहसास भी अनंत वीरानगी का .दर्द से कैसा रिश्ता जोड़ लिया है आपने ' हीर '

सुशील छौक्कर said...

हर क्षणिका अपनी अलग बात कहती हुई। रब्ब से किया सवाल वाजिब है। आपकी रचनाएं पढने के बाद सोचने के लिए मजबूर करती है। यही आपके लेखन की खासियत है। काफी दिनों के बाद आना हुआ आपके ब्लोग पर।

ज्योति सिंह said...

तू हादसों की तफ़सील सुनाती रही ज़िन्दगी
मैं रफ्ता-रफ्ता तुझे तलाक देती रही .....
aaj aapki nai rachna dekhne aai rahi magar in panktiyon par achnak najar pad gayi jo dil ko chhuye bina nahi rahi ,is khoobsurat andaj par bina shukriya kiye jaa nahi saki .

सदा said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता......
बार-बार पढऩे को जी करता है

सच कहूं तो किसी एक की तारीफ करना मुश्किल है, हर क्षणिका अपने आप में एक अलग ही खूबसूरती लिये हुये, बधाई ।

Apanatva said...

बीजती हूँ सवाल
तो उग आता है पसीना
रब्बा तेरी दुनियाँ की किसी कोख में
जवाब नहीं उगते क्या .....?
lajawab..........
such to te hai ki sabhee kshnikae bemisal hai.......

अंजना said...

मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......"

वाह बहुत ही बढ़िया |

प्रकाश पाखी said...

क्षणिकाएं बेहतरीन है..
कडवाहटें और रब्ब से सवाल तो बेमिसाल है.!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

कुछ दिन गुजारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
सांसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे .......

क्या कलम है आपके पास..जो लिखती है सब अनसुना होता है..लगता है किसी ने बस अभी उठाकर कानो पर रखा हो..

सारी की सारी बेमिसाल..

अपूर्व said...

आपकी कविताओं की ’इंटेंसिटी’ और व्यंजना जितनी मंत्र-मुग्ध करती है अक्सर..उसमे मौजूद वीरानापन और टूटन उतना ही डराती भी है..फिर उस पर यह नया टेम्पलेट..!!
मगर कविताओं की इस जानलेवा खूबसूरती पर मेरे जैसा स्वार्थी पाठक बस वाह-वाह ही कर सकता है..जो काफ़ी भी नही होगा यहाँ..

और फिर यह पंक्तियाँ..?
इक पत्थर धीरे-धीरे तोड़ता है चूडियाँ
सांसों की .......

क्या कहूँ....

रोमेंद्र सागर said...

आपको पढते पढते अचानक से एक सौंधी सी हवा का झोंका गुज़र गया आस पास से...
छेड़ गया जज्बातों की गली में खेल रहे ख्यालों के शैतान से बच्चों को...
ओह अमृता ! तू कहीं पास है बहुत !

सुरेश यादव said...

हरकीरत जी ,आप शब्दों को जिंदगी के गहरे अहसासों में उतार कर प्रस्तुत करती हैं ,सहज संवेदना कि इन कविताओं के लिए हार्दिक बधाई.

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति |

manu said...

हरकीरत जी..
अर्श की बात से सहमत हैं हम भी...
एक साथ कई ख्याल ज्यादा उलझा जाते हैं...
और पंजाबी ज्यादा समझ नहीं आती हमें.लेकिन ...
खुशदीप जी वाली समस्या हमें भी है...

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

"मैंने घोल दीं हैं हवाओं में
सारी कड़वाहटें उम्रों की
अब यहाँ कोई पत्ता
इश्क़ का नहीं खिलता
कांपती है जुबाँ मोहब्बत के नाम से
कई छाले इश्क़ के बदन से
फूटते हैं ......"


waah!!!!!!

aapki nazm padhkar bas karaahna baaki raha......aansu to chhalak aaye the bas subaknaa baaki raha!!!