आकाशवाणी की उस रंगीन शाम के बाद मौसम के भी मिजाज़ बदल गए ... ....सूरज कोहरे की ओट में धूप को साथ लिए कई दिनों की छुट्टियों पर है .......ऐसे में जिस्म में हलकी सी गर्माहट दे जाती है मुहब्बत की तस्दीक देती इमरोज़ की एक नज़्म 'हीर के लिए ' ......और साथ ही नव वर्ष का इक प्यारा सा कार्ड भी ......जिसमें उन्हीं के हाथों की कलाकारी है .... उसी में चंद पंक्तियाँ पंजाबी में भी लिखी हुई ....."
पारदर्शी वफा ही
वफा हुंदी है .......
आपणे आप लई वी
ते ज़िन्दगी दे
हर रिश्ते लई वी .........
इस बार जवाब जरा देर से आया ......ख़त वापस लौट आया था ....फोन किया तो कहते हैं ...." उसी कोरियर से तुरंत वापस भेजो मैं इन्तजार कर रहा हूँ "....पेश है वही नज़्म ...." इमरोज़ का एक ख़त हीर के लिए.......... "
वह इक अल्हड सी लड़की
अल्हड सी उम्र में
अक्षरों से खेलने लगी थी
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया .....
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
वह अभी
प्यार के बराबर नहीं हुई थी
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते जैसे वह हीर हो गयी
अब हीर को अपना आप
प्यार के बराबर होता नज़र आ रहा था
वह जब भी अपने आप को
प्यार के बराबर का देखती
उसे किसी बंसरी कि आवाज़
सुनाई देने लगती .....
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
मुहब्बत के रंग में डूबा
हर दिल ... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
Sunday, January 17, 2010
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68 comments:
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
...बहुत खूब.
hmmmmm :) :)
arsh
"खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया ....."
great expression.
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
ये इतनी प्यारी सी दास्ताँ किस की है जी ?
जो भी हो, है बहुत सुन्दर।
अक्षरों से खेलने लगी थी
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया .
kya baat hai ...
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए........
बहुत ही बढिया रचना ।
अच्छी पोस्ट .
aapko padhhna sachmuch esa lagtaa he ki blog bhraman saarthak hua.
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
सब इतना कुछ कह रहे हैं, मैं तो आपको और आपके प्रसंसकों को सिर्फ पढ़ रहा हूँ और पढता ही रहूँगा.
बहुत अच्छी पोस्ट धन्यवाद
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया .....
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते जैसे वह हीर हो गयी
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
adbhut ...........har pankti mein pyar ki barsaat ,,prem ka asli swaroop .........bahut khoob.
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया
हरकीरत जी,
कैसे आप इन बिम्बों का सृजन कर लेती है...आपकी रचना पढ़कर कभी निराश नहीं होता हूँ.और ब्लॉगर मीट में तो आप छा रही है..बधाई!
छई छप छई, छपाक छई,
पानियों पे छींटे उड़ाती हुई लड़की,
देखी है हमने,
आती हुई लहरों पर जाती हुई लड़की...
-गुलज़ार
जय हिंद...
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई....
बहुत खूब ! मज़ा आ गया हरकीरत जी.
आहा!
अक्षरों से खेलने लगी थी
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया .....
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
बहुत कोमल भावों से सजी ये रचना.....बहुत सुन्दर
प्रेम की अच्छी अभिव्यक्ति ....वाह !!
वह अभी
प्यार के बराबर नहीं हुई थी
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते जैसे वह हीर हो गयी
क्या बात है...बहुत खूब...
(हरकीरत जी,कोशिश तो करती हूँ...फिर भी इतनी लम्बी कहानी टाईप करने में कुछ अशुद्धियाँ रह ही जाती हैं...अब ख़ास ख़याल रखूंगी,..मुझे पता है....पढने वालों को बहुत खटकती होंगी....ध्यान दिलाने का शुक्रिया....आपको इमेल पर ही बताना चाहा..पर failure notice आ रहा है)
सूफियाना अंदाज़ ...
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
इमरोज़ जी आपने हरकीरत जी के लिए सही लिखा है । उन्होंने प्रेम की पीर में उसे पा लिया है, जिसे हीर और रांझा पाकर अमर हो गए ।
हरकीरत जी इस खत को प्रस्तुत करने के लिए आभार । बहुत-बहुत धन्यवाद !!!
हीरजी,
अक्षर जवान ही नहीं हुए, शिष्ट और समृद्ध भी हो गए हैं; अर्थ-सौष्ठव से बहुत कुछ अभिप्रेत करनेवाले... इन पंक्तियों में उतना ही नहीं है, जितना लिखा गया है--अन्तर्निहित भी बहुत कुछ है. उन ध्वनियों को सुनने की चेष्टा में हूँ !
'वह अभी
प्यार के बराबर नहीं हुई थी
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते जैसे वह हीर हो गयी
अब हीर को अपना आप
प्यार के बराबर होता नज़र आ रहा था
वह जब भी अपने आप को
प्यार के बराबर का देखती
उसे किसी बंसरी कि आवाज़
सुनाई देने लगती .....'
वेणु से निकलते स्वरों का संधान आसान तो नहीं है ! और 'आपे रांझा हो गई' वाली बात तो आत्म को परमात्म से जोडती है.... सुन्दर अभिव्यक्ति... साधुवाद !
साभिवादन--आ.
IMROZ Ji par rang mein hi nahi.....amrita ji to unki lekhni mein bhi utar chuki hai....aisa hi khat unka hamare pass bhi aaya hai
बहुत सुन्दर....
amrita pritam ji ko padha hai aur bulle shaah ki vo lines bhi jo amrita ji k liye nikli thi. aur aapka lekhan bhi amrita ji se kafi milta julta hai...bahut acchhi sharing rahi.aage bhi intzar rahega. shukriya.
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
bahut khoob......
yanha vradhavastha me shavdo ko sahej savaar bhavo ka chola pahnana bha raha hai.........jo anubhav sanjo rakhe the lagata hai shavdo se bikhara doo......
behatareen , harkeerat ji,
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
yahan main kuchh apni taraf se bhi jodna/kahna chahunga
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर आत्मा ... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
यानि पुरुष भी और स्त्री भी.
ye meri apni soch hai, ho sakta hai aap sahmat na hon.
behatareen rachna ke liye ..........kya kahun......anupam.
खेलते खेलते अक्षरों से प्रेम
और हर स्त्री हीर भी है राँझा भी
आप सच में कमाल है कैसे लिख लेती है
क्या जादू है कुछ हमें भी सिखाएं
100%....sahee ghatana vo chehra abhee bhee yaad hai
jab bhee bajre kee rotee ghar me banatee hoo yad aa jata hai sookhee roti choosata vo chehra !
socha likh hee daloo kuch halkapan mahsoos hoga.
vaise mai jo bhee likhatee hoo vo mere jeevan se judee bate hee hotee hai ya mai jindgee ko kaise letee hoo vo bhav.
बहुत खूब..
सुन्दर रचना...
बधाई जी बधाई...
इमरोज कि रचना आपके ब्लॉग पे देख के बहुत अच्छा लगा......
वह अभी
प्यार के बराबर नहीं हुई थी
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते
एक जादू हैं इनमें....जाने कैसा जादू....!
सुंदर ..एक खूबसूरत भाव...बढ़िया रचना..हरकिरत जी बहुत धन्यवाद!!
आपका जादू चल गया लगता है....!!
खूबसूरत...
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
bahut khoob ,dil ko chhoo gayi ,kitni sachchai hai yahan .
मुहब्बत के रंग में डूबी हर स्त्री... हीर भी है ...रांझा भी ...क्या बात है ...उस अल्हड लड़की की कविता बहुत अच्छी लगी जिसने अपनी उम्र से भी कही अधिक अक्षर पढ़े और लिखे ..
बहुत स्नेह ...!!
heer ji ,shringar ras men likhna bahut mushkil lagta hai mujhe ,ap kaise likhti hain ?
aksharon se pyar ,apnatva aur usmen sama jana sabhi kuchh parilakshit hai
badhai ho.
हरकीरत जी , हमारी सोच पर आपको सोचते देख कर हम तो सोच में पड़ गए।
हम आपकी रचनाओं का दिल से सम्मान करते हैं।
अक्षरों से प्यार हो गया .....
कि किसी की प्यार के बराबर की नज़्म
उसने पढ़ ली .....
पढ़ते-पढ़ते जैसे वह हीर हो गयी
मुहब्बत के रंग में डूबी
हर स्त्री... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई के साथ लेखन के लिये शुभकामनायें ।
मुहब्बत के रंग में डूबी ..............हीर भी राँझा भी !
गज़ब का सूफियाना फलसफा .
इस खूबसूरत पैगाम के लिए ..............
इमरोज़ मेरा सलाम !
bahut hi khubsuart andaz se baat kahi hai imroz ne .shukriya
प्रकाश पाखी जी और इस्मत जैदी जी यह मेरी रचना नहीं ....इमरोज़ की है .....मैंने ऊपर भूमिका में वर्णन किया है इसका .....!!
imroj..........amrita preetam ki yaad dilate hain , adbhut hai na !
बहुत कुछ कह दिया आपने अपनी इस पोस्ट में हर शब्द हमेशा की तरह बोलता हुआ और दिल को गहराई तक छूता हुआ. प्रेम में सराबोर पोस्ट
हीर जी
ये पंक्तियाँ हीरे की तरह चमक रही है
इस रचना में |
बहुत बहुत आभार
मेरे पास ये किताब की शक्ल में मौजूद है .यूं भी इमरोज़ ..इस ज़माने के इश्क का जीता जागता दस्तावेज बन गये है ....ओर अमृता एक बहती नदी सी.....
हरकीरत जी आदाब
आकर्षण और मुहब्बत की
गहराई जैसी नज्म पेश है आपने
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
खूबसूरत अंदाज में शानदार रचना
डॉ .अनुराग said...
मेरे पास ये किताब की शक्ल में मौजूद है
डा. अनुराग जी ,
ये नज़्म इमरोज़ जी ने सिर्फ और सिर्फ मुझे लिख कर भेजी है....ये कहीं भी प्रकाशित नहीं हुई .....और न ही इमरोज़ जी का कोई संकलन अभी तक निकला है ....मेरी आज ही उनसे बात हुई उनका पहला संकलन अभी प्रेस में है .....!
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
दिल को छू गया ......
बहुत बहुत बहुत सुंदर
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
ये प्यार ही तो है जो मुहब्बत करने वाले को रब बना देता है ........ जिस रूह में प्यार होता है वो घुड़ा को भी प्यारी होती है ...... बहुत ही दिल में घर करने वाली रचना है ...........
bahut khoob dil ko badi khoobsurti se heer bhi bana daala or ranjha bhi ...bhut bhav puran rachna ..abhaar ! aapko or aapki kalam ko kuralia ka naman !
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
कोई कविता का अर्थ भी बतायेगा या फिर बहुत सुंदर
............
बस बटरिंग किये जा रहे है
समीक्षा भी किजिये नही तो कविता मर जायेगी
मेरे तुच्छ ज्ञान के परे की चीज है ।
1. दो बार अल्हड शब्द भाषा को खराब कर रहा है
2.प्यार अपने मे पूर्ण शब्द है "प्यार की चाहत "अनावश्यक का वर्णन है
3.हीर होते ही जब वह "प्यार के बराबर" हो गयी तो ये स्थायी घटना हुयी फिर ये "कभी कभी" का क्या मतलब है
ये सही है कि कविता विज्ञान की तरह तर्क पर नही कसी जाती पर इसका अर्थ यह नही है कि .....
अन्तिम पक्तिं अदभुद है - इसके भाव बेहद उम्दा है
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया
और हमे उनके ये शब्द पढते -2 उन से प्यार हो गया उनके इश्क से प्यार हो गया। लाजवाब बस निशब्द हूँ आगे --- धन्यवाद और शुभकामनायें
बंसरी की आवाज़ सुनते ही वह
बुल्ले शाह की तरह
नाचते-नाचते गाने लगती .....
राँझा-राँझा कहती नी मैं
आपे राँझा हो गई
मुहब्बत के रंग में डूबा
हर दिल ... हीर भी है
और राँझा भी .......!!
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति ..आभार
क्या कहूँ मैं अब? एक एक शब्द बोल रहे हैं... बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति....
लखनऊ से बाहर था... इसलिए देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ....
"यहाँ पहुँचकर बहुत अच्छा लगा!"
--
मिलत, खिलत, लजियात ... ... ., कोहरे में भोर हुई!
लगी झूमने फिर खेतों में, ओंठों पर मुस्कान खिलाती!
--
संपादक : सरस पायस
बहुत सुन्दर नज़्म हैय यह । शुक्रिया ।
अक्षरों से खेलने लगी थी
खेलते खेलते
इक दिन उसे
अक्षरों से प्यार हो गया .....
वाह!
बहुत खूब!
सम्मान अच्छी बात है पर हम इमरोज को मार तो नही सकते ना , उनकी कला को और उचाइया देने के लिये आलोचना जरूरी है , आदमी कोई बड़ा नही होता ( कला के क्षेत्र में ) केवल कला बडी होती है ।
हम कितनी बार कहते हैं की-
ये......वाला हैं-
या फिर
ये.....वाली हैं-
इससे gender /discrimination का पता चलता है,
लेकिन कई बार न "वाला" कहते हैं....... न "वाली"..... बल्कि , " वालें हैं "....
इसमें gender specification ख़त्म होता है और इज्ज़त भी ho जाती है...
मिसाल के तौर पर..ये हीर ब्लॉग वालें हैं
शायद यही अर्थ मैं समजा last की ४ lines का...इमरोज़ की नज़र तो इमरोज़ ही जाने ..आखरी ४ lines मोहब्बत करने वाले 'दिल' पर भी लागू हैं,with none discrimination,मेरे हिसाब से...
खुबसूरत नज़्म... इमरोज़ ... बस नाम ही काफी है..
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
..... बेहद खूबसूरत !!!!!!
हीर जी आप ने इस काबिल समझा की आप ने मुझे पढ़ा मैं बस इतने से खुश था फिर आप की टिप्पणी कि "कुछ इसी से मिलती जुलती कविता मैंने भी लिखी थी बहुत पहले " एक संकरी सी गली "" पढ़कर तो मैं हवा में उड़ने लगा हूँ मैं कोई लेखक नहीं हूँ आप जैसा. बस जाने कैसे लिख देता हूँ बाद में पढ़कर खुद ही चौक जाता हूँ
क्या सच मेरी इस रचना की तुलना आप अपनी किसी कविता से कर रही हैं
thank you very much madam
और हाँ मैंने word verification हटा दिया है आपकी पहली आज्ञा का पालन कर के खुश हूँ
इतनी सुंदर रचना पढवाने का धन्यवाद । राधा हो या हीर प्रेम की दिवानगी में खुद ही रांझा या कान्हा हैो जाती हैं ।
हीरजी,
कहते हैं, लोटा मांजने से ही चमकता है ! आपने शुरूआती दिनों की जिन पंक्तियों को टिपण्णी में लिख भेजा है; उन्हें पढ़ कर याकीन होता है कि आपकी कविताई का कलश आज ऐसा क्यों चमक रहा है-- अपनी संपूर्ण आभा से दैदीयमान होता हुआ !
साभिवादन--आ.
hir ji
aj punah apki rachna padhi to tipni kiye bagair raha nahi gaya
जैसे जैसे वह जवान होती गई
अक्षर भी जवान होते गए
और अक्षरों के साथ-साथ
प्यार की चाहत भी ....
behtarin
हमेशा की तरह शानदार रचनायें. मार्मिक संवेदनशील.
अब आपसे रश्क न हों लोगों को तो क्या हो?
उस अनमोल कार्ड की एक झलक हमें भी दिखला देतीं आप इस खूबसूरत नज़्म के संग-संग तो सोने पे सुहागा हो जाता...
बहुत सुन्दर
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ishq mein khuda mil gaya !! BEMISAAL
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