लाशें ......
(१)
दूर पहाड़ी से निकलता धुआँ आसमन में विलीन होता जा रहा है ....धुएँ में कई आकृतियाँ बनती बिगडती हैं .....और फिर धीरे- धीरे अँधेरे में गुम हो जातीं हैं ....मैं अँधेरे में छिपे मन को तलाशती हूँ तो सपनों की कई लाशें मिलती हैं .....और शब्द शोकाकुल ......
आसमां का इक नुकीला सा कोना
चुभने लगा है सांसों में
निरुपाय सी मैं देखती रहती हूँ
रौशनी को अँधेरे में घुलते हुए .....
सामने दो बांसों के बीच जलती हुई रस्सी
खामोश है ......
अन्धा कुंआं और डरावना हो गया है ......
सहसा पानी की सतह पे तैर जाते हैं
मन की लाशों के निशाँ ....
एक वाद्ययंत्र बजने लगता है
शब्द आहिस्ता-आहिस्ता
मौन साध खड़े हो जाते हैं .....!!
(२)
इससे पहले कि शब्द भी धुल जायें ....
रब्बा तेरी बनाई मोहब्बतों की मूरतें क्यों इंसानी मोहब्बत से महरूम रह जातीं हैं .....? क्या तुमने उनके लिए कोई और जहां बनाया है ....? बनाया है तो बता न ....मैं हाथों में कफ़न लिए खड़ी हूँ......
तुमने कहा था मैं आऊंगा
अपने छोटे से नये घर से
देर रात गए
तेरी बिखरी सांसों का
माथा सहलाने .....
रात भर शब्दों में छीना-झपटी
चलती रही .....
कभी एक सामने आ खड़ा होता
कभी दूसरा .....
धीरे धीरे आस साथ छोडती गई
कुछ स्याह उम्मीदें
सफ़ेद कपड़ों में लिपटी
ताबूतों में चली गईं ....
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
Monday, December 28, 2009
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72 comments:
अच्छी लगी
सांस छूट गई मगर फिर भी विश्वास देखो जीवन के अंत तक बना रहा ..सुंदर अभिव्यक्ति..आपकी रचनाओं में भाव की प्रधानता होती है जो मन मो लेती है..दोनो रचना ग़ज़ल की भाव लिए..बहुत बढ़िया लगा..धन्यवाद हरकिरत जी..बहुत बहुत धन्यवाद
तुमने कहा था मैं आऊंगा
अपने छोटे से नये घर से
देर रात गए...
सुंदर भावाभिव्यक्ति.
..... सुन्दर !!!!!
बड़ी गहन चिंतन दिखती है,इन क्षणिकाओं में...पढ़कर थोड़ी देर को बुत बन जाए,आदमी
बहुत खूब , क्या कहने आपके ।
आपकी कविताएं अक्सर ही शानदार होती हैं। जिसको पढ़ने के बाद मैं कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पाता। हाजिर है आपकी खिदमत में
पवित्र गंगा का नीर तुम हो
\ मीर गालिब कबीर तुम हो\
पढ़ता हूं जो कविताएं लगता है दर्द से अमीर तुम हो। शिव बाटलवी भी रह जाता पीछे, कविता में वो पीर तुम हो। पूछता है जमाना तुम आज आखिर किस रांझा की हीर तुम हो।
शौचालय से सोचालय तक
सादर वन्दे
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
क्या कहे सबकुछ तो आपने ही कह दिया, सुन्दर अभिव्यक्ति
रत्नेश त्रिपाठी
heer ji..jab b apko padha aawaak si reh gayi ki kon si line per kya kahu. puri ki puri rachna bahut khoobsurat hoti hai..aise aise shabdo se baandh deti hai itni gehrayi se ki kya kahu.
आसमां का इक नुकीला सा कोना
चुभने लगा है सांसों में...wah kya baat keh di.kamaal hai.
सहसा पानी की सतह पे तैर जाते हैं
मन की लाशों के निशाँ ....such kitna such aur kitni asani se likh diya.hatts off.
तेरी बिखरी सांसों का
माथा सहलाने .....kitni gehri soch.
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ....
ye bhi kamaal..
aur isi tareh ki kuch meri bhi darkhwast hai apse.aana padhne meri nayi rachna TU AUR ME...इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ....
shukriy.
nav varsh ki shubhkamnaaye.
गहरे समुद्र से ढूंढे मोतियों.... जैसे शब्दों से.... गुंथी..... नज्मे...!!
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
पूरी रचना के साथ ये पंक्तियां खासतौर से पसंद आईं ।
ਕੋਈ ਨਾ ਆਵੇ
ਉਸ ਦੀ ਉਡੀਕ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ
ਕੋਈ ਫਿਰ ਵੀ ਨਾ ਆਵੇ
ਉਡੀਕ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ
ਉਡੀਕ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
ਰੂਹ ਦੀ ਮੌਤ
ਤੇ ਫਿਰ ਸਰੀਰ ਦੀ
ਸਰੀਰ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
ਉਹ ਵੀ ਆ ਜਾਂਦੈ
ਜਿਸ ਦੀ ਉਡੀਕ ਲਈ
ਰੂਹ ਤੇ ਕਲਬੂਤ ਜਿੰਦਾ ਸਨ
ਤੁਹਾਡੀ ਨਜ਼ਮ ਵਿੱਚੋ ਜਨਮੀ ਹੈ ਇਹ ਨਜ਼ਮ
(ਸਿੱਧੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਹਾਂ ਤੁਹਾਡੀ ਨਜ਼ਮ ਚੋਰੀ ਕੀਤੀ ਹੈ)
ਤੁਹਾਨੁੰ ਭੇਟ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ
ਮੁਆਫ ਕਰਨਾ ਹਿੰਦੀ ਲਿਖਣੀ ਨਹੀ ਅਉਂਦੀ
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
हरकीरत जी,
आपकी हर रचना नई, सोच नई, अन्दाज़ नया होता है
जिन पर प्रतिक्रिया के लिये हम कहां से लायें इतने गहरे शब्द?
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति हरकीरत जी। गहरे भाव।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
शब्दों की छिना झपटी ने कई पन्ने तैयार कर दिए ...वाह ...
दो बांसों के बीच जलती रस्सी ...खौफनाक कुआं ...क्यों डरा रही है .....??
आहिस्ता आहिस्ता मौन धरे शब्द बहुत कुछ कह गए हैं ...
हमेशा की तरह खुबसूरत पंक्तियाँ ...
आभार ...!!
बहुत गहरी एवं भावपूर्ण रचनाएँ...
हमेशा की तरह अद्भुत!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
---आह, क्या बात है!
मिर्जा गालिब का एक शेर याद आ रहा है-
हुए मर के हम जो रूसवा, हुए क्यों न गर्के दरिया
न कभी जनाजा उठता न कहीं मजार होता।
---
ये न थी हमारी किस्मत...
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
आशावादी पंक्तियाँ।
शुभकामनायें।
aas aur niraas ke beech
vishwaas ka pul banaate hue
kuchh 'maun shabd'
sb kuchh to keh rahe haiN....
shilp aur kathya...dono prabhaavshali bn parhe haiN....
Rashmi, Shaahid, Arya, Amit..
sb ki baatoN ka anumodan karta hooN
aur,,,
Kulwant Happyji ke swaal bhi
kavya ki layaatmakta ko barhaate hi haiN..!!
(:
dheroN duaaoN ke saath . . .
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
Hamesa ki tarah ish bar bhi bahut hi sunder.aap apni rachnao me jo bhaw rakhti hai.. wakyi o kabile tarif hoti hai.. aapko badhai. with HAPPY NEW YEAR 2010.
"अनाम" जसविंदर जी की टिप्पणी का हिंदी अनुवाद ......
कोई न आये
उसकी उडीक रहती है
कोई फिर भी न आये
उडीक की मौत हो जाती है
उडीक के बाद
रूह की मौत
और फिर शरीर की
शरीर की मौत के बाद
वे भी आ जाते
जिसकी उडीक के लिए
रूह और कलबूत जिन्दा थे
आपकी नज़्म से जन्मी है ये नज़्म
( सीधे शब्दों में कहूँ आपकी नज़्म चोरी की है )
आपको भेंट कर रहा हूँ .....
मुआफ करना हिंदी लिखनी नहीं आती
जसविंदर जी इस तरह की चोरी कोई सौ बार करे .....शुक्रिया इन सुंदर लफ़्ज़ों के लिए .....!!
आसमां का इक नुकीला सा कोना
चुभने लगा है सांसों में
निरुपाय सी मैं देखती रहती हूँ
रौशनी को अँधेरे में घुलते हुए .....
दाने तक जब पहुँची चिड़िया
जाल में थी
ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश ने मार दिया ।--परवीन शाकिर
तुमने कहा था मैं आऊंगा
अपने छोटे से नये घर से
देर रात गए
तेरी बिखरी सांसों का
माथा सहलाने .....
वो कोई मुक़द्दस लम्हा था शायद
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
कई बार झंझोडा है
गुजरे वक़्त के सफ्हो को
कई बार झाँका है
दीवार के उस जानिब .......
अल्फाज़ फेंके है जोर से दूर तक
नाम लेकर गली गली घूमा हूँ
पिछले कई रोज से
सन्नाटा है जिस्म में
कोई आहट कही सुनाई नही देती
जिंदगी की पेचीदा गलियों में
गुम हो गयी है कैफियत अपनी
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
बिखरी सांसों का
माथा सहलाने ...
इस ख्याल के लिए तो आपको सौ नंबर
कई बार झंझोडा है
गुजरे वक़्त के सफ्हो को
कई बार झाँका है
दीवार के उस जानिब .......
अल्फाज़ फेंके है जोर से दूर तक
नाम लेकर गली गली घूमा हूँ
पिछले कई रोज से
सन्नाटा है जिस्म में
कोई आहट कही सुनाई नही देती
जिंदगी की पेचीदा गलियों में
गुम हो गयी है कैफियत अपनी
अनुराग जी ....ढूँढने की कोशिश कर रही हूँ वो लम्हा .....!!
एक बार और पढ़ना होगा कुछ इस पर लिखने के लिए...!
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ...
इंतेज़ार की हद कहीं ख़त्म न हो जाए ... ये शब्द कहीं मिट न जाएँ .... कमाल का लिखती हैं आप ...... सीधे दिल मेी उतर जाता है .... ........ नव वर्ष की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........
तेरी बिखरी सांसों का
माथा सहलाने .....कमाल का लिखा है आपने एहसास क्या से क्या करवा देते हैं ...
सामने दो बांसों के बीच जलती हुई रस्सी
खामोश है ......
अन्धा कुंआं और डरावना हो गया है ......
bahut hi achcha likha hai aapne.........
सामने दो बांसों के बीच जलती हुई रस्सी
खामोश है ......
अन्धा कुंआं और डरावना हो गया है ......
bahut hi achcha likha hai aapne.........
कोई आहट कही सुनाई नही देती
जिंदगी की पेचीदा गलियों में
गुम हो गयी है कैफियत अपनी
बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत -२ बधाई
kya kahun........sab kuch to aapne kah diya...........behad gahan abhivyakti.
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
दिल को कहीं भीतर तक भेद देती हैं आप की रचनाएँ!
बहुत गहरी अभिव्यक्ति. धन्यवाद.
अच्छी कविता।
बहुत सुन्दर रचना है..बहुत अच्छी लगी।
रात भर शब्दों में छीना-झपटी
चलती रही .....
कभी एक सामने आ खड़ा होता
कभी दूसरा .....
यदि पढ़ कर कुछ कहते ना बने ...
मतलब समझ गई ना आप ?
कुछ स्याह उम्मीदें
सफ़ेद कपड़ों में लिपटी
ताबूतों में चली गईं ....
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
स्याह उम्मीदों का ताबूत में जाना .....गज़ब की सोच है.....एहसासों को बहुत खूबसूरती से कहा है ....बधाई
नव वर्ष की शुभकामनायें
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
behatareen.
सुंदर रचना धन्यवाद.नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
aapki rachna to maun karne wali hi hoti hai ,aapka star bahut uncha hai ,kahe bhi kya ,suraj ke aage diya kya ?....aap aai bahut hi achchha laga ,nav varsh mangalmaye ho sabhi ke liye ,happy new year
dono hi racnaein bahut utkrisht hain.... aur dono kaa vishay ek hote hue bhi dono bahut alag hain...
pehli rachnaa shabdon ke zariye kuch rekhachitra kheenchti hai har pankti ke saath.... aur bahut symbolic hai... kaayi aayam nikalte hain uske... mujhe vo ek painting si lagi... har pankti ke saath kuch nayi lakeerein khinch rahi thi...aur pehli waali tasveer mein kuch jodti chal rahi thi.... aur jab rachnaa khatm hoti hai nd u see it as a whole, u jsut try nd connect those images jo pehle aapke dimaag mein bani hain har pankti ke saath, nd u conclude ki poori tasveer kuch naye hi arth liye hue hai..... bahut bahut bahut hi gehri aur prabhaavhsaali rachnaa hai ...
aur doosri rachna...ekdam seedhi saadhi...straight forward... simple imageries, with direct meanings, but still inn seedhe saadhe shabdon mein itnaa marm liptaa hai ki rachnaa khatm hote hote u feel like ki ekbaar aur padhein ise...
aur iss rachnaa kaa ant mujhe thodaa khaaas lagaa... yahan anurodh hai dubaara aane kaa...par thodaa indifference bhi jo ki dard ki charam seema par pahunch kar hi aata hai.... jab umeed ke zindaa rehne ke liye koi vajah nahin bachti aur prem aas tootne nahin detaa... uss feeling ke saath lipti hui hain aakhiri panktiyaan...
like most of ur posts this was also quite beautiful and remarkable in the fact of their simplicity and feminine touch. but why so much pain?
स्तंभित कर गई आपकी कविता
"तुमने कहा था मैं आऊंगा
अपने छोटे से नये घर से
देर रात गए
तेरी बिखरी सांसों का
माथा सहलाने ....."
मुग्ध कर दिया इन पक्तियों ने | संवेदनाओं के सुन्दर चित्र हैं यहाँ |
प्रविष्टि का आभार |
वर्तिका जी किसी कविता को इतनी गहराई से पढना और इतनी गहराई से अर्थ ढूंढ कर लाना हर किसी के बस की बात नहीं ....मैं तो हैरान हूँ ये देख कि आपने किस कदर दिल के भीतर झाँका है .....शुक्रिया के लिए लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास ......!!
न भूतो न भविस्यति .
मार्मिक अभिव्यक्ति
सत्य
कई बार...हर बार देर से आना फायदेमंद रहता है। आपकी कविता और कुछ टिप्पणियां खास कर वर्तिका जी की...आह!
कितनी खुशी होती है एक रचनाकार को जो ऐसे पाठक मिल जाये तो....
apni likhi ek purni line....aapki kavitao ke liye...
har pankti kafi kuch kahti hai . har baar padta hu, har baar nai lagti hai...
nisandeh badia likhti hai aap..
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
हरकीरत जी,
ये शब्द और धुल जायें...ये तो गुद जाते हैं दिल पर हमेशा, हमेशा के लिए...क्यों लिखती हैं आप इतना अच्छा...कोई बजरबट्टू क्यों नहीं लगा रखा अपने ब्लॉग पर...कुछ मसरूफियत ज़्यादा थी, इसलिए देर से आया हूं इस पोस्ट पर...
वो भी कई लिंक से कूदता-फांदता...
नया साल आप और आपके परिवार के लिए असीम खुशियां लाए...
जय हिंद...
दोनों ही रचनाएं सशक्त ।
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
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धुल जायें ......!!
वाह ।
बहुत खुब ,न जाने क्यू आपकी रचना का इक इक शब्द दिल के अंदर गहरा सा छू जाता है ओर मेरे अंदर भी शब्दो का तूफ़ान उमड पडता है कुछ् कहने के लिए....नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
HAPPY NEW YEAR HARQIRAT JI
प्रोत्साहित करने के आपका धन्यवाद एवं आभार । आपकी कविता काबिले तारिफ है । नए साल की शुभकामनाएं ।
खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
मार्मिक रचनाएँ।
नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
--------
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
बहुत भाव भीनी कविता मन को भिगो गयी. अगर समय मिले तो मेरी कविता " पुनर्जनम " जरुर पढ़ें आपकी रचना जैसी तो नहीं पर हाँ उसके आस पास तो है और हाँ नयी पोस्ट "मेरा मन" भी पढ़ें
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कमाना के साथ
सादर रचना दिक्षित
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
Harkirat jee aapki tareef karne ki na to himmat hai na hi shabd. aapki har rachna apne mein kuch khaas hoti hai aur har baar mujhe shabd viheen kar jaati hai.
naye saal ki bahut bahut shubhkaamnaayein
-Sheena
Behad marmsparshi kavita...sadhuvad.
आपकी दोनों रचनाएं पसंद आई। आप शब्दों और प्रतीकों को सवेदनाओं की आग में खूब तपाती है और फिर वो एक अद्भुत सी रचना को रुप ले लेते है। और मेरे से पाठक निशब्द से रह जाते है। पता नही कितनी बार ये बात लिख चुका हूँ पर सच यही है कि शब्द ही नही मिलते मुझे पढने के बाद। एक अलग ही भावनाओं में बह जाता हूँ। खैर पढने जरुर आ जाता हूँ क्योंकि पढे बगैर रह नही पाता। और हाँ नववर्ष की आप और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं। और आप और बेहतरीन और बेहतरीन ...... लिखती रहें।
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
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इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
क्षमा कीजिएगा आने में देरी हुई, बहुत ही सुन्दर शब्द रचना जिसके लिये आभार, नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
पहली नज्म, माफी चाहूँगा लेकिन अपनी पसंद को क्या कहूं, उसका कोई जवाब नहीं. दूसरी वाली भी अच्छी है मगर पहली तो पहली है. दूसरी वाली तो आप के लिए बाएं हाथ का खेल है. उस नज्म ( मैं पहली वाली पर ही जमा हुआ हूँ ) की फिजा के तिलिस्म से बुरी तरह जकड़ा हुआ हूँ. कुछ इसी माहौल की और रचनाएँ भी लिख दें. यकीन करें, मुझे लगता है आप को खुद नहीं पता की उस नज्म में आप ने कौन सी कायनात रच दी है.
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
aapki lekhni ki tareef mein itne logon ne itna kuch kah diya hai ki meri baatein apna arth kho dengi is bheed mein ..
fir bhi in paktiyon ne man moha hai...
naye varsh ki shubhkaamna...!!!
bahut umda....alfaaz nahi hai apki tareef kaise karu...
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
not bad
नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
स्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो
पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं
हीर जी आपको नये साल की तहेदिल से शुभकामनाओं के साथ दुआ करता हूँ कि साल-दर-साल आपकी लेखनी यूँ ही पुष्पित-पल्लवित होती रहे और नज्मों की इस महफ़िल मे जगमगाते लफ़्ज यूँ ही चिरागाँ करते रहें..
मैंने कुछ पन्ने साथ बाँध लिए हैं
तुम आना पढने ....
इससे पहले कि शब्द भी
धुल जायें ......!!
जबाब नहीं आपकी रचनाओं का. इस दुआ के साथ की आपक लिखती रहें और हम पढ़ते रहें.
रात भर शब्दों में छीना-झपटी
चलती रही .....
कभी एक सामने आ खड़ा होता
कभी दूसरा .....
बहुत सुन्दर.
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
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