Saturday, December 12, 2009

सुन अमृता क्या तूने भी ओढ़ी थी मोहब्बत में झूठ की चादर......

वह समुंदर में पांसे फेंकती
पूरे चाँद की रात ....
हुस्न का मुजरा करती
घुंघरूओं की रुनझुन
छलने लगती बुर्के की ओट में
मोहब्बत की ज़मीं ....

मेरे सामने के पहाड़
एक-एक कर ढहते गए ....

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

सोचती हूँ
ख़ामोशी के बाद भी
मैं क्यों दे पाई तुझे तलाक ....

आज ...
बेआबरू सी मैं
रख कर चल देती हूँ
अपने ही कंधे पे हया की लाश ......

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!

67 comments:

श्यामल सुमन said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी

बहुत खूब। सुन्दर।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Udan Tashtari said...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?


कितना मासूम ख्याल!! बहुत खूब..शानदार रचना!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!
--वाह, क्या बात है।

Khushdeep Sehgal said...

कल...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?


आज...

मुहब्बत इक तिजारत बन गई है
तिजारत इक मुहब्बत बन गई है
किसी के दिल से खेल लेना,
हसीनों की ये आदत बन गई है...

जय हिंद...

TRIPURARI said...

आपकी ख़ातिर...

बदहवास-सा कभी,कभी मदहोश रहता हूँ |
नज़्म को पढ़कर बहुत ख़ामोश रहता हूँ ||

अनामिका की सदायें ...... said...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

sab ka apna apna aasmaan aur apni apni zami.n hai..sab ko apni kismat ke kante khud nikalne padte hai...
bahut khoobsurat rachna.

rashmi ravija said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!
बहुत ही सुन्दर रचना...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....
सबसे ज्यादा भावपूर्ण पंक्ति लगी
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

Anonymous said...

ooo... beautiful

Alpana Verma said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!
..badi masuumiyat se kahaa hai..bahut khoob!

'aye mohabbat tere anjaam pe rona aayaa!!'

Pappu Yadav said...

बेवफा चांदनी
गढ़ने लगती जुबां की सेज
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी

जिसे नित नए 'स्वाद' का चस्का हो उसे उम्र क्या और शर्म क्या...???
हैराँ हूँ देख कर अमृता का मोहब्बत में झूठ की चादर ओढ़ना और अब तो जब आबरू का जनाज़ा ही निकल चुका तो फिर क्या करना है हया की लाश को ठिकाने लगा कर ...!!!
तू नहीं और सही और नहीं और सही.....

Yogesh Verma Swapn said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी

wah, bahut khoobsurat abhivyakti.

वाणी गीत said...

अमृता , क्या तुने भी ओढ़ी होगी मुहबात में झूठ की चादर ....क्या पूछ लिया अमृता से ....
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ शर्मसार न होने दूंगी...देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में..आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!
बहुत सुन्दर ....!!

मनोज कुमार said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....

संवेदनशील रचना। आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखती हैं।

स्वप्न मञ्जूषा said...

क्या बात है 'हीर जी' चुन-चुन कर पूछ रही हैं सही सवाल 'अमृता' से ...
और ये क्या कह दिया ?

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

सच...!! और खूबसूरत भी....

डॉ टी एस दराल said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!

बहुत सशक्त रचना।

vandana gupta said...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!

bahut hi sundar bhav aur alfaz.
mohabbat ki jhoothi kahani pe roye ............ye kahein mohabbat zinda rahti hai mohabbat mar nhi sakti.

अजय कुमार said...

शानदार , जानदार और बेहद दमदार अभिव्यक्ति

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत गहरा एहसास दे गई आपकी यह रचना।
बहुत सुन्दर!!

सोचती हूँ
ख़ामोशी के बाद भी
मैं क्यों न दे पाई तुझे तलाक ....

Unknown said...

bahut sunder likha hai aapne ....
AM speech less....keep it up

हरकीरत ' हीर' said...

पप्पू यादव जी आप शायद पहली बार मेरे ब्लॉग पे आये ...पर जितनी गहराई से आपने इस नज़्म को समझा है हैरान हूँ ......!!

अदा जी मन जब किसी बात से आहात हो ....तो कुछ ऐसे ही सवाल दिल में उभर आते हैं ...क्या कहूं .....ये प्यार मोहब्बत न जाने क्यूँ अब खेल सा बनता जा रहा है .....!!

रश्मि प्रभा... said...

हाँ अमृता बताओ न

manu said...

harkeerat ji,
प्यार खेल नहीं बनता जा रहा...
खेल को लोग प्यार का नाम देने लगे हैं...

प्यार आज भी प्यार ही है.....
हाँ, मेरा
तो
कम से कम ये ही मानना है.....अम्रता या इमरोज से भी पूछ के देखियेगा...
हमें नहीं लगता प्यार कभी भी ख़त्म होने वाली शय है...
खेल तमाशों की बात और होती है..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

मोहब्बत में झूठ की जगह कहां होती है.
जहां झूठ होता है वहां फिर मोहब्बत कैसी.

सुनीता शानू said...

जितनी बार पढ़ा सचमुच बहुत खूब लगा। बहुत सुन्दर रचना। बधाई।

sandeep sharma said...

आज ...
बेआबरू सी मैं
रख कर चल देती हूँ
अपने ही कंधे पे हया की लाश ......

वाह...वाह...
शानदार रचना...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!

bahut bhavpurn rachna....badhai

दिगम्बर नासवा said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे ..

बस इतना ही कहूँगा ...... आपकी और अमृता जी की लेखनी में फ़र्क नही कर पा रहा हूँ .......... शब्द नही हैं मेरे पास .........

Prem Farukhabadi said...

Heer ji,
soofi andaz mein apni kavita kahne ka apka andaz kabil-e-tareef hai.

شہروز said...

कई कविताओं से गुज़रा.हर एक का अपना कथ्य है.अंदाज़ है. विशेषता पहली है, इनकी सादगी और सहजता.खूब लिखिए, खूब पढ़िए.यही दुआ है, जोर-कलम और ज्यादा!

गौतम राजऋषि said...

सोच रहा हूँ अब, जब दो बार पढ़ चुका हूँ इस लिक्खे को कि लिक्खे पर कुछ लिखूँ कि लिक्खे में लिक्खे पर?

इमरोज ने पढ़ी की नहीं, "हीर" ?

सदा said...

देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे ।

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

डॉ .अनुराग said...

पहली बार ऐसा हुआ है के आपके ब्लॉग पे लिखते वक़्त सोच रहा हूँ....गौतम की टिपण्णी को मेरी टिपण्णी समझा जाये

सर्वत एम० said...

नज्म कहाँ से शुरू हुई और कहाँ जा के खत्म हुई, यह पहले से अंदाज़ा लगाना बेहद कठिन था. मैं तो लगभग सवा महीने बाद नेट पर आ सका हूँ, इस दौरान काफी तब्दीलियाँ आ गयी हैं, आप हकीर से हीर हो गईं, मैं भी चेहरे-मोहरे में थोड़ी तब्दीली ले आया हूँ. खैर, बात हो रही थी नज्म की, ये बुनावट की कला कहाँ से सीखी आपने? सच, इतने मुश्किल कंटेंट को कविता में बंधना कठिन था, आप मुबारकबाद की हकदार हैं जो इस काम को शायद चुटकी बजाते हल कर लिया.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत ही अच्छी रचना
बहुत-२ आभार

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह!

पूनम श्रीवास्तव said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!

दिल को छूने वाली पंक्तियां----
पूनम

Reetika said...

adhbhut!! srif yahi keh sakti hoon.. jis khoobi se aap bimbon ka prayog karti hai woh bemisaal hai ....

VOICE OF MAINPURI said...

वारिस शाह मेरे अज़ीज़ हैं.आप के ब्लॉग पर आकर वारिस शाह की खुशबू महसूस हुयी.इन सभी रचनाओं के लिए ''हीर''आपको दिल से बधाई.

सुभाष नीरव said...

हीर को क्या कहूँ। हकीर से हीर बनीं, पर दर्द से रिश्ता खत्म नहीं हुआ। कविता दिल पर यूँ असर करती है कि फिर पढ़ने वाला बहुत देर तक अपने आप को कविता की गिरफ़्त से बाहर नहीं निकाल पाता। कविता की आख़िरी पंक्तियाँ तो लाजवाब होती हैं। बहुत खूब ! बधाई !!
सुभाष नीरव
09810534373
www.kathapunjab.blogspot.com
www.srijanyatra.blogspot.com

Pawan Kumar said...

हीर जी
सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

बहुत खूब बहुत सुन्दर
दिल को छू जाने वाली रचना

रचना दीक्षित said...

वह समुंदर में पांसे फेंकती
पूरे चाँद की रात ....
हुस्न का मुजरा करती
घुंघरूओं की रुनझुन
छलने लगती बुर्के की ओट में
मोहब्बत की ज़मीं ....

काफी कुछ समेटे हुए एक मार्मिक गहरी और बेहतरीन रचना

दूर्जेय चेतना said...

बहुत खूब

girish pankaj said...

सुन्दर सोच से भरी कविताएँ. शालीन अभिव्यक्ति. इन दिनों बहुत कम महिलाऐं इस तरह की रचनाएँ कर रही है. भीड़ से दिख रही बिलकुल अलग यह 'हीर'...
हरती रहे कविता की सदा पीर हरकीरत
बन जाये कविता की सुनहरी 'हीर' हरकीरत
लिखती रहो, बढ़ती रहो चाहे यही पंकज
बन जाओ तुम साहित्य की तकदीर हरकीरत

Ravi Rajbhar said...

Bahut khoob...
kitane pyar se kah di aapne ...
नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे .....!!
Dil ko chhu liya aapne!

Asha Joglekar said...

नहीं रांझिया
मैं तेरी मोहब्बत को यूँ ......
शर्मसार न होने दूंगी
देख मैंने बाँध लिया है इसे गठरी में
आ ले जा मुझे और कब्र बना दे ।
बहुत खूब ।

Pawan Kumar said...

हरकीरत जी
मैं मेल हूँ सौ फीसदी मेल हूँ.............ग़ज़ल लिख गयी से, आशय ग़ज़ल के लिख जाने से था, ग़ज़ल तो "फीमेल" ही होगी न.
बहरहाल आपने जिस खुलेपन से मरी ग़ज़ल की हौसला अफजाई की शुक्रगुज़ार हूँ ..........आपको बहुत बहुत धन्यवाद .

abcd said...
This comment has been removed by the author.
abcd said...
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RAJ SINH said...

नहीं ' हीर ' जी ,
अम्रितायें झूठ की चादर नहीं ओढ्तीं . सच का कफ़न पहन कुर्बान हो जाती हैं .

जो झूठ की चादर ओढ़ मुहब्बत का दम भरे वह तो ऐय्याशी हुयी ,प्यार के नाम पर .
और हर युग में प्यार भी होते हैं और प्यार के खेल भी .किस्सा हीर राँझा भी और किस्सा तोता मैना भी .हर वक्त का दस्तूर रहा है .

SHIVLOK said...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

nahiin mohabbat men nahiin

koii aur bat hogii

abcd said...

सुंदर ग़ज़ल !

Pawan Kumar said...

हो सकता है मैं गलत होऊं मगर ग़ज़ल लिखी नहीं जाती ...बल्कि लिख जाती है........इस लिए यह कहा जाता है "ग़ज़ल लिख गयी...." !

सुशील छौक्कर said...

एक नई खूशबू लिए हुए बेहतरीन रचना। व्यस्ताओं की वजह से देरी से आना हुआ।

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

daanish said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....

ab iske baad kuchh kehne ko reh jaata hai bhalaa...??
har baar ki tarah
behtar
behtareeeen

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?
कितना सच्चा और मासूम सा सवाल....बहुत सुन्दर रचना, हमेशा की तरह. आपकी लेखनी की तो हमेशा से कायल हूं. और हां, शेर को भगा दिया है. देख के तसल्ली कीजिये न..

BrijmohanShrivastava said...

आज ही एक ब्लोग पर आपका शेर पढ़ा ख्वाबों के परिन्दे लाशों मे तब्दील होते आंख म्रत हो जाती है तो आंसू भी नही आते ऐसा ही शेर था और यहां कांधे पे हया की लाश ।माफ़ी चाहूंगा टिप्पणी करने तो आगया उस शेर पर आकर्षित होकर मगर यहां मुझे न तो अम्रता के बारे मे कुछ पता है और न रांझिया के बारे मे और न ही तलाक का कोई किस्सा मुझे पता है ।मोहब्बत को शर्मसार न होने दूंगी इसे गठरी मे बांध लिया है ,मुझे कब्र बनादे इसकी गहराई तक मै नही पहुंच सका हूं

दर्पण साह said...

'Amrita ji' ko bahut baar padha hai, lekin unke bare main kabhi nahi padha tha,
Shayad kabhi padhna bhi nahi chaha.
Jab hindi ke paper main kisi ki jeevni likhne ke 10 marks milte the to 4 jeevniya memorize kar leta tha.
Par kai baar paanchavi aa jati thi.


सुन अमृता
क्या तूने भी ओढ़ी थी
मोहब्बत में झूठ की चादर .....?

Aapki kavita ne itna prabhavit kiya ki pichle kai dino se Amrita Preetam ke baare main hi padh raha hoon aur janne ki koshis kar raha hoon ki jeevan shailey ka lekhan main kya prabhav padta hai.
Amrita ji ke baare main padhkar pata chala ki Kai baar jeevan bhi to kahani ki tarah rumani (Out Of This World) hote hain naa. Aur hum sochte hain ki kaash hum bhi is 'Larger than life' kahain ka koi hissa, koi kirdaar hote.
imroz ka bhi.
Par aisa hona sambhav nahi har ek ke liye.Gulzar sa'ab (Wo bhi aapki aur amrita ji ki tarah Raavi-Rajya se the.) yaad aa rahe hain...
Aur chalte hain afsaane,
Kirdar bhi milte hain,
Wo patte dil the dil the,
Wo dil the dil the dil the."



Aapki kavita hamesha hi prabhavit karti hain aaj bhi kiya.

इमरोज ने पढ़ी की नहीं, "हीर" ?

आशु said...

हरकीरत जी,

बहुत मार्मिक और मासूम खयालात दल दिए है आप ने इस रचना में....

आज ...
बेआबरू सी मैं
रख कर चल देती हूँ
अपने ही कंधे पे हया की लाश ......

बहुत सुन्दर रचना. अति उत्तम

आशु

आशु said...

मैं अपने को बहुत खुशकिस्मत मानता हूँ के मुझे अमृता जी से मिलने का और काम करने का मौका भी मिला.
आप की रचना ने पुराने दिनों की यादों को फिर से वापस तजा कर दिया है. वो बहुत महान शखशियत की मालिक थी.

आशु

आशु said...

ਹੀਰ ਜੀ,

ਤੁਹਾਡੀ ਰਚਨਾ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਅਮਰਿਤਾ ਜੀ ਦੇ ਲਿਖੀ ਮੇਰੀ ਅਜ਼ੀਜ਼ ਰਚਨਾ ਜੋ ਉਨ੍ਹਾ ਨੇ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਉਪਰ ਲਿਖੀ ਸੀ ਯਾਦ ਆ ਗਯੀ. ਸੋ ਬਿਨਾ ਉਸ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਿਤੇਯਾਂ ਰਿਹਾ ਨਹੀ ਜਾਂਦਾ.

"ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ।
ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ।
ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਣ
ਅਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੌਂਦੀਆਂ ਤੈਨੂ ਵਾਰਸਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਹਿਣ:
ਵੇ ਦਰਦਮੰਦਾਂ ਦਿਆ ਦਰਦੀਆ ਉੱਠ ਤੱਕ ਆਪਣਾ ਪੰਜਾਬ।
ਅਜ ਬੇਲੇ ਲਾਸ਼ਾਂ ਵਿਛੀਆਂ ਤੇ ਲਹੂ ਦੀ ਭਰੀ ਚਨਾਬ"


ਆਸ਼ੁ

Prem said...

आपकी कविताये भावों को एक नजाकत के साथ अभिव्यक्त करती हैं ,अच्छा लगता है .शुभकामनायें .

hem pandey said...

अमृता का नहीं मालूम, लेकिन आज की बाजारी व्यवस्था में झूठ की चादर ओढ़ने वालों की भरमार है- मुहब्बत में भी.

neera said...

बहुत सुंदर नज़्म है कई बार पढ़ी और हर बार नए अर्थ निकले...

Raj Singh said...

लोग मोहब्बत में झूठ की चादर ही ओढ़ते हैं.

अंजना said...

बेवफा चांदनी ...
गढ़ने लगती जुबां की सेज ....
नित नए 'स्वाद ' की चूरी
तोड़ डालती जिस्म की प्यास
उमर की जुंबिश उड़ा ले गई
शर्म की चुनरी .....
वाह बहुत उम्दा । दिल को छू लेने वाली...