खुदा ने जब दिलों में मोहब्बत के बीज बोये इश्क के छींटे कुछ पाक रूहों पर पड़े ....उन्हीं पाक रूहों में सस्सी - पुन्नू ....हीर-राँझा ...सोहनी-महींवाल ....लैला- मजनू जैसे इश्क के फरिश्ते पैदा हुए ...जो इस हसद और दुश्मनियों की दुनिया से अलग दिलों की दुनिया में बसते थे ....सीने में फौलाद सा जिगर और दिलों में तूफानों से जूझने का जूनून रखते थे .....कहते हैं मोहब्बत करनेवालों के दिलों में खुदा बसता है शायद इसलिए ये खुदा को ज्यादा अजीज़ होते हैं और इन्हें जल्द अपने पास बुला लेते हैं ताकि उनके नाम से धरती पर मुहब्बत जिंदा रहे ...ऐसी ही एक पाक रूह थी शीरीं - फरहाद की ........शीरीं को पाने के लिए पहाड़ में नहर निकालने जैसा नामुमकिन काम ...... मुहब्बत ने वो भी कर दिखाया ....पर दस वर्षों के हाथों के छाले साजिशों का शिकार हो गए ...और '' कसरे शीरीं '' दोनों की कब्रगाह बन गया.......
फरहाद.........
शीरीं का सब्र टूट पड़ा था
वह बेतहाशा दौड़ पड़ी
तेशा रुका , हथौड़ा थमा
आँखें मिलन की आस में
चमक उठीं ....
जी चाहा ...दौड़कर भींच ले
मोहब्बत को सीने में
पर वचन ने मुँह मोड़ लिया
तेशा फ़िर चलने लगा
पहाड़ टूटने लगा
बेताब धड़कने
फ़िर मिलन की आग में
जलने लगीं.......
हुश्न खुदाई करता
और मुहब्बत दुआ मांगती
ज़िन्दगी जैसे इबादत बन गई ....
फटे हाथ , ज़ख़्मी पाँव
फ़िर भी बदन में जूनून
लबों पे मुहब्बत का नाम
आह ! फरहाद .....
तू किस मिटटी का बना था...?
बरसों पहले सीने में
कुछ मोहब्बत के पेड़ उगे थे
जिसके कुछ पत्ते
सूखकर झड़ने लगे थे ...
आज उन्हें फ़िर से टांकने लगी हूँ
शायद खुदा मुझ पर भी
मेहरबां हो जाए .....
एक चित्रकार की कलम
पत्थरों पे मुहब्बत के गीत लिखती
और हथौड़े की ठक-ठक
संगीत के सात स्वरों में
नृत्य करती ....
कसरे- शीरीं
जिसके चप्पे-चप्पे पे
फरहाद की अंगुलियाँ
जाम पीती रही ....
इक दिन बना देतीं हैं
हुश्नोआब की तस्वीर
मुहब्बत काँप उठती है
इसकी सजा जानते हो ....?
मैं दिल में छिपा लूँगा .....
पर .......
सुल्ताना की तीखी नज़रें
दिल के आर-पार हो गयीं
साजिशों की बुझी राख
फ़िर दहकने लगी .....
शीरीं को कैद
और फरहाद को पहाड़ तोड़कर
नहर निकालने जैसा
आदेश .....
कहते हैं ...
इन खुदाबंद लोगों में
मोहब्बत की फौलाद सी ताकत होती है
जो पहाड़ों में भी रास्ता बना दे.....
इक दिन ...
कोहकन ने तोड़ डाला कोह
नहर बहने लगी...
आसमां ने किलकारी मारी
परिंदे बाहें फैला गले मिलने लगे
पेड़ - पौधों ने कानों में कुछ कहा
शीरीं दौड़ पड़ी ....
साजिशों का रंग बदला
मुहब्बत के क़त्ल की झूठी अफवाह
फरहाद को रोक न सकी ....
नहर के पानी में उठे बुलबुले
लाल होते गए ...
शीरीं ने भी कटार की नोक पर
लिख दिया मुहब्बत का नाम
'' शीरीं-फरहाद ....''
और हमेशा-हमेशा के लिए
अमर हो गए.......!!
Tuesday, November 24, 2009
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51 comments:
ओह, कलम कैसे एक-एक हर्फ़ उतार देती है उन परम, पावन और अमर रूहों के ईश्क का ..कोई आके देख ले..हरकीरत जी की लेखनी...!!!
इन खुदाबंद लोगों में
मोहब्बत की फौलाद सी ताकत होती है
मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं,
यह वह नग़्मा है जो हर साज पे गाया नहीं जाता।
वो एक जुनून था मोहब्बत का । हम शीरीं फरहाद से ज्यादा आपकी कविताओं से अचंभित हैं । जो उतार देती है ज्यों का त्यों बेकरार रूहों को ...
kya kahun ab ....aapne to speechless kar diya.......
nishabd hoon aapki is rachna par.....
aapki lekhnee ko salaam....
आप की कविता पढते पढते ऎसा लगा जेसे हम इसे दॆख रहे हो.आप ने अपनी कविता के शव्दो मै जेसे जान डाल दी हो.
धन्यवाद
बेशक मंदिर-मस्जिद तोड़ो,
बुल्ले शा ये कहता,
पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो,
जिस दिल मे ईश्वर रहता...
जय हिंद...
कविता ऐसी कि लगने लगा कोई चलचित्र देख रहे हैं..गजब का प्रवाह और जुड़ाव!! वाह!!
'मोहब्बत करनेवालों के दिलों में खुदा बसता है शायद इसलिए ये खुदा को ज्यादा अजीज़ होते हैं'
kya khoob kahaa hai!
'शीरीं - फरहाद'bahut hi khubsurat likha hai..jaise sab kuchh aankhon ke samne se guzar raha ho.
एक सुंदर एहसास..बढ़िया रचना..बधाई
behatareen
इन खुदाबंद लोगों में
मोहब्बत की फौलाद सी ताकत होती है
मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं,
harkirat ji, muhobbat ki kahaani men apna dard bhi mila kar sone par suhaga kar diya hai aapne. lajawaab.
बहुत बढ़िया!
आपकी अभिव्यक्ति की तारीफ में
शब्द छोटे पड़ रहे हैं!
pal - pal karvat badalatee duniya me itihaas ko sajeev kar diya aapane .Bilkul aankho dekha haal lag raha tha
Badhai .
kya khub baat kahi aapne rachanaa abhi tak nahi padh paaya hun , rachanaa se pahale bhumikaa par hi fida ho agyaa ... kash kuchh chhiten mere upar bhi padi hoti... insaaallaah.... rachanaa ke liye fir se aata hun...
arsh
लाजवाब है ये रचना
किसी चलचित्र की भाँति आँखों में कैद हो गयी
शींरीं फरहाद को आपने अपने लाजवाब शब्द कारीगरी से जिंदा कर दिया...वाह...
नीरज
कुछ ब्लॉग सिर्फ इश्क को समर्पित है... यह 'H ' भी उन्ही में से एक है...
दुनिया के सितम पर मोहब्बत की खुशबु बखेरती हुई यह नज़्म ...
bahut hi pravahmayi..........apne sath baha le gayi............nishabd hun is rachna par.
इस अमरत्व में आपने एक प्रकाश भर दिया
शीरी फरहाद के प्यार की कहानी, आपकी जुबानी पढ़कर आनंद आ गया।
बहुत बढ़िया जी।
Masha Allah aap likhti bahut hai khoobsurat.... aap har line ke alfaaz me jaan phoonk deti hai aisa mahsoos hone lagta hai ki kahi aisa sach me nahi ho raha maanna padega apke likhne ke tareeke ko ....aapke to hum fan kabke hi the ab to aapke har post ko jab tak dekh nahi lete tab tak visit karte rehte hai ....upar waale se dua rahegi aap isi trah isi raftaar se apne nazm ghazal kavitayein ....puri hakikat se byaan karte rahe...Aameen
best regards
aleem azmi
इन खुदाबंद लोगों में
मोहब्बत की फौलाद सी ताकत होती है !
बहुत ही गहराई एवं तन्मयता से आपने इस रचना का चित्रण किया है लाजवाब प्रस्तुति, आभार के साथ्ा शुभकामनायें ।
कुछ मोहब्बत करने वाले होते ही ऐसे है। एक मोहब्बत को "गुनाहों का देवता" में देखा परसो। और आपने जिस खूबसूरती से शीरी-फरहाद की मोहब्बत को शब्दों से तराशा है। जैसे किसी मूर्तिकार ने मूर्ति तराश दी हो।
कमाल है!! पूरी कथा इतने कम शब्दों में सजीव हो उठी!!
kaaphi badhiya LIKHA HAI AAPNE EKDAM MAN KO CHHU GAYA....AISA LAGA KI PIC DEKH RAHA HOON..
काव्य ने अपनी अनंत यात्रा पर चलते हुए
विभिन्न पड़ाव पार किये हैं,,,
जटिलताओं से दो-चार होते हुए भी
कविता ने पढने वालों के दिलों में जगह बना पाने में कामयाबी हासिल की है ,,
और ऐसा....
कविता का मर्म समझने वाले आप जैसे
सुयोग्य रचनाकारों कि उज्ज्वल सोच से ही संभव हो पाया है .......
आपकी नयी रचना पढ़ कर मन एक तरफ जहाँ उल्हास से भर गया ,,
वहीं ऐसा भी महसूस होने लगा कि कैसे आप
अपनी जादुई कलात्मकता से पढने वालों को
अपनी रचना के भावों में बाँध लेते हो ....
आपने अपनी इस सुन्दर कृति द्वारा
उमंगों के संवेग में विचरती हुई
प्रेम-भावनाओं को शब्दों का मोहक रूप दे कर
अपने पाठकों को बेहद्द अनुपम उपहार दिया है..
रचना में शिल्प की मौलिकता
आपके रचना सामर्थ्य को प्रमाणित करती है ..
और एक अलग-से विषय का चयन
आपकी बौद्धिक क्षमता को उजागर करता है
ढेरों बधाई स्वीकार करें
---मुफ़लिस---
aapki saari rachnate padhi,aur baar padhi bahut bhav poorn likhti hain aap shubhkamnayen .
बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
हुश्न खुदाई करता
और मुहब्बत दुआ मांगती
ज़िन्दगी जैसे इबादत बन गई ....
-------
इक दिन ...
कोहकन ने तोड़ डाला कोह
नहर बहने लगी...
आसमां ने किलकारी मारी
परिंदे बाहें फैला गले मिलने लगे
पेड़ - पौधों ने कानों में कुछ कहा
शीरीं दौड़ पड़ी ....
........आपको पढ़कर यूँ लगता है जैसे
शब्दों की ज़मीन पर भावनाएँ नृत्य कर रही हों...
...बधाई
कैसे ऐसा जीवंत सा लिख लेती हैं आप?पूरा दृश्य सा सामने आ जाता है.
शीरी फरहाद की कहानी को इस नज़्म के माध्यम से वापस स्मृतियों में लौटाने के लिए आभार !
kuchh gadbad ho gai hai mere blog par, usne hindi me likhna band kar diya hai; mushkil hai, lekin likhna hoga; english me hi sahi :
mohabbat ki dastaan ko jin shabdo me aapne bandha hai, uska noor pathak ke kaleje me ujaala karta hai, hamari rooh ko roshan karta hai. aur kya kahun ?
saabhivadaan--anand v. ojha.
इतने पाक इश्क इस दुनिया के लिये नही बने होते..तभी इन कहानियों की उम्र इतनी छोटी होती है...
...मगर यही लोग, यही दास्तानें फिर भी जिन्दा रहती हैं..ऐसी ही पाक नज़्मों मे..हर्फ़-दर-हर्फ़...सदी-दर-सदी..
सोचता हूँ कि शीरीं लफ़्ज़ उस शख्सियत के मीठेपन की वजेह से मशहूर हुआ..या उसका नाम ही इसीलिये रखा गया..
आपने पूरी दास्ता कविताबद्ध कर दी है बहुत ही सुन्दर
हरकीरत जी
मुहब्बत के बड़े मासूम चित्र उकेरे हैं आपने .
कहते हैं ...
इन खुदाबंद लोगों में
मोहब्बत की फौलाद सी ताकत होती है...
कमाल कि अभिव्यक्ति है ...... हर लफ्ज जैसे जिन्दा गया ..... कागज़ से बहार निकल कर हकीकत में घूम रहा हो हर शब्द .... इस प्रेम कि अमर कहानी कि रूह को आपने उतारा है इस नज़्म में .... कमाल कि नज़्म है ...
pyar to pyar hai sabko naseeb thodi hota.pyar mein kitni takat hoti hai ye to pyar karne vale hi janate hain.pyar anant shakti deta hai. pyar mein khuda khud basta hai.post sarahneey hai.Badhai!!
aapki rachna me kuchh khas kya loo saare shabd zabardast hote hai .aapki lekhni hame maun kar deti hai
लिख दिया मुहब्बत का नाम
'' शीरीं-फरहाद ....''
और हमेशा-हमेशा के लिए
अमर हो गए.......!! chhoti umar ki amar prem kahaani sjeev ho gyee lagi apki kavita me.....
अमूमन किसी जाने पहचाने विषय पर एक नज़्म लिखना एक जोखिम लेने जैसा है ...क्यूंकि इस सब्जेक्ट पर लिखते वक़्त मूड भी कुछ खास रु में होना चाहिए ....आपने एक सिटिंग में लिखी है या दो चार में .जानने की उत्सुकता है ....कम से कम येपढ़कर
फटे हाथ , ज़ख़्मी पाँव
फ़िर भी बदन में जूनून
लबों पे मुहब्बत का नाम
आह ! फरहाद .....
तू किस मिटटी का बना था...?
बरसों पहले सीने में
कुछ मोहब्बत के पेड़ उगे थे
जिसके कुछ पत्ते
सूखकर झड़ने लगे थे ...
आज उन्हें फ़िर से टांकने लगी हूँ
शायद खुदा मुझ पर भी
मेहरबां हो जाए .....
thanx 4 ur worth cmnt...or mujhe hmesha jaroorat hai apke cmnt ki bhi .....
बहुतों ने बहुत कुछ कहा, मुफलिस जी ने सब कुछ कहा मेरे लिए शायद कुछ नहीं बचा. किसी का शायर का जो शेर मनोज जी ने quote किया उसे दुहराते हुए
"मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं,
यह वह नग़्मा है जो हर साज पे गाया नहीं जाता।"
सिर्फ इतना कहना चहुँगा, खुदा आपको सलामत रखे और आप यों ही लिखते रहें.
aapki lekhni ko salaam
शीरी फरहाद हमारे दो ऐसे मिथक है जिन पर बहुत कुछ लिखा गया है । मैने " श " पर एक कविता लिखते हुए शीरी को याद किया है ।
आपकी नज़्में दिलफरेब होती ही हैं पर इस बार आपने एक संजीदा काम किया है ऐसी रचना किसी भी लेखक के लिए गर्व की बात होती है. बधाइयां
pata nahi...is nazm ko padha ya fir dekha......koi jadoo to hua hai....aap kamaal hai :-)
... सागर की न जाने कितनी गहराईयों से "मोती" चुन-चुन कर उठाती हैं आप, जितनी भी तारीफ़ की जाए कम ही जान पडती है !!!!
साजिशों का रंग बदला
मुहब्बत के क़त्ल की झूठी अफवाह
फरहाद को रोक न सकी ....
नहर के पानी में उठे बुलबुले
लाल होते गए ...
शीरीं ने भी कटार की नोक पर
लिख दिया मुहब्बत का नाम
'' शीरीं-फरहाद ....''
और हमेशा-हमेशा के लिए
अमर हो गए.......!!
शीरीं-फ़रहाद को लेकर लिखी गयी बहुत अच्छी रचना।
हेमन्त कुमार
आप ने भी किस का जिक्र छेड़ दिया harkeerat जी...
बेचारा ....!!!
बरसों पत्थर से टक्कर मारने के बाद क्या मिला....??
की मशक्कत, और जाँ से भी गया
हम सा ही कुछ सिरफिरा फरहाद था.....
फटे हाथ , ज़ख़्मी पाँव
फ़िर भी बदन में जूनून
लबों पे मुहब्बत का नाम
आह ! फरहाद .....
तू किस मिटटी का बना था...?
बरसों पहले सीने में
कुछ मोहब्बत के पेड़ उगे थे
जिसके कुछ पत्ते
सूखकर झड़ने लगे थे ...
आज उन्हें फ़िर से टांकने लगी हूँ
शायद खुदा मुझ पर भी
मेहरबां हो जाए .....
हीर
मुहब्बत के न दिखाई दिये लम्हों को आप जिस सिद्दत से उभार रहीं हैं वह काबिलेतारीफ़ है। शीरीं अहसास।
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