कुछ और नज्में इमरोज़ की ......और इक प्यारा सा ख़त नज़्म रूप में ......हर बार एक ही आग्रह ....कवि या लेखक कभी 'हक़ीर' नहीं हुआ करते ......और रख देते इक मोहब्बत की तड़पती रूह का नाम ...'हीर' .....सोचती हूँ उम्र भर की तलाश में इक यही नाम ही तो कमा पाई हूँ ....तो क्यों न 'हीर' हो जाऊं ... वे मुझे 'हीर' ही लिखते हैं ......
पेश है इमरोज़ को लिखा एक ख़त ....''तुम भी जलाना इक शमा मेरे नाम की कब्र पर .....''
इमरोज़
तेरे हाथों की छुअन
तेरी नज्मों की सतरों में
साँस ले रही है ....
और इन्हें छूकर मैंने
जी लिए हैं वे तमाम एहसास
जो बरसों तूने गुजारे थे
अपनी पीठ पर ....
किसी और नाम की
तड़प लिए ....
आज मैं ...
उस रूह सी पाक हो गई हूँ
जो तेरे सीने में
इश्क के नाम से धड़कती रही
तेरे ख्यालों ,तेरी साँसों
तेरी लकीरों में
जीती- मरती रही .....
बस इक ....
ख्याल सा दिल में आता है
कहीं तू मिल जाता
तो चूम लेती तेरा वह आकाश
जहाँ बेपनाह मोहब्बत
रंगों का नूर लिए
बरसती है ......
खिल जाती चाँदनी
गर एक घूँट जाम
तेरे कैन्वस का पी लेती ...
गर रख देता तू कुछ सुर्ख रंग
स्याह लबों पे ...
घुल जाती रंगों में चांदनी
रफ्ता-रफ्ता उतर जाती
रात की बाँहों में ....
गर तू लिखता इक नज़्म
'हीर' के लिए ......
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
Saturday, November 14, 2009
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68 comments:
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
in panktioyon ne man moh liya....
bahut sunder lagi yeh rachna....
क्या कहूँ, हर एक शब्द जैसे बरस पड़े। बेहद लाजवाब । आभार आपका
आपका 'हकीर' से 'हीर' होना मुझे भी अच्छा लगा। चलिए आज से आपको इसी नाम से याद करूँगा।
बेहतर भाव की पंक्तियाँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुंदर लगी आप की यह प्रेम रस मै डुबी रचना.
धन्यवाद
हीरजी,
बेहतरीन नज्म ! अंतिम बंद तक उतरते-उतरते कलेजे पर नश्तर-से चल जाते है !
'न रहा जुनूने-रूखे-वफ़ा, ये रसम, ये दार करोगे क्या ?
जिन्हें जुर्म-e-इश्क पे नाज़ था, वो गुनाहगार चले गए !'
नज़्म नहीं, अद्भुत भावाभिव्यक्ति !
साभिवादन--आ.
श्यामल जी,
सिर्फ इमरोज़ का ही नहीं और भी कई लोगों का अनुरोध था अपना तखल्लुस बदल लूँ ....इमरोज़ जी तो लिखते ही हीर हैं ...ऐसे में यह उनकी बात का मान ही है कि मैंने उनका दिया नाम कबूल किया ....!!
प्रेम रस में सराबोर कर दिया आपने
Imroz - Amrita ka jikr ho......aur ungliyan....comment ke liya na machle aisa ho nahi sakta......bas naam hi kaafi hai......Unka diya naam apna ligiye.....ham bhi pyaar se aapko "Heer" bulayenge :-)
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
बहुत अच्छा लगा पढ़ना.
आपका आभार इसे प्रस्तुत करने के लिए.
आपको आपका नया तखल्लुस बहुत-बहुत मुबारक हो....... नज़्म भी बहुत खूब रही हमेशा की तरह.....
चलते-चलते एक बात कहना चाहूँगा कि आपके ब्लॉगर प्रोफाइल में आपका नाम अभी भी "हरकीरत हकीर" ही है....... यहाँ पर भी हीर नाम की खुशबू फैलाइये......
साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......Humsafar Yaadon Ka
जी लिए हैं वे तमाम एहसास
जो बरसों तूने गुजारे थे
अपनी पीठ पर ....
किसी और नाम की
तड़प लिए ....
अपनी पीठ पर ऐसे दर्द झेलने के लिए सागर जैसा विशाल दिल चाहिए...एक मीठी छुवन लिए प्यारी सी कविता
" behatrin ...waah dil jeet liya aapki in panktiyoan ne
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
kya baat hai ,
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
amrita imroz ka jikr ho or baat dil ki tah tak na jaye....esa ho hi nahi sakta ....lajabab rachna hai.
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
आपकी आत्माभिव्यक्ति की आकांक्षा को प्रदर्शित करती इस नज़्म में आध्यात्मिक रहस्य दिखाई पड़ता है।
सोचती हूँ उम्र भर की तलाश में इक यही नाम ही तो कमा पाई हूँ ....तो क्यों न 'हीर' हो जाऊं ... sabhi kaha kma pate hai aise naam......
इमरोज साहब की किसी पेंटिंग को देखने का मौका तो नही मिला अभी तक..मगर उस शख्स का दिल यकीनन सितारों सा रोशन और खुदा के घर सा पाक होगा जिसके पर इतनी खूबसूरत और पुरअसर नज़्म निसार हुई सी जाती है..बस सलाम है हमारा..इस नज़्म मे छुपे जज्बात के वास्ते..
..और आपने नाम का यह बलखा कर एक दिलकश मोड़ लेना और भी खूबसूरत बना गया इसे..उम्मीदें भी बढ़ गयीं आपकी नज़्मों से अब..
खिल जाती चाँदनी
गर एक घूँट जाम
तेरे कैन्वस का पी लेती ...
गर रख देता तू कुछ सुर्ख रंग
स्याह लबों पे ...
घुल जाती तेरे रंगों में
रफ्ता-रफ्ता उतर जाती
रात की बाँहों में ....
गर तू लिखता इक नज़्म
'हीर' के लिए ......
बेहतरीन अभिव्यक्ति सुन्दर बिम्बों और अच्छे शिल्प के साथ्।
हेमन्त कुमार
हकीर से हीर, ये तो खूब रही.
अच्छी प्रेम रचना.
आज मैं..
उस रूह सी पाक हो गई हूँ
जो तेरे सीने में
इश्क के नाम से धड़कती रही
तेरे खयालों
तेरी सांसों, तेरी लकीरों में
उतरती रही........
वाह! क्या खूब....
इमरोज के लिए 'हकीर' से 'हीर' होना
आपका व्यक्तिगत फैसला है
इसमें
हम कर ही क्या सकते हैं
बस यही दुआ कर सकते हैं कि
आपकी नज़्म
यूँ ही पढ़ने को मिलती रहे....
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
bahut hee bhavpoorn rachana . Badhai
पहले बधाई स्वीकारे..नए नाम के लिए (हरकीरत 'हीर') कविता तो हरबार की तरह बहुत शानदार है।
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
हरकीरत जी आप ने अपना तखल्लुस 'हक़ीर' से 'हीर' कर लिया, जानकर देखकर बहुत अच्छा लगा, मन को सुकून भी मिला। मुझे याद आ रही है आपसे की गई फोन पर वो शुरूआती दिनों की बातचीत और मैंने भी इस तखुल्लस के बारे में कहा था कि यह क्या नाम हुआ। आपने जब इस संबंध में अपने जीवन के बारे में कुछ बताया तो मैंने सोचा था कि चलो, कवि को जिस में सुकून मिलता हो, वही ठीक है। पर आज भले ही इमरोज जी के कहने पर आपने खुद को 'हकीर' से 'हीर' बना लिया है तो सचमुच मुझे खुशी हो रही है। आपकी कविताओं में जो दर्द है और दर्द के साथ साथ एक तड़प, वह देखते ही बनती है और उसके लिए 'हीर' बेहद उपयुक्त शब्द है। खुदा करे, आपकी कलम इसी तरह बुलन्दियां छूती रहे…
सुभाष जी आपका आना सुखद लगा ....आपके ही ब्लॉग में सर्वप्रथम मेरी रचनायें छपी थीं जिसे पाठकों ने बेहद सराहा ....मैं तो ऋणी हूँ आपकी ....मुझे याद है आपसे हुई बातचीत ...आपने तखल्लुस की बात उठाई थी मैंने कहा था मेरी ज़िन्दगी इस तखल्लुस से बहुत जुडी हुई है ....पिछले दिनों पाबला जी , लक्ष्मी शंकर बाजपेई , मधुकर 'हैदराबादी' आदि से हुई बातचीत में भी उनका भी अनुरोध था ...और अब इमरोज़ जी का 'हीर' लिखना मुझे भावविह्वल कर गया ...उनका दिया ये तखल्लुस रखना मेरे लिए उन्हें सम्मान देना ही है ...बस आप सब की दुआ और आर्शीवाद चाहिए ......!!
बस इक ....
ख्याल सा दिल में आता है
कहीं तू मिल जाता
तो चूम लेती तेरा वह आकाश
जहाँ बेपनाह मोहब्बत
रंगों का नूर लिए
बरसती है ......
aah! kya dard bhar diya hain in panktiyon mein to.......dil ki wo tamanna jo ankahi rahi ho aur usko shabd mil gaye hon............bahut hi lajawaab shabd..........hamesha ki tarah utkrisht rachna.
aage bhi aisi hi rachnaon ko padhna chahenge.
खिल जाती चाँदनी
गर एक घूँट जाम
तेरे कैन्वस का पी लेती ...
गर रख देता तू कुछ सुर्ख रंग
स्याह लबों पे ...
घुल जाती तेरे रंगों में
रफ्ता-रफ्ता उतर जाती
रात की बाँहों में ....
PYAAR KI ITNI GAHRI INTEHAA ... UFF ... BAHOOT HI KAMAAL KA LIKHA HAI ... SHABD GOONGE HO JAATE HAIN ISKE BAAD ...
"आज मैं ...
उस रूह सी पाक हो गई हूँ
जो तेरे सीने में
इश्क के नाम से धड़कती रही
तेरे ख्यालों ,तेरी साँसों
तेरी लकीरों में
उतरती रही ....."
रूह कि गहराईयों से लिखी गयी इस
नायाब नज़्म के लिए
और
'हक़ीर' से "हीर"
होने के लिए
ढेरों
ढेरों
ढेरों
मुबारकबाद
भगवान् जी से प्रार्थना है कि
आपकी क़लम
यूं ही
कामयाबी के नए आकाश
फ़तेह करती रहे......अस्तु !!
Prem ki chashni mein sarabor karti nazm...
अब जब खुद इमरोज जी ने कह दिया तो हमें भी स्वीकारना ही होगा और सच में कितना साम्य भी है इस मल्लिका-ए-नज़्म के नाम के साथ...
"देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है"
अहा! बहुत खूब मैम...बहुत खूब!!
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
HEER NAHIN MOHABBAT MAEN TARASHE JAANE SE HEERA HO GAIN. BEHATAREEN NAZM, BAHUT KHOOB.
.... अन्तिम पंक्तियां बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय हैं !!!!!
हरकीरत जी,
एक-एक शब्द मे जो दर्द पिरोया है आपने उस से ग़ज़ल की परिभाषा पूर्ण हो गयी !
धन्यवाद !! लगता है अब आपके ब्लॉग पर हमको आना पड़ेगा बार बार..... !!!!!
बहुत ही खुबसूरत नज़्म... बेहद गहरे बैठी...
nazmon ki raani ko is khaaksaar ke taraf se is naye takhallus ke liye bahut bahut badhaayee.... jab emroz sahib ne aapko isase nawaja hai to ye to paakijagi ki baat hi kya hai... bahut khub ji aapke alfaaj me oye hoye ji... :)
arsh
मोहब्बत की महक से भीगी हुई रचना को पढने के बाद कैसा महसूस होता है उसे बताने के लिए शब्दों में ढालना बहुत मुश्किल है। अमृता जी की लेखनी और इमरोज जी के रंग दोनो से प्यार का असली अर्थ समझ पाया था। इस रचना के बारें में क्या कहूँ। एक एक शब्द एक अलग ही अहसास जगा रहा है।
इमरोज़
तेरे हाथों की छुअन
तेरी नज्मों की सतरों में
साँस ले रही है ....
औरइन्हें छूकर मैंने
जी लिए हैं वे तमाम एहसास
जो बरसों तूने गुजारे थे
अपनी पीठ पर ....
किसी और नाम की
तड़प लिए
........
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ..
अद्भुत
हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
बेमिसाल रचना...शब्द और भाव दोनों अद्भुत...विलक्षण रचना ....वाह..वा...
नीरज
हरकीरत जी आपकी रचनाओं पर प्रतिक्रिया देना मेरे बस मे नहीं होता
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ..
बाकी तो गौतम जी और मुफ्लिस जी ने कह दिया बहुत बहुत बधाई
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
हकीर से हीर बन जाना ही तो इतनी उम्दा कविताओं से मिलवाता है ...!!
sundar rachana.
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
बहुत ही ख़ूबसूरती से मन की बात कह डाली है
आभार
आप इतना कमाल लिखती हैं की रोमांचित हो जाते हैं !!!शानदार !!!
bahut khoob.......
बस इक ....
ख्याल सा दिल में आता है
कहीं तू मिल जाता
तो चूम लेती तेरा वह आकाश
जहाँ बेपनाह मोहब्बत
bahut hi umda line dil ke taar taar ko hila diya ....bahut sunder
laakh laakh mubarakbaad
आज मैं ...
उस रूह सी पाक हो गई हूँ
जो तेरे सीने में
इश्क के नाम से धड़कती रही
तेरे ख्यालों ,तेरी साँसों
तेरी लकीरों में
जीती- मरती रही ....
हरकीरत जी,
दिल को कहीं गहराई तक छू लेने वाली पंक्तियां।
पूनम
'न रहा जुनूने-रूखे-वफ़ा, ये रसम, ये दार करोगे क्या ?
जिन्हें जुर्म-e-इश्क पे नाज़ था, वो गुनाहगार चले गए !'
खिल जाती चाँदनी
गर एक घूँट जाम
तेरे कैन्वस का पी लेती ...
गर रख देता तू कुछ सुर्ख रंग
स्याह लबों पे ...
घुल जाती रंगों में चांदनी
रफ्ता-रफ्ता उतर जाती
रात की बाँहों में ....
गर तू लिखता इक नज़्म
'हीर' के लिए ......
bahut khoobsurat nazm jise sirf mahsoos kiya ja sakta ,kahna jara muskil hai ,imroz aur amrita ji ke charcha se door rahna namumkin hai ,main aage padhkar jaa chuki hoon magar kuchh kahne ke sthiti me nahi rahi aur wapas laut chali ,phir aai to light ne saath nahi diya ,baat adhoori hi rah gayi ,wo bhi mit gayi ,is tarah raha ye safar ,magar koshish jaari rahi ,
मैं आपको तब से पढ़ रहा हूँ जब से ब्लॉग लिखना शुरू किया तब आप मेरी प्रिय लेखिका थी, आज दो साल बाद बाद भी वही हाल है आपके शब्दों ने मुझे हमेशा आकर्षित किया वे खिले खिले फूलों और नम उदास काँटों की तरह मुझे ज़िन्दगी के बारे में बताते रहे हैं. किसी एक नज़्म की तारीफ़ क्या करूँ बस हर बार पढ़ता हूँ और फिर पढता हूँ...आप इतना ही सुंदर लिखती रहिये!
Pyar ke gahare bhavon ke liye aapki rachna bahut achhi lagi ....
zazbat bhari ye nazam bahut imandari se byan ki gai sundar rachna hai aapki
teru lakeeron mein jeeti marti rahi....
itni naazuk lekin mukkamal karte jazbaat..
'तुम्हारे ब्लॉग पर पहुँच गई जाने कैसे भटकते भटकते,
हीरिये ! ज्यादा नही पढ़ा तुझे ,बस 'इमरोज'को देखा
वहीँ बैठा मिला कैसे कुछ कहती तुझसे उसके सामने ...
.........................................................................
.............................................................................
................................................................................
जानती हूँ इन पक्तियों की डोट डोट मे छिपे मेरे जज्बातों को ,
अनलिखे को भी पढ़ लेगी ,पुत्तर
नही पढ़ सके तो इन पर अपना हाथ फेर कर देखना
इनकी नमी शायद तु पढ़ ले ........................
इंदु पुरी गोस्वामी
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!
बहुत दर्दीली ।
हीरिये !
जिसे ढूंढ़ रही थी,उसे पा लिया, खुश हूँ.
नही जानती तुम्हे, कौन हो? क्या हो ?कैसी हो ?
इतना जानती हूँ मैंने एक hi जन्म मे 'इंदु' को ,मीरा,राधे और 'यशोदा ' को जिया है ,जी रही हूँ, मुझे 'हीर' मिली हैं जीती जागती', प्यार,दर्द और उनकी गहराई को तुमसे ज्यादा कौन समझ सकता है 'हीर' पुत्तर, बस इसलिए ..........................
सदा खुश रहो,लिखते रहो,इसी स्तर का लिखते रहो अपने लिए, मेरे जेसो के लिए ..............जानती हो लिखते हुए जब जब तुम्हारी आँखों से हीर के आंसू गिरेंगे
..मेरे चेहरे पर फ़ैल जाएगे ..कैसे ...? शायद तुम न समझ पाओ कभी
तुम्हारी
इंदु पुरी आंटी
'हकीर' से 'हीर' !
bahut hi sundar!kya baat hai!
aur yah nazm bhi behad bhaavpurn lagi.
वो सारा आसमां
मुट्ठी में भर लेती
रात जब मुट्ठी खोलती
तो चाँद ,तारे , आसमां
सारा जहां अपना सा लगता ....
(मोहब्बत........)
वह फेंकने लगती
बरसों से इकठ्ठा की ख्वाहिशें
तोड़ डालती सारे ख्वाब
सपने मिट्टी में कब्र खोदते
दीवारों से उखड़ आई खामोशी
एक-एक कर ओढ़ने लगती
दर्द की चादर......
(नसीब के पन्ने.......)
आ फेर लें मुँह तान लें फ़िर वही अजनबी सी चादर
बेरुखी ये तेरे दिल की , अब और सही नहीं जाती
बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से तेरी आहटें नहीं जातीं
(जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती ......)
आज मैं ...
उस रूह सी पाक हो गई हूँ
जो तेरे सीने में
इश्क के नाम से धड़कती रही
तेरे ख्यालों ,तेरी साँसों
तेरी लकीरों में
जीती- मरती रही .....
आपकी कवितायेँ पढ़ कर अभिभूत हुआ जा रहा हूँ...सोचता हूँ रोज मुझे समय मिलता तो आपको पढना मेरा एक काम होता...बहुत अच्छा लिखा है महसूस करने से सुकून मिलता है...
P.S.--
'HEER' NAAM ACHCHHA LAGAA---
इंदु जी ,
आपकी इस एक पंक्ति ...." मैंने एक hi जन्म मे 'इंदु' को ,मीरा,राधे और 'यशोदा ' को जिया है ,जी रही हूँ " ने बहुत कुछ कह दिया ....मुझे कुछ पूछने की जरुरत नहीं ....जो सतरें आपने बीच में खाली छोड़ दीं हैं उनकी नमी दिल में महसूस कर रही हूँ ....होंठों पे इक आह है और दिल में दुआ .....शायद तभी आपके शब्दों में इतनी ..............................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................कुछ सतरें मैंने भी रिक्त छोड़ दीं हैं आपके लिए ................!!
हरि की कीर्ति हो या हो हीर, दोनों अपने ईश के प्रति समर्पित हैं.
अमृता प्रीतम के काव्य संसार से गुजरे बिना इमरोज की काव्य-दृष्टि का भेद पाना मुश्किल काम है. प्रस्तुति के लिए बधाई.
इमरोज़ के बहाने आप बढ़िया बढ़िया नज़्म हम तक पहुँच रही हैं ......धन्यवाद!
Heer ji,
bahut hi sundar suruchipoorn rachna lagi aap ki.apne bahut hi gahraai mein jaake dubki lagvaai haibloogaron ko.rachna vahi jise padhkar pal bhar ke liye paathak khud ko bhool jaye. yah khoobi aapki rachna mein bharpoor milti hai.dil se badhaai!!
देख मैंने....
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
हमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना....... बस अब नया स्वरुप......
हरकीरत जी,
आपको शायद कभी भी हमने 'हकीर' नहीं कहा है....
अब आप हीर हैं....पता नहीं आपको 'हीर' कहें या हरकीरत जी
लेकिन इमरोज का दिया तखल्लुस बहुत पसंद आया
नज़्म तो है ही गजब की.....
नामकरण की मिठाई .......................................................................................??????????????
काफी डोट डोट छोड़ दिए हैं.......................
शायद कुछ मुंह मीठा हो जाए पाठकों का...
:)
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
क्या खूब कहा है, सच कहा है...
- सुलभ
हनेशा पढ़ता रहता हूँ आपका सब लिखा ..............
' दस्तक ' भर नहीं दे पाता अक्सर .......
क्यूंकि औरों का सुनना आपकी नज्मों पर ......
हमेशा मुझसे बेहतर ही पाया .
हाँ , आज की बात और है . रोकूंगा नहीं खुद को .
आपका खुद को ' हकीर ' कहना ,मुझे कभी स्वीकार न हुआ .
पर शिकायत ?
क्या ,क्यूं और कैसे करता ?
इमरोज़ का शुक्रिया के उन्होंने आपको ' हीर ' बना दिया !
इतना दर्द जो दुनिया का समझे ,जीए , समेटे और खूबसूरती से पूरी दुनियां से साझा कर ले वो ' हकीर ' ??
तो........
शुक्रिया तेरा , मेरे ' इमरोज ' ,
तेरा शुक्रिया
जो न था कोई ' हकीर '......
' हीर ' तूने कर दिया .
आमीन !
मेरे ब्लाग पर टिप्पणी के लिये धन्यवाद! आपके बारे में उत्सुकता हुई और आपके ब्लाग में झाँकने चली आई..यहाँ देखा तो प्रेम और दर्द का दरिया बह रहा है...याद आया एक दोहा
यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं
सीस उतारे भुईं धरे, तब घर पैठे माहिं।
आपको इस घर में पैठने पर बधाई।
haan ! ye hai kavita jahan heer ki aatma ki jhlak milati hai uske dil ki dhadkano ka sangeet sunai deta hai
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
उतार दिया है जामा 'हक़ीर' का
और 'हीर' हो गई हूँ ...
'हीर' जो शमा बन
हर मोहब्बत करने वालों की कब्र पर
सदियों से जलती रही है
इमरोज़....
तुम भी जलाना इक शमा
मेरे नाम की कब्र पर ...... .!!
मेरी एक कविता की पंक्ति "दिल का तार तार गाये मेरा रोम रोम मुस्काए" आपकी इस रचना को समर्पित.
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