Monday, November 9, 2009

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती ......

की शाम फ़िर बड़ी बेवफा निकली ....मन है कि यादों की पुरानी गठरी खोले बैठा है ....जरा से पन्ने पलटती हूँ तो शब्द इक तड़प लिए इधर -उधर बिखरे नजर आते हैं .....मैं सहानुभूति के लिए कंधे पे हाथ रखती हूँ तो ...छूते ही इक नज़्म उतर आती है .......



जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू नहीं आती


चलो अब लौट जायें , ख्यालों से उतर जायें
खलिश ये और गमे-दिल की सही नहीं जाती


बहुत रोया है रातों को , बहुत तड़पा है दिल मेरा
तेरे ख़्वाबों में गुजरी वो रातें बिसारी नहीं जातीं


आ फेर लें मुँह तान लें फ़िर वही अजनबी सी चादर
बेरुखी ये तेरे दिल की , अब और सही नहीं जाती

बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से तेरी आहटें नहीं जातीं


आ अय दर्द थाम ले मुझको अपनी बाँहों में
ये मय अब आखिरी प्याले की उठाई नहीं जाती


न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब .........................
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर ..............!!
**************************

साथ ही पहें दो मुक्तक भी .....

बुलावे पे उनके  जो न गए सनम
ख्वाबों में आके यार मेरा छेड़ गया
वो जो बरसों से थे कहीं सुकूत पड़े
तेरा इश्क़ वो दिल के तार छेड़ गया ...

(2)

लिखा जो ये हथेली पे नाम वो किसका है ?
 यूँ बनना,सजना,संवारना सब किसका है ?
तुम जो कहते हो 'हीर' को प्यार तुझसे नहीं

बता छाया आँखों में खुमार फिर किसका है ..?!!

58 comments:

Apanatva said...

very touching ....dil ko nam kar gaee aapakee ye nazm

वर्तिका said...

behad sunder abhivyakti......

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब लिखा है आपने। आपकी हर रचना बस कहीं लग सी जाती है।

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
फोन तो अब भी आते हैं उसके लेकिन न जानें क्यो अब वो सादगी नजर नहीं आती।

माफी चाहूँगा तब्दिलि के लिए।

jamos jhalla said...

शिकायत करने का अंदाज़ जुदा है |
लफ्जों का इस्तेमाल जुदा है
हरकीरत तेरा हर कृत्यजुदा है
वधाई

M VERMA said...

चलो अब लौट जायें , ख्यालों से उतर जायें
खलिश ये और गमे-दिल की सही नहीं जाती
bahut sunder

dr.rakesh minocha said...

हरकीरत जी, बहुत खूब, मगर किसी ने कहा है इन्तिअह किसी भी चीज की अच्छी नहीं

श्यामल सुमन said...

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू नहीं आती

वाह हरकीरत जी वाह। मजा आ गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत रोया है रातों को , बहुत तड़पा है दिल मेरा
तेरे ख़्वाबों में गुजरी वो रातें भुलाई नहीं जातीं
in panktiyon ne dil ko chhoo liya hai.... kahin andar tak.... aisa kai baar mehsoos bhi kiya hai....

bahut hi achchi lagi yeh rachna....

Meenu Khare said...

आप हमेशा ही मन को छू लेने वाला लिखती हैं. बधाइयाँ.

Yogesh Verma Swapn said...

बदल डाली हैं राहें अब कदम भी लौट आये हैं

न जाने क्यूँ ख्यालों से तेरी आहट नहीं जाती

bahut khoob , behatareen rachna.

डॉ टी एस दराल said...

आज की शाम फ़िर बड़ी बेवफा निकली ....मन है कि यादों की पुरानी गठरी खोले बैठा है ....जरा से पन्ने पलटती हूँ तो शब्द इक तड़प लिए इधर -उधर बिखरे नजर आते हैं .

आपकी तो ओपनिंग लाइंस ही किसी शायरी से कम नहीं.

बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से आहटें तेरी नहीं जातीं
अब समय तो लगेगा ही.

बहुत खूबसूरत अहसास.

अजय कुमार झा said...

वो जो दर्द छुपा होता है ..तेरी बातों में ..वो अक्सर तेरे शब्दों के साथ मुझ तक पहुंच जाता है ........

आपको पढना ....एक अलग ही अनुभव दे जाता है हर बार

मनोज कुमार said...

मन है कि यादों की पुरानी गठरी खोले बैठा है ....जरा से पन्ने पलटती हूँ तो शब्द इक तड़प लिए इधर -उधर बिखरे नजर आते हैं .....
आप आज किस दर्द के किस्से सुनाने लग गए
लफ्ज फूलों की तरह खुशबू लुटाने लग गए।

Anonymous said...

शुरूआती पंक्तियों ने ही दिल छू लिया... बाकी नज़्म तो माशा अल्लाह...

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत रोया है रातों को , बहुत तड़पा है दिल मेरा
तेरे ख़्वाबों में गुजरी वो रातें भुलाई नहीं जातीं


बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से आहटें तेरी नहीं जातीं

very touching....

प्रिया said...

aapki gazal to sunder hai hi but us sey bhi sunder hamko description laga "आज की शाम फ़िर बड़ी बेवफा निकली ....मन है कि यादों की पुरानी गठरी खोले बैठा है ....जरा से पन्ने पलटती हूँ तो शब्द इक तड़प लिए इधर -उधर बिखरे नजर आते हैं ..."

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

ये वही बात हो गई कि
"अब वो दिन हवा हुए जब पसीना भी गुलाब सा महकता था"

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत खूबसूरत अंदाज और लाजवाब रचना.

रामराम.

!!अक्षय-मन!! said...

काफी समय बाद आपको पढ़ पाया बहुत अच्छा लगा आपके शेर भी और आपने जिस तरहां शुरुवात की वो भी..........

माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा

अक्षय-मन "मन दर्पण" से

विनोद कुमार पांडेय said...

खूबसूरत प्यार भारी अभिव्यक्ति...बढ़िया ग़ज़ल...

Udan Tashtari said...

आ अय दर्द थाम ले मुझको अपनी बाँहों में
मय ये आखिरी प्याले की अब उठाई नहीं जाती

-ओह!! बहुत दर्द उड़ेल दिया है आपने इन पंक्तियों में. सुन्दर अभिव्यक्ति!

अर्कजेश said...

प्रणय़ संबधों के औपचारिक या जीविन्त न रह जाने पर पैदा हुई परिस्थिति और मनोभावॊं को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने इस गज़ल में ।

एक एक लाइन महसूस होती हैं !

अर्कजेश said...

प्रणय़ संबधों के औपचारिक या जीविन्त न रह जाने पर पैदा हुई परिस्थिति और मनोभावॊं को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने इस गज़ल में ।

एक एक लाइन महसूस होती हैं !

अपूर्व said...

न जाने क्यूँ तेरी बातों अब .................
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर .........!!

जाने क्यों वही कहानियाँ इतनी दिलकश होती हैं..जो खुद मे मुकम्मल नही होती..जिनको अंजाम की तसल्ली नही वरन्‌ अधूरेपन का इज़्तिराब हासिल होता है..
ट्रेजिक नगमों का इतना दिलकश होना भी एक कर्स होता है..बेबस फ़ूलों की खुशबू की तरह..

SACCHAI said...

आ अय दर्द थाम ले मुझको अपनी बाँहों में
मय ये आखिरी प्याले की अब उठाई नहीं जाती

" dard ..dard..buss dard ..kya baat hai ...aapki rachana ne to dil jeet liya ...behtarin ...dard bhari rachana ke liye aapko badhai "

" bahut hi umda rachana "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

आनन्द वर्धन ओझा said...

बहुत उम्दा है हरकीरतजी ! बातों में महक और खतों में खुशबू न मिले तो शिकायत शर्तिया बनती है ! ख्यालों से उतरने का प्रयोग नया है और उनसे आहटों का नहीं आना मर्म को छूता है ! हर बंद तकलीफों का बयान है, क्या बधाई दूँ !
साभिवादन--आ.

राज भाटिय़ा said...

वाह क्या बात है, बहुत ही सुंदर गजल...... शिकायत भी अलग आंदाज से... ओर आप की यह बात "मैं सहानुभूति के लिए कंधे पे हाथ रखती हूँ तो ...छूते ही इक नज़्म उतर आती है ....... बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद

shikha varshney said...

dilki tah tak jati hui panktiyan hain ...bahut khubsurat rachna.

neera said...

हरकीरत जी.. हमे तो आपकी नज़मो से वही पुरानी महक आती है... :-)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सहानुभूति के लिए कंधे पे हाथ रखती हूँ तो छूते ही एक नज़्म उतर आती है....
वाह!!आपकी उँगलियों में जादू है....!

रंजू भाटिया said...

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती....यह लफ्ज़ ही बहुत कुछ ब्यान कर जाते हैं ...बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..यादो की गठरी खुलेगी तो यूँ ही लफ्ज़ बिखेरेंगे ..शुक्रिया

mark rai said...

चलो अब लौट जायें , ख्यालों से उतर जायें
खलिश ये और गमे-दिल की सही नहीं जाती.....
......behtarin rachna........

Reetika said...

kuch geelapan sa hai zindagi ke guzre harfon mein abhi tak !

दिगम्बर नासवा said...

udaasi kabhi kabhi gher leti hai dil ko ....aur khoobsoorat najm ko jnam deti hai ..
bahoot hi achha likha hai ... dil mein seedhe utar gaya ..

ओम आर्य said...

कभी जिन्दगी इत्रे-गुलाब है
तो कभी शोला और शरारा,

तो कभी कांटॉ के बीच!

चकरायी सी है जिन्दगी!..............शायद यही है जिन्दगी!

सदा said...

बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से आहटें तेरी नहीं जातीं

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, हर पंक्ति लाजवाब

अजय कुमार said...

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू
नहीं आती||

बड़ा मनभावन अंदाज

Shruti said...

jaane kyu teri baato se pehle se mahek nahi aati...
yaado to tujhe bhi aati hogi meri O jaalim
bas ab pehle si nahi aati..

-Sheena

manu said...

नज्म.......?
यह तो गजल का रूप लिए है हकीर जी..


न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू नहीं आती


पहली लाइन सबसे खूबसूरत लगीं...


बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से आहटें तेरी नहीं जातीं

फिर ये ख्याल बड़ा दर्द भरा लगा.....


आ अय दर्द थाम ले मुझको अपनी बाँहों में
मय ये आखिरी प्याले की अब उठाई नहीं जाती..

इस तरह का लिखने का काम तो हमारे लिए छोड़ दीजिये हकीर जी....
ये मय-प्याले हमारे लिए रहने दीजिये ...
:)

RAJNISH PARIHAR said...

सब ने बहुत कुछ लिख दिया है..फिर भी लिखने से रोक नहीं पाया !बड़ी ही दिल से लिखी गयी रचना है जो सीधी दिल को छूती है....

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी 'मय ' का तात्पर्य यहाँ 'दर्द की इन्तहां' से लिया जाय....!!

जय श्रीवास्तव said...

इत्ती सी जगह में भी
तुम्हारे लिए जगह कर दी उसने
हद कर दी उसने

सुशील छौक्कर said...

न जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू नहीं आती

क्या कहें जी आप इतना सुन्दर और बेहतरीन लिखती है कि अक्सर कुछ सुझता नही कि क्या लिखे कमेंट में। सब कुछ तो हम पहले ही कह चुके है। इसलिए ............

Asha Joglekar said...

चलो अब लौट जायें , ख्यालों से उतर जायें
खलिश ये और गमे-दिल की सही नहीं जाती.....
बहुत ही सुंदर ।

शरद कोकास said...

पता नही मुझे क्यो लग रहा है हरकीरत जी यह रचना और बेहतर हो सकती है । नज़्म की जो रवायत है वो इसमे नही दिखाई दे रही है जबकि आप यह बेहतर जानती है ।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह!सुन्दर प्रस्तुति....बहुत ही अच्छी लगी ये रचना.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अत्यंत सुंदर भाव.

nilesh mathur said...

हरकीरत जी. नमस्कार , सुन्दर रचना!
अगर
खलिश ये और गमे-दिल की सही जाती नहीं,
बेरुखी ये तेरे दिल की , अब सही जाती नहीं,
नहीं जाती की जगह जाती नहीं हो तो शायद रचना और भी सुन्दर लगेगी!

Murari Pareek said...

आ फेर लें मुँह तान लें फ़िर वही अजनबी सी चादर
बेरुखी ये तेरे दिल की , अब सही नहीं जाती
sahi kahaa hai chalo ek baar phir se ajnabi ban jayeN !!!!

रचना दीक्षित said...

ये कौन सी गठरी खोल दी है आज कि हमारे दिल की आवाज और दर्द भी बयां कर गयी जो मैं न कह सकी आपकी नज़्म कह गयी

शोभना चौरे said...

चलो अब लौट जायें , ख्यालों से उतर जायें
खलिश ये और गमे-दिल की सही नहीं जाती
bahut khoob .kagj ke fulo ki tarh rishto ke rang bhi feeke pdne lgte hai .

kumar zahid said...

आपकी नज्म के भाव पढ़कर यह कहने को जी करता है
उदास सांस है या दिल उदास है यारा
कहां चले थे कहां जिंदगी ने दे मारा

जिन्दगी की सच्चाइयां इतनी बेकल क्यों करती हैं ..हरकीरतजी

डिम्पल मल्होत्रा said...

जाने क्यूँ तेरी बातों में अब वो पहले सी महक नहीं आती
ख़त तो अब भी आते हैं तेरे मगर वो खुशबू नहीं आती...khato se aaye ya na apki har rachna ki tarah esme bhi khusboo aati hai....

Manish Kumar said...

Bahut Khoob laga har sher...Waise ab to wo khat bhi kahan aate hain is email ke zamane mein.

गौतम राजऋषि said...

अरे ये पोस्ट कैसे छूट गयी थी मुझसे...

इतनी लाजवाब नज़्म...नज़्म या ग़ज़ल?

"बहुत रोया है रातों को , बहुत तड़पा है दिल मेरा
तेरे ख़्वाबों में गुजरी वो रातें बिसारी नहीं जातीं"

आहहाहाssssssss....सलाम मैम!

vandana gupta said...

बदल ली हैं राहें अब , कदम भी हैं लौट आए
न जाने क्यों ख्यालों से तेरी आहटें नहीं जातीं

bahut hi khoobsoorat panktiyan.

Dimple said...

Hello ji,

Harr pyar karne wali ko meri yeh pehli aur antim praarthna...

Pyar agar karo toh kashish ko marne na do
Dil ke iss saude mein junoon ko zinda rakho
Varna khushboo toh kya ... apne dil-e-gulzar ke chale jaane ka ehsaas bhi nahi hoga...

Bahut hi sundar likhaa hai aapne!!
Mujhe andar tak chooh gaya.

Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

Rajeysha said...

आ फेर लें मुँह तान लें फ़िर वही अजनबी सी चादर
बेरुखी ये तेरे दिल की , अब और सही नहीं जाती

अति‍सुन्‍दर।