तुम पढना मेरी मौत के बाद मेरी ख़ामोशी को ....के नज्मों ने आखिरी साँस ली है ....तुम रखना अपने लफ़्ज़ों की खुरदरी ज़मीं अपने साथ ....के मोहब्बत ने आखिरी साँस ली है ......कहते हैं....
इश्क़ जिनके खून में बसता है
उनके नसीब खारों से सजे होते हैं .....
आज फ़िर
रात के साये बहुत गहरे हैं
मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....
आँखें ....
एक गहरी साँस लेती हैं
इक खामोश आवाज़
कट कर गिरती है
पंखे से.....
रब्बा....!
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
इन बनते- बिगड़ते लफ़्जों में
अपने ही जन्म का पल
बेमानी लगने लगा है ...
आह....!
न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी जाइर* रूह से
घायल तो नहीं ....?
सामने कागज़ पर
मेरा कटा बाजू पड़ा है
और हैवानियत क़र्ज़ख्वाह* सी
चिखती रही सीढियों से .......
आज फ़िर शब्दों ने
अपने आप को
क़त्ल किया है ....
कुछ सच्चाइयाँ नग्न खडी थीं
पर लफ़्ज़ों ने यूँ परदा डाला
के बदन ....
हैरत की गठरी बन गया ...
ज़ज्बात ...
भीगते रहे बूंदों में
वजूद मिट्टी के बर्तन सा
तिड़कता गया
बस .....
दर्द मुस्काता रहा आंखों में
तसल्ली देता रहा
देख कलाइयों को
जहाँ लहू का एक कतरा
अपना तवाजुन *
खो बैठा था ....
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
जाइर - अत्याचारी
कर्जख्वाह -ऋण इच्छुक
तवाजुन -संतुलन
Friday, September 11, 2009
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71 comments:
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
यकीनन, उम्दा ...भाव-संप्रेषण की आपकी शक्ति को प्रणाम...
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
निसन्देह उत्कृष्ट. हरकीरत जी आपकी कविताओं से अमृता जी झाँकती सी लगती हैं...
शुभकामनाएँ.
--
मीनू खरे
ज़ज्बात ...
भीगते रहे बूंदों में
वजूद मिट्टी के बर्तन सा
तिड़कने गया
बस .....
दर्द मुस्काता रहा आंखों में
तसल्ली देता रहा
देख कलाइयों को
जहाँ लहू का एक कतरा
अपना तवाजुन
खो बैठा था ....उम्दा
रब्बा....!
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
इन बनते- बिगड़ते लफ़्जों में
अपने ही जन्म का पल
बेमानी लगने लगा है ...
आपकी कलम मे एक दश्त की अनजानी सी बेचैन करती खुशबू सी है हरकीरत जी..अमृता प्रीतम की poetry याद आ गयी..
बधाई
बहुत ही नायाब रचना, जैसे हीरे मोती जड दिये हों. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
uffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffffff
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ...
in misron ne jane kya keh diya.. behad badiya ma'am..
ज़ज्बात ...
भीगते रहे बूंदों में
वजूद मिट्टी के बर्तन सा
तिड़कता गया
बस .....
दर्द मुस्काता रहा आंखों में
तसल्ली देता रहा
अच्छा है ....
आह....!
न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी वहशतजदा
रूह का कज़्फ़ * तो नहीं ....?
क्या बात है बहुत खुब। गजब की अभिव्यक्ति दिखी आपकी इस रचना में। बधाई.....
यह रचना मुझे अनमोल जान पड़ती है...हर शब्द में एहसास, और जिंदगी का सफ़र झलकता है....मेरा आपकी लेखनी को सलाम
आज फ़िर शब्दों ने
अपने आप को
क़त्ल किया है ....
कुछ सच्चाइयां नग्न खडी थीं
पर वहशत ने यूँ परदा डाला
के बदन ....
हैरत की गठरी बन गया ...
stabdh hun aapki rachna padh kar .... lagta hai mujhe bhi shbdon ka akaal padh gaya hai .... aapki rachna sedhe dil mein utar gayee....
अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना के ज़रिए आपसे मिलना बहुत अच्छा लगा....
बढ़िया अंदाज उम्दा रचना . आभार
आह....!
न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी वहशतजदा
रूह का कज़्फ़ * तो नहीं ....?
.......
kin panktiyon ko rekhankit karun,kise chhod dun,isi udhedbun me rahi....kalam aapki, bhawnayen bahuton ki
वाह क्या बात है एक एक शव्द आप ने इस तरह पिरोया कि हर शव्द अपना ही मान रखता है इस कविता का.
धन्यवाद
आज फ़िर
रात के साये बहुत गहरे हैं
मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
अति सुन्दर अभिव्यक्ति
हर लफ्ज़ से निकला एक तीर
और सीधे सीने में जा लगा..
बहुत उम्दा रचना...
और हाँ! उम्र इतनी भी कमसिन नहीं है जालिम की
बहुत ही सुन्दर रचना ।
हरकीरत जी,
एक और उम्दा नज़्म ! आपके लफ्जों में बड़ी नफासत है, बयान ऐसा की तीर की तरह कलेजे तक जा ओअहुचता है :
'आज फ़िर शब्दों ने
अपने आप को
क़त्ल किया है ....
कुछ सच्चाइयां नग्न खडी थीं
पर वहशत ने यूँ परदा डाला
के बदन ....
हैरत की गठरी बन गया ...'
वल्लाह ! बहुत कुछ अनकहा कहा है आपने ! बधाइयाँ !!
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
वाह! क्या बात है!कमाल की रचना है!
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
behatareen. umda. badhaai.
वह तेरा नाम ही था जो गिर गया हाथों से ...बहुत उम्दा ...बहुत बढ़िया ..!!
दिल के भीतर कहीं गहरे उतर गई आपकी रचना.
अद्भुत!!!
आपकी लेखनशैली का कायल हूँ. बधाई.
दर्द और हरकीरत, नज्म और हरकीरत, एहसास और हरकीरत और जाने क्या क्या......अच्छा लिखने वालों की कमी तो है लेकिन एक बेहतर रचनाकार सवा लाख पर भारी होता है. हरकीरत, इस नज्म को खुद १० बार ध्यान से पढना, शायद टर्निंग पॉइंट आ गया है. मुबारकां.
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!ultimate...
ek utkarash lekhan ke or badhte in kadmo ko hamara salaam
आज फ़िर
रात के साये बहुत गहरे हैं
मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....
umda.........behtreen,shabd chote pad rahe hon jahan.ek utkrisht rachna.
read my new blog--http://ekprayas-vandana.blogspot.com
आँखें ....
एक गहरी साँस लेती हैं
इक खामोश आवाज़
कट कर गिरती है
पंखे से.
bahoot khoob
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
WAAH BAHUT HI KHUB .........YAH SACH LAGATA HAI .......WAH TUMAHRA HI NAAM THA JO GIR GAYA THA HATHO SE .........BAHUT KHUB
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
बेहतरीन बहुत ही बढ़िया पसंद आई आपकी यह रचना ...लाजवाब कर दिया इस ने शुक्रिया
बढ़िया अंदाज उम्दा रचना . आभार
♥♥♥♥♥♥
रामप्यारीजी से एक्सक्लुजीव बातचीत
Mumbai Tiger
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
हरकीरत जी, कम्प्यूटर की प्रॉब्लम के चलते काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया। आपकी यह नज्म दिल को छू गई। बहुत उम्दा कहा है आपने।
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
इस एहसास के बाद
अल्फाज़ के कया मा`ने रह जाते हैं भला !?!
---मुफलिस---
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ। सच आपकी लेखनी का जवाब नही। हमेशा की तरह एक अनमोल रचना। आपकी रचनाएं पढकर मुझे शब्द नही मिलते। बहुत बहुत बेहतरीन रचना।
पढ़कर भावुक हो गया हूँ . धन्यवाद
बेहतरीन बहुत बेहतरीन रचना
वाह कितनी बेहतरीन रचना है
"मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं......
"न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी वहशतजदा
रूह का कज़्फ़ तो नहीं"
हरकीरत जी,इस बार भाव-संप्रेषण और रचना दोनों ही कमाल के हैं...बहुत बहुत बधाई...
यकीनन... बेहद उम्दा...
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
बहुत खूबसूरत -- मन को भिगो देने वाली रचना.
ਸਾਰੇ ਟਿੱਪਣੀਕਾਰਾਂ ਨਾਲ਼ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ ਜੀ
ਬੇਹੱਦ ਖੂਬਸੂਰਤ ਰਚਨਾ
"दर्द मुस्काता रहा आंखों में / तसल्ली देता रहा
देख कलाइयों को / जहाँ लहू का एक कतरा
अपना तवाजुन खो बैठा था ...."
अर्श ने मेरा उफ़्फ़्फ़ चुरा लिया है!!!
ज़ज्बात ...
भीगते रहे बूंदों में
वजूद मिट्टी के बर्तन सा
तिड़कता गया
बस .....
दर्द मुस्काता रहा आंखों में
तसल्ली देता रहा
देख कलाइयों को
जहाँ लहू का एक कतरा
अपना तवाजुन *
खो बैठा था ....
मुझे नहीं लगता कि इसके आगे भी जज़्वातों का कोई और मुकाम होगा आपकी रचना एक बार नहीं बार बार पढती हूँ और डूब जाती हूँ शाय्द खुद जज़्वातों को भी नहीम पता होगा अपनी गहराई काापके रोम रोम मे बस जज़्वात हैं जज़्वात लाजवाब बधाई इस रचना के लिये
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ..
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, बधाई
रब्बा....!
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
Ek kisse ki kahaniyaa hai to kahi ek kahani ek kai kisse hai. "Jalte diye si paq...". uff kitna to kuchh kaha hai aapne. Rabba..Rabaa.
जब आप इस मूड में होती है .तो ऐसा लगता है दर्द को कागजो में सी देती है ...वाह कहूँ के इस दर्द को महसूस करूँ ..शुरू की कुछ लाइने कातिलाना है .....ओर हाँ पिछले दिनों आपका जन्म दिन खामोशी से गुजर गया ....उसकी देर से मुबारकबाद दे रहा हूँ ....
बहुत दिनों बाद इस दिल को छू लेने वाली नज़्म से बार बार गुजरा हूँ. शब्द हैं जो कुछ पूछते हैं और कुछ रंगीन उदासियां बांटते हैं. बहुत उम्दा...
Thanks for your comment on my blog...
you have got such a big fan following... iski wajah ye hai ki umdaa likhna aapki aadat hai...
1 interesting baat ye hai ki aap नग्न jaisi sanskritised hindi aur कज़्फ़ jaise lafzon ka 1 hi poem me itni khoobsoorati se prayog karti hain..
ek aur baat ye ki aapki poem me वहशत lafz kai (3) baar aaya hai. mujhe lagta hai ki kisi poem me ek hi lafz (aur aapki poem me ye lafz bahut mani-khez hai) ka itne baar aana theek nahin, shayad kisi synonymous word ko use karti yahan par aap to behtar hota...
Aur haan is poem me romance, muhabbat ki shiddat bhi hai aur ek Tees bhi... ye bhi aap ka 1 hunar jaan padta hai
सुंदर अभिव्यक्ति.
अच्छी रचना है इसका आनन्द लिया जा सकता है । पीड़ा का सुख ??? लेकिन इसमे लोग अम्रता को क्यों ढूंढ रहे हैं ? यह तो नही होना चाहिये । विस्तार से बात करेंगी कभी इस पर ?
इतना असर क्यूं छोड़ती है आपकी नज्म की रोम खड़े हो जाते है इतनी ग़ज़ब की लिखाई !! कमाल है आपकी लेखनी में !!
umda se umda,
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
इन बनते- बिगड़ते लफ़्जों में
अपने ही जन्म का पल
बेमानी लगने लगा है ...
आपकी रचनाओं में गीता के श्लोको कि तरह गहनता है....मैं आपकी कविताओं को बार बार पढता हूँ और पाता हूँ हर बार एक नया अर्थ शब्दों में कहीं छुपा...
"आ चल चलें कहीं दिल को बहलाने
जरुरी है हर ज़ख्म को खुला रखना"
आपकी संवेदनशीलता को प्रणाम !!
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
आज फ़िर शब्दों ने
अपने आप को
क़त्ल किया है ....
कुछ सच्चाइयां नग्न खडी थीं
पर वहशत ने यूँ परदा डाला
के बदन ....
हैरत की गठरी बन गया ...
हरकीरत जी,
आपकी यह यथार्थपरक रचना बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती है ।बेहतरीन अभिव्यक्ति।
हेमन्त कुमार
Essssssssssssssssssssssss......
इसके सिवा कुछ निकला ही नही मुह से............
bahut umda likha hai harkirat g....sahbdon ka tana-bana bahut hi badiya tarike se buna hai aapne....
itni sundar rachna k liye bdhaai...
बहुत गहराई है !
Umda bhav...sahaj sampreshan..badhai !!
शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें !!
हमारे नए ब्लॉग "उत्सव के रंग" पर आपका स्वागत है. अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा हौसला बढायें तो ख़ुशी होगी.
अनायास आज पहली बार आपके ब्लाग में आ गया
उम्मीद न थी कि इतनी अच्छी नज्म पढ़ने को मिलेगी
हर लफ्ज सुन्दर हर बात गहरी
निगाहें हमारी इसी पर हैं ठहरी
--देवेन्द्र पाण्डेय।
BAHUT DINO BAD AAEE AAPKE BLOG PAR. HAMESHA EK PEEDA KA BHAW AAPKE MANME KYUN RAHATA HAI MANA KI JINDAGI BAHUT DUKH DETEE HAI PAR SUKH KE KUCH ANMOL PAL BEE TO HAIN USAME.
आँखें ....
एक गहरी साँस लेती हैं
इक खामोश आवाज़
कट कर गिरती है
पंखे
ankho ka san lena jidgi de gya
bahut khoob.
aavaj ki khamoshi juba de gai .
abhar
रब्बा....!
मैं तुलसी के नीचे
जलते दीये सी पाक़
कितनी खोखली हो गई हूँ आज
कि अब ....
इन बनते- बिगड़ते लफ़्जों में
अपने ही जन्म का पल
बेमानी लगने लगा है ...
हरकीरत जी,
पता नहीं क्यों आपकी रचनायें पढ़ते वक्त मन एक्दम ठहर सा जाता है--दिल की हर धड़कन आपकी कविताओं में खो सी जाती है।-----
पूनम
उत्कृष्ट कविता। कविता-ही-कविता।
iss umda rachan ki badhayee ho
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....
ye sucide bahut bhaya !!
न जाने क्यों यह परिंदा
रोता है रातों में ....
कहीं यह भी किसी वहशतजदा
रूह का कज़्फ़ * तो नहीं ....?
wo to niche arth de diya nahi to ise samjhana duruh tha oar jab samjhe to accha laga !!
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
ye patapeksha accha raha !!
kavita bahut bhai !!
आज फ़िर
रात के साये बहुत गहरे हैं
मन की तहों में छिपी
बेपनाह मोहब्बत ....
अपने आप को क़त्ल करती
खामोश हो गई है....
Bahut hi umda
You are welcome to my blog
वह तुम्हीं तो थे
जो दर्द में भी
तहजीब सिखलाते रहे थे जीने की
पर खुदा से दुआ मांगते वक्त
वह तेरा नाम ही था
जो गिर गया था
हाथों से ....!!!
क्या खूब ब्यां किया है
दर्द और रिश्तों को
सच में तहजीब नहीं
दर्द को सांझा कर सके
'गर हम तो
खुदा से दुआ मांगते वक्त
नाम कभी उनका गिरे नहीं
हाथों से... जुबां से ... मन से ...आत्मा से
सुंदर अभिव्यक्ति !!!
bahut sundar harkirat ji; dil ki gahrai tak utarti hui kavitaye. sach kahun to shabd kam pad jate hai aisi bhavabhivyakti ke liye. sadhuwad........kunda joglekar
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