(१)
बोलते पत्थर ........
जब कभी छूती हूँ मैं
इन बेजां पत्थरों को
बोलने लगते हैं
ज़िन्दगी की अदालत में
थके- हारे ये पत्थर
भयग्रसित
मेरी पनाह में आकर
टूटते चले गए
बोले......
कभी धर्म के नाम पर
कभी जातीयता के नाम पर
कभी प्रांतीयता के नाम पर
कभी ज़र,जोरू, जमीन के नाम पर
हमें फेंका गया है
और हम ....
न जाने कितनी चीखें
अपने भीतर
दफ़्न किए
बैठे हैं ........!!
(२)
मन्दिर मस्जिद विवाद ....
वह ....
कुछ कहना चाह रहा था
मैंने झुक कर
उसकी आवाज़ सुनी
वह कराहते हुए धीमें से बोला......
मैं तो बरसों से चुपचाप
इन दीवारों का बोझ
अपने कन्धों पर
ढो रहा था
फ़िर......
मुझे क्यों तोड़ा गया ....?
मैंने एक ठंडी आह भरी
और बोली, मित्र .......
अब तेरे नाम के साथ
इक और नाम
जुड़ गया था
'मन्दिर' का नाम ......!!
(३)
भ्रूण हत्या ......
मन्दिर में आसन्न
भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में
नित....
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
(४)
आतंक के बाद ......
सड़क के बीचो- बीच
पड़े ....
कुछ पत्थरों ने ...
मुझे ....
हाथ के इशारे से
रोका....
और कराहते हुए बोले.....
हमें जरा
किनारे तक
छोड़ दो मित्र
मैंने देखा .....
उनके माथे से
खून रिस रहा था
मैंने पूछा ....
'तुम्हारी ये हालत....?'
वे आह भर कर बोले .....
तुम इंसानों के
इंसानों को दिए ज़ख्म
इन माथों से बहते हैं .....!!
70 comments:
बहुत ही सुंदर और सामयिक रचना ,दिल को भा गयी.
मन्दिर में आसन्न भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
हरकीरत जी ,
आज तो आपकी सभी कवितायेँ बहुत्त बढ़िया लगीं ..मन को छूने वाली
पर इस कविता ने तो एकदम जड़ कर दिया ....
पूनम
तुम्हारी दुनियाँ के लोग
अपने पापों का भागीदार
हमें ही तो बनाते हैं ......!!
-सभी रचनाऐं दिल को छू लेने वाली. बहुत गहरी संवेदनाऐं हैं इनमें. बधाई!
मन्दिर में आसन्न भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
bhut hee sundar rachna hai. Abhar
आपकी चारों कवितायेँ पढीं. कथ्य के लिए प्रयुक्त शब्द अपनी ताकत से बहुत ज्यादा बोलते प्रतीत होते हैं; यह आपके लेखन की विशेषता है. शब्दों को इच्छित अर्थवत्ता प्रदान करने की आपकी सामर्थ्य अद्भुत है. kaayal hua !
दिल को जीत लेने वाली सुन्दर रचनाएँ
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प्रेम सचमुच अंधा होता है – वैज्ञानिक शोध
वर्तमान समाज में व्याप्त कुरीतियों पर चोट करती सशक्त कवितायें....चाहे वह मंदिर-मस्जिद मसला हो, कन्या भ्रूण-हत्या, दंगे-फसाद या फिर जातिवाद, क्षेत्रवाद या धार्मिक उन्माद....चारों ही बेहतरीन......
साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......
aaj ka sach bayan hua hai,gehri baat keh di sunder rachana.
सब रचनाएँ बोलतीं अलग अलग कुछ बात।
मूल सभी का एक है यही आज हालात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पत्थरों में जान फूंक दी....और जहाँ जीवन है, वहां दर्द तो सनातन रूप से है. है ना ?
har kavita apni jagah the best hai...sochne ko majboor kar de...hmare hatho se trashe hue pather ke but,jab khuda ban baithe to hum par hi baras pade...
बहुत गहरी और संवेदनशील रचनाएं. बहुत शुभकामनाएं आपको.
रामराम.
मन्दिर में आसन्न भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
'वे बोले ....तुम्हारी दुनियाँ के लोग अपने पापों का भागीदार हमें ही तो बनाते हैं ......!!
आपकी चारों कविताओं ने हमें मुग्ध कर लिया, आपकी कलम बहुत शसक्त है, जी हाँ तभी तो पत्थर बोल पड़े,
पत्थरों को भी रोने की वजह आपने देदी, और वो वजह इतनी सुदृढ़ है की हमें मानना पड़ा, और देखिये न हम मान गए..
इसे कहते है, कलम की कमाल ...
बहुत खूब...
एक बार तो आपने इलेक्ट्रोनिक दर्शन हमें दिया था हमारे ब्लॉग पर, कभी-कभी प्रकट होती रहेंगी तो हमें भी अच्छा लगेगा...
एक से बढ़कर एक , वाह !
आरी की साडी बेजोड़ हैं
बहुत सुन्दर इतना की पत्थर दिल भी पढ़े तो पिघल जाये !! लेकिन इंसान को अब पत्थर दिल मत कहना बेचारे पत्थर की तौहीन होगी!!
ज्वलंत मुद्दो पर बेहतरीन लिखा है आपने। कहीं पत्थरों में जान डाल दी। कहीं भगवान के दर्द को बयान कर दिया। और कहीं खून की कहानी कह दी। अद्भुत सा।
तुम्हारी दुनियाँ के लोग
अपने पापों का भागीदार
हमें ही तो बनाते हैं ......!!
बहुत ही गहराई से दिल को छूते शब्दों को एक साथ पिरोकर बेहतरीन रचनाएं . . .बधाई।
मानवीय मन में धुंधली पड़ती जा रही संवेदनाओ को पत्थरों की जुबानी बयां करने का प्रतीक वाकई काबिल-ऐ-तारीफ़ है।
जहां मैं बसता हूँ उन कोखों में नित न जाने कितनी बार कत्ल किया जाता हूँ मैं।
'वे बोले ....तुम्हारी दुनियाँ के लोग अपने पापों का भागीदार हमें ही तो बनाते हैं।
कितनी वेदना और साथ ही साथ भर्त्सना भी है इन पंक्तियों में.....
बढ़िया कविताओं के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.
What a stunning concept!
Really speechless.
You have a great thought process.
Great day!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
ek ek udaaharan sochne par majboor kar deta hai.
bahut hi achha vishay chuna hai. shayad isi ke zariye samaajh mein kuch jaagrukta la sakein.
जाने क्यों बागी बच्चा याद आ गया ..जिसे जब मस्जिद की सीडियो पे जाने को रोका गया ....तो वो उस नल का पानी पी आया .. ओर उसका दोस्त जो मस्जिद की दीवार पे राम लिखने की सजा पा गया .अपने अपने घरो में दोनों ने सजा पायी.....
"क्या जाने किस ओर आयेगा पहले
कल रात बँटा था चाँद दो मजहबो में "
बहुत सुंदर.
आज की परिस्थिति का सही, सटीक और सार्थक विवेचन किया है इस रचना के माध्यम से........... मन की पीड़ा को, गहरे भाव को पत्थर के माध्यम से काग़ज़ पर उतारना कवि मन की सार्थकता को प्रगट करता है......... मान को छू गयी आपकी रचना
सभी रचनाएँ मर्मस्पर्शी भावनाओं को झकझोर जाने वाली हैं......बहुत बहुत आभार पढ़वाने के लिए...
bahut baddhiya! patthar ke bahane badi karari chot ki hai.
तुम्हारी दुनियाँ के लोग
अपने पापों का भागीदार
हमें ही तो बनाते हैं ...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
flawless...
all of them...
दिल के भावों का सुंदर अंकन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सभी रचनाऍं मार्मिक लगी।
KYA BAAT HAI KYA BAAT HAI HARIKIRAT JI KIS BEBAAKI AUR KHUBSURATI SE AAPNE APNI BAAT KAHI HAI BAHOT HI KAABILIYAT CHAHIYE ISKE LIYE JO SIRF AAP ME HAI ... KYA KHUSURAT VAANI KAHI HAI AAPNE WAAH BAHOT BAHOT BADHAYEE
ARSH
har rachna bemisaal hai......
सामयिक रचना.
अर्थ और भाव में एक झटपटाहट है.
सड़क के बीचो- बीच
पड़े कुछ पत्थरों ने ...
मुझे हाथ के इशारे से रोका
और कराहते हुए बोले.....
###################################
नायाब अभिव्यक्ति,आपकी इस रचना ने मेरा एक बहुत पुराना विश्वास reinforce कर दिया,वो कुछ ऐसे था कि:
"इन्सान तो हम भी हैं संगे राह तो नहीं
ठोकर लगे तो लोग क्या उठाने ना आयेगें।"
आपने तो पत्थरों को मरहम दिया है.
मेरी पूरी बात के लिये नीचे दिये Link पर जाने का कष्ट करें.
http://sachmein.blogspot.com/2009/05/blog-post_16.html
आनंद वर्धन ओझा जी की टिप्पणी बहुत सटीक और सार्थक भी
नज्में खूबसूरत, संजीदा और वाकई कायल करने वाली हैं .
मन्दिर में आसन्न भगवान से
मैंने पूछा .......
तुम तो पत्थर के हो ....
फ़िर तुम्हें किस बात गम ....?
तुम क्यों यूँ मौन बैठे हो......??
वह बोला .......
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
कितनी ऊँची और कितनी गहरी बात है ये...! बहुत ही बढ़िया..!
दोनों रचनाएं बेहद प्रभावी है.आपके लेखन के तो मुरीद है.पत्थर के बिम्ब से आपने मानो आज के दौर की मानवता पर हो रहे प्रहारों और इंसान के बदलते चेहरे को दिखा दिया है. मोहब्बत की निगार नज्म तो वाकई खूब सूरत है.
आज पहली बार ब्लौग पर आई...दिल खुश हो गया. शानदार और जानदार लेखन.
'तुम इंसानों के कुकर्मों का फल हमें ही तो भोगना पड़ता है .....!!'
भावपूर्ण!
मर्मस्पर्शी रचनाये.
हरकीरत जी,क्या कहूँ?
बहुत अच्छा लिखा है.
इस बार पूरी कविता पढ़ा तो लिखने के लिए मेरे पास शब्द ही कम हो गये है । शानदार तरीके से आपने लिखा है ।
मुझे क्यों तोड़ा गया ....?
मैंने एक ठंडी आह भरी
और बोली, मित्र .......
अब तेरे नाम के साथ
इक और नाम जुड़ गया था
'मन्दिर' होने का नाम ......!!
बेहद सुन्दर लगा शुक्रिया
मैं तो बरसों से चुपचाप
इन दीवारों का बोझ
अपने कन्धों पर
ढो रहा था
फ़िर......
मुझे क्यों तोड़ा गया
bahut shaandaar badhaayee
ਤੁਹਾਡੇ ਅਨੁਭਵ ਵਿੱਚੋਂ ਦਾਮਨਿਕ ਵਲਵਲਾ ਪਹਿਨ ਕੇ ਨਿਕਲਿਆ ਇੱਕ ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਪੱਥਰ ਵਿੱਚ ਵੀ ਜਾਨ ਪਾ
ਦਿੰਦਾ ਹੈ
Bhrun hatya wali kavita acchi hai.sabhi logon ki sochna chahiye.
Is bar Pakhi ke blog par dekhen nai Photo.
संवेदना लिए दिल को छूने वाली रचनाएँ.
शुक्रिया..
मैंने देखा .....
उनके माथे से
खून रिस रहा था
मैंने पूछा ....
'तुम्हारी ये हालत....?'
वे आह भर कर बोले .....
तुम इंसानों के कुकर्मों का फल
हमें ही तो भोगना पड़ता है .....!!
हरकीरत जी ,
चारों कविताओं में से इन्हीं पंक्तियों को बार बार पढ़ने का मन हुआ ....
क्योंकि हम इंसानों के कर्मों से दूसरों को कब तक दुःख मिलता रहेगा ....पत्थरों को
भी......
हेमंत कुमार
चारों कविताओं में वास्तविकता ,व्यग्य ,प्रहार
पत्थर के बहाने शब्दों को इतनी खूबसूरती से तराशा है आपने कि हकीकत खुद-ब-खुद बोलने लगती है।
पत्थर की जुबां से एक क्रूर सत्य...
और भ्रूण-हत्या जैसे विषय पर नये तरीके से बात कहने के अंदाज के हम कायल हुये।
Pathero kii aah ko mom ki tarah piglaa kar samne rakh diya
Chote per bindhane wale kataksh
priti
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
bahut sahi aur saath hi sundar bhi .
हमेशा की तरह सुन्दर रचनाएँ. सभी कवितायें अच्छी हैं. एक ब्लॉग में मैंने पढा था - ब्लॉग साहित्य नहीं है. लेकिन आपका ब्लॉग साहित्य की एक विधा कविता का ब्लॉग है. और हमेशा ही स्तरीय कवितायें पढने को मिलती हैं.ये पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आयीं -
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
sabhi rachna sundar hai|
bahut sundar rachna lagi
jin rchnao me pathar bhi bolne lge ve rchnaye apni jeevntta ka prman hai .
aaj ka sach marmikta ke sath kh diya hai .utkrsht racnaye .
badhai
दिल को छूती उम्दा रचनाओं की बधाई स्वीकार करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
तुम्हारी ये हालत....?'
वे आह भर कर बोले .....
तुम इंसानों के किए गुनाह ही
इन माथों से बहते हैं ...
patthron me bhi dard dekha....lajbab..
ek saath teen rachna, apas me kitani saari parte kholti hui prateet hoti he/ jnha sachchai ki zameen par kuchh naya soch bo dene ka upkram he/ lazavab/
Ab to kuchh naya likhiye.
Wishing "Happy Icecream Day"...See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
मार्मिक कवितायेँ... दिल को छू लिया आपने....
www.nayikalm.blogspot.com
आपके अलावा बहुत सारे लोगो ने वही कहा है की मेरा ब्लॉग खोल नहीं प् रहे है ...
कुछ लोग जो इन्टरनेट एक्स्प्लोरर का पुराना वर्जन इस्तेमाल कर रहे है ...उनकेसाथ ये दिक्कत आ रही है .आप मोजिला इस्तेमाल करे .....
मोजिला डाउनलोडकरने के लिए यहाँ क्लिक्क करे
... बेहतरीन रचनाएँ, बधाईंयाँ !!!
पत्थर...पत्थर...पत्थर...
क्या बात है आपकी...?
पत्थरों में भी दर्द रोप दिया आपने.....?
चारों रचनाएँ सुंदर हैं ...एक से बढ़कर एक...
बोलते पत्थर, मन्दिर मस्जिद विवाद, भ्रूण हत्या और आतंक के बाद चारों ही रचनाएँ
बड़ी संवेदनशील हैं. दिल को छू गईं.
बहुत ख़ूब आपसे पत्थरों ने जो बातें की है, उसे आपने सचमुच बहुत खूबी से प्रस्तुत किया है। अब मुझे इस बात का भी अहसास हुआ कि आजकल आप पत्थरों से बहुत बतिया रही हैं! समय मिले तो इंसानों की भी खबर ले लिया करे! ;
sabhi ki sabhi...kabil-e-taarif....
sabse pahle mere blog or meri hosla afjae ke liye shukriya yaar......waise mast likhte ho....mai to kuch bhi nahi....bt tusssi to dhamal likhte ho wahh wahhh blog par aate rahna dear dost
jai ho mangalmay ho
nishabd sa chold diya rachna ne apki..bus umda hi keh pa raha hun..lafzon ki kami ke liye maff keriyega!...
इतनी प्रशंसात्मक टिप्पणियों के बाद किसी की सलाह अजब सी लगेगी, कवि या साहित्यकार तो नहीं हूँ पर पढ़ने का शौक ज़ुरूर है ,और...आदत से मजबूर हूँ , अगर आपने ,(१) बोलते पत्थर .......(४)आतंक के बाद ......मात्र यही दो नज्में यहाँ दी होंती तो ज्यादा प्रभावोत्पादक होंती (२)मन्दिर मस्जिद विवाद ... और
(३)भ्रूण हत्या ..... ये दोनों स्वयं में दो अलग पोस्टों के लायक हैं |
वैसे नज्में सारी भाव-पूर्ण हैं ,समसामायिक ,सामाजिक हालातों विद्रूपताओं में सही जगह चोट करती है ,
पर क्या करियेगा
पत्थरों का दिल ,
लोहे के जज्बात ,
रखता है अब इन्सां,
न मारना अल्फाज़ खीच केइसे ,
तेरे अल्फाज ही बिखर जायेंगे ,
जो पत्थर भी इसे लगे,
तो पत्थरों के भी लहू निकल आएंगे |
वैसे गुस्ताखिया माफ़ कर दीजियेगा ; क्या करूँ आदत से मजबूर हूँ |
''उलट बांसीयां '' बोलने से बाज नहीं आऊंगा ''कबीरा '' जो ठहरा
जीवन की कुछ कड़वी सच्चाईओं का खूबसूरत चित्रण
जगमोहन
हंगामा है क्यूँ है बरपा ?
अवश्य पढें
जहां मैं बसता हूँ
उन कोखों में नित
न जाने कितनी बार
कत्ल किया जाता हूँ मैं .....!!
हतप्रभ रह गई पढकर.
दिल को छू लेने वाली बहुत गहरी रचनाऐं. बधाई!
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