धुंध के पल्ले में लिपटी
वो इक जालिम रात थी
जब मैं पैदा हुई
वो इक काली रात थी
चीखों से
तड़प उठी थी निर्जनता
हवा सनसनाती
अर्गला रही थी
अचानक मिट्टी की
कोख जली और
इक नार पैदा हुई ....
रंगों में
इक आग सी फ़ैल गई
बुलबुल कीरने* पाने लगी
कब्र में सोये कंकाल
फडफडा उठे ....
और मेरी माँ की आंखों में
एक निराश सी मुस्कुराहट
कांप गई थी ......
जब मैंने आँखें खोलीं
सपनों की पिटारी
जंजीरों में सजी थी
सामने ज़िन्दगी
मुहँ -फाड़े
अपाहिज सी
खड़ी थी ......
इक हौल
छाती में उठा
चाँद ने भी
हौका भरा
और मैं ....
मिट्टी सी
खामोश हो गई ...
वो इक जालिम रात थी
जब मैं पैदा हुई
वो इक काली रात थी ....!!
कीरने - विलाप
65 comments:
itnaa saara dard kahaan se laati hai aap?...aapka lekhan bahut prabhaavit kartaa hai,par iske peeche ek dard chhipa hai ye jaanke achha nahi lagtaa...kavi hriday aur kavi ka hriday aksar alag hote hai,agar aapke saat hota to raahat ki baat hotee.... :)
http://pyasasajal.blogspot.com/2009/06/blog-post_7963.html
ye post aap ke in dard bhare rachnaao se hi prerit hokar likhi hai maine...aapke vichaaro ka khaas intezaar rahega :)
आपकी हर नज़्म आह से भरी होती है, पर पढ़ने वाला वाह किये बिना नहीं रह पाता.........हर इंसान ज़िन्दगी में कभी ना कभी दर्द का सताया हुआ होता है, इसलिए दूसरों का दर्द पढ़कर उसमें डूब जाता है......एक अपनापन सा महसूस होता है उसे......लगता है उसी की अभिव्यक्ति को शब्द मिल गए हों......और अपने आप ही वाह निकल जाती है....लिखने वाला जिस दर्द-ए-दिल के हाथों मजबूर होकर लिखता है....पढ़ने वाला भी उसी का गुलाम होकर पढ़ता है....यही तालमेल नज़्म को पढ़ने वाले के और करीब ले आता है....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
अच्छी कविता। अच्छी अभिव्यक्ति।
socho toh dard niyamat hai
na socho toh qayamat hai
harkiratji, apni nazmon k upar likh diya karen : keval majboot dil walon k liye_________
BAHUT HI BAREEK AUR KHOOBSOORAT KAAM KARTI HAIN AAP LAFZON KO RANG DENE KA _____BAHUT UMDA !
आपकी कविताओं में पीडा घुटन और संत्रास का ही भाव बड़ी शिद्दत से प्रगट होता है ! शिल्प के लिहाज से तो ये बेजोड़ रचनाएं है पर क्या कभी आपने यह सोचा है /अथवा कवि को यह सोचना भी चाहिए अथवा नहीं कि उसकी रचनाएं समाज को क्या दे रही हैं ?
धुंध के पल्ले में लिपटी उस जालिम रात में आपने कितनी रौशनी भर दी है हकीर जी, ये आप अपने चाहने वालों से पूछें.
इक हौल
छाती में उठा
चाँद ने भी
हौका भरा
और मैं ....
मिट्टी सी
खामोश हो गई ...
Arvind ji ,
Meri kavitayen smaj ko ye sochne par mazboor karengi ki kahin n kahin aurat ke sath aaj bhi anyay ho raha hai jo nahin hona chahiye ....ya unhen ye mahsoos krayegi ki aurat ke sath kaisa vyavhar karna chahiye ....ye dard sirf haqeer ka nahin n jane roz kitani haqeeren suli pe chadh jati hongin bina aah kiye ....kahne ko bhot kuch hai ....par nahi kahungi ..aur fir mai aapka samman bhi karti hun ...!!
यदि आज आपका जन्मदिन है तो बहुत शुभकामनाएं! नहीं है तो भी बहुत शुभकामनाएं! कविता अच्छी है और भारत के एक बड़े वर्ग की वास्तविकता की सच्ची अभिव्यक्ति है.
Harkirat Haqeer
hindi bloging mae kuch log blog likhtee mahila ko uskae saamjik aaitav kaa bodh karaane kae liyae hi kament kartey haen .
kavita man kaa bhav hotee haen , jo ham mehsoos kartey haen aur daekhtey haen . laekin samaaj mae aurto kae liyae kayaa sahii haen aur kyaa galat haen iska jimaa yaa thaeka chand jahin purusho ne lae rkhaa haen
aap yae do post par aaye lkament jarur daekhae aur apni baat kehtee rahen aap ki kavitaaye aaina haen aur aainae mae logo ko apna aks khraab dikhtaa haen isliyae wo chahtey haen ki aap kuch aur likhi
kyuki mahilaayae pyaar mubhabat bhari baatey likhtee hi acchi latee haen
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/05/blog-post_17.html
http://mamtatv.blogspot.com/2009/02/hurt.html
आपने बडी गहराई से अपने मनोभाओं को प्रकट किया है. और आपकी रचनाएं तो हर लिहाज से परिपुर्ण रहती हैं.
मुझे ऐसा लगता है कि आज आपका जन्म दिन हैं. मेरी शुभकामनाएं और बधाई कबूल किजिये.
रामराम.
dard bhari ek aur nazm!
bahut hi tareeke se shbdon mein dard piro kar prastut kar ti hain aap..
aap ka janamdin hai to badhaayeeyan!
पाठकों से ,
आज मेरा जन्मदिन नहीं है ....मैं भी उसी दिन पैदा हुई थी जिस दिन अमृता हुई थी ....अगर मरी भी उसी दिन तो समझ लीजियेगा उसका मेरा जरुर कोई रिश्ता था ....!!
kya baat hai....aapne gajab kar diya apne naye post ke zariye...kitne dino se aapke post ka iuntezaar kar rahe the hum...
bahut achcha likha hai aapne
apka bloggers dost
aleem
अपने मनोभावों को बहुत बढिया ढंग से शब्दो मे पिरोया है।
वो इक जालिम रात थी
जब मैं पैदा हुई
वो इक काली रात थी ....
मन को भिगा गयी आपकी रचना.........बहुत ही भावोक और मार्मिक लिखा है आपने..........दुर्भाग्य तो ये है की पंजाबी परिवारों में बेटे की इच्छा आम है और ऐसे किस्से भी आम मिलते हैं ............. नारी मन की संवेदना को जीवित लिखा है आपने
badi hi dard bhari kavita likhi hai aapne...sach aankh bhara aai...itna dard kaha se sanjo kar rakha hia aapne..aur yaha udail diya hai..bahut khoob!
wah bhi kya naseebon wali raat thi,
chaand bhi ithlaya,
taare gungunaye ......ye kaun aaya shabdon ki ptaari chhupaye,
dard sahkar hi stree heera banti hai,
waqt ke aaine me uski chhawi hi ujjawal hoti hai
Ek Aah hai ismein ....ek peeda hai ...ek ghutan hai....
aur Naari se juda dard hai
achchhi lagi ...kam se kam hum kalam ke madhyam se kuchh baant to sakte hain
हरकीरत जी,
अच्छी रचना..लेकिन इतनी नकारात्मक सोच क्यों..जिंदगी में अच्छा-बुरा तो होता ही है..और वह केवल औरत के ही साथ ही हो ये जरूरी नही है।क्या पुरुषों के लिये सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है?
"वो इक जालिम रात थी
जब मैं पैदा हुई
वो इक काली रात थी"
अगर वो रात न होती तो हम सबको आप की अच्छी-अच्छी रचनाएं कैसे पढ़ने को मिलती..उस रात के बाद की सुबह भी तो याद कीजीए....जब आप ने ये दुनियां पहली बार देखा था...भूल गयीं हो तो किसी का बचपन देख लीजीए....
"और एक बेटे की चाह में तीसरी बेटी"-इस सम्बन्ध में मैं बस इतना कहूँगा कि ये उस माता-पिता और परिवार की सोच है जो धीरे-धीरे ही बदलेगी....
yeh aapke nahi har aurat ke paida hone ki raat thi....samjh samjh ki baat hai kisee ne mahsoos kiya kisee ne nahi...yeh apka dard nahi har beti ka dard hai har ma ki feekee see muskuraht hai....lawaab...hmesha ki tarah...
एक सुन्दर रचना बडे दिनों बाद हि्न्दी ब्लोग पर पढने को मिली.
मेरा सोचना है,
"अन्धेरा इस कदर काला नहीं था,
उफ़्फ़क पे झूठ का सूरज कहीं उग आया होगा."
_ktheleo,
www.sachmein.blogspot.com
अरे बहुत ही मार्मिक द्रश्य है....
आपने बहुत ही अच्छी तरहां दर्शया है एक मारी के अस्तित्व और और उसके हालातों को बहुत ही खूब.....
मैंने भी आज इसी सन्दर्भ में कुछ पोस्ट किया है.....
देखिएगा....मन दर्पण पर
अक्षय-मन
एक सच्चाई को बेहतरीन शब्दों से कह दिया।
जब मैंने आँखें खोलीं
सपनों की पिटारी
जंजीरों में सजी थी
सामने ज़िन्दगी
मुहँ -फाड़े
अपाहिज सी
खड़ी थी ......
क्या कहूँ। कभी कभी आपसे जलन होने लगती है। कि मैं इतना अच्छा क्यों नही लिख पाता। वैसे अब थोडा बदलाव आने लगा है समाज में लड़कियों के प्रति। जब हमारी नैना हुई थी तो पूरे मोहल्ले में लडडू बाँटे थे पापा जी ने।
एक सवेदंशेल इन्सान जब जन्म लेता है तो कही न कही वो इश्वर का इस दुनिया को ओर बेहतर बनाने का एक जरिए होता है .ओर वैसे भी मेरा मानना है .की कवि हद्रय थोड़े ज्यादा सवेदन शील होते है....आप अपने सीमित दायरे में रहकर भी अगर अपने परिवार के बच्चो को एक अच्छी परवरिश ओर अच्छी सोच देते है .तो यकीन मानिए आप बहुत कुछ इस समाज.इस देश इस दुनिया को देते है....वैसे भी एक औरत ओर एक माँ का अच्छी सोच होना ....समझिये कई पीडियों को अच्छी सोच देना है ...जो की यकीनन आप है.....
उदासी को मारिये गोली....
जन्मदिन की शुभकामनाये .....आप भले ही कितने बहाने ढूंढें ...केक न खिलाने के ..हम खाकर ही रहेंगे ..
har baar aapke blog par aakar ... anayaas soch mein pad jaati hoon..... aaj dekhiye kitna pyaar mil raha hain aapko bloggers ka... sahity mein sthan mila........ samman mila.....wo raat bahut khoobsoorat thi... jis raat mein kudrat ne apni is rachna ko dharti par utara...:-)
दर्द तो सबके पास होता है मगर उन्हें लफ्ज देना कोई आपसे सीखे कितनी सिद्दत से आपने अपनी बात कही है कितनी संवेदनशीलता से कही है आपने...बेहद मुकम्मल बात कही है आपने...
अर्श
एक "उफ़्फ़"...बस!
"इक दर्द" चल पड़ी है उस तरफ़ से मेरी ओर।
शुक्रिया मैम!
दर्द की इंतेहां है.
मैं ये नही कहूंगा कि ये एक छद्म विलाप है, जैसा कि दिल के कोने से चीर कर ये खयाल छटपटाते हुए बाहर आ रहा है. मन सिहर ऊठता है उस मां की विवशता को मेहसूस कर जिसने तीसरी पुत्री को जन्म दिया है.
और उस पुत्री का मानस क्या बना होगा कि परत दर परत निराशा की चादर पर चादर को उसपर ओढ दिया जाता रहा होगा.
दर्द का भरपूर अहसास कराती हुई कविता । पहली ही पंक्ति वह एक काली रात थी जब मै पैदा हुई दिल दहला सा देती है । यह सच है आज भी बहुत सी जिंदगियों में । कुछ खुश नसीब हैं जिन्हें यह त्रासदी कम सहनी पडती है ।
Harkirat sahiba. Pichle kafi maheeneo se apka blog padh raha hoon.kuch baatein note kar raha hoon. kehna chahunga. kripya iss comment ko delete matt karna.auron ko padhne dena aur vichar aane dena. ho sakey to blog par bhi laga dena.dekhein aur bhai behan kya mahsoos kartey hain.
Pehli Baat-Mein hairaan is baat pe hun ke har Saturday aapke sath ghatna ghat ti hai aur Sunday ko kavita ka roop le kar dar blog pe chala aata hay.kya baat hai!
Doosri Baat-Aap itney dukh hi sehti hain ton uske sathi ke sath rehati hi kyun hain?itna zulam sehna uchit nahin hai
Teesri Baat- Jab koi apko alochna karta hai to aap uss tippni ko yakdam delete kar deti hain, jabke tarif de bharey shabadon ko kabhi nahin hatatin?
Chauthi Baat-Baa baar Dard ka zikr karkey aap kya likhna chah rahi hain? Mere kabhi palley nahin padha. Vaise Psychology ki bhasha mein isse Hamdardi batorna kehtey hain.
Aap sahyed apne aap ko Amrita Pritam hi maan baithi hain. Punjabi bhasha bahut women writers hain jo aapse kahin badhiya likh rahi hain.aap to bass ek Dard ki odhni le kar aa jaati hain blog par aur jo pallu hata hat ke dekhta hai artificial wahwah likh jata hai.
Meri binti hai ke Harkirat sahiba iss daerey se bahir nikliye. agar koi gharelu preshani hai to kissi counsellor athva psychologist ko consult keijeye. kavia mein yeh rone dhone da ruhjan acha nahin hai.Badaleiye issko, varna kavita aur kavitei dono smaaj ko koi sedh nahin deingi, main Arvind Misra ji se sehmat hoon.
Mujhey maloom hai aapk turant is comment ko delet karengi, par meri guzarish hai ise laga rehne deijeye. Mera koi bhi blog nahin hai, neeche email addrress likh raha hoon.
Dr.Saneh Gupta
saneh.gupta@gmail.com
हर शब्द दर्द से भरा हुआ, हर पंक्ति दुख में पगी हुई। बस इतना ही कह सकता हूं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut marmik kawita....par meri mami mere hone ke baad khushyan bhi manai thi our sare wrat bhi kiye the jo ladaka hone ke baad kiya jata hai.....par sab jagah yahi stithti nahi hoti ........our samaaj ladaki hone ka ehasaas aise hi karata hai jaisa aap bayan kari hai ......bhagwan aapki lekhani me our takat de .......
डॉ सनेश जी ,
मैं आपको बखूबी पहचान चुकी हूँ कि आप कौन हैं .....अगर आपको मेरा लेखन रास नहीं आता तो आप बार बार क्यों ये बकवास पढने चले आते हैं ...? और हजारों मुझसे बेहतर लिखने वाले हैं जाइये उन्हें पढिये ...किसी और ब्लॉग पे भी कभी आपकी टिप्पणी नहीं देखी जो अच्छा लिख रहे हैं ....क्या आप अच्छे लेखन पे कमेन्ट नहीं करते ....? मैंने तो आज तक किसी की टिप्पणी नहीं हटाई .....अगर हटाई हो तो बताएं किसकी .....?
सच कहूँ तो मैंने अपने आप को कभी अमृता जी की धूल बराबर भी नहीं समझा ....अब ये तो आप पाठकों से ही पूछिये वो क्यों खामखा मेरा नाम इतनी महान हस्ती से जोड़ देते हैं .....!
और अंत में ......आप कई महीनो से इस ब्लॉग जगत में सिर्फ मेरा ही ब्लॉग पढ़ रहे है इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया .....!!
एक बात और,,,,
के जब आपका कहीं भी कोई कमेन्ट नहीं है तो आपको क्या पता के कौन सी टिपण्णी हटाई गयी है,,,?
हमें कैसे पता लगे के आप कैसा लिखते हैं..?
क्या आपने कभी किसी हास्य रस के कवि को भी कहा है के ,,भाई कहे हरदम खी-खी करते हो,,,?
कभी किलस भी लिया करो मेरे यार ,,!!
ये बात तो पहले भी कई लोगों ने कही है के हकीर जी हर वक़्त उदासी क्यों....?
पर ये किसी ने नहीं लिखा के मेरा कमेन्ट डिलीट ना कीजियेगा......!!!!!!
ये लिखना एक अलग ही मानसिकता को दरसा रहा है,,,,
चीखों से
तड़प उठी थी निर्जनता
हवा सनसनाती
अर्गला रही थी
अचानक मिट्टी की
कोख जली और
इक नार पैदा हुई ....
aur de rhi hai
sare jgt ko roshni
de rhi hai mamta ki chav
aur faila rhi hai
apne astittv ki hakikat .
ak pyrisi rchna ke liye badhai
अपने दर्द को बहुत ही मार्मिक तरीके से उकेरा है आपने.....
............. कहने को तो हमने बहुत तरक्की कर ली. पर आज भी हमारे देश में बेटी के पैदा होने पर बहुओं को ताने दिए जाते हैं. यहाँ तक की बच्चियों को मार डाला जाता है..
क्या ऐसे लोग कभी सभ्य बनेंगे ??
... पता नही ऎसा क्यों लगता है कि आपके अन्दर ढेर सारा लावा भरा हुआ है जो किस्तों मे निकलता रहता है ... न जाने कब तक निकलता रहेगा ... यह रचना भी अन्य रचनाओं की भाँति बेहद नाजुक व गंभीर पलों की उपज है, प्रभावशाली अभिव्यक्ति है !!!!!!
mam...thnx for ur nice and wonderful comments........
plz do join / follow my blog
गहरा एहसास लिए एक शानदार रचना। ये पंक्तियां खास पसंद आईं--
इक हौल
छाती में उठा
चाँद ने भी
हौका भरा
और मैं ....
मिट्टी सी
खामोश हो गई ...
आपके पिछले पोस्ट के लिये कमेंट- (२) और (३)दोनों छोटी कवितायें बहुत सुंदर हैं। पहली वाली थोड़ी निराशाजनक लगी।
इस पोस्ट के लिये कोई कमेंट नहीं। जिस चीज़ का अनुभव नहीं उसे परखना मेरे लिये ठीक नहीं। मैं तीन भाइयों के बाद पैदा हुई और पिता जी ने शहर में रसगुल्ले बाँटे थे।
क्योंकि आपके ब्लाग पर पहली बार आई, तो बहुत सारा कुछ पढ़ गई। (अभी क्या पता और भी कमेंट मिलें इसी पोस्ट पर मेरे, जैसे जैसे पढ़ती जाऊँ।
अभी फिलहाल- ये बहुत सुंदर है- अनछुये ख़याल।
लालटेन की
धीमी रौशनी में
उसने वक्त से कहा -
मैं जीवन भर तेरी
सेवा करुँगी
मुझे यहाँ से ले चल
वक्त हंस पड़ा
कहने लगा -
मैं तो पहले से ही
लूला हूँ ....
आधा घर का
आधा हाट का ....!!
हरकीरत जी,
आपने तो बहुत कुछ कह दिया.
मेरे लिए कहने को अब क्या बचा??
बहुत ही सुन्दर.
जयंत
अचानक मिट्टी की
कोख जली और
इक नार पैदा हुई ....
in panctiyon ne sabhi aurton ke dard ko ujaagar kar diya....aisa nahi hai ki nari ke janm par khushi nahi hotipar...waise logon ka percentage kam hai....naari hi to jiwan ki buniyaad hai....aap bhi is reality ko jaanti hai...parliyament me bhi unhe 33%resevation milna chaahiye....aakhir wo almost 50%hai.....wait karte hai kabtak milta hai..
आपने बहुत ही दर्द से भावनात्मक कविता लिखीं हैं. जो समाज में स्थित एक बहुत बढे सामाजिक असंतुलन को इंगित करते हें.......... मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी
bahut sunder rachna hai....
a-s-a-h-m-a-t.
katai kali rat n hogi. main nahin manta, maaf karen.
harkirat ,
bahut der se is nazm ko padh raha hoon.... aur ye soch raha hoon ki wo lamhe kaun se hote honge , jab aap in nazmo ko janm deti hongi ...aise alfaaz kahan se aate honge...jo ki emotions ko super amplify karte hai aur ek dard bhara shabd chitr bana dete hai .....
lekin ,aap to ek baat jaan lo ji , hum us raat ke shukragujaar hai jis raat ne aapko hamen diya ... aaj blog jagat me aapse shaandar likhne wali writer nahi hai ...mera salaam kabul kare ji..
bilkul sahi kaha aapne..
tab se le kar aaj bhi in vicharon me jayda parivartan nahi aaya hai..
gaavon me beti paida hona ab bhi bura maana jat hai.. lekin badalte wqt ke sath aur saksharta badne ke sath log ab beti ko bhi barabar ka darja dene lage hai.. lekin jaha wah cheez ladko ko aasani se sulabh hoti hai. ladki ko lad kar apne adhikar paane padhte hai..
by d way. nice poem.
हरकीरत जी,
इसे एक कड़वे सच की तरह ही लिया जानाअ चाहिये
यह किसी भी जमाने / अवस्था का सच है कि :-
जब मैंने आँखें खोलीं
सपनों की पिटारी
जंजीरों में सजी थी
सामने ज़िन्दगी
मुहँ -फाड़े
अपाहिज सी
खड़ी थी ......
जिन्दगी के सफर में कई ऐसे मुकाम / हालात आते हैं कि जब हकीकत और कल्पना में दूर-दूर तक साथ नही होता। तब इंसान अपने को छला हुआ महसूसता है।
रही बात किसी टिप्पणी से व्यथित होने की तो मैं यही कहना चाहूंगा कि आप अपना काम जारी रखिये लोगों को अपना करने दीजिये यदि कोई तल्ख कमेण्ट है तो भी उसे ब्लॉग पर से डिलीट ना होने दें(कभी कभी थोड़ी से आसावधानी से ऐसा हो सकता है, और यही मुद्दा भी बन जाता है)।
देरी से ही सही, जन्मदिन की अनेकों शुभकामनायें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कहाँ पर संजो कर रखती हैं आप इतना दर्द की हर पंक्ति में ही दर्द दिखता है........
अपने माध्यम से समाज का अच्छा चेहरा प्रस्तुत किया है आपने....
चीखों से
तड़प उठी थी निर्जनता
हवा सनसनाती
अर्गला रही थी
अचानक मिट्टी की
कोख जली और
इक नार पैदा हुई ....
ह्रदय तन्तुओं में दर्द की एक लहर सी उमड़ पड़ीहै .यह दर्द अकेले आपका या मेरा नहीं है बल्कि समाज का है .
नारी वेदना को कितनी सच्ची अभिव्यक्ति दी है आप ने....
.......कंचनलता चतुर्वेदी
hamesha ki tarah ...ek aur behad khoobsurat rachana.... keep it up....
आपके ख़त का शुक्रिया ! रचनाएँ आपको अच्छी लगीं, मेरा श्रम सार्थक हुआ. संपर्क बना रहे, लिखना-पढ़ना होता रहे, प्रभु-कृपा से जिन्दगी पलती रहे, और क्या चाहिए ? अकबर इलाहाबादी की पंक्तियाँ याद आती हैं--
'क्या गनीमत नहीं ये आज़ादी, साँस लेते हैं बात करते हैं ?' कुछ दिन भाग-दौड़ के होंगे, फिर मिलना होगा. भाई ही...
अगर बदलते समय को नजरअंदाज कर दें तो निःसंदेह उत्कृष्ट कविता है ! उदासी, पीडा, बेबसी, उत्पीडन .... संवेदनाओं से लबालब यह कविता किसी भी पाठक को दिल की गहराईयों तक झंझोड़ती है !
आपने कुछ आलोचनात्मक प्रतिक्रियाओं को डिलीट न करके अत्यंत सराहनीय व अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है !
मेरी नजरों में आपका रुतबा अब कई गुना बढ़ गया है ! और ये मरने की बात क्यूँ ?
अरे रिश्ता तो स्पष्ट है ... क्या दर्द से बड़ा भी कोई रिश्ता होता है ?
इक हौल
छाती में उठा
चाँद ने भी
हौका भरा
और मैं ....
मिट्टी सी
खामोश हो गई ...
वो इक जालिम रात थी
जब मैं पैदा हुई
वो इक काली रात थी ....!!
हरकीरत जी ,
दर्द को भी इतनी खूबसूरती के साथ ..शब्दों में बाँधा जा सकता है .यह बात आपकी रच्क्नाओं से
समझा जा सकता है .
हेमंत कुमार
हकीर जी,
कविता में रूचि होने की वज़्ह से एक दोस्त ने आप के ब्लॉग का ज़िक्र किया था जो मैंने पूरा पढ़ा…आप ने तो ‘दर्द’ को जैसे ब्रांड ही बना लिया है और अपनी सारी कवितायेँ उसी के इर्द-गिर्द बुन डाली हैं…. कमाल और खुशी की बात यह है की आप के ढेर सारे अनुसरणकर्ता हैं, मगर ज़्यादातर उन की टिप्पणियों से लगा नहीं कि वे कविता की गहराई समझते हैं… वे आप के काव्य पर कोई समालोचना नहीं करते , सिर्फ़ समर्थन देने वाले हैं…जैसे कोई Abstract Art की पेंटिंग को निहारता तो हो लेकिन परख करनी नहीं जानता.
’जब मैं पैदा हुई’ कविता: अगर आप अपने माँ-बाप की तीसरी अनचाही बेटी हैं, और आप के पास लफ्जों का हुनर है तो इस का इस्तेमाल कर आप उन्हें शर्मिंदा मत करें… ऐसा कर के आप अपने पुरखों की तौहीन कर रहीं हैं…इसी भावः को बेहतर रूप दिया जा सकता था.
मुझे आप की कविताएँ अस्पष्ट और एकरस लगीं, फिर भी मैं आप का ब्लॉग देखता रहूँगा क्यूँ की मुझे आशा है की आप भविष्य में और अच्छा लिखेंगी. आप को free verse के इलावा दूसरी विधाएं भी आजमाना चाहिए… ‘Arvind Mishra’ सही लिखते हैं , कवि का समाज,देश और इंसानियत के प्रति भी कर्तव्य होता है, सिर्फ़ औरत होने के नाते अपने ग़म दर्शाना ही कविता नहीं…
jab aap paida hui
door kahin doondoobhi baji hogi
kisi ne khushiyan bhi manai hongi
nahi dekha hoga aapne
nahi suna hoga apne
aur yuhin nirasha ke sagar me
doob gai hongi.
kishore kumar jain
वीरेन जमाल जी आपने सुश्री हरकीरत जी को संबोधित करते हुए सवाल उठाये हैं !
शायद मुझे नहीं बोलना चाहिए, लेकिन क्या करूँ रहा नहीं गया !
वीरेन जी दुनिया के जितना भी श्रेष्ठ साहित्य है वो दर्द और पीडा से ही भरा हुआ है ! समाज और देश के प्रति रचनाकार का कर्त्तव्य होता है लेकिन समाज की स्थिति से रूबरू कराना भी तो रचनाकार का ही दायित्व है !
"शाईनिंग इंडिया" का नारा लगाने भर से सबकुछ चमकदार नहीं हो जाएगा ! आप कविता को ध्यान से पढिये उसमें मूक प्रश्न यही है की समाज की मनोवृत्ति ऐसी क्यों है ? लड़के और लडकी के प्रति भेद-भाव क्यूँ है ? क्या यह सवाल बीते हुए समय के साथ आज का भी नहीं है ?
यह सही है कि थोडा बदलाव आ रहा है लेकिन बहुत धीमी गति से !
मेरा ज्यादा बोलना यहाँ उचित नहीं होगा !
हरकीरत जी अगर चाहेंगी तो आपका प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहेगा !
प्रकाश जी ,
आपने तो वाजिब jwaab दे ही दिया है ....और फिर bahas तो कभी khtam नहीं होती ....viren जी को मैं उनके blog पे jwaab दे दिया है ......jinhein itane sare anusarankarta कविता gyan से anbhigya नज़र आते हैं sochiye wo kitane बड़े gyani hogen.....nman है gurudev......!!!
हकीर जी,
आप के जवाब के लिए शुक्रिया.
आप का 'कसक' को नकारने के लिए शुक्रिया. वैसे यह नज़्म फिक्शन नहीं है, मेरे एक दोस्त की जिंदगी का सच है.
मेरी टिपण्णी को अपने संकलन के लिए सहेज कर रखने के लिए भी शुक्रिया.
जहाँ तक '....बेटी उफ़ भी न करे' की बात है, मुझे सिर्फ़ इतना कहना है की मैं भी आप की तरह ही उत्तर भारत के लोगों में बेटिओं की उपेक्षा से विचलित होता हूँ परन्तु कविता में इस विषय को व्यक्तिगत बनाने की बजाये सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया जाए तो उस का आधार बढ़ जाता है और असर भी...फिर भी वैचारिक स्वतंत्रता आप को हक देती है की आप जैसा मन चाहें लिखें.
वैसे आप ने 'कचहरी' को छोड़ कर पुरानी पोस्ट पर टिपण्णी की है.
pahli baar aaj aap ke blog par aayi hun.likhane valon ne likh diya hai ki kavita nakaratmak lagti hai..app ko kya de rahi hain par kabhi yah nahin socha ki samaj ne aaj tak aurton ko kya diya hai aur unke liye kitna sakaratmak raha hai..
aapke lekhen main marm hai aur har baat dil ko chuti hai..ek aurat hone ke naate main har shabd ka dard samajh sakti hun
itne umda lekhan ke liye badhai sweekaren aur mahaj kuch logon ki baat se yadi aap jaise kalam ke sipahi dukhi ho gaye to phir yudhnaad kaun karega?
कविता अच्छी है और भारत के एक बड़े वर्ग की वास्तविकता की सच्ची अभिव्यक्ति है.
Superb
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