मीरा ने कहा था ...' हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय ' ....अगर मैं ये कहूँ ....' हे री मैं तो दर्द दीवानी मेरा प्रेम न जाने कोय ' तो अतिशयोक्ति न होगी ....मुझे दर्द से कोई गिला शिकवा नहीं ....सच कहूँ तो अब इन्हीं से इश्क सा हो गया है और इसे मुझसे ...ये मेरे हमराज , हमसाया ,हमसफ़र ,हमदर्द सब हैं ...कृपया मुझे इनसे अलग होकर लिखने के लिए न कहें .......और एक बात मैंने ब्लॉग बंद करने की बात इसलिए भी की थी कि मुझे समय बहोत कम मिल पाता है ...और काम बहुत पड़ा है ....पर आप सब ने जाने नहीं दिया .... अब मुझे पोस्ट की समय सीमा तो बढाने की इजाजत है ना ....? .... इस नए टैम्पलेट के साथ कुछ क्षणिकाएं पेश हैं .....उम्मीद है इस बार आप निराश नहीं होंगे .......
(1)
तोहफ़ा
रात आसमां कुछ सितारे
झोली में भर कर ले आया
मैंने कहा ......
मेरा सितारा तो मेरे पास है
वह बोला ......
पर वो तुझे रौशनी नहीं देता
ये तुझे रौशनी भी देंगे ,
और रास्ता भी ....
मैंने पूछा कौन हैं ये ....?
तेरी नज्मों के दीवाने
वो मुस्कुराया ......!!
(२)
साथी
कुछ लफ्ज़ कमरे में
इधर-उधर बिखरे पड़े थे
मैंने छूकर देखा ....
सभी दम तोड़ चुके थे
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था
मैंने उसे पलट कर देखा
वह ' दर्द ' था .....
मैंने उसे उठाया
और सीने से लगा लिया .....!!
(३)
दर्द का शिकवा
वह इक कोने में बैठा
सिसक रहा था ....
मैंने पूछा .....
' क्यों रो रहे हो साथी ....? '
वह बोला ......
वे तुम्हें मुझसे
छीन लेना चाहते हैं .....!!
(४)
दीवाना
वह झुक कर
धीमें से बोला .....
मैं तेरा दीवाना हूँ ' हक़ीर '
और मेरे लबों को चूम लिया
मैंने पलकें खोलीं तो देखा
वह दर्द था .......!!!
68 comments:
... bahut khoob !!!!!
कोई खास टिपण्णी नहीं कर सकता क्यूंकि इतनी समझ नहीं है. बस इतना कहूँगा.... बहुत खूब.
टेम्पलेट बहुत खूबसूरत लगाया आपने. पर फोंट्स का कलर कुछ चेंग करें. विजिबल नहीं है.
.....
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था मैंने उसे पलटा तो देखा वह ' दर्द ' था .....मैंने उसे उठाया और सीने से लगा लिया
ati sundar
aaiye is dard ko sath lekar fulo ne kuch kha hai vo bhi sunle ........
mere blog par
mast likha hai aapne...mazaa aayaa
acha vaise template ki problem abhi bhi hai...actually koi bhi contrast sahi se kaam nahi karta...ekdum light pe ekdum drak ya iska ultaa...ek balanced template hi sahi rahgaa....
isi tarah likhte rahiye...bahut log intezaar kar rahe hai ki shayd aapki ek post me "dard" naa ho,ek baar ye experiment bhi zaroor kare :)
मैंने पूछा कौन हैं ये ....?
तेरी नज्मों के दीवाने
वो मुस्कुराया ......!!
--वाह!! कितना सच कह गया मुस्कराते हुए.
काफ़ी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ......पिछली पोस्ट को पढ़कर पता चला कि आपने ब्लॉग बंद करने के बारे में सोचा था तो एक बारगी सकते में आ गया था....मगर फ़िर जानकर ख़ुशी भी हुई कि आपका लेखन यूँ ही पढ़ने को मिलता रहेगा....अतः आपसे अनुरोध है कि कृपया ऐसे विचार मन में कदापि न लायें.....जहां तक आलोचनाओं की बात है, उसमें से उतना ही लें जितना ग्रहण करने योग्य है और बाकी बातों को लेकर मन खराब ना करें.....इस सन्दर्भ में गांधी जी का एक प्रेरक प्रसंग याद आ रहा है.....एक बार गांधीजी के किसी निंदक ने उन्हें काफी पन्नों का गालियों से भरा एक पत्र दिया...गांधी जी ने पत्र को धैर्यपूर्वक पढ़ा और उसमें लगी आलपिन निकालकर सारे पन्ने उस व्यक्ति को वापस कर दिए, और बोले इस सबमें मुझे सिर्फ यही एक चीज़ काम की लगी सो ले रहा हूँ.....बाकी आप संभालिये.....ठीक यही बात यहाँ पर भी लागू होती है.....
रचनाएँ बेहद खूबसूरत हैं हमेशा की तरह.....नया प्रारूप भी अच्छा है बस शब्दों का रंग संयोजन ठीक कर लें......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
sabhi rachnayen behatareen, bhavnaon /shabdon ki kushal abhivyakti.
"उम्मीद है इस बार आप निराश नहीं होंगे"
क्षणिकाएं निराश नहीं करतीं.....
दर्द और मुस्कान एक साथ मिले .
कहने को कुछ ही शब्द ,
पर कितने भीतर तक पले
कुछ लफ्ज़ कमरे में
इधर-उधर बिखरे पड़े थे
मैंने छूकर देखा ....
सभी दम तोड़ चुके थे
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था
मैंने उसे पलटा तो देखा
वह ' दर्द ' था .....
मैंने उसे उठाया
और सीने से लगा लिया .....!!
gazab !
gazab !
gazab !
कुछ लफ्ज़ कमरे में
इधर-उधर बिखरे पड़े थे
मैंने छूकर देखा ....
सभी दम तोड़ चुके थे
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था
मैंने उसे पलटा तो देखा
वह ' दर्द ' था .....
मैंने उसे उठाया
और सीने से लगा लिया .....!!
हरकीरत जी ,
बहुत खूबसूरती से आपने दर्द शब्द को व्याख्यित किया है .आपका नया टेम्पलेट अच्छा लगा ..लेकिन ऊपर आपने मीर की जो पंक्तियाँ लगायी हैं वो टेम्पलेट के हेडर वाले कलर में मर्ज हो रहा है .इसे डार्क ब्लू,ब्लैक ,रेड या अन्य कोई भी कलर कर लें तो अच्छा रहेगा।
हेमन्त कुमार
कोई कैसे पलकें खोले, जब पता हो कि सामने तुम नहीं होगी
शानदार अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
दर्द को इतनी खूबसूरती से आपने बयां किया है की उठ कर ताली बजाने को बाध्य हो गया हूँ...लाजवाब रचनाएँ...वाह...
नीरज
दर्द के lafzon से puraani pahchaan है आपकी........... bahoot ही खूब अंदाज़ है आपका उन को अपनी रचनाओं में utaarne का ............. लाजवाब
दर्द अलट-पलट के दर्द ही रहता है। जज़्बात बख़ूबी बयाँ किये हैं आपने।
kya baat hai ....kya kavita hai ...gajab ka likha hai
खूबसूरत एहसास, सुंदर चित्रण।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दर्द अलट-पलट के दर्द ही रहता है। जज़्बात बख़ूबी बयाँ किये हैं आपने।
दीवाना
वह झुक कर
धीमें से बोला .....
मैं तेरा दीवाना हूँ ' हक़ीर '
और मेरे लबों को चूम लिया
मैंने पलकें खोलीं तो देखा
वह दर्द था ......
mai to is dard me bah gaya....wakai aapki rachna majbur kar deti hai..ki kuchh sochu....
बहुत सुंदर कवितायेँ. पढ़ कर अच्छा लगा.
और...ब्लॉग की कलर स्कीम बदलने के लिए धन्यवाद्.
Fist of all...aapka naya andaaz bahut pasand aaya..... blog colour..white+ Blue... white yani purity and blue bole to khula aasmaan....ooper se lekhan shaandar...bes font size increase kar digiye and bold bhi.... Nai shuruwaad ke liye Congratulations!
हाँ , हम तेरी तेरी नज्मों के दीवाने है.
हमारे दिलों में भी कई वीरानें हैं.
इक दर्द के रिश्ते से जन्मों का बंधन है
वर्ना पाखी हम उनके लिए बेगाने है .
पाखी
हर क्षणिकाएं एक से बढकर एक लिखी है आपने। जैसे एक गुलदस्ते में अलग अलग फूल हो। और नया टेम्पलेट भी सुन्दर है।
दीवाना
वह झुक कर
धीमें से बोला .....
मैं तेरा दीवाना हूँ ' हक़ीर '
और मेरे लबों को चूम लिया
मैंने पलकें खोलीं तो देखा
वह दर्द था .......!!!
बहुत खुब..
bahut bahut sunder...
तोहफा
रात आसमां कुछ सितारे
झोली में भर कर ले आया
ोमैंने कहा ......
मेरा सितारा तो मेरे पास है
वह बोला ......
पर वो तुझे रौशनी नहीं देता
ये तुझे रौशनी भी देंगे ,
और रास्ता भी ....
मैंने पूछा कौन हैं ये ....?
तेरी नज्मों के दीवाने
वो मुस्कुराया ......!!
्बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति----ब्लाग का नया प्रारूप भी अच्छा लगा।
पूनम
दर्द का शिकवा
वह इक कोने में बैठा
सिसक रहा था ....
मैंने पूछा .....
' क्यों रो रहे हो साथी ....? '
वह बोला ......
वे तुम्हें मुझसे
छीन लेना चाहते हैं .....!!
कमाल.............!!!!!!!!!!
आपको सलाम हरकीरत जी,,,, आपने झकझोर के रख दिया है,,,
कागज़ पे हमने जिन्दगी लिख दी,
अश्कों से सींच कर खुशी लिख दी,
दर्द जब हमने उभारा लफ्जों में,
लोगों ने कहा वाह..क्या गजल लिख दी !
जब दर्द की बात चली है तो :
अपना लिया है दर्द को
इस कदर मैंने,
कि दर्द होता है मुझे
दर्द न होने से !
'एक दर्द था -
जो सिगरेट की तरह
मैंने चुपचाप पिया है
सिर्फ कुछ नज्में हैं -
जो सिगरेट से मैंने
राख की तरह झाड़ी हैं'
- बकौल अमृता प्रीतम
आज की आवाज
dard kahi bhi ho bikhra ho simta ho...kavita se uska rishta nahi tut pata.hmesha ki tarah boht kuch kaha aapne....
बहुत भाव पूर्ण रचनाएं हैं।दिल के भीतर दस्तक देती हुई......
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
achhi shanikayo ke sang naya roop rang blog ka bhi pasand aaya, vese aapki rachnao me itana mashgul ho jaataa hoo ki fir blog ke avataar ka dhyaan nahi rahta, aapne batayaa to dekha.
प्रकाश जी , अमृता की चंद पंक्तियाँ पेश कर कर रूह खुश कर दी आपने ....और उर्जा भी मिली दर्द को .....शुक्रिया .....!!
मनु जी बड़ी देर से आये आप ....सुना है क्या खूब गाते हैं आप ....और आजकल खूब महफिलें जम रहीं हैं मुशायरों की ....????
मनविंदर जी , कमेन्ट चोरी कर समय बचा लिया आपने .....????
नीरज जी , तारीफ कुछ ज्यादा है ....बस आपका आर्शीवाद चाहिए ....!!
हाँ एक दर्द ही तो है जो हरदम साथ रहता है.....सच लिखा है आपने
मैंने पूछा कौन हैं ये ....?
तेरी नज्मों के दीवाने
वो मुस्कुराया ......!!
बहुत ही खूबसूरती से संवारा आपने शब्दों को, उनके अहसास को, बधाई ।
रात आसमां कुछ सितारे
झोली में भर कर ले आया
yeh tohfa waaqai mein achcha hai........
bahut achchi kavita...... dil chhone wali.......
dard ko bhi ek nai awaaz de di.....
khub likha hai..
ye dard hi to hai jo aapke shabdon ko ek nai pehchan deta hai....
dard ko bhi nikhar diya aapne apni kalam se...
मैंने पूछा कौन हैं ये ....?
तेरी नज्मों के दीवाने
वो मुस्कुराया ......!!
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था
मैंने उसे पलट कर देखा
वह ' दर्द ' था .....
मैंने उसे उठाया
और सीने से लगा लिया .....!!
भावनाओं के बहाव का वही नायाब सिलसिला
दर्द की अभिव्यक्ति का अनूठा प्रयास
और....
शब्द-शब्द सब को साथ बहा ले जाने की
बहुत ही सुन्दर कला ,,,,,,
साहित्य की कसौटी पर खरी उतरती
अछि रचनाएं . . . . .
बधाई
---मुफलिस---
क्या कहूँ ? अजब है .... ग़ज़ब है !!
dard aur zindagi ka choli-daman jaisaa sang hai ise na chate huye bhi gale lagaye rakha .har waqt jo saath nibhaye pyara bhi wohi hai kahi .aapki bhawna bhi khoosurat ai kahi .aap dard ki diwani ,hum aapki rachana ke .saadhuwaad .
दर्द, सिर्फ दर्द को आधार को बनाकर कविता रचना खेल नहीं है. आप पर कई लोगों ने यह आरोप लगाने का प्रयास किया कि आप केवल दर्द को विषय बनाकर जाने क्या क्या कहती-लिखती रहती हैं. मेरा कहना है कि कोई किसी अन्य विषय पर ऐसे ही लिखे और वेराइटी का भी ध्यान रखे. जब से कविताओं, गीतों, गज़लों का चलन शुरू हुआ, पुराने लोगों ने कोई भी सब्जेक्ट या कन्टेन्ट छोड़ा है क्या? हम में से जितने भी लोगों को पब्लिक थोड़ी अहमियत देती है तो उसका कारण होता है-- प्रेजेंटेशन. फिर हमारी भाषा और लहजा भी एक अलग कारक होते हैं. आपकी आज(देर से अवसर मिल सका) पढी कविताएँ दर्द को एक अलग तरीके से महसूस कराने में सफल रही हैं. हरकीरत जी, लिखिए और लिखती रहिये. आलोचनाओं का जवाब देने, डायलोग में उलझने से समय तथा ऊर्जा दोनों की हानि होती है. स्वस्थ आलोचना का जवाब देना आवश्यक है, भले हफ्ते-महीने लग जाएँ. आपकी रचनाएँ मुझे पसंद है.
हरकीरत जी,
ब्लॉग बंद न कर आपने हम ब्लागारियों को जो सकून दिया, उसका तहे दिल से आभारी हूँ. ब्लाग का टेम्पलेट अच्छा लगा, वैसे भी बदलाव सदा मन को प्रायः भाता है.
मेरे पिछले कमेन्ट के
"मीरा ने कहा था ...' हरी मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय' "
पर आपकी इस ब्लाग में निम्न साफगोई
"अगर मैं ये कहूँ ....' हरी मैं तो दर्द दीवानी मेरा प्रेम न जाने कोय ' तो अतिशयोक्ति न होगी ....मुझे दर्द से कोई गिला शिकवा नहीं ....सच कहूँ तो अब इन्हीं से इश्क सा हो गया है और इसे मुझसे ...ये मेरे हमराज , हमसाया ,हमसफ़र ,हमदर्द सब हैं ...कृपया मुझे इनसे अलग होकर लिखने के लिए न कहें ..."
बेहद पसंद आयी. वस्तुतः ये ही वो जज्बा है जो दृढ इच्छाशक्ति वालों को अपने पथ से डिगने नहीं देता. और ऐसे लोग अंततः मंजिल पाकर ही रहते हैं, भले ही कितने भी विरोधों का सामना करना पड़े.
आपकी तीनों क्षणिकाएं पसंद आयी.
आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
हरकीरत जी बहोत वाजिब फ़रमाया है ,मनु जी बहोत ही सुरीले है और क्या खूब गाते है दिल खुश हो जाता है ... मगर मेरा कमेन्ट गया कहाँ जो मैंने पहले ही पोस्ट की थी मुझे कहीं दिख नहीं रही वो.... आपके कभी चारो नज़्म एक दुसरे पे भरी है मगर दुसरा वाला तो मेरे बहोत करीब है और बहोत करीब पता हूँ उसे... आप तो नज़मो की महारानी है कहाँ से लाती है आप ऐसे लफ्ज जो दिल को दर्द में भी गुदगुदी कर देता है बहोत बहोत बधाई और आभार...
अर्श
सर्वत जी , चन्द्र मोहन, अर्श जी ,
आप सब का प्रेम देख गदगद हूँ ....!!
अब कह सकती हूँ की मुझे खुदा से कोई gila -shikwa नहीं.. ..मैं अब इस दर्द से अलग नहीं रह सकती .....यह मेरी नस - नस में बस चूका है ....मुझे इसमें डूबना और डूब कर लिखना सुकून देता है .....मुझे वे सारे mitra chhmaa करें जो मुझे किसी और rup में भी dekna चाहते हैं ....
अर्श जी ,
आपने अपनी pahli tippni मेरे मेल पे bheji थी ....उसे मैं lga dungi .....!
हरकीरत जी नमस्कार,
दर्द को जी तरह से आप सजाती है वो खुद से फूला नहीं समाता होगा . चारो ही नज़्म एक से बढ़कर एक रहे बहोत ही खूबसूरती से आपने लिखा है ... आप तो नज्मों की महारानी है .... बस ये कहूँगा के आपके नज्मों का दीवाना हूँ पढने के लिए ...जिस अंदाज से आप इन्हें प्रस्तुत करती है वो अंदाज भी कबीले तारीफ़ है ....
अब बात होगी हमारे महफ़िल की हाँ वो गौतम भाई, मनु जी, मुफलिस जी, और दर्पण हम सभी मिले थे दर्पण के भी रूम पे आपको तो सारी बातें पता ही होंगी... और ऐसी कोई बात नहीं है के मैं बहोत अछा गाता हूँ... आज का समय में रोना और गाना किसे नहीं आता मैं भी बस वहीँ तक हूँ... वो मुक़द्दस मौका फिर कब आयेगा ये अब सोच रहा हूँ इन सभी लोगों से मिल के मैं तो धन्य हुआ ... हो सकता है के गौतम भाई एक पोस्ट इस पे लिखें ... उसका इंतज़ार रहेगा...
आप मेरी ग़ज़लों को हमेशा सराहती है दुलारती है ये मेरे लिए किसी उपहार से कम नहीं . आपका प्यार और स्नेह ऐसे ही बना रहे यही उम्मीद करता हूँ आपकी कुशलता के कामना के साथ ....
आपका
अर्श
--
मेरी ग़ज़लों को यहाँ पढ़ें
http://prosingh.blogspot.com
शानदार !!! दर्द ही सबका पराया होता है !! बोर धुनिया लागिले अपुनार लेखा!!
Wahh!! Dard ko bhi nahin pata hoga ki koi use itna chahta hai :)
sab ek se badhkar ek..
वह झुक कर धीमें से बोला .....मैं तेरा दीवाना हूँ ' हक़ीर 'और मेरे लबों को चूम लिया मैंने पलकें खोलीं तो देखा वह दर्द था....
wah !!
Dard ko samjhne ki koshish maine bhi ki thi shayad samajh nahi paa raha hoon. nazdeek itna hai ki padhne main ashaj hoti hai....
hamesha ki tarah.....
ज़िन्दगी के होने से कायनात नहीं होती,
होती तो है मुलाकात, मुलाकात नहीं होती.
क्या पूछते हो 'दर्शन' कि हम कौन होते हैं?
हम दर्द हैं हमदर्द हमारी जात नहीं होती .
मुरारी दान्गोरिया ,
आपुनर मुखोर परा अखमिया मात हुनी बोर भाल पालूं ....आही थाकिबो ......!!
हरकीरत हकीर जी।
आपने चार शब्द चित्र प्रस्तुत किए हैं-
असमंजस में हूँ कि इन्हे रत्न कहूँ या मोती,
चारों शब्द चित्र एक से बढ़कर एक हैं।
haqeer ji bahut hi umda apke zajbat apke lafz.dil ko choo jane wali apni ada , bhai wah wah !
a request-
plz change the font's colour
दर्द का शिकवा
वह इक कोने में बैठा
सिसक रहा था ....
मैंने पूछा .....
' क्यों रो रहे हो साथी ....? '
वह बोला ......
वे तुम्हें मुझसे
छीन लेना चाहते हैं .....!!
ये दर्द भी नामुराद क्या चीज़ है किसी ना किसी कोने मे छुपा ही रेहता है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें 0000000000000000000000000000000000
इस दर्द में कुछ बात है . आगे भी प्रतीक्षा रहेगी
आपके ब्लोग के नये कलेवर में दर्द के साथ फ़ूलों की भी मेहेक है, कोमलता है, और साथ ही आपके खूबसूरत मन के सुंदर रंग भी.
इन्हे सहेज कर रखें, कुछ तो लोग कहेंगे,लोगोंका काम है कहना...
आपके गीतों के शब्द दिल की गहराई तक उतर गये. अपने ब्लोग के लिये पोस्ट तैय्यार करना भूल गया, आपके लिये एक सुरीला तोहफ़ा भेज रहा हूं, आपके मेल पर. कबूल करें.
आपने याद दिलाया था कि आपकी फ़रमाईश पूरी करूं. याद नही आ रहा, क्या बतायेंगी?
DARD............par aapne bahut hi sunder rachna likhi hai....
दीवाना
वह झुक कर
धीमें से बोला .....
मैं तेरा दीवाना हूँ ' हक़ीर '
और मेरे लबों को चूम लिया
मैंने पलकें खोलीं तो देखा
वह दर्द था .......!!!
bahut sundar!!is mein dard bhi hai aur ras bhi hai.aapka poetic andaz achchha laga .kaabile tareef.
darasal jis dard ki baat ho rahi ye wo dard hai, jismen DARD nahi sirf DARD ka ehsas hota he yani sirf aur sirf kitabi batein. asli DARD jab hota hai to injection lagwane padten hai, KAVITA yaad nahin rahti.
amit chhap chhodti hai aapki kavitaen, badhai......
सोचता इतने दिग्गजों के सब कह लेने के बाद अब मेरे लिये कहने को शेष क्या रहा..
पहले तो ब्लौग का बदला कलेवर यूं तो खूब फब रहा है, लेकिन तनिक रंगों का सामंजस्य फिर से देखना पड़ेगा आपको। आँखों पर जोर डाल कर पढ़ना पड़ रहा है। वो तो शुक्र है कि आपकी रचनाओं की दीवानगी सर चढ़ के बोलती है तो आँखों पर जोर डालना कबूल है।
...और फिर इन क्षणिकाओं की भूमिका में कही गयी कुछ बातें समझ नहीं पाया, लेकिन दर्द दीवानी के प्रेम को समझने की कोशिश जारी रहेगी।
..और क्षणिकायें???? क्षणिकायें या दर्द की पोटली फिर से???
सबसे पहले तो ये बताइये...के ये कौन सी भाषा में किस को ..क्या कह दिया आपने हरकीरत जी...?
दूसरी बात ये के हम सब में सबसे ज्यादा खटारा गला मेरा और दर्पण का है...
बाकी क्रमश...
अर्श..मुफलिस जी...और गौतम ..
और हाँ गौतम जी की बात से सहमत हूँ...
कविता तो पढ़ी जा रही हैं..पर जो हलके हरे रंग से भूमिका लिखी है..उसे पढ़ना अपने आप में एक बड़ा काम है...
अगर ऐसे ही लिखतीं रहीं आप तो आये दिन चश्में का नम्बर बदलना पडेगा....
सबसे पहले तो ये बताइये...के ये कौन सी भाषा में किस को ..क्या कह दिया आपने हरकीरत जी...?
दूसरी बात ये के हम सब में सबसे ज्यादा खटारा गला मेरा और दर्पण का है...
बाकी क्रमश...
अर्श..मुफलिस जी...और गौतम ..
और हाँ गौतम जी की बात से सहमत हूँ...
कविता तो पढ़ी जा रही हैं..पर जो हलके हरे रंग से भूमिका लिखी है..उसे पढ़ना अपने आप में एक बड़ा काम है...
अगर ऐसे ही लिखतीं रहीं आप तो आये दिन चश्में का नम्बर बदलना पडेगा....
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था
मैंने उसे पलट कर देखा
वह ' दर्द ' था .....
मैंने उसे उठाया
और सीने से लगा लिया .....!!
isi lafz se to poora fasana ban jata hai...! bahut khoobsurat
सच में सारी क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी हैं
काफी दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ा मैंने
पसंद आया
आप के इन नज्मो को पढ़कर मै कहता हूँ...... की मै आप की इन नज्मो का दीवाना हूँ........
क्या बात है! दर्द आंसू नहीं मुस्कान बन गया!
सिर्फ़ एक लफ्ज़ जिंदा था मैंने उसे पलट कर देखा वह ' दर्द ' था .....मैंने उसे उठाया और सीने से लगा लिया .....!!
आपके अहसास हमारे दिल की ज़मीन पर उतर रहे हैं....
जिन्हें हम भी महसूस कर रहे हैं....
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