Sunday, April 19, 2009

नज़्म

पिछली बार का वादा था नई नज़्म का......बीते कुछ दिनों में जहाँ आप सब के साथ ने हौंसला-अफजाई की वहीँ मित्र प्रकाश बादल जी के ब्लॉग छोड़ने के फैसले ने आहात भी किया....इस बात से कि मेरे ब्लॉग पे टिप्पणी की वजह से उन्हें जाना पड़ रहा है ......मन में एक अपराधबोध सा भी है ....मेरी एक बार उनसे फ़िर गुंजारिश है कि अपने फैंसले पर पुनर्विचार करें ....... इस बीच कुछ प्रशंसकों के फोन कॉलस भी आए जिन्होनें रचनाओं की सराहना के साथ- साथ ये शिकायत भी कि आप एक ही शैली में लिखतीं हैं .....इस बार कुछ अलग लिखने की कोशिश की है ......आपसब की इनायत चाहिए.......!!

नज़्म
-----------

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !


शब ने मदहोशी का आलम बुना

आसमां नीली चादर बिछाने लगा

मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने

चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !


हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में


प्रीत की कब्रों में सजते रहे

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

55 comments:

Anonymous said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !

........... मन के सारे तार एक साथ छिड़ गए. शैली का तो मुझे अंदाजा नहीं, पर आप जो भी लिखती है दिल तक पहुँचती है.

आभार.

परमजीत सिहँ बाली said...

हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में
प्रीत की कब्रों में सजते रहे
कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

हरकीरत जी,बहुत सुन्दर व सटीक लिखा है।बहुत बढिया रचना है।बधाई।

रश्मि प्रभा... said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !.....खूबसूरत ख्याल

अनिल कान्त said...

आपकी नज्में मुझे बहुत प्यारी लगती हैं

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !

हरकीरत जी
आपकी नज्में भी उतनी ही खूबसूरत हैं जितनी छंद मुक्त रचनाएं............इस लिखने में तो आप अच्छे अच्छों को मात कर गयीं ...........मजा आ गया...........कितनी रोहानी हैं, मासून हैं ये नज़्म .....गुलज़ार की अदा है इनमें ..........लाजवाब

Alpana Verma said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !
बड़ी ही खूबसूरत नज़्म लिखी है आप ने.
एक जगज़ाहिर अंजाम के साथ खतम करते हुए.

[हर एक लिखने वाले की अपनी एक शैली होती है जो उस की पहचान बन जाती है.
वैसे प्रयोग के तौर पर बदल कर देख ने में कोई हर्ज़ भी नहीं..लेकिन अभी तक जैसा आप लिखती हैं हमें अच्छा लगता है.]

बादल१०२ said...

bahut hi aacha likha hai aap ne, bahut sunder khayal hai

vijaymaudgill said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !

हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में
प्रीत की कब्रों में सजते रहे
कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

kya baat hai, bahut khoob ab main kya kahu, main to pehle se hi apka mureed ho chuka hu.

Anonymous said...

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

सुशील छौक्कर said...

हमें तो ये अलग सी नज़्म भी भाई है। मोहब्बत के भाव लेकर आई है।
रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !

बहुत सुन्दर प्रयोग किया शब्दों का।

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

ऐसा हर्श क्यों होता है? कभी इस पर भी लिखना जी।

दर्पण साह said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे


...wah harkarit ji !!

अभिषेक आर्जव said...

अच्छा लगा पढ़कर ! ये सबसे अच्छा लगा !
"हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में
प्रीत की कब्रों में सजते रहे"

Anil Pusadkar said...

ऐसा लग रहा है कि हरकिरत नही बल्कि हकिक़त की नज़्म पढ रहा हूं।

गौतम राजऋषि said...

कई-कई सदियों के इश्क, प्रेम-कहानियों में डूबोती-तैराती आज की ये नायाब नज़्म...

"प्रीत की कब्रों में सजते रहे" अनूठा मिस्‍रा

मोना परसाई said...

हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में

प्रीत की कब्रों में सजते रहे

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे
अंतिम चार लाइनों में अपने बड़ीं खूबसूरती से रचना को शाश्वतअर्थ प्रदान किये है .

Harpreet Singh Sran said...

Hello Ma'am,

Yeah sure you can post them anywhere you like for ehh boliyan meriyan hee nahi saarey punjabiyaan diyan ne. I just checked out your blog and congrats for such a beautiful shayari. Best of luck for your future and I would be thankful if you can send me the link of the boliyaan when you will post them on your blog.

Regards & Best Wishes
Preet Zinda

गर्दूं-गाफिल said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !


शब ने मदहोशी का आलम बुना

आसमां नीली चादर बिछाने लगा

मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने

चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !



सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ,, क्या खूब पिरोया है अल्फाजो को ,,इस बार बिल्कुल अलग रूप देखा ,,

ताऊ रामपुरिया said...

आप जो कुछ भी लिखती हैं उसकी किसी से कोई तुलना नही. मुझे कविता /शायरी की समझ कम है पर आपकी रचना मे कुछ खास बात है, शब्दों को जैसे आप नचा देती हैं. अब आज ही देखिये..रात जुगनुओं ने इश्क का जाम भरा..कमाल की रचना..बहुत बधाई और धन्यवाद.

जब आप इस तरह का लि्खेंगी तो चोर तो आयेंगे ही.:)

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

आप जो कुछ भी लिखती हैं उसकी किसी से कोई तुलना नही. मुझे कविता /शायरी की समझ कम है पर आपकी रचना मे कुछ खास बात है, शब्दों को जैसे आप नचा देती हैं. अब आज ही देखिये..रात जुगनुओं ने इश्क का जाम भरा..कमाल की रचना..बहुत बधाई और धन्यवाद.

जब आप इस तरह का लि्खेंगी तो चोर तो आयेंगे ही.:)

रामराम.

neera said...

दर्द के बाद इश्क का पैगाम
और गहरा और बेहद हसीन
इंशा-अल्हा!

कडुवासच said...

... बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय।

वर्षा said...

रुमानियत आपकी नज़्मों की ख़ासियत है।

Science Bloggers Association said...

आपकी नज्‍म ने दिन के उजाले में भी रात का समा बांध दिया।

-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्‍ट का दुखद अंत

Harpreet Singh Sran said...

G Ma'am main zroor aagey ton koshish karunga k main punjabi ch likhaan .. and I hope you keep visiting.

डॉ .अनुराग said...

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

सुभान अल्लाह ......वैसे मुझे आपकी आजाद नज़्म ज्यादा अज़ीज़ होती है ....
रहा प्रकाश जी का सवाल ,भावुक आदमी हर चीज अपने दिल पे ले जाता है .वे भी ले गए ...उम्मीद है समय ओर उनकी गजले उन्हें वापस ले आयेगा.....

रंजू भाटिया said...

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

बढ़िया भाव सुन्दर अभिव्यक्ति ..

Mumukshh Ki Rachanain said...

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी

अति सुन्दर ख्याल पर

"चांदनी ने बैठ कर क्या सपने देखे", कभी इसके ऊपर भी एक नज्म पेश करें तो मेहरबानी होगी.

इंतजार है अगली नज़्म का.

चन्द्र मोहन गुप्त

के सी said...

आपकी नज़्में तो मुझे पसंद है ही पर इस बार का टेम्पलेट भी मेरी रूचि का देख कर अच्छा लगा.

Harshvardhan said...

bahut sundar najm likhi hai aapne ... shukria...

Yogesh Verma Swapn said...

bhavnaaon ka khoobsurat shabd chitra, wah, badhai sweekaren.

Poonam Agrawal said...

Behad khubsurat najm hai aapki ....padker ek chitra sa khich gaya najron ke samne....
Badhai....

manu said...

लीजिये हरकीरत जी,
एक और चित्रकार के मन में चित्रा सा खिंच गया है....
सच में आपको पढ़ते पढ़ते कई धुंधलाते नक्श सामने आ जाते हैं.....जैसे इस बार मुफलिस जी की नज्म में हुआ ......गजल में अक्सर ऐसा नहीं होते देखा है.....
इसलिए मेरा मानना है के नज्म पेश करने में एक ज्यादा सधी हुआ कलम की दरकार होती है......
हुस्नो इश्क ,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,कभी चनाब के पानी में बहते रहे,,,,,,,,,,,,,,

पर ये बात है के ये उभरे हुए नक्श हमेशा ही बेचैनी देते हैं,,,

admin said...

जिंदगी की दुखद यादों को कविता के बहाने से भी याद करना अश्‍कों को सब्र का बांध तोडने पर मजबूर ही करता है।

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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्‍ट का दुखद अंत

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी आपने पहली बार ग़ज़ल और नज़्म के फर्क को बताया ...हाँ ये बात तो सच है कि नज़्म ज़हन में एक चित्र सा खींच देती है और हम बहुत देर उसके प्रभाव में डूबते उतरते रहते हैं ...पर ग़ज़ल का अपना महत्त्व है ...दो पंक्तियों में गहरी बात ....हर किसी के बस का नहीं ये रोग.......!!

अभिन्न said...

शब्द,शैली ओर सरंचना पर आपका पूरा अधिकार है ,प्रस्तुत
रचना में आपने बेहद खूबसूरती से साहित्य का निर्वाह किया है
कमाल की पंक्तिया है


शब ने मदहोशी का आलम बुना

आसमां नीली चादर बिछाने लगा

मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने

चाँद आशिकी का गीत गाने लगा

प्रशांत भगत said...

shubhanallah aapne kya chitra ukera hai. tabiyat haree ho gayee.

तेजेन्द्र शर्मा said...

हरकीरत जी

आपकी नज़म पढ़ी। इतनी तारीफ़ की टिप्पणियां पढ़ने के बाद लगता है मैं क्या कहूं। फ़िल्मी गीतों में आनंद बख़्शी और गुलज़ार ने पंजाबी शब्दों को हिन्दी भाषा में शामिल करने का सेहरा अपने सिर बंधवाया है। आपकी नज़म में मींह शब्द का उपयोग बहुत प्यारा लगा। हिन्दी अगर इसी तरह पंजाबी और अन्य भाषाओं से शब्द लेती रहेगी तो उसमें शब्द-भण्डार अंग्रेज़ी की तरह विस्तार पाता रहेगा।

तेजेन्द्र शर्मा
कथा यू.के. (लन्दन)

RAJ SINH said...

hamesha kee tarah sundar ..........tarz badla hai par samvednaon kee barat naye bimb sab vahee jo aapkee khasiyat hai !

banaye rakhen .

Prem Farukhabadi said...

शब ने मदहोशी का आलम बुना
आसमां नीली चादर बिछाने लगा
मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने
चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !

nazm kafi achchhi likhi. badhai.

Prem Farukhabadi said...

इस दुनिया में आके
दिल से दिल लगाके
जिसने प्यार न किया
उसने यार न जिया।
मैंने यह गीत का मुखडा लिखा है । पूरा गीत नहीं बन पा रहा है। ब्लोगरो से अपील है की मेरा यह गीत पूरा करने में मदद करें। गीत की पाँच अंतरा लिखनी हैं। जो भी ब्लोगर अंतरा लिखेगे उनका नाम अंतरा के सामने लिखा जाएगा। कमेन्ट बॉक्स में अपनी अंतरा लिखें । धन्यबाद ।

नवनीत नीरव said...

bahut hi khubsurat najm hai aapki.Saare baav jehan mein jaise bas se gaye ho.Bahut hi sundar abhiwaykti hoti hai aapki.
Navnit Nirav

GIRISH CHANDRA SHUKLA said...

aap bahut aacha likhati hai...................

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !

हरकीरत जी ,
बहुत खूबसूरती से आप प्रकृति को अपनी रचनाओं में संजोती हैं ....
हेमंत कुमार

अबयज़ ख़ान said...

हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में

प्रीत की कब्रों में सजते रहे

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे !

आपकी लाइनें बहुत अच्छी हैं। दिल को छू लेने वाली। मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

ओम आर्य said...

आज कतार में पीछे हूँ पर उसी दिल से हूँ, शुक्रगुजार हूँ!

जयंत - समर शेष said...

"रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा
तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे
सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से
चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !"

आह और वाह...
मैं क्या लिखूं... अति सुन्दर..

आपकी नज्म की चोरी के बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ.
ताऊ ने सच कहा, इतनी अच्चे जवाहरात होंगे तो चोर आयेंगे ही..

~जयंत

mark rai said...

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !
aapke blog par aaker bahut kuchh sikhne ko mil raha hai...

mark rai said...

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !
aapke blog par aaker bahut kuchh sikhne ko mil raha hai...

mahe said...

mai jyada nahi samajh pati lekin padhkar dil khush ho gaya.

phir aaungi..

अरविन्द श्रीवास्तव said...

रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा……पहली पंक्ति ने ही दिल को छू लिया…आपके नज्म में अक्सर खो जाता हूँ साथ ही 49 प्रतिक्रिया के अंबार में खुद को खोने का डर भी सालता है।

विजय तिवारी " किसलय " said...

हकीरत जी
वाकई जुदा अंदाज़ में लिखी गयी नज़्म ने दिल खुश कर दिया .
कितनी भावनात्मक पंक्तियाँ हैं >>>
हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में

प्रीत की कब्रों में सजते रहे

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे
- विजय

विजय तिवारी " किसलय " said...
This comment has been removed by the author.
sandhyagupta said...

Aapki lekhni me ek kashish hai.Yun hi likhte rahiye.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

हरकीरत जी..
एक बार पुनः मुझे आपके ब्लॉग पर आने को मिला.....
और फिर से मुझे आप की रचना ने प्रभावित किया....
बहुत ही खूबसूरती से आपने प्यार करने वालो की ऐतिहासिकता को दर्शाया है...
कुछ पंक्तिया विशेष रूप से अच्छी लगी....

"कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में
कभी चनाब के पानी में बहते रहे !"

"दो बातें एक एहसास की..."

Prakash Badal said...

:) हरकीरत जी आप जिस तरह की कविताएँ लिखती हैं वो शैली आपकी अत्यंत प्रभावी है और अगर आप किसी एक शैली में प्रभावशाली लेखन करती हैं तो उसी में रहना कोई बुरी बात नहीं। किसी की सलाह पर अपने लिखने का मार्ग बदल देना रचनाओं को कमज़ोर कर सकता है। आपकी ये नज़्म अच्छी है लेकिन मुझे हरकीरत की धार इससे ग़ायब लगी। ये मेरी राय व्यक्तिगत भी हो सकती है
प्रकाश बादल