Sunday, March 15, 2009

आह! इक बेबस सी ....!!


भीगी पलकें मुंतज़िर हैं
इक उजाले के सहर के लिए
न कोई मानूस सी आह्ट
न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश है

समंदर की इक भटकती हुई लहर


तलाशती है घरौंदे तपती रेत में

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

टूटा है आसमां से कोई तारा
आह ! इक बेबस सी लिए ...!!


************

अर्थ- १) मुंतज़िर- प्रतीक्षक
2)मानूस -परिचित
3)पैरहन - लिबास

55 comments:

siddheshwar singh said...

शीर्षक कुछ साफ दिखाए नही नही दे रहा है !

अनिल कान्त said...

बेबस सी आह .........सचमुच दिल में एक अजीब सी हलचल हुई पढ़कर

"अर्श" said...

मुरीद हूँ पहले से ही और मुन्तजिर हूँ आपके लेखनी केलिए...
इतने गहरे भाव और इतनी स्पष्टता से आपने कही ... कमाल की लेखनी .. आपकी लेखनी को सलाम...

अर्श

Prakash Badal said...

अभी-अभी तो आपकी पिछली कविताओं का रंग नहीं उतरा था लेकिन आपने एक और बेहतरीन रचना से रूबरू करवा दिया वाह मज़ा आगया एक और खूबसूरत रचना

ओम आर्य said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर

तलाशती है घरौंदे तपती रेत में

बेहतरीन !

पूनम श्रीवास्तव said...

भीगी पलकें मुंतज़िर हैं
इक उजाले के सहर के लिए
न कोई मानूस सी आह्ट
न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश है.......
.......bahut sundar dil ko chhoone vali panktiyan.
Poonam

mehek said...

भीगी पलकें मुंतज़िर हैं
इक उजाले के सहर के लिए
न कोई मानूस सी आह्ट
न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश
gehre ehsaas,waah bahut sunder badhai

Anonymous said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में


......क्या कहूँ ? लफ्ज़ ही नहीं है.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

हरकीरत जी ,
आपकी रचनाओं में अभिव्यक्त बेचैनी संवेदनाएं ..हर संवेदनशील व्यक्ति
को सोचने पर मजबूर करती हैं ..अच्छी कविता .
हेमंत कुमार

राज भाटिय़ा said...

टूटा है आसमां से कोई तारा
आह ! इक बेबस सी लिए ...!!
वाह बहुत ही सुंदर
धन्यवाद

Alpana Verma said...

तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
....एक टीस लिए भाव भरी रचना ..भावों की अभिव्यक्ति और प्रस्तुति अच्छी है .

[आप की बताई ग़ज़ल मुझे भी पसंद है..ईश्वर ने चाहा तो ..जल्द ही प्रस्तुत करुँगी.
अगर ट्रैक नहीं मिलेगा तो बिना संगीत के रिकॉर्ड हो जायेगी.]

के सी said...

कभी शब्द भीगे गीले से होते हैं और वे आँखों से टपकते ही सुर्ख अंगारे बन जाया करते हैं ऐसे शब्दों को क्या कहिये.... हरकीरत हकीर की कविता कहिये !

दर्पण साह said...

aap to katai gulzaarana hua chahti hai....
...aur choonki mujhe gulzaar pasad hain to apki kavita pasand na aye kaise ho sakta hai but this line is amazing:
आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

manu said...

शीर्षक वाली समस्या,,,,
कुछ समझ में नहीं आई,,,
इन्हें तो किसी भी शीर्षक की आवश्यकता नहीं होती ,,पर खैर,,,
हमें तो हथेलियों पर यूं दुआओं का तडपना ही तडपा गया,,,,,

उठे है हाथ दुआ में तो कुछ तो होगा दराज,
न मेरी उम्र सही, चल तेरे गेसू ही सही

अविनाश said...

न कोई मानूस सी आह्ट
न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश है


सुन्दर रचना
शुक्रिया

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

Unknown said...

hi..it is nice thing to know that you are writing in your own mother tongue...it is really a great contribution to save and protect our own mother tongue... by the way which typing tool are you using for typing in Hindi...?

Recently I was searching for the user friendly Indian Language typing tool and found.... " quillpad". do you use the same..?

Heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration....!? 'quillpad' provides rich text option as well as 9 Indian Languages too...

try this one, www.quillpad.in

For country like India, "English is not enough".

So...Save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue....it'll be a great experience...
Jai...Ho..

रंजू भाटिया said...

दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

आपका लिखा हमेशा दिल को छू जाता है बहुत सुन्दर लिखा है आपने

गौतम राजऋषि said...

राख़ हो चुके हैं ख्वाबों के पैरहन...फिर भी कितनी खूबसूरती से सारे शब्दों को यूं सजाते संवारते हैं---ये बस आपके वश की बात है

अभी अभी एक और खूबसूरत कविता पढ़ी आपकी "प्रयास" में -"अफ़वाहों से तल्ख़ रही ताउम्र ये जिंदगी कलम के धागों से मैं पैरहन सीती रही"
सलाम है आपको

Vinay said...

लाजवाब नज़्म

---
गुलाबी कोंपलें

Vinay said...

लाजवाब नज़्म

---
गुलाबी कोंपलें

दिगम्बर नासवा said...

भीगी पलकें मुंतज़िर हैं
इक उजाले के सहर के लिए

बहुत खूब.........
भीगी पलकों की दास्ताँ
बेहतरीन रचना

नीरज गोस्वामी said...

आपकी महफिल में देर से पहुंचा हूँ इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ...बेहद खूबसूरत रचना है ये भी आपकी...आप क्या लिखती हैं...मन की भावनाओं को शब्द दे देती हैं...वाह...
नीरज

समय चक्र said...

चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में
बहुत बिंदास ख़ूबसूरत अल्फाज लगे शुर्किया आभार.

Harshvardhan said...

najm achchi lagi ....

kumar Dheeraj said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने । अपनी कविताओं में वो ददॆ और वो सुनहरे पल को बयां कर दिया है । अपनी पूरी बातों को पिरो कर एक नज्म का रूप दे दिया है जो बोलने को तैयार है । खासकर ये पंक्तियां मुझे काफी अच्छा लगा शुक्रिया
भीगी पलकें मुंतज़िर हैं
इक उजाले के सहर के लिए
न कोई मानूस सी आह्ट
न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश है

विक्रांत बेशर्मा said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में
बहुत खूब हरकीरत जी...बहुत ही दर्द भरी नज़्म है !!!

डॉ .अनुराग said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

अद्भुत .बीच में लगा जैसे आप पीछे छूट गयी है....आज फिर उसी मुकाम पे नजर आयी....बेमिसाल ..

hem pandey said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर

तलाशती है घरौंदे तपती रेत में
-सुंदर.

अजित वडनेरकर said...

बस यही , कि वाह...
सबसे आखिर में, और इतनी देर से आखिर और कहा भी क्या जा सकता है...
फिर होगी मुलाकात...

रचना गौड़ ’भारती’ said...

बहुत समय के बाद इतना अच्छा ब्लोग पढ़ने को मिला है ।
आप बहुत अच्छा लिखती हैं ।
लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
सुन्दर रचना के लिए बधाई
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
www.swapnil98.blogspot.com

रश्मि प्रभा... said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर

तलाशती है घरौंदे तपती रेत में
.......
bahut khoobsurat,dil me tarange paida karti hui

Mumukshh Ki Rachanain said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर
तलाशती है घरौंदे तपती रेत में

यह कहानी किसी समुद्र की लहरों की नहीं बल्कि अधिसंख्य, अवांक्षित कानूनों के कारण इनके दुरूपयोग से स्वथियों द्वारा दबाय, सताए आम भारतीय की है कुछ ऐसी ही कहानी, जो शायद प्रतीक रूप में आपने अपनी शैली से उघेड़ी है.

सुन्दर प्रस्तुति

चन्द्र मोहन गुप्त

vimi said...

aapki lekhni mein behad dard hai!

Sanjay Grover said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

टूटा है आसमां से कोई तारा
आह ! इक बेबस सी लिए ...!!
HariKeertan Lakirji, Kuchh comment to karna hi tha, maine socha yahiN se copy karke yahiN chep dete haiN. Harikirtan ji ko kaun sa pata chalna hai ki copy hai ya asli hai. aur Asli ka bhi kya pata wo khud nakli ho.
Samajh meN aaya kuchh ? Meri bhi nahiN aaya.

अनुपम अग्रवाल said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर

तलाशती है घरौंदे तपती रेत में

वाह.. वाह ..

सुशील छौक्कर said...

सच पूछिए तो आज भी शब्द नही मिल रहे है। बेहतरीन, उम्दा, अद्भुत, लाजवाब ... सब प्रयोग कर चुका। इन सबके अलावा भी कोई शब्द होता हो तो वही समझ लीजिए। वैसे आज की रचना पढकर गुलजार जी याद आ गए।

Deepak "बेदिल" said...

ji thnx bas kuch koshis hai jo nibha leta hu ..haa jarur kuch hindi urdu panjabi ..or kuch shabd or kuch language ke bhi uthe leta hu....or aap ki tarif mere bas ki hi nahi hai..ek shabd ke jariye kahna chahuga...mashaalha

हिन्दीवाणी said...

गजब का एहसास, लफ्जों की शानदार बुनावट।...और क्या कहें। बस लिखती रहिए।

कडुवासच said...

न कोई दस्तक
सबा भी ख़ामोश है
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!

गौतम राजऋषि said...

शायद आपने एस एम एस किया था। आपकी खूबसूरत कविता अंजुन जी वाले प्रयास ही में छपी है। उनचासवां अंक देखें.....

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक अजीब सी कशिश है आपकी लेखनी में.

अरविन्द श्रीवास्तव said...

बेहतरीन कविताएं, 42 प्रतिक्रिया में स्वय के खोने का डर………।

अभिन्न said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में
.............excellent work of art,its the soul of poetry which comes out in the garb of your words.really a wonderful creation
with regards

MANVINDER BHIMBER said...

ये रात कैसी आयी
खाली हाथ
न कोई ख्वाब
न ख्याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

neera said...

soul stirring...

अरविन्द श्रीवास्तव said...

भीड़ में खोने का डर था आपने बचाया,आभार, पज़ाबी नज्म के एक मेरे मित्र - मनमोहन, भा प्रशासनिक सेवा, जिनका काफ़ी वक्त मधेपुरा में बीता, उनसे पजाबी शायरी-नज्म आदि सुनता था,अर्सा गुजर गया,पंजाबी साहित्य से गहरा लगाव रहा है- पाश को पढना अब भी अच्छा लगता है, विगत में साहित्य अकादमी ने पजाबी में अनुवाद का अच्छा काम किया था……। संवाद ज़ारी रहे

sandeep sharma said...

समंदर की इक भटकती हुई लहर
तलाशती है घरौंदे तपती रेत में...

खुबसूरत रचना...

yehsilsila said...

हकीर जी,सुरजीत पातर तो मेरी समझ से पंजाबी के शिखर साहित्यकार है, चमनलाल,मोहन दीद आदि की अनुदित सामग्री विगत में पढा था, पंजाबी नहीं सीख पाने का अफ़सोस है, एक समृद्ध साहित्य हमारे करीब है लेकिन मै उससे दूर हूँ……।

yehsilsila said...

हकीर जी,
*यह सिलसिला* का मूल मकसद अपने नगर *मधेपुरा* की आम जनता को जोडना, उनकी सामग्री को स्थान देना आदि-आदि रहा है। जबकि "जनशब्द" नितांत निजी विचारों पर केंन्द्रित समकालीन कविताओं को समर्पित किया हूँ। आपकी तीनों पत्रिकाएं ( ब्लाग) अच्छी है…, पुन: आभार भीड़ से बचाने के लिये !

- अरविन्द श्रीवास्तव

admin said...

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

जिंदगी की हकीकत के करीब है रचना।

ਬਲਜੀਤ ਪਾਲ ਸਿੰਘ said...

Harkirat ji,Ek dard sa chhupa rehta
hai,bahut kuchh keh dia lekin abhi
tak ek bojh kayam hai....

डॉ. मनोज मिश्र said...

टूटा है आसमां से कोई तारा
आह ! इक बेबस सी लिए ...!! pooree kee pooree rachna bahut sundar hai .regards

मुकेश कुमार तिवारी said...

हरकीरत जी,

मैं तो आपके प्रतीकों का और उनके चयन बड़ा कायल हूँ. प्रस्तुत रचना में भी कमाल कर दिया है:-

आज की अँधेरी रात
चाँद भी ठहर गया है
तारों के पाश में
राख़ हो चुके हैं
ख्वाबों के पैरहन
दुआएं तड़पती रहीं
तमाम रात हथेलियों में

साधुवाद.

मुकेश कुमार तिवारी

जयंत - समर शेष said...

Bahut sundar.

Kyaa baat hai.

~Jayant