मित्रो, शमा जी ब्लॉग पढ़ कर आ रही हूँ ...मन भीतर तक आहात है ....यह दो छोटी कवितायें उन्हीं को समर्पित हैं .....
(१)
सिसकता चाँद .....
रात आसमां में
इक सिसकता चाँद देखा
उसकी पाजेब नही बजती थी
चूड़ियाँ भी नहीं खनकती थीं
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे .....!!
(२)
छूटती जाती ज़िंदगी .......
जीवन और मृत्यु
जैसे दो विपरीत दिशाओं से आकर
एक ही बिन्दु पर मिल गए हैं
दिल में आग की इक लपट सी है
और यह काली रात
बेड़ियों का गला दबा
ज़िन्दगी को छू लेना चाहती है
मैं हथेली की लकीरों को
कुरेदने लगती हूँ
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
Sunday, March 8, 2009
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50 comments:
रात आसमां में
इक सिसकता चाँद देखा
उसकी पाजेब नही बजती थी
चूड़ियाँ भी नहीं खनकती थीं
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे .....!!
आज महिला दिवस के सन्दर्भ में बहुत ही सार्थक कविता..
उम्दा अभिव्यक्ति !
शमा जी के ब्लाग लिन्क दें तो कैसा रहे !!
बहुत ही सुंदर....
धन्यवाद
बहुत खूब
रात आसमां में
इक सिसकता चाँद देखा
उसकी पाजेब नही बजती थी
चूड़ियाँ भी नहीं खनकती थीं
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे .....!!
जवाब नहीं personification का
Harkirat,
Maine aaneme derhee kar dee...jabtak aapkaa blog khola, 4 comments pehlehee aa chuke the...!
Main kya kahun?? Aaap hameshaa itnaa achha likhtee hain,ki mere paas alfaaz nahee hote...
Aur kis tarahse shukr guzaaree karun,ki aap jaisee qabiliyat rakhnewaalee, behad sadhee aur suljhee huee mahilaane, ek hasteene, jise main naman kartee hun....ye rachnayen mujhe arpit kee hain..!
Shayad, meree beteene mujhe "ek aansoon" barson pehle....27 saal pehle tohfeme diyaa tha, uske baad ye ek behtareen tohfaa mila hai mujhe...
Aur nahee likha jaataa...meree ankhen, bhar aa rahee hain...
dno rachnaye bahut marmik bhavpurn hai,bahut pasand aayi khas kar sisakta chand,sundar.
मैं हथेली की लकीरों को
कुरेदने लगती हूँ
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
मन को आहत ,एवं बहुत कुछ सोचने को मजबूर करने वाली पंक्तियाँ .
हरकीरत जी ....आपको अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं होली की शुभकामनायें .
हेमंत कुमार
इक सिसकता चाँद देखा
उसकी पाजेब नही बजती थी
चूड़ियाँ भी नहीं खनकती थीं
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे
Harkirat ji...kyoon na mill kar yeh dard baant lein?? Bahut hi khoobsurat hai aapki yeh rachna..mubarakbaad kabool keijeiye...Isska anuvaad karke Aarsi pe lagana chahungi. Jaldi hi phone karoongi.
Shubh kamnaon ke saath...
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
एक बेहद सुंदर और सफल प्रयास, दिल को छूने वाली रचना
शुक्रिया
वाकई दर्दनाक!
आपने दिल को छू लेने वाली कविता समर्पित की है शमा जी को .
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
एक बेहद सुंदर और सफल प्रयास, दिल को छूने वाली रचना
shamaa ji ko itni umda kavita bhet kiya aapne kamaal hai ... bahot hi umda likha hai aapne...
arsh
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे
----
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
-दर्द की इंतिहा इसी को कहते हैं शायद!
मन को छू गयीं दोनों कवितायेँ.
मैं हथेली की लकीरों को
कुरेदने लगती हूँ
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!bahut hi sahi,gahre ehsaas
मैं आपकी रचनाएं पढ़कर नि:शब्द हो जाता हूँ। समझ नही आता कि क्या लिखूँ आपकी रचना की तारीफ में। सच दिल को छू जाती आपकी रचनाएं। और आज की रचनाएं तो दर्द से भरी हैं।
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे
==
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ..
...............(क्या कहूँ)
बहुत सुन्दर बेहद मार्मिक लगी दोनों रचनाएँ
मैं हथेली की लकीरों को
कुरेदने लगती हूँ
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!
सुन्दर रचनाओं और रंगों के त्योहार होली पर आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ
---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
लाजवाब नज़्म है...कैसे लिख लेती हैं किसी के दुःख को इतने हुनर से?...वाह वा..
आपको होली की शुभ कामनाएं ...
नीरज
हरकीरत जी
बहूत ही गहरी, संवेदना से भरी रचना. छोटी किन्तु शशक्त रचना
आपको और आपके परिवार को होली की शुभ कामनाएं
मैं हथेली की लकीरों को
कुरेदने लगती हूँ
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
i m speechless....hats off.
सुन्दर कवितायें
अभी वर्तमान साहित्य मे भी आपकी कविता पढी।
शुभकामनाये।
हैरान हूँ आपके भीतर छिपे दर्द के सागर को देख कर..
सिर्फ उसमें डूब जाने को जी करता है
dard jeevan ka hissa hai par uss main dub kar hame hatas nahi hona chahiye
aap ki kavita main bhut dard hai
aap bhut accha likhti hai
par gamo main bhi kabhi kabhi hame khushi jaroor dhodni chahiye
zindagi asan ho jati hai
आपने दो-दो दुकानें (ब्लाग) और खोल लीं ! चलिए इनकी भी और होली की भी बधाई।
Magar holi par aap KHUN kyoN baha rahi haiN :)-
खून की कुछ बूंदें रिसकर
अंगुलिओं की दरारों से
बहने लगतीं हैं
???????
zhakzhor kar jaga dene waala chitra khicha hai aapane .
ज़िन्दगी को समझने की ज़द्दोज़हद में !
http://poemnstory.blogspot.com/
तुसी कुज वी कहो हिकारत फकीर जी, तुआडे आण नाल समां बण जांदा ए। एस करके तुआडी झल्लियां वी मैंन्नू चंगियां लगदीयां ने।
रचना हमेशा की तरह स्तरीय है
शब्द तो जाने आपकी क़लम की नोक पर बैठे
आपके आदेश का इंतज़ार ही करते रहते हैं.....
और आदरणीय शमा जी के लिए परम-पिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ ...
भगवान् उन्हें अपने आशीर्वाद और शक्ति से नवाजें ...अस्तु !
---मुफलिस---
मुफलिस जी की एक एक बात ,,हर लफ्ज़ से पूरा पूरा इत्तेफाक रखता हूँ,,,,,शानदार कविता,,,,
आपकी भावुकता चाँद को जाने कैसी नज़रों से देख रही है,,,,,मगर आज इस त्यौहार पर सच्चे मन से ये दुआ जरूर करता हूँ के ,,,,,,,,
अब इस चाँद पर से ग्रहण का वक्त ishwar ख़त्म करे,,,,,
सभी को होली मुबारक,,,,,,
रात आसमां में
इक सिसकता चाँद देखा
उसकी पाजेब नही बजती थी
चूड़ियाँ भी नहीं खनकती थीं
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे .....!!
अच्छी अभिव्यक्ति
आदरणीय हिंदी ब्लोगेर्स को होली की शुभकामनाएं और साथ में होली और हास्य
धन्यवाद.
- सुलभ
होली की हार्दिक शुभकामनाऍं।
hamesha ki tarah shaan daar aur jaandar ...
apne shabdkosh ka pata de dijiye ..
kahan se doondh le aati hai ye shabdo ka khazana ..
waha ji wah ..badhai ho
dard hi jismen bhara ho
har shabd sone sa khara ho
kya lagayen mol uska
wo badi anmol hain
होली मुबारक....
उसके लब सिये हुए थे .....!!
वास्तविक कारन से अनजान मै तो सिर्फ यही समझ सकता हूँ कि इसका कारण भय तो निशित रूप से न रहा होगा, और जो रहा होगा वह इनमें से कोई न कोई ही रहा होगा........ " संस्कार, सहनशीलता, आशा, विश्वाश, किसी से सहायता न मिलने का आभास, .................
बोले हुए शब्द का अर्थ तो हर कोई अपने हिसाब से निकाल लेता है, किन्तु मौन की भाषा पढ़ना सब के बस की बात नहीं, यह परिस्थितियों, भावनाओं, मनस्थिति पर निर्भर करती है. खैर......
एक अच्छी कविता प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
गहन संवेदना की मार्मिक
अभिव्यक्ति.....आपके शब्द
भावों का वहन पूरी शिद्दत से
करते हैं....यह आपकी शैलीगत
पहचान-सी बन गयी है अब.
=========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
Mitro,
Ek khuskhbari aap sab se bantna chahti hun...Patiala ke ek varisth sahityakar Amarjeet Kaunke
jo khud hindi aur punjabi ke jane mane rachnakar hain ne meri rachnaon ka panjabi me anuvaad kr sangkalan nikalne ki bat ki hai....mujhe us din ka intjar rahega.....!!
दोनों कविता अन्दर तक झकझोरने वाली है..ऐसी कवितायों को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए बधाई..
सच ही है कि...
"अपनी मर्ज़ी से कहाँ सफ़र के हम है ,रुख हवाओ क जिधर का है उधर के हम है.."
जिंदगी दर्द से बाबस्ता है ,नज्म रहनुमाई करे
सुखन से गुफ्त गू चले ,गजल आशनाई करे
चोट लग जाए तो मरहम ख्याल होता है
क्या करे कोई जो ख्यालात बे वफाई करे
सिसकता चाँद
उसके लब सिये हुए थे
या मन भर दर्द पिये हुए थे .
छूटती ज़िन्दगी
मिलन जीवन - म्रत्यु का
वाह ...
....जैसे ज़िन्दगी हाथों से
छूटती जा रही हो ......!!
bada dukjhad falsafa jhai ji aapka....
..rona nahi aaya bas yahi shukr hai!!
sundar!
लब सिले होने से पायल और चूडियों की खनक का क्या तआल्लुक /हाथ की लकीरों को कुरेदने से खून का निकलना स्वाभाविक है /
रात आसमां में
इक सिसकता चाँद देखा
मैंने घूंघट उठा कर देखा
उसके लब सिये हुए थे .....!!
बेहद सुन्दर रचना...
लब सिले होने से पायल और चूडियों की खनक का क्या तआल्लुक ...
Brijmohan ji,
Maine kavita ke aarambh me likha hai ki ye kavita shma ji ko samarpit hai...jinhone shma ji ka blog padha hai wo samajh jayege ki ek dari ,sahmi,bebas aurat ki kya sthiti ho sakti hai...uski n chudiyan khnakti hain n pazeb bajti hai ...bolne se bhi darti hai ki kahi use aur mansik pratadna n jhelni pade ...isliye apne honthon ko bhi siye rakhti hai ....aas hai ab तआल्लुक samajh gaye honge....!!
हरकीरत जी मुझे तो आपके भाव हमेशा ही प्रभावित करते हैं मैं आपकी किन-किन पंक्तियों की तारीफ करूं और किन्हें छोड़ दूँ, काश ऐसे-ऐसे बिम्ब मेरे ख़्यालों में भी आते तो मैं भी आपकी तरह वाहवाही लूटता। एक बार फिर से मनमोहक रचनाओं के लिए आपको बधाई।
हरकीरत तुम्हारी यह छोटी सी कविता "सिसकता चाँद" औरत के जिस दर्द को रेखांकित कर रही है, उसे बड़ी बड़ी रचनाएं भी ठीक से व्यक्त नहीं कर पातीं। ब्रज मोहन जी को आपने सही उत्तर दिया है। यूँ तो तुम्हारी हर कविता में एक औरत के दर्द की एक गहरी अभिव्यक्ति मिलती है(तुम्हारे पहले कविता संग्रह का नामे भी "इक दर्द" है) पर यह छोटी सी कविता बहुत कुछ कह जाती है।
Stri ke jeevan ki ghutan,pida aut santras ka marmik chitran kiya hai aapne.Badhai.
bhaai jaan ,
taalluk to hotaaa hai,,,haan koi is taalluk ko ,,,,
adaalat me saaabit naa kar paaye shaaayad,,,,,
aapki samajh ke baaare me filhaal koi raay nahi doongaa,,,
shubh raatri,,,,,,,,,
आप मेरे ब्लॉग पर आए ।
धन्यवाद
अभी अभी बज्म में दाखिल हुआ हूँ
कब तक दिल-बस्तगी की राह होगी
मुझे मालूम नही इस शहर का मिजाज
उम्मीद है डगर शज़र पनाह होगी
कुछ और रचनाओं पर आपकी टिप्पणईया मिलेगी तो अच्छा लगेगा
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