मित्रो मन भारी है हमने कई जांबाजों को खोया है। २६ नवंबर, २००८ एक न भुला सकने वाला दिन...जब
फिर एक बार देश का दिल जख्मी हुआ,मुंबई के ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे, एन काउंटर स्पेलिस्ट
विजय सालेस्कर तथा अशोक आम्टे शहीद हुए और भी न जाने कितने जांबाजों ने जा गवांई...मेरा शत-शत नमन है उन जांबाजों को उनके परिवार के दर्द में आइए हम सब शामिल हों...
आज मोहब्बत का 'ताज' भी गम़जा़या होगा....
अब न जाने कितना गम़ उन्हें पीना होगा
हर पल आँसुओं में डूब कर जीना होगा
दोस्तो किसी का यार न बिछडे़ कभी
आज न जाने किस-किस का घर सूना होगा
अब न सजेंगी मांगे उनकी सिन्दूरों से
न भाल पे उनके कुमकुम लाल होगा
न दीप जलेंगे दीवाली पे उनके घर
न होली पे अब रंग - गुलाल होगा
खोला होगा कैसे परिणय का बंधन
कैसे स्नेह से दिया कंगन उतारा होगा
चढा़कर फूल अपने रहनुमा के चरणों पर
कैसे आँसुओं को घुट-घुट कर पीया होगा
गुजारी होंगी शामें जिन हंसी गुलजारों में
उस सबा ने भी दर्द का गीत गाया होगा
बात-बेबात जिक्र जो उनका आया होगा
आँखों में इक दर्द सा सिमट आया होगा
रातों को हुई होगी जो सन्नाटे से दहशत
तड़प के बेसाख्ता उन्हें पुकारा होगा
ढूँढती रहेंगी हकी़र ताउम्र उन्हें निगाहें
आज मोहब्बत का 'ताज' भी गम़जा़या होगा
Tuesday, December 2, 2008
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16 comments:
hila kar rakh deti hai aapki ye rachna......
har jakhm par hai aaj honsla dete in shbdon ka marham,,
jaag utha aaj phir se wo dukhi mann...
गहराईयों तक छूती-उतराती रचना
क्रोध...इस अक्रोश को कुछ तो जरिया मिले
इस देश के शहीदों को नमन .बस ये शाहदत बेकार न जाये
...dehshat bhare unn lamhoN ke baad hr mn mei dukh hai. Aapki samvednaaeiN kavita ko prabhaavshali bnane mei madad.gaar saabit hui haiN. Aapke iss nek jazbe ke liye saadhuvaad.
---MUFLIS---
ये कड़े नश्तर अबस
दिल पे सहे जाते नहीं,
या तू कहना छोड़ दे
या मैं ही सुनना छोड़ दूँ..||
Khola hoga kaise parinaye ka bandhan...
kaise sneh se diya kangan utara hoga...
marmik....dilon ko choo jati hai aapki ye kavita ....
मार्मिक रचना.
आतंकवादियों से --
क्या फायदा हुआ तुम्हें
किसी का घर सुना करके
किसी के मांग का सिंदूर उतार के
किसी को अनाथ करके
किसी को यों ही तड़पा के
किसी को बेमौत मार के
क्या फायदा हुआ तुम्हें सबों को दर्द देके
है तुम्हारे पास कोई जवाब
नहीं है क्योंकि तुम ख़ुद बेदर्द हो
क्या जानोगे दुसरे के दर्द
पर याद रखना परमात्मा के दरबार में
तुम्हें तुम्हारे हर कर्म का जवाब देना होगा
हर कर्म का जवाब देना होगा
महेश
Dear Harkirat,
आपकी ये कविता बहुत ही भावपूर्ण है और specially ये वाली lines
रातों को हुई होगी जो सन्नाटे से दहशत
तड़प के बेसाख्ता उन्हें पुकारा होगा
ढूँढती रहेंगी हकी़र ताउम्र उन्हें निगाहें
आज मोहब्बत का 'ताज' भी गम़जा़या होगा
सबसे बड़ी बात ये है की ,जिन परिवारों पर ये गम आया है , उनके दुःख की हम लोग कल्पना भी नही कर सकते है .. हमारी इस तरह की संवेदनशील कवितायें ही हमारी श्रदांजलि है उन शहीदों को ....
मेरी तो , बस इन परिवारों के बच्चो के बारें में सोचकर ही आँखे नम हो जाती है ...
ईश्वर इन परिवारों को सबसे बड़ी ताक़त दे....
मैं बस इश्वर से इनके लिए प्रार्थना करता हूँ ...
और दिल तक पहुंचनी वाली आपकी कविता को सलाम करता हूँ....
विजय
बहुत सुंदर यथार्थ को उजागर करती रचना है। किसी के बताने से यहाँ पहुँचा हूँ। क्या आप का चिट्ठा ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत पर नहीं है?
अब न सजेंगी मांगे उनकी सिन्दूरों से
न भाल पे उनके कुमकुम लाल होगा
न दीप जलेंगे दीवाली पे उनके घर
न होली पे अब रंग - गुलाल हो
आपने अच्छा लिखा दर-हकीकत...इस पर मेरी भेंट भी स्वीकार करें....
रात लहू से लाल हुई होगी...रात चाँद भी रोया होगा.....जाने कितना जी भर-भर के आसमा ने सितारों को खोया होगा
"वजूद तलाशती औरत"....हंस के दिसंबर अंक में छपी ये कविता आपकी ही है ना?
कांच की दीवारों में कैद
सुनहरी रूपहली मछली
आज भी कटघरे में खड़ी है
न्याय के लिये
आज के कवियों की कविता की तरह....
सलाम बजाता हूं मैम...और ढ़ेरों बधाई एक सुंदर रचना के लिये हंस के पन्नों पर जगह पाने के लिये भी....
जी गौतम जीं मेरी ही है मुझे भी हिन्द- युग्ग में दिये गए मेरे परिचय से ही पता चला...शुक्रिया।
भावुक कर गई यह रचना।
गुजारी होंगी शामें जिन हंसी गुलजारों में
उस सबा ने भी दर्द का गीत गाया होगा
बात-बेबात जिक्र जो उनका आया होगा
आँखों में इक दर्द सा सिमट आया होगा
काश कि ऐसे मंजर दुबारा ना आएं। और इन लोगों का बलिदान बेकार ना जाएं।
हरकीरत जी,
अच्छा लिखती हैं आप लिखना जारी रहे। मेरी शुभकामनाएं
Harkirat,
Mere blogpe tumhara comment padha aur chali aayi...bohot kuchh padha ...tippanee yahan de rahee hun...in shaheedonko qareebse jaana tha, lekin dard sirf is baatka nahi, dard is baatka hai ki inki jaane bewajah gayeen...in baatonka khulasa mai yahanpe to nahi kar sakti...shayd meree documentary apneaap kayi baaten apneaap sachko zaahir kar degi...tumhare manki anukampa dekh aankh bhar aayi...
Aur tumari wo kavita jo "shama" ka zikr kartee hai, laga mano mujhe saamne rakh likhi gayee ho !
Harkirat, ek aur baat....jo sach mai zaahir kar rahi hun, usme ek khaas maqsad hai...kiseeke prati anukampa manme rakh, ek tatasth bhaavse likhneki koshish kar rahi hun...himmat to mujhe mere pathak doston ne dilaayi....waise ab dardne itnee haden paar kar lee hain, ki na ruswaayiyonka dar hai naa, aur kisee cheezka...phibhi sochke kaamp to uthati hun,ki sambandhit wyaktike aage gar sach ujaagar ho gaya to mera kya hashr hoga...! Sirf apna dar nahi par mujhse jude har insaanke liye darti hun...!Aur main harwaqt tumhare liye haazir hun...yaad rakhna...!Pukaarke to dekhnaa....
"आज मोहब्बत का 'ताज' भी गम़जा़या होगा" के माध्यम से दहशतगर्दो के शिकार हुए लोगो के परिवारजनों के वेदना की एक बेहद मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत की है आपने | Your pen is too powerful, maintain it in future also.
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