काला गुलाब ....
औरत ने जब भी
मुहब्बत के गीत लिखे
काले गुलाब खिल उठे हैं उसकी देह पर
रात ज़िस्म के सफ़हों पर लिख देती है
उसके कदमों की दहलीज़
बेशक़ वह किसी ईमारत पर खड़ी होकर
लिखती रहे दर्द भरे नग़में
पर उसके ख़त कभी तर्जुमा नहीं होते
इससे पहले कि होंठों पर क़ोई शोख़ हर्फ़ उतरे
फतवे पढ़ दिये जाते हैं उसकी ज़ुबाँ के
कभी किसी काले गुलाब को
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी कोई उसके संग हाथों में लेकर गौर से देखना
मुहब्बत की डोर …
हीर ……
19 comments:
वाह ।
कभी किसी काले गुलाब को
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी कोई उसके संग
मुहब्बत की डोर …
............... रूहानी धागों का सच
कभी किसी काले गुलाब को
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी कोई उसके संग
मुहब्बत की डोर …
............... रूहानी धागों का सच
अब समझ में आया कि गुलाब काला क्यों होता है... दर्द की कालिख उसे काला बना देता है और डर उसे ज़र्द (ज़र्द गुलाब के सन्दर्भ में)..!
कभी किसी काले गुलाब को
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी कोई उसके संग
मुहब्बत की डोर
। बहुत सही यथार्थ प्रस्तुति
… काला गुलाब ही तो कहेंगे जिसे देखना कोई नहीं चाहता। .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन यक लोकतंत्र है, वोट हमारा मंत्र है... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
औरत खुद एक काला ग़ुलाब है..जिसके दर्द की खुशबू दूर देश में रहती कोई दूसरी औरत ही महसूस कर सकती है...बार बार पढ़ रही हूँ और अपने आस पास कितने ही ऐसे फूलों को इसी रूप में देखती हूँ ...
साधू साधू साधू साधू साधू
साधू साधू साधू साधू साधू
गज़ब संवेदना...
बहुत सुंदर
सोज़ की इंतेहा है आपकी शायरी में
औरत ने जब भी मुहब्बत के गीत लिखे काले गुलाब खिल उठे हैं उसकी देह पर ।
बहुत ही सुंदर।
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी कोई उसके संग
मुहब्बत की डोर
........सुंदर प्रस्तुति
हो सकता है कि जल्द ही काले गुलाब उगाना बंद करने के फ़तवे जारी हो जाएँ. तो क्या औरत मुहब्बत की खुश्बू फैलाना बंद कर देगी? मुझे नही लगता.
बहुत खूबसूरत नज़्म !
औरत ने जब भी
मुहब्बत के गीत लिखे
काले गुलाब खिल उठे
लिखती रहे दर्द भरे नग़में
vry touchy ...kya khub kaha apne dilko touch kr gye ... m fan of u ..<3
bahut dino baad rukh kiya apne blog ki taraf... to bas aadatan aapka khayaal aa gaya. "Kala Gulaab" padh kar sihran si daud gayee... kuch kehna chahti hoon...
inhi kaale gulaabon mein dafn hai ik ehsaas
shayad yeh kabhi surkh ho jaayein
mere rangeen sapno se behissab...
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