अव्वल अल्ला नूर उपाया ,कुदरत के सब बंदे.
एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे ...
जी हाँ सारे बन्दे उसी रब्ब की ,उसी खुदा की , उसी एक ईश्वर की देन हैं . ईश्वर को तो हमने बाँट दिया है अलग अलग धर्मों में .पर सन्देश सभी का एक ही है 'प्रेम का' ...आज के शुभ अवसर पर हमारा मकसद भी एक ही होना चाहिए ....''प्रेम बाँटना ...और प्रेम से रहना ''
ईद का मतलब ही होता है खुशी, हर्ष, उल्लास। फितर या फितरा एक तरह के दान को कहते हैं। इस तरह ईद-उल-फितर का मतलब है दान से मिलने वाली खुशी। ईद सही माने में एक प्रकार का इनाम है, पुरस्कार है जो अल्लाह की ओर से उन सभी लोगों के लिए है जो एक महीने का व्रत रखते हैं और प्रात: से संध्या तक बगैर अन्न और पानी ग्रहण किए अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं। इस महीने की इबादत भी कुछ अलग और कठिन होती है, जैसे कि खूब सुबह यानी पौ फटने से भी काफी पहले उठकर समय पूर्व सेहरी खाना और अपनी प्रात: की नींद की आहुति देना। रात्रि में विशेष रूप से नमाज तरावी पढ़ना। कुरान का अतिरिक्त पठन और पाठन करना। अन्त के दिनों में शब-ए-कदर को विशेष नमाज पढ़ना। इतनी कठिन इबादत के पश्चात जो खुशी मनाने का एक दिन दिया जाता है- वह ईद है।
ईद या ईद-उल-फितर मीठी ईद को कहते हैं। इस दिन त्योहार की खुशी दूध और सूखे मेवों से बनी मीठी सेवइयों के साथ मनाते हैं। ईद-उल-फितर पूरी तरह से निरामिष त्यौहार है
यह ईद जो ईद-उल-फितर के नाम से जानी
जाती है- इसे मनाने से पहले फितरा और जकात का निकालना अनिवार्य होता है।
फितरा अनाथ, मालूम और गरीबों के लिए होती है, जिससे वे लोग भी अपनी खुशियों का आनन्द ले सकें तथा अपना जीवन सुखी बना सकें। फितरे और जकात की अदायगी के बगैर रमजान अधूरा माना जाता है।
इस्लाम में कहा गया है कि सबसे पहले अपने पड़ोस में देखो कि कौन जरूरतमंद है, फिर मोहल्ले में, फिर रिश्तेदारों में, फिर अपने शहर में, उसके बाद किसी और की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करो। फितरा प्रत्येक उन रोजेदारों पर अनिवार्य है .
जकात दान करना होता है, बशर्ते दानकर्ता कर्जदार न हो, अर्थात सम्पन्न हो। इस्लाम में दान पर बल दिया गया है। दान की राशि निर्धन, अपंग, विकलांग अथवा शारीरिक रूप से चैलेंजों को देना अधिक अच्छा माना जाता है। सर्वप्रथम अपने ऐसे पड़ोस व सगे संबंधियों को देना अच्छा और उचित माना गया है, जो जरूरतमंद और मजबूर हैं। ईद के दिन लोग सुबह-सुबह उठकर स्नानादि करके नमाज पढ़ने जाते हैं. जाते समय सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना शुभ माना जाता है. सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी माना जाता है. नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी रिवाज है. नमाज पढ़ने से पहले गरीबों में दान या जकात बांटा जाता है.
नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं. ईद पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे खिलाकर लोग अपने रिश्तों की कड़वाहट को खत्म करते हैं. इस दिन “ईदी” देने का भी रिवाज है. हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रकम को ईदी कहते हैं. जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
तो आइये आज के दिन हम सब गले मिल के एक हो जायें, अपने गिले शिकवे दुश्मनियाँ भुला मोहब्बत का धर्म अपनाएं औए एक वतन हो जायें ...........
जब ....
तेरी मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
फितरा अनाथ, मालूम और गरीबों के लिए होती है, जिससे वे लोग भी अपनी खुशियों का आनन्द ले सकें तथा अपना जीवन सुखी बना सकें। फितरे और जकात की अदायगी के बगैर रमजान अधूरा माना जाता है।
इस्लाम में कहा गया है कि सबसे पहले अपने पड़ोस में देखो कि कौन जरूरतमंद है, फिर मोहल्ले में, फिर रिश्तेदारों में, फिर अपने शहर में, उसके बाद किसी और की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करो। फितरा प्रत्येक उन रोजेदारों पर अनिवार्य है .
जकात दान करना होता है, बशर्ते दानकर्ता कर्जदार न हो, अर्थात सम्पन्न हो। इस्लाम में दान पर बल दिया गया है। दान की राशि निर्धन, अपंग, विकलांग अथवा शारीरिक रूप से चैलेंजों को देना अधिक अच्छा माना जाता है। सर्वप्रथम अपने ऐसे पड़ोस व सगे संबंधियों को देना अच्छा और उचित माना गया है, जो जरूरतमंद और मजबूर हैं। ईद के दिन लोग सुबह-सुबह उठकर स्नानादि करके नमाज पढ़ने जाते हैं. जाते समय सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना शुभ माना जाता है. सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी माना जाता है. नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी रिवाज है. नमाज पढ़ने से पहले गरीबों में दान या जकात बांटा जाता है.
नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं. ईद पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे खिलाकर लोग अपने रिश्तों की कड़वाहट को खत्म करते हैं. इस दिन “ईदी” देने का भी रिवाज है. हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रकम को ईदी कहते हैं. जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
तो आइये आज के दिन हम सब गले मिल के एक हो जायें, अपने गिले शिकवे दुश्मनियाँ भुला मोहब्बत का धर्म अपनाएं औए एक वतन हो जायें ...........
तेरी मेरी ईद .....
जब ....
तेरी मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
उतर आईं झोली में
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
(ये पोस्ट मैं
ईद से पहले ही लिख चुकी थी ...ईद पर यहाँ के समाचार पत्रों में प्रकाशित भी
हुई पर व्यस्तता के कारण मैं पोस्ट को ब्लॉग पर डाल ही न पाई .....तो देर
से ही सही ईद मुबारक ......)
39 comments:
ईद का मतलब विस्तार से समझाती लाजवाब पोस्ट ... आपको ईद की बधाई ...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
.....तो देर से ही सही ईद मुबारक ......)
ईद के बारे में इतनी गहरी जानकारी...कमाल है..
देर से ही सही ईद मुबारक .... :)
नमस्ते !
ईद का अर्थ इतनी सरलतासे और रोचकतासे आपने लिखा है..आपका अभिनन्दन ! हमारे देशमें हरएक त्योहार का बुनियादी अर्थ होता है,कुछ सीख होती है...आशा करता हूं इसी तरह आपसे हमें प्रसंगोपात् विविध त्योहारोंकी जानकारी मिले...
धनंजय, drjog22@gmail.com
बेंगलोर
Happy Eid
Eid ke baare me badhia jankari mili...kavita bhi achhi hai... badhai...
विस्तार से समझाती लाजवाब पोस्ट ... आपको ईद की बधाई ..
अव्वल अल्ला नूर उपाया ,कुदरत के सब बंदे.
एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे...इन पंक्तियों पर ठहरा रहा फिर आपका लिखा पढ़ा , कविता का रस लिया .आभार
जब ....
मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
उतर आईं झोली में
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
वाह उम्दा ख्याल
हमेशा की तरह एक बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिये बधाई स्वीकार करेन
जब ....
मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
उतर आईं झोली में
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई ..... ईद मुबारक
बहुत सुंदर प्रस्तुति
आपकी पोस्ट से जानकारी
देने वाली है।
..............
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
वाह, यह हुई न कोई बात ! :-)
ऐसी मीठी मुबारकबाद तो पूरे साल कबूल है...
आपको भी मिठास मुबारक हो हीर जी.
सादर
अनु
बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख .
ईद हो या होली दिवाली -- अर्थ सबका एक ही है .
काश --हर रोज ईद हो !
عيد مبارك
हृदयस्पर्शी उत्कृष्ट
--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Blogger में Custom Error Page बनायें
2. बन गयी झील आइने जैसी
3. गुलाबी कोंपलें
आपको ईद की बहुत-बहुत बधाई। आपकी पोस्ट में आपके सोच की सुंदरता और ईश्वर को लेकर आपका चिंतन स्वागत योग्य और काबिल-ए-गौर है। आलेख के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
धर्म और इमान के ठेकेदारों को अगर ईद और दिवाली का मतलब समझ में आ जाये ......
तो झगडा किस बात का ?????
आप ने अपना काम किया ,,,ईद मुबारक हो... हम सब को .... जो आपने समझाई !
जब ....
मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
उतर आईं झोली में
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
waah!! Eid mubarak ho Harkeerat Ji
बहुत सुंदर, सार्थक पोस्ट ...शुभकामनायें
AAPKO BHI EID KI MUBARAKBAD .
जब ....
मुहब्बत का
चाँद चढ़ा .....
कई सारी नज्में
उतर आईं झोली में
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....
beautiful!!!!!
aap ko email bheji haen aap sae baat karna chahti hun urgent haen
sadar
rachna
ईद के बारे में इतनी अच्छी जानकारी....बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
.....तो देर से ही सही ईद मुबारक ......)
ईद पर सुंदर प्रस्तुति ...और नज़्म तो बेमिसाल
शुक्रिया.....देर की कोई बात नहीं अभी ईद खतम नहीं हुई.....आपको भी बहुत बहुत ईद मुबारक।
हीर जी,
मेरा भी देर से ही जवाब: ईद मुबारक!
ईद का सही मतलब ब्यान करती पोस्ट!
आशीष ढ़पोरशंख
--
द टूरिस्ट!!!
हरकीरत जी,
आपके विचारों से समता लिये मेरी भी एक रचना है... सुनाकर ही मानूँगा.
भाइयो,
मिलकर मनाओ ईद
दिल में न रह जाये
कसक ... औ' फिकर.
ग़र गरीबी में दबा है कोई बन्दा
बाँट फितरा दिखा उसको भी ... ज़िगर.
पर ना ज़िंदा जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिंदे ... बेफिकर.
दर और दरिया
मान सबका मुहब्बत का
सब बराबर-सब बराबर.
ज़र और जोरू
है सलामत खुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र.
सरहद हिंद पर
मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को
नेस्तनाबुद ... औ' सिफ़र.
पर ना ज़िंदा जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिंदे ... बेफिकर.
क्या बात है प्रतुल जी ...
पोस्ट लिखते वक़्त यही सोच रही थी कि क्या ही अच्छा होता अगर त्योहारों में जानवरों की हत्या न होती ....
बढ़िया पोस्ट है हरकीरत जी.
बहुत बढिया ...लेख और कविता दोनों ही
सुन्दर प्रस्तुति
तेरे ख्यालों की भी
और मेरे ख्यालों की भी
ईद हो गई .....isse badhkar aur kya chahiye......
ਮੁਹੱਬਤ ਦਾ ਚੰਦ ਮੁਬਾਰਕ!
ਈਦ ਮੁਬਾਰਕ!
ਉੜਤਾ ਪੰਛੀ
--
ਉਡਾਰੀ ਦੋਸਤੀ ਦੀ!!!
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
If all the people think of one God and see Him in everyone, how nice it would be! Festivals come to remind us that we should live happily and let live others. Your post conveys a high message.
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤
♥आदरणीया हरकीरत हीर जी♥
सादर अभिवादन !
कल आपका जन्मदिन है ...
मैं यहां नहीं होउंगा इसलिए एक दिन पहले ही
आपके जन्मदिवस की
अग्रिम बधाइयां शुभकामनाएं स्वीकार कीजिए !
*जन्मदिन की हार्दिक बधाई !*
**हार्दिक शुभकामनाएं !**
***मंगलकामनाएं !***
राजेन्द्र स्वर्णकार
¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
कैसी खुशी ले के आया चांद ।
आप की ईद भी खुशियों भरी रही होगी ऐसी आशा है ।
ईद पर अच्छा लेख ।
Post a Comment