http://www.youtube.com/watch?v=LP0rO-BdCQM&feature=player_detailpage —
यहाँ देखें इस घटना से जुड़ा विडिओ ......
गुवाहाटी ने लगाई अपने चेहरे पर एक और कालिख .....9 जुलाई हमारे घर से करीब एक किलोमीटर दूर जी.एस.रोड में ....बीच सड़क पर .... इक लड़की जी इज्ज़त 20 लड़कों द्वारा तार-तार कर दी जाती है (देखिये ऊपर दिए गए लिंक में ) और लोग किनारे खड़े तमाशा देखते रहे ...कहाँ हैं वो लड़कियों को हक़ दिलाने की बातें करने वाले ..? .कहाँ हैं ..''लड़कियों को बचाव'' की दुहाई देने वाले .....? इतने अधिकारों के बाद भी कितनी सुरक्षित हो पायीं हैं लडकियां ....? है कोई जवाब आपके पास .....? यह तस्वीर देख मैं तो शर्म से पानी-पानी हूँ .....आपका क्या कहना है ......
अय औरत अब उतर आओ सड़कों पर .......
(१)
अय औरत ....
वक़्त आ गया है
उतार दो ये शर्मो-ह्या का लिबास
और उतर आओ सड़कों पर
अकेली नहीं हो तुम
देखो संग हैं तुम्हारे
आज हजारों हाथ ...
बस एक बार....
एक बार तुम ऊँची तो करो
हक़ की खातिर
अपनी आवाज़ ......!
(२)
लो नोच लो
मेरा ज़िस्म
उतार दो मेरे कपड़े ...
कर दो नंगा सरे- बाज़ार
मैं वही औरत हूँ
जिसने तुझे जन्म दिया ......!!
(३)
इज्जत के नेजे पर
दाग दिया जाता है कभी ....
कभी किसी कोठे से
निकलती है चीख मेरी
कभी बीच सड़क पर
मसल दिए जाते हैं मेरे अरमान
तुम पुरुष हो ...?
या हो हैवान ....?
(४)
देख लिया ...
नोचकर मेरा ज़िस्म ....?
अब तुम देखना
मेरे ज़िस्म से निकलती आग
जो भस्म कर देगी
तुम्हारी अँगुलियों से
उठती हर इक भूख को
और भूखे रह जाओगे तुम
किसी बंद कोठरी में
बरसों तलक
सलाखों के पीछे ....
(५)
आज़ादी ....
कहाँ हो तुम ....?
बस एक दिन फहराने
आ जाती हो तिरंगा ...?
देख.यहाँ तेरी जननी को
कैसे बीच चौराहे पर
कर दिया जाता है नंगा ....!!
(६)
मैं फिर ..
तारीख नहीं बनना चाहती
जो ज़िन्दगी की दास्ताँ लिखती रहूँ उम्र भर
या जन्म होते ही
फिर कोई माँ दबा दे मेरा गला
बेटी..बेटी..बेटी....
अय बेटी की मांग रखने वालो
मुझे न्याय दो ....!
(७)
नहीं ...नहीं ....
अब नहीं डालूंगी मैं गले में फंदा ...
और न रोऊंगी अब जार-जार
अब तो दिखलानी होगी तुझको
इस ज़िस्म से उठती धार .....
(8)
बेटियाँ बचाओ ...
मत मारो इन्हें कोख में
बेटी लक्ष्मी है
बेटी देवी है ...
बेटी दुर्गा है ...
बेटी माँ है ....
अय दरिंदो ...!
आज तुमने ..
ये साबित के दिया ....!!
(9)
आँखों में ...
आँसू नहीं अब अंगार हैं ....
होंठों में गिड़गिड़ाहट नहीं
अब सवाल हैं ....
दुःख की भट्टी में
जलती-बुझती ये औरत
मुआवजा चाहती है
सदियों से कैद रही
अपनी जुबान का ......!!
(10)
कल इक और देवी के
उतार दिए गए कपड़े
बीच सड़क पर किया गया
उसका उपहास ....
क्योंकि वह ....
मिटटी-गारे की नहीं
हाड़-मांस की जीती-जागती
औरत थी .....
'देवी' तो मिटटी की होती है ....
(11)
लो मैंने....
उतार दिया है अपना लिबास
खड़ी हूँ बिलकुल निर्वस्त्र ..
चखना चाहते हो इस जिस्म का स्वाद ..?
तो चख लो.....
मगर ठहरो.....!
मेरा जिस्म चाटने से
अगर मिट सकती है
तुम्हारे पेट की भी आग
तो चाट लो मेरा जिस्म ....
क्योंकि ...
फिर ये तुम्हारे हाथ
नहीं रह पायेंगे इस काबिल
कि बुझा सकें
अपने पेट की आग .....!!
48 comments:
दर्द को समेटे हुये बहुत ही प्रभावशाली रचना, जो घटना हुई वो अत्यंत शर्मनाक और दरंदगी की हदों के पार थी. सवाल यह है कि क्या हम इतने असंवेदनशील हो गये हैं कि आज रोज चारों तरफ़ ऐसी घटनाएं घट रही हैं और कुछ दिन की हाय हाय के बाद हम चुप बैठ जाते हैं? क्या बीतती होगी जो इनका शिकार हुआ है? इसके लिये कौन दोषी है? हम या हमारा नेतृत्व? समय आगया है कि इस पर जन जागृति पैदा की जाये.
रामराम
जो भी हुआ वो अत्यंत शर्मनाक था .....
आँसू हैं आँखों में ...हृदय की धड़कन बढ़ गयी है ...आत्मा झकझोर रही है आपकी रचना ...कुछ तो होना ही चाहिये इन दरिंदों के साथ ...!!
आजकल घर से बाहर निकलते ही लोगों को जिस तरह से बर्ताव करते देखने को मिलता है , उसे देखकर यही लगता है -- यही हैं हमारे प्यारे भारतवासी जिन पर हमें गर्व है ! अब तो शर्म आती है इन्हें अपने देशवासी कहते हुए .
इन लोगों को सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए .
शर्मनाक हालातों पर कटाक्ष करती प्रभावशाली क्षणिकाएं .
सारी मर्यादायें तार तार कर रख दी हैं..
चेतावनी देती क्षणिकाएं , अब दिलों में आग भभकनी चाहिए ...
सभी आग की तरह जलती हुई पंक्तियाँ !इन पंक्तियों को दोहराते हुये बहुत बड़ा विरोध जुलुस निकालना चाहिये.
शर्मनाक घटना की तेवरदार प्रतिक्रिया...समाज को इसी आग की जरूरत है...मुझे पता चला है कि किसी इलेक्ट्रोनिक चैनल के रिपोर्टर ने सनसनीखेज खबर बनाने के लिए इस घटना के लिए दोषी लड़कों को प्रेरित किया था. यदि यह सच है तो सनसनी पैदा करने वालों की भी खबर लेनी चाहिए.
जब दिल बहुत कुछ कहना कहता है
जुबान साथ नहीं देती...
मुखरित मौन के साथ..
सादर.
द्रवित है मन .....हद हो गयी इंसानियत की ......क्या कहूँ ..समझ नहीं आ रहा है ...!
आप से उम्मीद थी ,इस दर्द से भीगी पोस्ट की|
कब जागेंगे हम .बचपन से सुनते आयें हैं ये !!!
ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ ,ये कूचे,ये गलियां ,ये मंजर दिखाओ .....
जिन्हें नाज़ है हिंद पर , उनको लाओ ????
साहिर साहब ने फिल्म "प्यासा" में ये अपील
करी थी ....
हमसबको
शुभकामनायें!
दरिंदगी को लज्जित करती ये घटना , इंसानियत के माथे पार बद नुमा दाग .. सः में सड़क पर उतरने का समय है , वहशीपन को जड़ से उखाड़ने का समय है .
बढ़िया शब्दचित्र!
अत्यंत शर्मनाक कृत्य ....ये तो इंसान हैं ही नहीं ....दिल दहल गया ....काँप गया ...
इन दरिंदों को छोड़ना ही नहीं चहिये ...!!
आँखों में ...
आँसू नहीं अब अंगार हैं
दुःख की भट्टी में
जलती-बुझती ये औरत
मुआवजा माँगती है
सदियों से कैद रही
अपनी आवाज़ का ......!!
बहुत खूब,
कई सवाल लिए दिल को अंदर तक झकझोरती कविता
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद !!
क्षणिकाये दिल को छू गयी और विचलित भी कर गयीं..........
जाने क्यूँ लाचारी सी महसूस हो रही है...शायद स्त्री होने की सजा है ये भी ???
सादर
अनु
हैवानियत जब नाचती है
सड़कों पर बेआवाज
कहीं से आवाज उठती है
इसी तरह उठती ही है ।
इंसानियत को शर्मसार करती हुई ऐसी घटना जिस के लिये किसी न किसी तरह से हम सब ज़िम्मेदार हैं
इस विषय पर लिखी गई बेहतरीन क्षणिकाएं
आप के संवेदनशील क़लम ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है
दुआ है कि आप को आइन्दा किसी ऐसे विषय पर न लिखना पड़े ,,
बेहद शर्मनाक घटना. अफ्सोसो लोग घटना की फिल्म तो शूट करते रहे मगर कोई सामने नहीं आया और न ही किसी ने पुलिस को खबर करने की कोशिश की. संवेदनाएं मरती जा रही है.......
.
सोंचने को मजबूर करती हुई क्षनिकाए.
आज़ादी .....
कहाँ हो तुम .....?
रात के अँधेरे में तो
छुपी रहती थी किसी कोठे पे
आज दिन के उजाले में ही
उतार गई अपना लिबास .....?
हर पंक्ति विचारणीय है..... ऐसे बर्बर कृत्य हमारी सामाजिक सोच और संस्कारों की पोल खोलते हैं.....
दिल को अंदर तक झकझोरती कविता
meri post par aapka swagat hai
ध्रतराष्ट्र सा अंधापन हमें विरासत में मिला है ........>>> संजय कुमार
http://sanjaykuamr.blogspot.in/2012/07/blog-post_14.html
माँ के लिए लाडला ,और समाज के लिए
घिनोना रूप ...छी:!
सत्य कहती सुन्दर क्षणिकायें।
सारे दर्द समेटे हैं भीतर ये क्षणिकाएं......कानून का मजबूत होना लाज़मी है अब मुल्क में....ऐसे कुत्तों को फांसी की सजा होनी चाहिए ।
झकझोर रही हैं आपकी क्षणिकाएं,विचलित कर रही हैं..समय है अब आग लगनी ही चाहिए.
kya ab jaise ko taisa wala jmana aana chahiye ? ek bar socho tb kya nzara hoga our tb ye khbren surkhiyon me hongi to kya prtikriyayen hongi .
kya itni tab hai is smaj me ? kio to sira hasil hona chahiye aakhir brdasht ki chouhaddi ko todne ke bad sirf our sirf zlzla hi aata hai . ab ya to smaj chete ya fir aise zlzle ke liye taiyyar rhe .
मन को झकझोरती हुई प्रत्येक क्षणिका ... बेहद दुखद एवं घृणित कृत्य ... मन विचलित हो जाता है ऐसी घटनाओं से ...
ज्वलंत समस्या को उजागर कराती पोस्ट
काम गंदे सोंच घटिया
कृत्य सब शैतान के ,
क्या बनाया ,सोंच के
इंसान को भगवान् ने
फिर भी चेहरे पर कोई, आती नहीं शर्मिंदगी !
क्योंकि अपने आपको, हम मानते इंसान हैं !
कहने के लिए शब्द नहीं ,बेहद शर्मनाक
बस दर्द ही दर्द ...कहने और समझने के लिए शब्द भी हैं कम
मुझे इस बात की काफी खुशी है कि इंसानियत को शर्मशार करने वाली इस घटना ने आज के समाज के समक्ष एक प्रश्न खड़ा कर दिया है । आपका यह पोस्ट हम सबको कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। धन्यवाद।
लोग आहत तो होते हैं , परन्तु उद्वेलित कब होंगे | कब रुकेंगी ऐसी घटनाएं , शायद कभी नहीं |
एक शर्मसार कर देने वाली घटना जानवर हो गए थे सब के सब ..घर परिवार संस्कृति लिहाज कभी मिली ही नहीं परिवार में लगता है ...सच कहा आप ने सड़कों पर उतरना होगा सब को एक जुट हो जैसे ही इस तरह की घटनाएँ हो वहां तुरंत एक छाप छोड़ देने वाली घटना को अंजाम देना होगा कानून बड़ा लचीला है लोग फायदा उठा छूट जाते है इस से ही हौंसले बुलंद पता नहीं हमारे जज की आँखों में ये दृश्य दिखे की नहीं ...कड़ी से कड़ी सजा हो ....
भ्रमर ५
शर्मनाक कृत्य ....मन को झकझोरती क्षणिका
भ्रमर जी , शुक्रिया कड़े शब्दों में विरोध जताने के लिए ....
वर्ना अधिकतर लोग तो तेवर देख चुपचाप खिसक गए ....
जो महिलाओं के समान हक़ की बात करते हैं , न्याय कि बात करते हैं उन्हें बता दूँ कि हम एक गैर सरकारी संस्था भी चलते हैं जहां महिलाओं से जुड़ी हर प्रकार की समस्या का समाधान किया जाता है ...आपको हैरानी होगी यहाँ जब महिलाएं आकर अपनी अपनी आप बीती सुनती हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं ....
लगता ही नहीं कि महिलाओं को कोई अधिकार दिए गए हैं ....आज ही बिहार से एक लड़की का रोते रोते फोन आया कि उसकी माँ के अन्य लोगों से नाजायज ताल्लुकात हैं और वही लोग उसके साथ भी रेप करते हैं ...आज वो पच्चीस साल की है इस धंधे से निकलना चाहती है पर उसके पास कोई साधन नहीं है ...बड़ा दुःख होता है ये देख कर ...!
आँखों में ...
आँसू नहीं अब अंगार हैं ....
होंठों में गिड़गिड़ाहट नहीं
अब सवाल हैं ....
दुःख की भट्टी में
जलती-बुझती ये औरत
मुआवजा चाहती है
सदियों से कैद रही
अपनी जुबान का ......!!
आमीन ।
औरत की त्रासदी की सुन्दर अभिव्यक्ति
आपकी लेखनी पूरे समाज की आवाज़ है |
आज़ादी ....
कहाँ हो तुम ....?
बस एक दिन फहराने
आ जाती हो तिरंगा ...?
देख.यहाँ तेरी जननी को
कैसे बीच चौराहे पर
कर दिया जाता है नंगा ....!!........ एक तिरंगा खरीदकर गाडी में लगा देने से आजादी . तुम तो बस वो जल्लाद हो जो हिन्दुस्तान को रेत रहा है
लेखकीय धर्म को बखूबी निभाया है आपने। आपकी लेखनी की धार और तेज हो। ईश्वर आपको और शक्ति दे।
(5) आजादी कहाँ हो तुम.....
....गज़ब! सीधी चोट है!
देख लिया ...
नोचकर मेरा ज़िस्म ....?
अब तुम देखना
मेरे ज़िस्म से निकलती आग
जो भस्म कर देगी
तुम्हारी अँगुलियों से
उठती हर इक भूख
आज़ादी ....
कहाँ हो तुम ....
सार्थक और बेबाक रचनाएं
साधुवाद
.
सहज आक्रोश है …
प्रभावशाली क्षणिकाएं !
लेकिन यह कोई पहली बार नहीं हुआ है
कितने हादसे तो सुर्ख़ियों में आ भी नहीं पाते ।
जो घटा , अत्यंत शर्मनाक था …
कुछ गिरफ़्तारियां हो भी चुकी हैं , लेकिन अपराधी को अपराधी उचित दंड दे … इसकी कम aही संभावना है
@ पहली बार नहीं हुआ है
इसका मतलब यह नहीं कि हम विरोध न जताएं ....
पहले अगर स्त्रियाँ चुपचाप सह्तीं थीं तो वह गलत था
और हमारा विरोध ही एक दिन स्त्रियों को सम्मान का हक़ दिलाएगा भले ही हम वो सम्मान न पा सकें ....
@ कितने हादसे तो सुर्ख़ियों में आ भी नहीं पाते ।
तो उन्हें सुर्ख़ियों में लाना होगा ....
हाल ही में राजस्थान में एक घटना हुई ....
आज इस बात की चर्चा विश्व भर में हुई ...
कई रैलियाँ निकाली गईं ...
हम जमीं तो तैयार कर ही सकते हैं आने वाली पीढ़ी के लिए .....
आदरणीया हरकीरत जी बिलकुल सच कहा आप ने दर्द से दिल भर जाता है मन में उफान आता है क्या नहीं कर दिया जाए महिलायें भी बहुत से केस में सहभागी हैं बिना उनकी सहभागिता के आधी समस्या सुलझ सकती है उन्हें जाल में फंसाना गुमराह करना प्रोत्साहित करना बेहोश करना आदि आदि ...एक प्रिंसिपल की पत्नी अपने पति के लिए लड़कियों को घर बुला कर पढ़ने के लिए बुलाया करती थी कहीं सहेलियां अपने भाई के लिए अपनी सहेलियों को लाती थीं ..पुरुष के किस्से तो अनेकों हैं ही ..
अंत में कड़ी चेतावनी देती जबरदस्त रचना .........जब हाथ ही नहीं रहेंगे ........
भ्रमर ५
Me apko is rachna par badhai to ni de sakta... but dik bahut dukhi huwa aur sharm aaa rahi hi aese purusharth par.
इन धधकती क्षणिकाओं के लिए सादर साधुवाद....
तार-तार होता
उजाले का जिस्म...
बार-बार
बिलखता सा प्रश्न...
रोशन होते
अँधेरों की बेहया हंसी....
सभ्यता के तमाम
दावों को खारिज करती है...
वरना...
कायनात को
खुदा के नूर से
वाबस्ता करने वाली
रोशनी रोज क्यों मरती है...???
Post a Comment