पिछले दिनों जो इमरोज़ जी पर पोस्ट
लिखी , वह यहाँ के दैनिक समाचार पत्र में भी छपी ...मैंने उसकी कटिंग
इमरोज़ जी को भेजी थी .....जवाब में उन्होंने तुरंत ५,६ पृष्ठों की एक
लम्बी नज़्म लिखकर भेजी ...नज़्म क्या थी हीर के लिए मोहब्बत से भीगे
अल्फ़ाज़ थे ...मैं पढ़ती गई और भीगती गई ...इमरोज़ जी का अपनत्व ये
स्नेह ...? शायद इसमें भी रब्ब की कोई रज़ा हो ....रब्ब जाने .......नज़्म
पंजाबी में थी ..(.वे पंजाबी में ही लिखते हैं )....सारी नज़्म को यहाँ दे
पाना मुश्किल है ...अंतिम पन्ने का ही अनुवाद कर यहाँ पेश कर रही हूँ ......
रांझे की हीर को
लिखना आता था या नहीं
पता नहीं ....
पर मेरी हीर को लिखना आता है ...
और शीशा बनना भी आता है
आज जब मैंने उस शीशे में देखा
अपने आप की जगह
या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.......
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
इमरोज़ .......
मेरा जवाब इमरोज़ जी के लिए ........
इमरोज़ ....
आँखें बह चली हैं
कितनी ही बार मैं तुम्हारे लिखे
इक-इक हर्फ़ को पढ़ती रही, चूमती रही
कितना सादा था यह लम्हा
मैंने हर लम्हे को अँगुलियों के पोरों से
छुआ और सहलाया है ....
और फिर इनके साथ
कई-कई बार मैंने
अपना जन्मदिन मनाया....
तुमने ही तो कहा था
मोहब्बत का जन्मदिन
हर रोज़ होता है ......
वक़्त खड़ा कभी मुस्कुरा कर
मुझे देखता रहा और कभी मैं वक़्त को .....
मैंने ....
ख्यालों ही ख्यालों में कुछ फूल चुने
हर फूल सादगी का ज़िस्म था
ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे ख़त की
इक-इक सतर ...
.मैंने ग्रन्थ के चार फेरे लिए
और सारे फूल उसके रूमाले* में डाल दिए
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
पता है ...?
आज ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत दिन है
रब्ब से भी ज्यादा खुबसूरत ...
ज़िन्दगी से भी ....
अपने आप से भी ...
आज न लफ़्ज़ों की जरुरत है ,
न पानी की ,न हवा की और न ही रोटी की ....
आज किसी चीज की भूख नहीं ....
आज तुम्हारे ख़त में लिखा
ये मोहब्बत का....
इक-इक अक्षर मेरा है ...
सांसों की तरह पाक और साफ
तहज़ीब तक ले जाता हुआ
सच्च ...! मोहब्बत फूल भी है , खुशबू भी
और ज़िन्दगी भी .....
कुदरत की सबसे खूबसूरत सोच है मोहब्बत......
आज मैंने अपने आपको
इक फूल भेंट किया है
मोहब्बत का फूल .......
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
हीर.......
रूमाले*- गुरु ग्रन्थ साहिब के ऊपर डाली गई चादर
रांझे की हीर को
लिखना आता था या नहीं
पता नहीं ....
पर मेरी हीर को लिखना आता है ...
और शीशा बनना भी आता है
आज जब मैंने उस शीशे में देखा
अपने आप की जगह
या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.......
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
इमरोज़ .......
मेरा जवाब इमरोज़ जी के लिए ........
इमरोज़ ....
आँखें बह चली हैं
कितनी ही बार मैं तुम्हारे लिखे
इक-इक हर्फ़ को पढ़ती रही, चूमती रही
कितना सादा था यह लम्हा
मैंने हर लम्हे को अँगुलियों के पोरों से
छुआ और सहलाया है ....
और फिर इनके साथ
कई-कई बार मैंने
अपना जन्मदिन मनाया....
तुमने ही तो कहा था
मोहब्बत का जन्मदिन
हर रोज़ होता है ......
वक़्त खड़ा कभी मुस्कुरा कर
मुझे देखता रहा और कभी मैं वक़्त को .....
मैंने ....
ख्यालों ही ख्यालों में कुछ फूल चुने
हर फूल सादगी का ज़िस्म था
ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे ख़त की
इक-इक सतर ...
.मैंने ग्रन्थ के चार फेरे लिए
और सारे फूल उसके रूमाले* में डाल दिए
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
पता है ...?
आज ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत दिन है
रब्ब से भी ज्यादा खुबसूरत ...
ज़िन्दगी से भी ....
अपने आप से भी ...
आज न लफ़्ज़ों की जरुरत है ,
न पानी की ,न हवा की और न ही रोटी की ....
आज किसी चीज की भूख नहीं ....
आज तुम्हारे ख़त में लिखा
ये मोहब्बत का....
इक-इक अक्षर मेरा है ...
सांसों की तरह पाक और साफ
तहज़ीब तक ले जाता हुआ
सच्च ...! मोहब्बत फूल भी है , खुशबू भी
और ज़िन्दगी भी .....
कुदरत की सबसे खूबसूरत सोच है मोहब्बत......
आज मैंने अपने आपको
इक फूल भेंट किया है
मोहब्बत का फूल .......
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
हीर.......
रूमाले*- गुरु ग्रन्थ साहिब के ऊपर डाली गई चादर
62 comments:
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
@ "हीर" की कलम तो जिन्दगी ही लिखती है , दर्द को बयान करती है ,
तुमने ही तो कहा था
मोहब्बत का जन्मदिन
हर रोज़ होता है ......
@ मोहब्बत का जन्मदिन हर पल आता है , जिसे जिससे मोहब्बत है वह उसके लिए हर पल जीता है और मोहब्बत उसे अमर कर देती है .
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
@ बस यह समझ तो प्रेम की चरम सीमा है .......जहाँ प्रेम होता है , वहां बेशक शरीर दो होते हैं .....लेकिन रूह के स्तर पर वह एक हो जाते हैं ...!
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
@ बेहतर स्वीकारोक्ति है .....इससे बड़ा सम्मान किसी को क्या दिया जा सकता है .....इमरोज जी भी धन्य हैं और ....और हीर भी धन्य है .
'ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....'
....और जवाब में लिख दी आपने सम्पूर्ण गतिमय ज़िन्दगी:-
'मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....'
अद्भुत!
आज जब मैंने उस शीशे में देखा
अपने आप की जगह
या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.......
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
....प्रेम की लाज़वाब और उत्कृष्ट अनुभूति...
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........
..........अद्भुत अभिव्यक्ति..आभार
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
kitni khubsurat sweekarokti:):)
pyare se shabd!!
shandaar rachnaa:)
केवल राम जी पहली टिप्पणी ...वह भी दिल की गहराइयों से लिखी हुई ....?
मैं धन्य हुई .....!!
बेहतर स्वीकारोक्ति है
man ko chhooti panktiyan-
तुमने ही तो कहा था
मोहब्बत का जन्मदिन
हीर की कलम जज्बातों के समुद्र से अप्रतिम मोती चुन लाती है मुहब्बत की मूरत देखी तो नहीं , लेकिन हीर की कलम में उसका प्रतिबिम्ब दिखाई देता है .और क्या लिखूं ? शब्द मौन है .
मोहब्बत की स्याही में डुबो डुबो कर लिखा एक एक हर्फ़
ऐसा हीर ही कर सकती है.
आज एक मुद्दत के बाद ...हीर का चेहरा खुशी से लाल हुआ ,,,ये सब पाक महोब्बत की सोहबत का असर है !
हमेशा खुश रहो !
तुमने ही तो कहा था
मोहब्बत का जन्मदिन
हर रोज़ होता है ......
या शायद मोहब्बत का कोई जन्मदिन है ही नहीं क्योंकि यह शाश्वत है और फिर शाश्वत तो जन्म और मरण से परे है न ...
dil ki atal gahrayeeon se nikli sundar abhivykati...
esi ka naam hai pyar..
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
बहूत खुबसुरत नज्म....
आपका उनके लिये जवाब भी बेहद कोमल भाव से परिपूर्ण है...
बेहतरीन प्रस्तुती....:-)
वक़्त खड़ा कभी मुस्कुरा कर
मुझे देखता रहा और कभी मैं वक़्त को .....
मैंने ....
ख्यालों ही ख्यालों में कुछ फूल चुने
हर फूल सादगी का ज़िस्म था
ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे ख़त की
इक-इक सतर ...
.मैंने ग्रन्थ के चार फेरे लिए
और सारे फूल उसके रूमाले* में डाल दिए
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
आपका बहुत -बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिए.
अमृता-इमरोज..हरकीरत 'हीर' ...हर कड़ियाँ अनमोल है..मुहब्बत के सफर में. सबको सलाम..मुहब्बत को सलाम.
जब मैंने उस शीशे में देखा--- या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.....
वाह ! इतना सम्मान !
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
बहुत उत्साहवर्धक अल्फाज़ हैं ।
ऐसी मोहब्बत पाकर आप भी धन्य हुई । यह सोचकर सकून सा मिला है ।
बधाई और शुभकामनायें ।
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
वाह ..... बधाई स्वीकारें ...आप इन शब्दों की हक़दार बनीं ....
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
दिल निकाल कर रख दिया है इस अनुपम रचना में ... बहुत सुंदर ...
बहुत खूब, क्या कहने।
मुहब्बत हीर भी है और रांझा भी इमरोजृ भी है और हीर भी ।
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
बहुत गहरी दिल से निकली बात.।
आदरणीय हरकीरत ' हीर' जी
नमस्कार !!!
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
बहुत गहरी दिल से निकली बात
.....सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए.......!!
bahut dino ke baad aapke blog par aana hua , aur bahut see posts padhi .. aur bahut se bhaav bhi dil me utare , un sabh ko sanjokar jaa raha hoon . ho sake to koi nazm jarur hi likhi jaayengi ... dhnyawaad.
bahut komal abhivyakti
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह:.अद्भुत अभिव्यक्ति..दिल को छू गई..हीर जी..
bhawbhini......
भावों का इतना प्रबल प्रवाह....उफ़!....ज़ेहनो-दिल का तवाजुन ही बिगड़ गया...
बड़ी जलन होती है इस इश्क से......................
काश के हम भी हीर बन पाते...............
अनु
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
और मोहब्बत उसे अमर कर देगी. हीर जी आप धन्य हैं जो आपको इमरोज जी का सानिध्य प्राप्त हुआ.
उम्मीद यही हमे भी है कि हीर जिदगी लिखती रहेगी.
इसीलिए स्यालायाँ की हीर शायद आज भी दोनों देशों के दिलों में ज़िंदा है जिसे पाने के लिए बस एक बार रांझा बनना है क्यों ठीक हे ना ठीक ??
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूं..
जय हिंद...
'मोहब्बत' के यही मायने ढूंढने में सारी उम्र खर्च हो जाती है |
प्रेम पत्र पढ़कर
मैं खुद प्रेम हुआ जाता हूँ....
क्या खूब लिखा है...प्रेम रस भिज्यो पत्र...
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी .....
कलम का जादू शब्दों में जो रंग घोल रहा है बस इन्द्रधनुष ही नज़र आ रहा है ... आपकी लेखनी को नमन और आपको भी ...
जिंदगी हीर भी है नज्म भी ... और रब्ब भी ...
जितनी लाजवाब रचना इमरोज़ की उतना ही लाजवाब आपका कलाम ...
निशब्द कर दिया है इस रूहानी संवाद ने ... इसे बस महसूस ही किया जा सकता है ...
हमेशा की तरह अद्भुत...सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
कल 16/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
...'' मातृ भाषा हमें सबसे प्यारी होती है '' ...
वाह हीरजी ....महोब्बत ने ज़िन्दगी पर फतह पा ली
मोहब्बत में पगी, रची-बसी नज्म.. सुंदर
इमरोज जी और हीर दोनों को पढ़ा .....और पढता ही चला गया ......खो गया .......समझ में नही आ रहा के और कैसे कहू !
शायद यहीं तो सच्ची मोहब्बत है !
इमरोज़...!
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
सादर नमन !
आप तीनो को (इमरोज़, अमृता और हीर को )
ak hi shabd hai....waah ....
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हरकीरत जी!!
आपकी नज्में किसी की टिप्पणियों की मोहताज नहीं
धन्यवाद और आभार कि इतनी व्यस्तताओं के बीच भी अकिंचन का हौसला बढ़ाया।
दोनों ही ख़त मुहब्बत की स्याही से लबरेज़ है .....शानदार ।
कोई आप पर कविता लिखे तो दिल आसमान में कुलाचें भरने लगता है...पर यह तो इमरोज ने लिखा है...फिर तो कहना ही किया...कहने को लफ्ज़ मिल गए...यही कम चमत्कार नहीं है
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वक़्त भले ही मेरे साथ चले न चले
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ....
हाँ इमरोज़...!
मैं मोहब्बत के साथ चल पड़ी हूँ ........!!
बस यही कहूंगा ..मेरे पास शब्द नही हैं । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
आज तुम्हारे ख़त में लिखा
ये मोहब्बत का....
इक-इक अक्षर मेरा है ...
सांसों की तरह पाक और साफ
तहज़ीब तक ले जाता हुआ
सच्च ...! मोहब्बत फूल भी है , खुशबू भी
और ज़िन्दगी भी .....
अब इसके आगे और क्या लिका जा सकता है । खत और जवाबी खत दोनो बेहतरीन ।
खुशबु से भरे.....ये..."मोहब्ब्त्त के फूल"...
सादर
हीर जी, वाकई इमरोज साहब के ये शब्द आपके लिए आपकी लेखनी के लिए एक कीमती तोहफा जैसे है। हीर में हीरे को वाकई सही पहचाना है उन्होंने . बहुत ही गहरे जज्बात के साथ आपने प्रत्युत्तर भी दिया है .आपको बढ़ाई और शुभकामनाये।
.
.
कुछ दिन पहले लघु कथा डोट काम पर आपकी लघु कथा ' छल ' पढ़ी। वाकई समाज के गिरते चरित्र पर बढ़िया लिखा है आपने।
आज जब मैंने उस शीशे में देखा
अपने आप की जगह
या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.......
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मैंने ....
ख्यालों ही ख्यालों में कुछ फूल चुने
हर फूल सादगी का ज़िस्म था
ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे ख़त की
इक-इक सतर ...
.मैंने ग्रन्थ के चार फेरे लिए
और सारे फूल उसके रूमाले* में डाल दिए
आज तक मुझे' हीर' होना समझ न आया था
पर आज मैं समझ गई थी
हीर होना भी और राँझा होना भी ....
या तो हीर दिखी या रब्ब दिखा.......
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हीर होना ही राँझा भी होना है और रांझा होना ही हीर भी
ज़िन्दगी भी हीर है और कलम भी
हीर कलम से ज़िन्दगी लिख .....
इमरोज़ .......
हरकीरत " हीर" जी बहुत सुन्दर जज्बात...... इमरोज जी के वे ५-६ पृष्ठ तो मई नहीं पढ़ सका लेकिन ये कुछ चन्द पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं...... अमृता जी की यादें कहाँ भूलती हैं ..जय श्री राधे - भ्रमर 5
भ्रमर का दर्द और दर्पण
जिन्दगी तो यही प्यार मोहब्बत के पल है , वरना सासों के चलने को जिन्दगी कहना भी क्या जिन्दगी है ?
बहुत खूब और भावुक रचना
Bahut hi sundar panktiyan ......
Bar-bar padne ka man karta hai....
Heart Touching
Congrates
ye fan-following... kya kehna !!!
आदरणीय हीर जी,
सादर नमस्कार,
आदरणीय जनाब इमरोज साहब के अलफ़ाज़ और उस पर आपकी मुक़द्दस भावनाएं.... बस.... वाह! वाह! वाह!
रौशनी की एक किरण
आसमान से निकलकर
आँखों में समा गई....
जाने क्यूँ
सितारों के बीच
मुस्कुराता चाँद
गुलाबी हो गया....
सादर बधाई.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने.. सच्ची मोहब्बत वाकई इबादत सी है.. एकदम रब्ब को महसूस करने जैसा है... सुन्दर, बहुत सुन्दर!
भावपूर्ण रचना क्या कहने...
बहुत ही सुन्दर..
भावविभोर करती रचना...
mohabbat ki ibadat karti behad bhavpoorn rachna.
आज तुम्हारे ख़त में लिखा
ये मोहब्बत का....
इक-इक अक्षर मेरा है ...
सांसों की तरह पाक और साफ
तहज़ीब तक ले जाता हुआ
सच्च ...! मोहब्बत फूल भी है , खुशबू भी
और ज़िन्दगी भी .....
कुदरत की सबसे खूबसूरत सोच है मोहब्बत......
आज मैंने अपने आपको
इक फूल भेंट किया है
मोहब्बत का फूल .......
तुम्हारे लिए हीर!
यह किताब हीर की नही,
रांझड़े की भी नहीं
यह किसी रंगरेज की लगती है
इस दबे हुए फूल को देख
इसकी दबी दबी सूखी हंसी
हीर की सी लगती है।
ओह!
क्या इसकी
सिसकती सुगंध को अमृता कहूं?
बहुत सुंदर ... भावपूर्ण जवाब !!
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