मन बड़ा खिन्न है ....पिछले दिनों ब्लॉग जगत के कुछ वरिष्ठ ब्लोगरों से बड़ा कटु अनुभव रहा ...जरा सी किसी के लेखन में आप खामी क्या निकाल दो केंचुल उतारने लगते हैं ......ऐसे में न जाने क्यों मुझे नीमा (अपनी पड़ोसन) की डरी सहमी आँखें याद आने लगती हैं .....पहली नज़्म उसी नीमा को समर्पित है जो अपनी प्रतिभा कहीं खो बैठी है .....और कुछ साज़िशों में नग्न होती औरत की दास्ताँ है .....और इक हवस बनता प्रेम ......
(१)
पहचान......
....................
जितने मुसाफ़िर
उतने सफ़र ...
जितने रास्ते
उतनी मुश्किलें ...
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
(२)
तूफ़ान ......
....................
वह काँप रही थी
सुबक रही थी ...
बहुत कोशिशों के बाद
धीमें से हाँफते -हाँफते
शब्दों को गले से धकेला
पर उसकी सुबकियों में
आवाज़ कहीं गुम हो गई ....
इक तूफ़ान ने दरख़्त के सारे पत्ते
नोच लिए थे .....
अब वह नग्न खड़ा था .......!!
(३)
कॉल गर्ल
.........................
वह ....
हाथों में पर्ची लिए
फूट-फूटकर रो पड़ा ...
''तुमने ऐसा क्यों किया एंजिल ...?"
वह .....
तल्खी भरे स्वर में
मुस्कुराकर बोली .....
''मुझे देने वाला भी कोई मर्द ही था जानम ...''
वह एच आई वी पोजिटिव थी .....!!
(४)
साज़िश .....
......................
उसने एक-एक कर
बदन से सारे कपड़े
उतार कर रख दिए ...
जैसे चिड़िया उतारती है पंख
रात ने धीमें से दरवाज़ा खोला
शैम्पू से धुले बाल ...
फैलते गए उसके ज़िस्म पर ....
वक़्त ने ललचाई आँखों से
कई -कई कोणों से
कैद कर लिया देह को
ज़िस्म की मुस्कराहट
अंधेरों की साज़िश में
दम तोड़ती रही .....!!
(५)
हवस .....
......................
एक खत ..दो.. तीन ख़त ....
हवस के अंधड़ में खोया आदमी
आदी हो जाता है खतों का ...
चाँदनी फाड़ती है ज़िस्म
मोहब्बत दांत किटकिटाती है
बाथरूम से निकलकर
अचानक सामने आ खड़ी होती है
कोई खतवाली .....
अंगुलियाँ हौले-हौले पढने लगतीं हैं
खत की एक-एक तहरीर
धीरे -धीरे बढ़ने लगती है
खतों की तादाद ...
आदमी दब जाता है कहीं
खतों के ढेर में ......!!
Friday, October 8, 2010
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95 comments:
बस पहचान ही नही हो पाती इंसान की……………बहुत खूब्।
तूफ़ान मे सब बह जाता है फिर चाहे साज़िश हो या हवस्……………किस किस की तारीफ़ करूँ सभी सोचने को मजबूर कर देती हैं………………एक कडवा सच्।
bahut gahre bhav aur rango me bheegee hai apkee ye sabhee rachanae..........
aabhar
बात है आपकी बात में !
Really very impressive and meaningful post..........Congrats.
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है...
Very true........just reality.
राह में ...धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ...तलाशतीं हैं अपनी पहचान...
वाह बहुत ख़ूब...
इक तूफ़ान ने दरख़्त के सारे पत्ते
नोच लिए थे .....
अलग अंदाज़ में कही गई बात...
ज़िस्म की मुस्कराहट
अंधेरों की साज़िश में
दम तोड़ती रही ...
सोचने पर मजबूर करती रचना...
बहुत अच्छा लिखा है हरकीरत जी...
हमेशा की तरह बेहतरीन...लाजवाब.
सोचने पर मजबूर करती रचना...
बहुत अच्छा लिखा है हरकीरत जी...
हमेशा की तरह बेहतरीन...लाजवाब
बढिया पोस्ट ....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
हमेशा की तरह बेहतरीन...लाजवाब
बढिया पोस्ट ....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
penetrating truth...
heer ji
acchi najm ke liye
abhar
सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं....
वाह !
बहुत खूब, बहुत ही खूबसूरत रचना हर बार की तरह !
जिंदगी की सच्चाई पर सटीक लेखन, आपके हर पोस्ट का इंतज़ार रहता है ! और हर बार उम्मीद से बढ़कर होता है !
नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुबकामनाएं !
आपकी एक रचना ही एक बार में नाक आउट डोज होती है ...कई एक साथ तो बस कुछ मत पूछिए ... :)
आपने सही लिखा....यहाँ तो एक नियम सा बन गया है की जो लिखा गया है उसकी तारीफ में जितने कशीदे पढ़ सकते हो पढो ...फिर लिखने का ही क्या फायदा ?कम से कम पोस्ट की विषय वस्तु पर चर्चा तो होनी ही चाहिए ,पर कुछ कह लेते है तो कुछ सह लेते है वाली बात ही चल रही है...
आपकी सभी कवितायेँ अच्छी लगी पर "पहचान" तो सच उजागर करने वाली और सबसे बढ़िया लगी.....
..आपकी हर रचना बहुत ही विविध आयामों को छूती हुए मन को उदेलित कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कट देती है... हर बार की तरह बहुत प्रभावशाली रचना ....
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं
जितने मुसाफ़िर
उतने सफ़र ...
जितने रास्ते
उतनी मुश्किलें ...
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी .
Sach main jindgi aise dodti par har kadam per use naye anubhab milte hai .
Heer ji aapki sabhi rachnayan leek se hatkar, sochneper majboor karti hain.
Bahut Khub
गंभीर भावों वाली कविताएं हैं...कुछ अलग सी।
बहुत सटीक रचना, नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं.
रामराम.
...जरा सी किसी के लेखन में आप खामी क्या निकाल दो केंचुल उतारने लगते हैं----
अहं को चोट लगती है तो ऐसा ही होता है । लेकिन सवाल यह है कि अहं हो ही क्यों ।
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन अहं ही होता है ।
लेकिन खिन्न न हों , ब्लॉग जगत में तो ऐसा होता ही रहता है ।
सभी नज्मों में एक से बड़ा एक दर्द छुपा है ।
जिन्दगी की सच्चाई के मूंह पर एक प्रहार सा करती हुई रचनाएँ ।
बेहतरीन ।
sari nazm bahoot hi gahre ehsas liye huye.zindagi ki kadavi sachchai hai jinme. bahoot khoob....
‘''तुमने ऐसा क्यों किया एंजिल ...’
नाम एंजिल और काम...?:)
हरकीरत जी हर बार इतनी गहरी सोच, इतना दर्द कहाँ से लती हैं आप...
बेहतरीन रचना...
आपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं ....
मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना
स्त्री...
मैं आपकी रचनाओं में एक उम्र और लम्बा अनुभव पाता हूँ ...जहां दुःख है, स्वप्न हैं, हकीकत है
जिंदगी के कटु अनुभव से निकली उत्कृष्ट नज़्में
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
बहुत उम्दा लेखन !!!
एक बार में एक या दो ही रच्नाये पोस्ट किया कीजिये मैडम....
हम जैसे लोगों को आसानी होगी , पूरी तरह रस लेने में...कमेन्ट करने में.....
आज तक ये मालूम नहीं हुआ कि आखिर ये बड़े ब्लोगर/दिग्गज ब्लोगर कौन हैं...
चाँदनी फाड़ती है ज़िस्म
मोहब्बत दांत किटकिटाती है
बाथरूम से निकलकर
अचानक सामने आ खड़ी होती है
कोई खतवाली .....
ये लाइनें मुझे सबसे अच्छी लगीं..और मोहब्बत का डांट किटकिटाना! बहुत ही नायाब ख़याल है!
बहुत ही उम्दा पोस्ट ...लाजवाब!!
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ..
एक से एक बेहतरीन नज़्म हैं...चुप करा देती हैं ये नज्मे..बोलने को कुछ बचता ही नहीं...ज़िन्दगी की सच्चाई को यूँ उधड़ते हुए देख.
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
...बहुत खूब।
अजी सिंहगनी हो कर इन बातो से क्यो डरती हो,कामेंट यानि हमारे विचार उस लेख या कविता या रचना के लिये, ओर अगर हम सच लिखे, तो उन्हे बुरा लगता हे, ओर अगर टिपण्णी ना दे तो भी बुरा लगता हे उन्हे, अब क्या करे??? आप लिखती रहो जी, बोलने वालो की परवाह नही करते,बहुत सुंदर रचना, आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,
सभी रचनायें बहुत सुन्दर हैं।बहुत बढ़िया!!
धोखा ,छल ,कपट ,बेवफाई ...कडवाहट , कसक और टीस लिए हुए भीतर तक भेदती हुई नज्में .
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......
जान पड़ता है एक साथ कई ज़ख्म रिसने लगे हैं ,
कितना मुश्किल है यह बता पाना ,
कि कौन ज्यादा दुःख रहा है और कौन कम !
बस कमाल हैं ये नज्में!
राह में ...धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ...तलाशतीं हैं अपनी पहचान
माशाल्लाह
हरकीरत जी आपकी लेखनी लाजवाब है अति सुन्दर
@ पहचान ,
मगर इसे समझेगा कौन ?? अपने अहम् के आगे उन्हें शर्म भी नहीं आती !
@ तूफ़ान ,
बेहद कष्टदायक ....
@कालगर्ल,
भयावह बदला...हालांकि एंजिल इस समय राक्षसी रूप में है मगर कर तो वही रही है जो मानव चाहते हैं तो गलत कहाँ है वह ....
आज बहुत अच्छा लगा हर रचना सोचने को मजबूर करती है, आप सफल रहीं हैं अपने उद्देश्य में !
शुभकामनायें !
नज़्में आपकी उम्दा हैं, हमेशा की तरह। प्रारंभिक आलेख में आपने जो बात उठाई है उसपर मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि जब हम चर्चा कर रहे हों किसी विषय पर तो उससे ऐसा आभासित नहीं होना चाहिये कि यु़द्धरत हैं। वाकयुद्ध की भी मर्यादायें होती हैं। बात को जितनी दृढ़ता से रखना हो उतनी ही शालीनता भी जरूरी होती है। असंयत होने से सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो जाता है जो अच्छा दृश्य उपस्थित नहीं करता।
सोचने पर मजबूर करती रचना...
बहुत अच्छा लिखा है हरकीरत जी...
हमेशा की तरह बेहतरीन...लाजवाब
हरकीरत जी ऐसी साजिश तो हम सब के खिलाफ भी रची जा रही है
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
आप ऐसे लोगों की बात दिल पर न लें। इसके सिवा और कर भी क्या सकते हैं और पाठक भी जानते हैं ऐसे लोगों का क्या वज़ूद है। बहुत अच्छी लगी रचनायें। शुभकामनायें।
GRAND SALUTE for you .........आप एक महान फनकार हो.......मैं तो आपका मुरीद हो चुका......कुछ लोग ब्लॉग जगत के ठेकेदार बनने की कोशिश में हैं उनको अच्छा सबक दिया है आपने|
मेरी ये गुज़ारिश याद रखना हीर जी, जब भी आप अपनी रचनाये प्रकाशित करवाएं....मुझे ज़रूर सूचित करें.......समझ लीजिये आपकी एक कॉपी बुक है |
पाचों स्तरीय क्षणिकायें। झाड़ियों के पीछे केंचुल उतारते लोग।
कितने खयालात होते हैं
कितनी स्वेदानाएं होती हैं......
फिर पता नहीं कितने शब्द.......
तब जाकर ऐसी कविता बनती हैं.
बढिया........ बहुत अच्छी प्रस्तुति.
हरकीरत जी आपकी सोच बहुत सकारात्मक है तभी तो ये बड़े और दिग्गज कहलाने वालों (वैसे कौन हैं ये लोग?)के कचोटने पर आपने टसुए टपकाने की जगह अपनी बेहतरीन रचनाएँ हमें पढ़ने को दीं. आभार आपका और आभार उनका भी जिन्होंने आपको इतनी खूबसूरत नज्में लिखने को उकसाया.
आपका लेखन ब्लॉग जगत की धरोहर है...छोटी और घटिया बातों को यूँ दिल पे न लिया कीजिये. यूँ ही लिखती रहिये..
नीरज
वह काँप रही थी
सुबक रही थी ...
बहुत कोशिशों के बाद
धीमें से हाँफते -हाँफते
शब्दों को गले से धकेला
पर उसकी सुबकियों में
आवाज़ कहीं गुम हो गई ....
इक तूफ़ान ने दरख़्त के सारे पत्ते
नोच लिए थे .....
अब वह नग्न खड़ा था .......!!
har rachna apne me khas .
aapki rachnaaon ko padhke andar aatmsaat kerna jyada achha lagta hai, kyonki jis mukaam per bhawnayen apne vistrit pankh kholti hain, wahan jaker meri kalam bas aah bharti hai
तिलक राज कपूर said.. जब हम चर्चा कर रहे हों किसी विषय पर तो उससे ऐसा आभासित नहीं होना चाहिये कि यु़द्धरत हैं।
आदरणीय तिलकराज जी जब चर्चा अर्थ से भटक जाये तो वह चर्चा नहीं रहती .....बस अहम की खातिर वाकयुद्ध बन जाती है .....जो गलत है सो गलत है ....क्या हम इसलिए सती होना शुरु कर दें कि पूर्व में कभी सती प्रथा रही थी .....? आपके पास उर्दू शब्दकोश हो तो देखिएगा वो शब्द है या नहीं ....मेरे पास जो दो उर्दू शब्दकोश हैं उनमें तो नहीं है ....
क्या ये कह देना कि शब्दकोश देख लें या किसी बुद्धिजीवी से मशवरा कर लें शालीनता से बाहर है .....? यहाँ सर्वज्ञत्व तो किसी में नहीं .....
दुःख तो इस बात का है कि किसी कि इतनी हिम्मत न हो सकी कि वहाँ इस विषय में कुछ कह सके .....
बहुत खूब . इसे भी पड़ लीजियेगा ...................................
सब को खुश करने के चक्कर में जाने क्या क्या दर्द सहे
कहने को तो कह सकते थे लेकिन हम खामोश रहे
ख़ामोशी वो क्या समझेंगे जो जलसों के भूखे है
आंसू तो पवित्र है सभी के होंठ सभी के झूठे है
इस पर भी न जाने क्यों लोग हमी से रूठे है
आदरणीया हरकीरतजी हीर साहिबा
नमस्कार ! निश्चित रूप से आप जैसी सच्ची शब्द साधिका का संवेदनशील होना ज़रा भी आश्चर्यचकित नहीं करता ।
लेकिन , मैं कहूंगा -
पैदा पहले हो गए , 'बड़ा' मिल गया नाम ।
मगर बड़प्पन का नहीं , यह तो कोई काम ॥
मन का छोटा , जो बड़ा , बड़ा न उसको मान ।
नहीं ज़रूरी तनिक भी कुटिलों का सम्मान ॥
आप और मुझ जैसे अक्सर अपने सुसंस्कारों के कारण कुटिल उम्रदराजों को भी वैसा मान सम्मान दे'कर , आदरणीय मान कर सिर पर चढ़ा लेते हैं , जो … उसके लायक ही नहीं होते। तभी तो मैं फिर कहता हूं -
नहीं बड़प्पन मापिए , वय पद क़द को देख' ।
लिख देती लघु क़लम भी , लाख पृष्ठ के लेख ॥
… … …
# … आपने टसुए बहाए भी नहीं , ज़रूरत भी नहीं क्योंकि फ़क़त बड़ी उम्र के बलबूते पर झूठी उस्तादी की अपनी छद्म दूकानदारी चलाने वालों के लिए शर्म से डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी ही बहुत है ।
स्वयं के मुंह से कही बात से भी ढीठता से मुकरते पाये जाने वाले" पर उपदेश कुशल बहुतेरे" की तर्ज़ पर शालीनता की घुट्टी पिलाने के प्रयास भी करते पाये जाते हैं ।
… छोड़िये भी !
… आप ऐसी किसी बात को ज़रा भी महत्व न दें , और संभवतः भविष्य में अपने ख़ूबसूरत ब्लॉग पर ऐसी गंदगी का ज़िक्र भी न करें ।
( चाहें तो पढ़ कर इस कमेंट को मिटादें )
आपकी बेहद ख़ूबसूरत रचनाओं पर बात तसल्ली से फिर करूंगा ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदरणीया हरकीरत हीर जी
आपकी लेखनी से निसृत समंदर को बूक से पीना - सहेजना संभव नहीं है ।
सारी रचनाएं हमेशा की तरह…
अद्भुत ! अलौकिक ! अनुपम ! अद्वितीय !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
क्या वजह बनी..क्या विवाद...कुछ ज्ञात नहीं किन्तु उसकी उपज सीधे दिल पर लगी..ठक!!
हर रचना-एक से बढ़ कर एक....खास किसे कहें लेकिन एच आई वी पाजिटिव...बहुत देर ठहरेगी जेहन में...
शानदार...
ज़िस्म की मुस्कराहट
अंधेरों की साज़िश में
दम तोड़ती रही .....!
हर कविता औरत का दर्द बयां करती हुई । चाहे वह पहली बार छली गई कुंवारी लडकी हो या एन्जिल । दर्द पर वैसे भी आपकी मास्टरी है ।
बेहतरीन नज्में...
ये बिल्कुल ज़िंदगी की तरह हैं...
कहीं बिल्कुल सहज और सरल
तो कहीं कुछ ऐसा है जो
ज़िंदगी सा ही पेचीदा सा लगने लगता है...
पर इनका समझने में आनंद है...
वह ....
हाथों में पर्ची लिए
फूट-फूटकर रो पड़ा ...
''तुमने ऐसा क्यों किया एंजिल ...?"
वह .....
तल्खी भरे स्वर में
मुस्कुराकर बोली .....
''मुझे देने वाला भी कोई मर्द ही था जानम ...''
वह एच वी आई पोजिटिव थी .....
कुछ ही लाइनों में कही गहरी . मार्मिक अभिव्यक्ति ..... जिंदगी की सच्चाई लिखी है आपने ...
वह ....
हाथों में पर्ची लिए
फूट-फूटकर रो पड़ा ...
''तुमने ऐसा क्यों किया एंजिल ...?"
वह .....
तल्खी भरे स्वर में
मुस्कुराकर बोली .....
''मुझे देने वाला भी कोई मर्द ही था जानम ...''
वह एच वी आई पोजिटिव थी .....
कुछ ही लाइनों में कही गहरी . मार्मिक अभिव्यक्ति ..... जिंदगी की सच्चाई लिखी है आपने ...
hrkeerat
aap meri post' kharij 'pd lo, vhi mera comment hai aapki shandar post ke liye .
excellent !
bahut aam se lagatee dhatanaao ka etna marmsparshii chitran , bhut kuchh sochane ko majboor bhi karta hai aur ek sabak bhi detaa hai
ज़िस्म की मुस्कराहट
अंधेरों की साज़िश में
दम तोड़ती रही .. सभी कवितायेँ अच्छी लगी
.
हरकीरत जी , आज पता चला आपके खिन्न होने का राज़ ।
@ चर्चा की चर्चा में पड़कर सारा ध्यान बहस पर आ जाता है । ये बात तो सभी जानते हैं कि बहस का न कोई अंत होता है और न कोई जीतता हारता है । यहाँ आप यह भी समझ गए होंगे कि चर्चा के बारे में मैं हरकीरत जी से सहमत हूँ ।
इतनी बहस के बाद कोई भी क्षुब्ध हो सकता है । हरकीरत जी कोई अपवाद नहीं ।
उपरोक्त टिपण्णी --राजेश जी के ब्लॉग पर ।
6/10
very good
चर्चा...
हिंदी शब्द...स्त्रीलिंग.....
मगर शायरी की जबान में हमने हमेशा पुल्लिंग रूप में ही देखा है .... और उस में शायद ये स्त्रीलिंग में जमता भी नहीं...
अगर आम बोलचाल के शब्द हों तो दोनों ही प्ररोग किये जा सकते हैं..... मगर ज़रा मिज़ाज देखकर...
:)
मन खिन्न तो होता है, पर यही खिन्नता अच्छी रचनाओं की संवाहिका भी बनती है। आपकी ये रचनायें प्रमाण हैं। वैसे ब्लागिंग हो या प्रिंट मीडिया हो या सम्मेलनों/गोष्ठियों के मंच हों स्थिति सब जगह एक सी ही है। पर आलोचना के प्रति असहिष्णु होकर कम से कम सृजन के स्तर पर कोई वरिष्ठ या महान नहीं हो सकता। एक स्तर पर आलोचना का महत्व समझे बिना कोई रचनाकार न अपना भला कर सकता है और न साहित्य व समाज का।
कुछ नई तरह की कवितायें है यह ।
' हीर ' जी अक्सर लेट हो जाने के कारण आपके लिखे का अहसास लिए मन में , चला जाता था कुछ कहे बिना .क्योंकि जो कहना चाहता था मन का आनंद ,वो सब तो कहा ही जा चुका होता था अनेक स्पंदित मनो द्वारा .आपको पढना तो हमेशा से ही एक अनुभव रहा है .इस बार भी .
लेकिन इस बार कुछ और बात .
क्या मन खिन्न कर रही हैं ? और वरिष्ठ क्या होता है ? स्त्रीलिंग की पुल्लिंग ? या उभयलिंगी की नपुंसकलिंगी ?
मुझे तो वरिष्ठ से ज्यादा गरिष्ठ लोग लगे , हाजमा ख़राब करने कराने वाले . फिर से व्याकरण विद्यालय जा रहा हूँ पढने .
अब नायिका भेद या नायक भेद वाला मामला होता तो अरविन्द भाई बनारस वाले बता देते . पर लिंग भेद ?
उदास और खिन्न न हों .
यहीं पर ( वरिष्ठ वगैरह तो नहीं पता ) बहुत सारे सज्जन लोगों ने आपका मन आहत पा बड़ी अच्छी बातें .सलाहें कही हैं .
तो
ये सफ़र तो मुश्किल है मगर
न उदास हो मेरे हमसफ़र .
आप की नज़्में हमेशा सोचने को विवश कर देती हैं
हरकीरत जी,
आज मुझे राजेश उत्साही जी की एक मेल मिली........जिसकी वजह से उनके ब्लॉग पर जाना हुआ, वहां पर आपकी टिप्पणियां पड़ी और 'चर्चा' पर विवाद भी पड़ा , मैंने वहाँ एक टिप्पणी छोड़ी है जो मैं ज्यों की त्यों यहाँ कॉपी कर रहा हूँ |
"जहाँ तक मुझे लगा हरकीरत जी ने आपको भाषा समझाने की वजह से चर्चा पर चर्चा नहीं की.......उन्हें जैसा लगा उन्होंने वैसा बोल दिया वो भी इसलिए की उन्हें ऐसा लगा होगा की शायद आपसे कोई भूल हो गयी हो .....क्यूंकि हर किसी का अलग द्रष्टिकोण होता है......इसमें कुछ बुरा नहीं है.....पर मेरी नज़र में आपकी रचना पर किसी की टिप्पणी पर आपको और सिर्फ आपको जवाब देना चाहिए..........जिसका जवाब सिर्फ इतना है.............की 'साला' शब्द समाज में एक रिश्ता भी है और इसी समाज में उसे एक गली के रूप में भी लिया जाता है .........शब्द मायने नहीं रखते, भाव मायने रखते है .........कोई प्रेम से कहता है 'खाना खा लो' और कोई क्रोध से ...........शब्द तो वही हैं, पर भाव बदल जाते है ........ये सिर्फ और सिर्फ समय की बर्बादी है ........
और क्योंकि मैं यहाँ पर आपकी मेल मिलने के कारण आया हूँ, इसलिए मैंने सिर्फ हरकीरत जी की टिप्पणियां पड़ी...........आपकी कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं.......आप उम्र और तजुर्बे में मुझसे पड़े है, कोई गुस्ताखी हुई हो तो छोटा समझ के माफ़ करें |
महात्मा बुद्ध ने कहा था संसार में सबसे आसन काम होता है दूसरों में गलती निकालना और सबसे मुश्किल है अपनी गलती को मानना |
काश हम सब इन चीजों से ऊपर उठ पाते तो हम कम से कम इंसान हो जाते |
सच के ऊपर जिसे हमेशा गाँधी जी के साथ जोड़ा गया है | इस देश में अगर किसी ने नंगा और कड़वा सच बोला है तो वो हैं ओशो |
सच तो तुम्हे भरे बाज़ार में नंगा खड़ा कर देता है ........... "
पाँचों ही लघु कविताएँ बहुत ही अनुपम !
आपकी लेखनी को नमन !
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल .
कहीं बहुत गहरे चोट की इन पंक्तियों ने .
बहुत अच्छी रचनाएँ हैं सभी.
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ...
बहुत ही सुन्दर एवं गहरे भाव ।
baat badi hai..par mujhe amrita ji yaad aati hain!
पांचों ही रचनाएँ कमाल की हैं ......संवेदनशील पर हकीकत का आइना भी.....
हरकिरत जी, मेरे कहने के लिए कुछ नही बचा है..बाकी सब ने ही कह डाली...एक से बढ़ कर एक सुंदर और भावपूर्ण रचना है..आपकी क्षणिकाओं का कोई जवाब नही होता ऐसा मैं पहले से कहता आ रहा हूँ..कोई कुछ भी कहे पर आपकी लेखनी कमाल की है..बस निरंतर लिखते रहिए.....बेहतरीन रचना के लिए बधाई....
जितने मुसाफ़िर
उतने सफ़र ...
जितने रास्ते
उतनी मुश्किलें ...
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
क्या कहूं? कविता पर बहुत कुछ कहना मुझे नहीं आता, हां महसूस करती हूं, एक एक शब्द को.
लाजवाब मूक कर देने वाली है हर पंक्ति ....गहरे भाव और गहन अभिव्यक्ति लिए हर रचना मेरे दिल को छु गयी ....बेहतरीन
कोई कुटिल ,
अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी केंचुल ......!!
बेहतरीन! आपको पढना भी हमारी खुशकिस्मती है! बेमिशाल लेखन!
हीर जी,
आपकी सारी टिप्पणीयो को लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ.......जबसे मैंने ब्लॉगजगत में पदार्पण किया है.....कई अच्छे लोगो से रूबरू होने का मौका मिला है....पर इन सबमे न जाने क्यूँ मैं सबसे ज्यादा आपकी इज्ज़त करता हूँ......एक बात कहना चाहता हूँ.........एक अच्छा फनकार होने के लिए विनम्र, संवेदनशील होना ज़रूरी है और इन सबसे बढकर सबसे पहले एक अच्छा इंसान होना सबसे ज्यादा ज़रूरी है.......मेरे लिए किसी को नापने का पैमाना उसकी इंसानियत ही है......आपका मेरे ब्लॉग पर आना मुझे बहुत अच्छा लगा.....धन्यवाद|
इमरान जी ,
जो कुछ भी हुआ उस से तो ब्लॉग जगत से मन उठने सा लगा है ....
जो कुछ आस पास देखा वही यहाँ भी दिखाई दे रहा है .....
हर कोई अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहता है ....
आपने इज्ज़त बख्शी शुक्रगुज़ार हूँ ....
हरकीरत जी आपने कई नए और अद्भुत बिम्ब रचे हैं-
जैसे चिड़िया उतारती है पंख
----
इक तूफ़ान ने दरख़्त के सारे पत्ते
नोच लिए थे .....
--
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
आपको बहुत-बहुत बधाई।
http://sudhirraghav.blogspot.com/
हरकीरत जी............... सबसे पहले तो एहसास पर टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया। आशा करता हुं आपका मार्गदशZन इसी प्रकार मिलता रहेगा। आपकी रचनाएं पढ.ी। सभी एक से बढ.कर एक है। क्या कहुं सभी लोगों ने पहले ही इतना कुछ कहा है कि अब और कुछ कहना बेमानी होगा।
आपकी संवेदनशीलता का कोई मुकाबला नहीं आपा !
बधाई !
आप के ब्लॉग पर पहली बार आया और इतनी मर्मस्पर्शी नज़्म पढ़ने को मिलीं. इतनी गहन पीड़ा और कशिश इतने सुन्दर शब्द चित्रों से प्रस्तुत की हैं की कुछ भी कहना काफी नहीं होगा.वैसे तो सभी नज़्म बहुत गहराई तक दिल को छू लेती हैं,पर तूफ़ान और कॉल गर्ल बहुत समय तक मस्तिष्क में गूंजती रहेंगी.बहुत सुन्दर..आभार
अब मै क्या कहूँ ...कविताओं की गंभीरता और सादगी के बीच बेहद चोटिल मन का जो चित्र सामने आ रहा है..वो आपके संवेदनशीलता को एक बेहद ऊँची मुकाम पर पहुचता है...शब्द तो वही सारे हें जो मै बचपन से बिना लाग-लपेट के सुनता आया हूँ..मगर आपके शब्दों का जोड़-घटाव भावनाओं के गणित को समझा जाता है......क्या हुआ अगर कुछ लोग परेशान हैं अपने -अपने परेशानियों को सबसे बड़ी परशानी समझ कर... और उलझने के लिए एक बहाना धुंडते है....आप बस आनंद लीजिये और शब्दों को जोड़ते रहिये ....ज़िन्दगी के सभी भावनाओं को आपके शब्दों में पढने वालों की कमी नहीं..नवरात्रि की आपको अनेकों शुभकामनाएं
विजय दशमी की बहुत बहुत शुभ कामनाएं
दिल को छूती हुए कविता
उम्रभर दौडती रहती है ज़िन्दगी ...
रास्तों से अधिक लम्बी है मंजिलें ...
राह में ......
धोखा है ,छल है ,कपट है ,बेवफाई है
काई के नीचे जड़ें ....
तलाशतीं हैं अपनी पहचान ....
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
चर्चा हुई---
..वहाँ मैं इसलिए चुप रहा कि मैं चाहता था कि इसको ब्लॉगर स्वयंम् शुद्ध कर लेंगे...फिर भूल गया।
..आपका गुस्सा तो भयंकर है ! 'ओए होय' वाले अंदाज में यही बात कही जाती तो मजा भी आता और लोग समझ भी जाते।
देवेन्द्र जी ,
मुझ से झूठ और गलत बात सही नहीं जाती ....
हाँ जहां मेरी गलती होती सहज रूप से जरुर मानूंगी .....
सबसे पहले तो दशहरा की शुभकामनायें ...
सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर है ... खासकर पहली रचना बेहतरीन लगी ...
कोई कुटिल , अपने अहं की खातिर
झाड़ियों के पीछे ....
उतारता है अपनी
केंचुल ......!!
जब दिल में चोट लगती है तो, दर्द फुट निकलता है ...
एक इल्तजा है, तीसरी रचना में HVI लिखा गया है ... उसे कृपया HIV कर लें ...
हमेशा की तरह बेहतरीन...लाजवाब
बढिया पोस्ट ....
जीवन की विसंगतियों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
hamesha ki tarah behatreen rachnayen !
इन्द्रनील जी,
बहुत बहुत शुक्रिया गलती सुधार दी गई है .....!!
बाली जी ,
आपने तो पहले भी कमेन्ट किया था .....?
bahut bahut badhai harkeeratji
वह ....
हाथों में पर्ची लिए
फूट-फूटकर रो पड़ा ...
''तुमने ऐसा क्यों किया एंजिल ...?"
वह .....
तल्खी भरे स्वर में
मुस्कुराकर बोली .....
''मुझे देने वाला भी कोई मर्द ही था जानम ...''
वह एच आई वी पोजिटिव थी .....!!
padhane ke bad aj ki yua peedhi hosh me aa jati hai ...kas ye panktiyan h i v ke vigyapan ke liye chuni gyeen hoti to kitana achha hota ......samaj ke liye bahut hi sarthak rachna ....bahut bahut abhar.
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