उम्मीद का इक उड़ता पंछी न जाने कब मेरी खिड़की पे आ बैठा .....पेड़ों के पत्ते हरे हो गए ....सबा ने झोली से कई सारे फूल निकाले ....और बिखेर दिए मेरे सामने .....मैंने देखा उसमें तुम्हारा वो सुर्ख फूल भी था ....मैंने हौले से उसे छुआ ....वह तेरी तस्वीर बन मुस्कुराने लगा ............
बस ये मोहब्बत के कुछ ख्याल उतर आये यूँ ही .........
(१)
धरती में .....
जब चारों ओर आग लगी थी
सूरज ने अपना चेहरा ढक लिया था शर्म से .....
चाँद लुढ़क आया था पत्थरों पे ..
कोई जहरीले धागों से सी रहा था कफ़न .....
उस वक़्त ......
मुहब्बत सफ़ेद लिबास में मेरे सामने खड़ी थी
मैंने हौले से उसे छुआ और पूछा -
''क्या तुम मुझे इक.......
फूल दोगी ....!?! ''
(२)
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
(३)
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
(४)
मेरे एक हाथ की मुट्ठी में
ज़िन्दगी है .....
और दुसरे हाथ की मुट्ठी में
मौत ......
देखना है मोहब्बत ....
किस रस्ते चलती है .......!!
(५)
ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
पैरहन ......!!
(६)
तुम्हारी नज्में ...
अब भी हैं मेरे पास
तुम्हारी भेजीं , वो तस्वीरें भी ...
कभी -कभी बड़ी बेहयाई से
ज़िस्म से बातें करने लगतीं हैं ....
ऐसे में मैं उन्हें ओढा देती हूँ ....
गर्म साँसों का कम्बल ......!!
(७)
मुहब्बत अक्षरों को ...
घुलने नहीं देती पानी संग
न किसी और ज़मीं की तलाश में
लांघती है दहलीज़ ....
वह उन अक्षरों को जोड़ कर
देना चाहती हूँ करती है
जहाँ मैं आज की
रात लिख ....!!
(८)
सूरज ........
बदनसीबी की रौशनी से रंग देता है
मेरे लिखे हर लफ्ज़ को ....
इससे पहले कि वह फिर छीन ले
मेरे हाथ से कलम ...
और निराशा में मेरे सारे
हर्फ़ मर जायें
मैं आज की रात
लिख देना चाहती हूँ
मोहब्बत के नाम ...
पहला ख़त .....!!
(९)
ऊपर स्याह आसमां था
और नीचे आग से जलते अक्षर
इन दोनों के बीच से गुजर कर
मैंने अपनी मुहब्बत अयाँ की है
इससे पहले कि वह फिर
ख़ामोशी में पनाह ले
आ इसे.....
इन हवाओं में
नस्ब कर दें .....!!
नस्ब- कायम
(१०)
आज का ये आधा चाँद
लिख इन है अपनी तकदीर
खंज़र की नोक पर ....
आज की रात यह
फिर सोयेगा .....
सूरज के आगोश में ......!!
Saturday, September 25, 2010
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71 comments:
अच्छी पंक्तिया है ........
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
क्या आप भी थर्मस इस्तेमाल करते है ?
बहुत खूबसूरत खयालॉं को नज़्मों मे पिरोया है आपने ।
" kis nazm ko kahu ki ye badhiya
nazm hai yaroan yahan per aaye to dil kho gaya in nazmoan me .."
didi, bahut hi badhiya nazme pesh ki hai aapne
badhai
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
लिबास ......!!
aapke likhne ka andaj hi nirala hai baat seedhe dil me utar jati hai aur hum kuchh kshano ke liye doob jaate hai us bhav me ,saare hi sundar hai . ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++mahsoos ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
मोहब्बत के तमाम एहसास ज़िन्दा हो जाते हैं
एक शक्ल इख़्तियार कर लेते हैं
और
दिल के मुक़द्दस कागज़ पर
ब्रह्मलिपि में लिख जाते हैं
love is god !
मैं बांचता हूँ और आपके ब्लॉग पर टिप्पणी कर देता हूँ
वाह वाह .....बहुत ख़ूब !
बेहतरीन हर कविता ।
मै खुद उम्र दराज हूं पर फिर भी
ये पसंद आ ही गई ।
ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
लिबास ......!!
और यह भी
मुहब्बत अक्षरों को ...
घुलने नहीं देती पानी संग
न किसी और ज़मीं की तलाश में
लांघती है दहलीज़ ....
वह उन अक्षरों को जोड़ कर
इक पुल बना देती है ...
जहाँ मिलते हैं ....
दो दिल .....!!
इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
कैसे समेटे इन्हें एक टिप्पणी में
बहुत ख़ूबसूरत हमेशा की तरह ...!
मैंने हौले से उसे छुआ और पूछा -
''क्या तुम मुझे इक.......
फूल दोगी ....!?! ''
कितना कोमल एहसास संजोया है आपने अपनी नज़्मों में ..
कोई मिसाल नहीं ..
आज दस बार सोचने को मजबूर किया आपकी पोस्ट ने।
बेहतरीन पोस्ट।
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
..वाह!
बेहतरीन पोस्ट।
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
..वाह!
वाह जी अज्ज ते कमाल हो गया।
किस किस नज्म का जिकर करुं।
बेहतरीन लेखन के बधाई
तेरे जैसा प्यार कहाँ????
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
आज की रात इक चाँद
फिर सोयेगा .....
सूरज के आगोश में ......!!
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
अवश्यम्भावी है ।
अब जब चाँद और सूरज ज़मीं पर उतर आये हैं और एक हो गए हैं तो ये ज़मीं रौशनियों की नगरी ही नज़र आएगी जी ।
इसलिए उतार फेंको यह काला लिबास और रौशन होने दो मुहब्बत के जहाँ को ।
बहुत लम्बे अरसे के बाद आप की मुहब्बत का पैगाम देती ये रचनाएँ पढ़कर आज सूर्य देवता भी मुस्करा उठे हैं और सुहानी धूप छाई है ।
लाज़वाब क्षणिकाएं हरकीरत जी ।
ek se badhkar ek khayaal...hamesha ki tarah hi umda!
आपकी हर रचना निःशब्द कर देती हैं.... बहुत अच्छी लगी आज की पोस्ट....
हरकीरत जी किस किस क्षणिका की बात करूँ एक से एक बढ कर है। फिर भी ये दिल को अधिक छू गयी।----
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
अच्छी पंक्तिया है ........बेहतरीन पोस्ट।
बहुत खूबसूरत खयालॉं को नज़्मों मे पिरोया है आपने ।
सिर्फ़ इतना ही कहूँगी-----
प्रेम तो है ही ऐसा पंछी
जिस भी डाली पर
बैठता है उसे ही
हरा कर देता है
बस आपके मोहब्बत के ख्याल उसी की बानगी हैं।
ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
लिबास ......!!
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
वाह !!!! लाजवाब एक एक बात दिल के बहुत करीब दिल में उतर सी गयी जैसे
बहुत खुब जी , अति सुंदर रचनाये. धन्यवाद
aapkee nazme jaduee asar kar jatee hai.....
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
हरकिरत जी..मैं निशब्द हूँ..वैसे तो शायद ही आपकी कोई पोस्ट पढ़ना मैं भूलता हूँ पर आज की पोस्ट तो बेहतरीन है..मुझे ब्लॉग जगत के बारे में हो सकता है अधिक जानकारी ना हो पर मेरी नज़र में क्षणिकाओं की प्रस्तुति में आप बेस्ट है...शब्द और भाव दोनो का इतना बेजोड़ संगम होता है की पढ़ते-पढ़ते नज़रे जम जाती है....
मैं बहुत बहुत शुक्रिया कहना चाहूँगा इस सुंदर रचनाओं के लिए...बधाई स्वीकारें..
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में ..
ऐसा नहीं है की लिखा नहीं जा सकता, पर कभी कभी मन होता है की कहा जाये "नो कमेन्ट्स!!"
‘देखना है मोहब्बत ....
किस रस्ते चलती है .......!!
ऐ मुहब्बत ज़िंदाबाद ॥
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है ...
कमाल लिखा है। बेहतरीन।
हर ख्याल दिल की धड़कन को हर मिनट ३-४ बार ज्यादा तेज़ी दे गया.. आपकी लेखनी का पहले दिन से ही मुरीद हूँ...
जन्मदिन पर आपकी शुभकामनाओं ने मेरा हौसला भी बढाया और यकीं भी दिलाया कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ.. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
हरकीरत 'हीर' ने इन कविताओं में अपने शब्दों और अहसासों के मद्ध्यम से मोहब्बत के इतने रंग भरे हैं कि शब्द शब्द उदहारण का हक़दार है |इन गहरी संवेदनाओं को हार्दिक बधाई
बहुत ही सुंदर और नायाब नज्में, शुभकामनाएं.
रामराम.
मोहब्बत की गर्माहट से रंगी क्षणिकाएं .बहुत सुन्दर लगीं सभी.
शहद सी मीठी नज्मे पढकर एक आह ! सी निकलती है !मुहब्बत किस राह से जाएगी ..एक तरफ जीवन एक तरफ मौत ! आभार
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है ...
कितना अलग और खुशनुमा अहसास है आपके लफ़्ज़ों में...
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में ...
वाह...
हरकीरत जी...
हर नज़्म खूबसूरत है.
हीर जी,
नज्मों की प्रस्तावना में जो शब्द
आपने अपनी नज्मों के बारे में कहे हैं ,
उनसे अच्छे शब्द मेरे पास नहीं हैं ,
बस इतना ही कह सकता हूँ कि,
ये नज्में -
मुहब्बत के गुलशन के वो फूल हैं
जो कभी मुरझा नहीं सकते !
इंशाअल्लाह!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
is nagri se kaun sa rang lun , kise chhod jaun
यह पोस्ट कुछ अलग सी है बहुत देर तक सोचने पर मजबूर करती ...
हार्दिक शुभकामनायें आपको !
हरकीरत जी,
समझ नहीं आता किस की तारीफ़ ज्यादा करूँ.................आप एक बड़ी फनकार हैं .......मैं आपको सलाम करता हूँ..............मुझे लगता है आपको अपनी रचनाओ का संग्रह प्रकाशित करवाना चाहिए.........जिसकी एक प्रति आप मुझे ज़रूर देना ...........बहुत ही खुबसूरत..........ऐसा लगा जैसे जिब्रान साहब के भावों को गुलज़ार साहब की कलम से निकला गया हो...........और लफ्ज़ नहीं बचे मेरे पास....वाह....वाह....
इमरान जी आप सब की दुआ रही तो इस साल के अंत तक दूसरा संकलन आना चाहिए ....
रचनाये तो सारी ब्लॉग वाली ही हैं .....
हर नज़्म बहुत सुन्दर.
.....दिल को छू जाने वाली एक एक से बढ कर एक लाज़वाब क्षणिकाएं...पर कुछ ज्यादा भा गयी ये पक्तियां ........
ऊपर स्याह आसमां था
और नीचे आग से जलते अक्षर
इन दोनों के बीच से गुजर कर
मैंने अपनी मुहब्बत अयाँ की है
इससे पहले कि वह फिर
ख़ामोशी में पनाह ले
आ इसे.....
इन हवाओं में ....
नस्ब कर दें .....!!
नस्ब- कायम
''क्या तुम मुझे इक.......
फूल दोगी ....!?! ''
is baat ko padhte hi main bhool gaya ki dhartee pe aag lagi thi ..behad sundar bhav
मुहब्बत अक्षरों को ...
घुलने नहीं देती पानी संग
न किसी और ज़मीं की तलाश में
लांघती है दहलीज़ ....
वह उन अक्षरों को जोड़ कर
इक पुल बना देती है ...
जहाँ मिलते हैं ....
दो दिल .....!!
kya baat hai ...pul banta hua mahsoos hua to ek daiviya chamtkar ka ehsas hua ...
bahut adbhut rachna hai
bahut hi khubsurat panktiyaan hain....
mere blog par dharmveer bharti ki ek bahut hi achhi rachna..
aapka intzaar rahega..
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
खूबसूरत ख्यालों से लबरेज लाजवाब नज्में .
हरकीरत जी एक से एक बढ कर एक क्षणिका !!
खूबसूरत खयाल !!
आप की कविता के भावों ने तो मन के तारों को झकझोर दिया!
raja prja jehi ruche shis dey le jaye ,jo ghr fppnke aapna ya tlvar kee dhar pai dhvno hai
perm ke in sre roopon ko sundr abhvykti dee hai
shighr hi doosra snkl aayega hi
meri hardik shubhkamnyan swikar kr len bich me bina bat ki vystayen aa jati hain kai din bad aap ko pdh pya hoon achchha lga aap ke sahit kuchh log hi to achchha likh rhe hai
nirntr likhti rhen
smvad v smprk bna rhe
hardik aabhar
dr.vedvyathit@gmail.com
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम एक जगह, हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई, अनुपम ....।
हरकरीत जी, ये सभी क्षणिकाएँ पढ़ गया.कल्पना और शैली का एक नया अंदाज़ आपने दिया है. बहुत अच्छा लगा. आपके अगले संकलन के लिए शुभकामनाएँ.
आज की रात इक चाँद
फिर सोयेगा .....
सूरज के आगोश में ......!!
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
इतने सुन्दर अलफ़ाज़..........
वाकई "हीर" के ही हो सकते है.........
yekse badhakar yek laajavab............
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है ...
दस का दम .... सचमुच सब की सब दमदार हैं ... निःशब्द कर देती हैं .... इन छोटी छोटी क्षनिकाओं में कितनी ताक़त होती है .... किसी एक को चुनना आसान नही त ... पर ये ऊपर वाली बहुत लाजवाब लगी इसलिए उतार दी यहाँ ...
हीर जी
आपकी ये हर एक नज्म हीरे जैसी..... बेहतरीन
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!"
हरकीरत जी, सारी नज्में उम्दा हैं
पढने वाले के अन्दर खुलती हैं, खिलती हैं,
नो २, ४ और ६ को रेखांकित करना चाहूँगा,
आपकी नज्मों में कुछ ऐसी बात है की वो बरसों तक कायम रहने वाली हैं,
बधाई
आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ और सोच रही हूँ इतने लेट कैसे हो गए? बहुत ही अच्छा लिखती है आप. फुर्सत में आपकी सारी रचनाओं को पढूंगी. बस समझिए फैन हो गयी हूँ आपकी.
उम्दा नज़्म
आप दर्द के भाव बखुबी समझती है...
इसके लिए आभार..
एक नया ब्लाग भी लिख रहा हूं आजकल कभी यहाँ भी चक्कर मार दिया करें तो बडी मेहरबानी होंगी..
पता है
www.meajeet.blogspot.com
bahut sundar 'heer' ji.......
sabhi nazmein bahut umda hain, khaas kar ye
धरती में .....
जब चारों ओर आग लगी थी
सूरज ने अपना चेहरा ढक लिया था शर्म से .....
चाँद लुढ़क आया था पत्थरों पे ..
कोई जहरीले धागों से सी रहा था कफ़न .....
तुम्हारी नज्में ...
अब भी हैं मेरे पास
तुम्हारी भेजीं , वो तस्वीरें भी ...
कभी -कभी बड़ी बेहयाई से
ज़िस्म से बातें करने लगतीं हैं ....
ऐसे में मैं उन्हें ओढा देती हूँ ....
गर्म साँसों का कम्बल ......!!
ਹੀਰ ਜੀ,
ਨਮਸਤੇ!
ਲਿਲ੍ਲਾਹ! ਵਲ੍ਲਾਹ! ਅਲ੍ਲਾਹ!
ਜੇਡਿਯਾਂ ਸਮਝ ਆਯੀਂ, ਵਧਿਯਾ ਲਗੀਂ!
ਜੇਡਿਯਾਂ ਨਹੀਂ ਆਯੀਂ, ਓਹਨਾ ਦੇ ਵਾਰੇ ਕੀ ਕਹੇਂ ਅਪ੍ਪਾ?!
ਆਸ਼ੀਸ਼
--
ਪ੍ਰਾਯਸ਼੍ਚਿਤ
आपके लिए 'बहुत ही अच्छा' लिखना कितना आसान है.
इसका पता उन शब्दों से ही चल जाता है
जिन शब्दों के साथ आपने अपनी पोस्ट की शुरुआत की.
एक -एक शब्द बार -२ पढने को मन करता है. भई शुरूआती पंक्तियाँ
दिल को छू लेने वाली हैं. अब दस का दम की बात ......................
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है ...
या फिर
मेरे एक हाथ की मुट्ठी में
ज़िन्दगी है .....
और दुसरे हाथ की मुट्ठी में
मौत ......
देखना है मोहब्बत ....
किस रस्ते चलती है .......!!
भई वाह.... क्या बात है.
कितना मुश्किल है किसी एक या दो रचनाओं को
ये कह देना कि बहुत ही अच्छी हैं ..जबकि सभी
रचनाएं एक से बढकर एक हों .....
बस इंतना कह सकता हूँ कि
सभी कमेंट्स करने वालों ने जो भी आपकी तारीफ़ में कहा है मैं उन सभी से सहमत हूँ.
आपकी इस बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको आभार .
जरा सी .....
नज़र क्या मिली
कितने ही रंग फ़ैल गए
ज़िस्म की दीवार पर ....
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
हरकीरतजी!!
मुसव्विर की कलर-ट्रे होती है शायद
आज ये मरुस्थल में
जाने कैसा ...
सुर्ख सा फूल खिला
आज की रात ....
पिघलेगी कोई बर्फ ...
मुहब्बत की आग में .......!!
जोरदार बारिश और तूफान के आसार हैं मोहतरमा!संभलकर..
मेरे एक हाथ की मुट्ठी में
ज़िन्दगी है .....
और दुसरे हाथ की मुट्ठी में
मौत ......
देखना है मोहब्बत ....
किस रस्ते चलती है .......!!
हम कहेंगे ....मोहब्बत जिन्दाबाद!
ये उम्र दराज़ के लोग
भले ही अपने दरीचों से
झांकते रहे हमारी खिडकियों की ओर
हम बंद कमरों में सी लेंगे
अपनी मुहब्बत का...
लिबास ......!!
बूढ़ी दहलीज़ को जब नौ-जबीन छूती है ,
ये समझिए कि नयी , घर में ,सुबह होती है।।
कोई किसी को नयी सुबह से महरूम न रखे! आमीन!!
खुशदीप सहगल सर, द्वारा आपके ब्लॉग का पता चला. बहुत ही अच्छा और भावनात्मक.......
आशा करता हूँ - आपकी नज्मो का लुफ्त उठता रहूँगा.
हर नज़्म भावनाओं की सीढ़ी जो सितारों के बीच तक ले जाती है
kumar zahid said..
@ जोरदार बारिश और तूफान के आसार हैं मोहतरमा!संभलकर..
जनाब जाहिद साहब ,
यूँ तो मैंने भूमिका में ही लिख दिया था कि ये महज़ ख्याल भर हैं ....
पर फिर भी आपने तूफानों का ज़िक्र किया तो बता दूँ कि ज़िन्दगी में इतने तूफ़ान और आंधियाँ झेलीं हैं कि अब न टूटने का डर है न तन्हाई का खौफ ...
संगीता जी,
मेरे ब्लॉग पर आने और हौसलाफजाई करने का मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ ..............धन्यवाद |
बहुत सुन्दर !
bahut hi khoobsurat ... shabd nahi hain bayaan karne ke liye ...
खूबसूरत अहसासों को सुन्दर शब्दों में ढाला......बधाई.
__________________________
"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
भावों की कीमिया और बिंबों की विमाओं को परिभाषित करते कविता बन जाने वाली पंक्तियां.
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
ये मोहब्बत क्या ....
रौशनियों की नगरी होती है .....!?!
Khoob Bahut khoob
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