मुहब्बत इक ऐसा खूबसूरत ख्याल है जिसे.... सिर्फ लफ़्ज़ों से भी महसूस किया जा सकता है ....मैंने वो तमाम लफ्ज़ जो कभी जुबाँ की दहलीज़ न लाँघ सके ....इन नज्मों में पिरो दिए हैं ....इसमें सांसें तो हैं पर रंगत नहीं ....नूर नहीं ....बस एहसास है ....क्या जीने के लिए इतना काफी नहीं .......?
आप सब की फरमाइश पर फिर कुछ मुहब्बत भरी नज्में ......
(१)
तेरी होंद .....
तेरे जिक्र की खुशबू
बिखेर जाती है
चुपके से सबा
मेरे करीब कहीं ....
तेरी होंद हर पल
मेरे जेहन पर
खीँच जाती है
शाद की लकीरें
ऐसे में तू ही बता
मैं चुप्पियों की ज़मीं पर
कैसे चलूं .......!?!
(२)
ज़ख़्मी साँसें .....
तेरे अनकहे लफ्ज़
बार-बार चले आते हैं
तेरा पैगाम लेकर
पर न जाने क्यों
तेरी कलम अभी खामोश है ....
मेरी सांसें बहुत ज़ख़्मी हैं
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
(३)
मुहब्बत का आखिरी गीत ......
मैं अपनी उम्र की
आधी चाँदनी से ....
तुम्हारे आधे डूबे सूरज पर
लिख देना चाहती हूँ
मुहब्बत का आखिरी गीत
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!!
(४)
चनाब की गहराई .....
अय मोहब्बत ...!
आ मुझे इश्क़ की नदी में
डुबो दे .........
मैं नापना चाहती हूँ ...
अपने ज़िस्म के
इक-इक कतरे से
चनाब की गहराई .....!!
(५)
जरा ठहर अय चाँद ......
जरा ठहर अय चाँद .....
बड़ी मुद्दतों बाद
आज मेरी कलम से
मुहब्बत का गीत उतरा है
जरा सी रौशनी तो कर
तुझे पढ़ के सुना दूँ .....
कहीं नामुराद....
दम न तोड़ दे
सहर* होने तक .......!!
सहर - सुब्ह
Tuesday, July 6, 2010
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61 comments:
इश्क के अहसासों को बेहद खूबसूरती से शब्दों में ढाला है आपने ,हरकीरत जी।
तीसरी नज़्म ने तो कलेजा ही निकाल लिया॥
मैं अपनी उम्र कीआधी चाँदनी से ....तुम्हारे आधे डूबे सूरज परलिख देना चाहती हूँमुहब्बत का आखिरी गीततुम फलक की ओरमुँहकर आवाज़ देनामैं उतर आऊँगी ...तुम्हारी हथेलियों परसुर्ख फूल लिए ......!!
बहुत सुंदर....बधाई॥
bahut hi achhi nazm.....
एक से बढकर एक ख्याल्………………सीधे दिल मे उतर गये।बेहद खूबसूरत अल्फ़ाज़्।
सांसो की गहराई मे उतरी हुई
मोहब्बत तेरी आंखे
जैसा नूर हो खुदा का!
बस और क्या चाहिये,आपके लफ्जो ने जो आकार ले लिया .............
धन्यावाद !
एक से बढ़कर एक - पाँचों बेमिशाल
aaj comment karne ka to man hi nahi hai...kisi ko chunna mimkin nahi.
aap samajh hi rahi hongi..:)
apka aisa meetha likhna fir se pasand aaya.
Aur haan, सूना ko theek kar lein, maatra ki truti hai.
तेरे अनकहे लफ्ज़
बार-बार चले आते हैं
तेरा पैगाम लेकर
पर न जाने क्यों
तू अभी खामोश है ....
मेरी सांसें बहुत ज़ख़्मी हैं
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
हीर जी, कभी कभी ये अनकहे अल्फ़ाज़ ही
सब कुछ कह जाते हैं ,
बहुत सुंदर!
मैं अपनी उम्र की
आधी चाँदनी से ....
तुम्हारे आधे डूबे सूरज पर
लिख देना चाहती हूँ
ग़ज़ब का अहसास ।
मैं नापना चाहती हूँ ...
अपने ज़िस्म के
इक-इक कतरे से
चनाब की गहराई .....!!
ज़ज्बात की गहराई तो देख ली , अब चनाब का क्या करना है ।
बड़ी मुद्दतों बाद
आज मेरी कलम से
मुहब्बत का गीत उतरा है
ये लम्हे बार बार आयें ।
शुक्रिया जी ।
बेहतरीन
होंद का मतलब क्या होता है ?
bahut sundar prastuti...abhaar
पता नहीं क्या वजह है कोई कमेन्ट दिखाई ही नहीं दे रहा ....कोई अन्यथा न ले......!!
हम तो छोड़ आए थे कदमों के निशां
वक्त को शायद ये मंजूर न था
Mahesh ji,
hond punjabi shbd hai ....;tumhara hona' ya 'tumhara astitv' .....
Hi..
Aapke har ashaar, har nazm seedhe seene main uttar jate hain..
Aur de jate hain ek kasak dil main kahin andar tak..
Jisme ek meetha sa ahsaar hai,
anbhujhi si pyaas hai..
Bahut hi sundar..
Deepak..
भई हरकीरत,
गज़ब ढाती हैँ आप! इक इक शब्द दर्द मेँ डूबा हुआ जैसे नश्तर हो ज़हरबुझा !
आपके इन शब्दोँ मेँ आपका मुक्कमल अक्स उभरता है शायद अपने ही शब्दोँ मेँ पिघल आतीँ हैँ!
कितना दर्द है आपके भीतर जो कभी 'मुकता' नहीँ?
आप से gmail पर रू-ब-रू होने की तमन्ना जिस क्षण पाली उसी क्षण काफूर हो गई!
*होँद अस्तित्व को ही कहते हैँ यह बताने की भी दरकार थी क्या ?
@ऐसे में बता मैं चुप्पियों की जमीन पर कैसे चलूँ ...
चल ही रहे हैं हम तो !
@अपनी उम्र की
आधी चाँदनी से ....
तुम्हारे आधे डूबे सूरज पर
लिख देना चाहती हूँ
मुहब्बत का आखिरी गीत
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!!
गज़ब ...
कभी कही आप स्तब्ध कर देती हैं ...पूरी कायनात इन शब्दों तक ही आकर ठहर गयी तो ..?
खीँच जाती है
शाद की लकीरें
ऐसे में तू ही बता
मैं चुप्पियों की ज़मीं पर
कैसे चलूं .......!?!
ऐसे बिम्बों और शब्दों से खेलना आपकी लेखनी का कमाल है। और उस लेखनी को मेरा सलाम है!
"तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!"
आह.. जबरदस्त..
ek se badh kar ek........najme!! behtareen!
लगता है पंजाबी जादू बंगाली जादू को पीछे छोड़ देगा
क्या कहू मै
मेरी गुड खाने वाले गूगे की है ............
अनकहे लफ्ज़
बार-बार चले आते हैं
तेरा पैगाम लेकर
पर न जाने क्यों
तू अभी खामोश है ....
मेरी सांसें बहुत ज़ख़्मी हैं
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
........बहुत सुंदर....बधाई॥
Blogger ओम पुरोहित'कागद' said...
@ आप से gmail पर रू-ब-रू होने की तमन्ना जिस क्षण पाली उसी क्षण काफूर हो गई......
ओम जी , बुरा मत मानियेगा ....समय बहुत कम निकल पाती हूँ इन्टरनेट के लिए .......ऐसे में चैट पर बात करना संभव नहीं ....अगर कोई ख़ास बात हो तो मेल कर दिया करें .....!!
@ DR. PAWAN K MISHRA said...लगता है पंजाबी जादू बंगाली जादू को पीछे छोड़ देगा.....
मैं समझी नहीं .....??
क्या नज्मों में बंगाल सबसे आगे है ....?
चनाब की गहराई सच में मुहब्बत की गहराई है ... और मुहम्मत की इतना मासूम गीत सुन के चाँद भी टिका रहेगा आसमान पर ... बहुत गहरी और लाजवाब ... मुहब्बत के रंग बिखरे हैं आज ....
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ..।
लाजवाब......आपके इन शब्दों ने तो समेट लिया है पूरी रचना की सुंदरता को एक बार फिर आभार के साथ बधाई ।
अपनी उम्र की
आधी चाँदनी से ....
क्या कहें ? आप तो पूनम का चाँद बन चमकें ।
harkeerat ji ...blogging jagat mein to aapka jadoo chal hi raha hai par sach kehoon aap is se kahin jyada ki haqdaar ho...kya kehna chahti hoon..samajh jaiye aap!
सभी ख्याल बहुत सुन्दर और दिल के करीब लगे खासकर जख्मी साँसे ...इसको मैंने चुरा लिया है :) शुक्रिया
सभी नज्मे बहुत सुंदर धन्यवाद
BAHUT SUNDER.
..BADHAI.
तेरे अनकहे लफ्ज़
बार-बार चले आते हैं
तेरा पैगाम लेकर.....
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
बहुत ही गहरी बात है.....
'अनकहे लफज'....
जब हम अनकहे लफज समझने लगते हैं तो ज्यादा देखने लगते हैं....
हरकीरत जी,
मैने एक नया बलॉग बनाया है...जिस में 'कहे' से 'अनकहा' ज्यादा वज़नदार होता है....
'हिन्दी हाइकु'....
आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा ।
लिंक है...
http://hindihaiku.wordpress.com
हरदीप सँधू
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!लाज़वाब!!!
हरकिरत जी..वाकई खूबसूरत नज़्म.....सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें...
आपकी रचनाओं का हर भाव कल्पनाऔ से भी ऊपर होता है। और इश्क मे तो शायद इन रचनाओं का कोई सानी नही है। लाजवाब ।बधाई।
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!"लाज़वाब
बहुत सुंदर....बधाई॥
तेरे अनकहे लफ्ज़
बार-बार चले आते हैं
तेरा पैगाम लेकर
पर न जाने क्यों
तेरी कलम अभी खामोश है ....
मेरी सांसें बहुत ज़ख़्मी हैं
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
baari baari dekhi har ko apne me behtar pai ,kya kahoon dil me utarne layak hai sabhi .khoobsurat
मोहब्बत के अहसास को शब्द देना आसान नहीं है ..
अमूर्त का मूर्तीकरण है यह ..
अच्छी पंक्तियाँ .. सबसे अच्छा लगा कि आपकी इन
छोटी छोटी कविताओं में प्रकृति की अभिव्यक्ति हुई है , प्रकृति
की सापेक्षता में प्रेम और सुन्दर होता है ! आभार !
kamal ka tasavvur,
gazab ka bayan,
dil men ek roshanee
see kartee nazmen.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
10.07.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
10.07.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
amrita pritam ki yad aa gaye. vahi mizaj
सपने-जैसे कई भट्ठियां हैं
हर भट्ठी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है
तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक्त की रोज़ी रख दे।
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!!
कोमलतम रचनाएँ ... बहुत धीरे से और खूबसूरती से छूकर मानों आगे बढती हैं
बेहद सुन्दर
बेहतरीन ! एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं ...
खूबसूरत अह्सास, बेहद संजीदा नज्मे....
मुहब्बत का आखिरी गीत प्रारम्भिक का आनन्द दे गया ।
लाजवाब ।
अय मोहब्बत ...!
आ मुझे इश्क़ की नदी में
डुबो दे .........
मैं नापना चाहती हूँ ...
अपने ज़िस्म के
इक-इक कतरे से
चनाब की गहराई .....!!
मोहतरमा बधाई .....नज़्म लाजवाब है. चनाब और मुहब्बत का यह एहसास "सोहनी- महिवाल" से जारी है, आपने उसे और भी वुसअतें अता की हैं! आपने नज़्म का खूबसूरत कँवल इस चनाब में उगाया है....उम्दा !
अय मोहब्बत ...!
आ मुझे इश्क़ की नदी में
डुबो दे .........
मैं नापना चाहती हूँ ...
अपने ज़िस्म के
इक-इक कतरे से
चनाब की गहराई .....!!
bas...iske age natmastak.... jab bhi aata hun ..amrita ji ki khushbu aane lagti hai ...:)
बस ये कहूंगी आपका हर ख्याल लाजवाब है.....
हीरजी
कैसे हैं ?
आप तो आप ही हैं ! ऐसा लिखती हैं कि कमेंट करना मुश्किल हो रहा है ।
इस पोस्ट पर दस बार आ गया , टिप्पणी के लिए उपयुक्त शब्द ही नहीं मिल रहे …
हार कर ये चंद अश्आर लिख कर ही संतुष्ट हो्ना पड़ रहा है …
मुलाहिजा फ़रमाएं …
रोज़ आता रहा , रोज़ जाता रहा
लफ़्ज़ लिखता रहा, फिर मिटाता रहा
कुछ तड़पता तो कुछ मुस्कुराता रहा
साथ मा'सूम दिल कसमसाता रहा
आपने नज़्म में गीत इतने दिए
होश ख़ो'कर फ़क़त, गुनगुनाता रहा
एक ज़ादू है, नश्शा है, क्या बात है
आपके फ़न पॅ क़ुर्बान जाता रहा
देख' पाकीज़गी... मैं क़लम की ; ख़ुदा
मा'बदे भूल कर …सर झुकाता रहा
'हीर' के ही लिए 'राज' की हर दुआ
यूं ख़ुदा को भी मैं आज़माता रहा
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
राजेंद्र जी ,
आपके ज़ज्बातों की कद्र करती हूँ ....हीर के लिए आपकी ये पंक्तियाँ और दुआ कोई खुदा की ही रज़ा रही होगी इसमें .....
देख' पाकीज़गी... मैं क़लम की ; ख़ुदा
मा'बदे भूल कर …सर झुकाता रहा
आपकी ये पाकीजगी भरे लफ्ज़ और यूँ सरे राह सर झुकाना ....आपको और बुलंदियों तक ले जाये ....रब्ब आपको और हुनर दे .....!!
मुहब्बत इक ऐसा खूबसूरत ख्याल है जिसे.... सिर्फ लफ़्ज़ों से भी महसूस किया जा सकता है ...
लफ्जों से 'भी' या लफ़्ज़ों से 'ही'...?
और सिर्फ लफ़्ज़ों से...???
बहरहाल ....
सुन्दर रचनाएँ...
अय मोहब्बत ...!
आ मुझे इश्क़ की नदी में
डुबो दे .........
मैं नापना चाहती हूँ ...
अपने ज़िस्म के
इक-इक कतरे से
चनाब की गहराई .....!!
sabhi bahut achchi hain....lekin meri pyaari-dulari to ye waali ho gai...aapki kalam ka ye roop bahut pyara hai
एक अरसे के बाद आपके ब्लॉग पर आ सका आगे पीछे का सब पढ़ा .पढ़ सुन कर मन झंकृत भी हुवा झकझोर भी गया ,आँखें नम भी हुईं .फ़िलहाल तो इतना ही ......
फिर भी .....
कितना दर्द बसा रक्खा है मन पर वक्त की चादर डाले
फिर भी जुबाँ है बोल ही जाती होठो पर हों
कितने ताले .
गागर में सागर सा एहसास लिये हैं कविताएँ।
--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
तेरे जिक्र की खुशबू
बिखेर जाती है
चुपके से सबा
मेरे करीब कहीं ....
तेरी होंद हर पल
मेरे जेहन पर
खीँच जाती है
शाद की लकीरें
ऐसे में तू ही बता
मैं चुप्पियों की ज़मीं पर
कैसे चलूं .......!?!
इजाज़त हो तो कहूँ...
चुप्पियों की ज़मीं पर कैसे चला जाता है ?
त्रिपुरारि कुमार शर्मा said...
इजाज़त हो तो कहूँ...
चुप्पियों की ज़मीं पर कैसे चला जाता है ?
जी त्रिपुरारी जी अगर खुशियाँ अपना आँचल फ़ैलाने लगे तो ख़ामोशी के साथ चलना कठिन हो जाता है ....
अय रब! तूने पीर की कोख से जनी मोहब्बत को तो सुर्ख गुलाब बख्शे पर ऐसे ही किसी गहरे रंग का कोई इक आब उस मोहब्बत की ख़ुश्बू से पैदा हुई श्रृद्धा को क्यों नहीं बख्शा, जिसे चुपके से मैं हीर के दरवाजे पर रख आता ........
अपनी उम्र की
आधी चाँदनी से ....
तुम्हारे आधे डूबे सूरज पर
लिख देना चाहती हूँ
मुहब्बत का आखिरी गीत
तुम फलक की ओर
मुँहकर आवाज़ देना
मैं उतर आऊँगी ...
तुम्हारी हथेलियों पर
सुर्ख फूल लिए ......!!
वाह वाह !!......
आपकी सोच और कलम को सलाम ||
यह होन्द का बिम्ब अच्छा लगा
har ek rachna stabdha karne wali hai.....
bahut dino baad padha lekin har rachna ko do do baar padhaaa..
तू अभी खामोश है ....
मेरी सांसें बहुत ज़ख़्मी हैं
कहीं उडीक का पल
अस्त न हो जाये
तेरे आने तक ......!!
........बहुत सुंदर....बधाई॥
हरकीरत ' हीर' said...
जी त्रिपुरारी जी अगर खुशियाँ अपना आँचल फ़ैलाने लगे तो ख़ामोशी के साथ चलना कठिन हो जाता है.
हीर साहिबा, इक बात कहूँ...
कही हुई सारी बातें एक रोज़ ग़लत साबित हो जायेंगी मगर जो अनकही है (और अगर उसे समझ लिया जाये)वही हमेशा के लिए है,वही सच है,वही शाश्वत है !
अब कहिए ख़ामोशी की ज़मीन पर चलना पसंद करेंगी या...?
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